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आज का विचार - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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आचार्य विद्यासागर जी के स्वर्णिम संस्मरण
वाचन के साथ पाचन भी
आज का युग ज्ञान-विज्ञान का युग है, इस युग में ज्ञान की पूजा अधिक हो रही है। चारित्र को गौण करते जा रहे हैं। लेकिन ज्ञान के साथ-साथ चारित्र की ओर भी कदम बढ़ाना चाहिए। जो ज्ञान अर्जित किया है उसे प्रयोग में भी लाना चाहिए क्योंकि असंयत ज्ञान कभी भी खतरा पैदा कर सकता है। पहले के युग में गुरु के सान्निध्य में रहकर ही शिक्षा ली जाती थी उन्हीं के सान्निध्य में ज्ञान आचरण का सर्वांगीण विकास होता है। गुरुकुल आदि की भी पहले यहाँ व्यवस्था भी थी। वहाँ ज्ञान के साथ-साथ सदाचार की भी शिक्षा मिलती थ
कर्तव्य दृष्टि
राजधानी भोपाल में आचार्य श्री के सान्निध्य में पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव का कार्यक्रम चल रहा था। गजरथ फेरी के दिन प्रतिष्ठाचार्य महोदय ने आचार्य महाराज से कहा कि- हाथी को पहले से ज्यादा खिलाया-पिलाया नहीं जाता। वरना वह रथ फेरी के समय गड़बड़ कर देगा फिर उसे कोई सम्हाल नहीं पावेगा। उसमें स्फूर्ति आ जाती है फिर वह महावत से भी नहीं डरता उसे कंट्रोल में रखना बड़ा मुश्किल काम हो जाता है। यह सब आचार्य भगवन् चुपचाप सुनते रहे और यह बात अपने शिष्यों पर लागू करते हुए हँसकर बोले- आज एक बात मालूम चली कि शिष्यो
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विचार सूत्र संकलन
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भाग्य
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मोक्षमार्ग, तप
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आत्महित
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ऊर्ध्वगमन
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चिन्ता
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दुःख
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पाप-पुण्य
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परिवर्तन
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उपवास
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आचार्य विद्यासागर जी की राष्ट्रीय देशना
सबको जीने का अधिकार
यह भारत योग प्रधान है, भोग प्रधान नहीं। अब उपयोग लगाकर योग की साधना करो। यहाँ आत्मा-परमात्मा की साधना होती है और यह आत्मा सभी के पास है, पशुओं के पास भी है फिर पशुओं का कत्ल क्यों? यह पापाचार कब तक चलेगा। याद रखो! जब किसी की अति हो जाती है तो उसकी इति भी होती है। अब पाप की इति करना है, कीमत पैसों की नहीं, कीमत तो जीवन की है। किसी के जीवन को छीनने का हमको कोई अधिकार नहीं, सबको जीने का अधिकार है। अत: किसी को मत मारो, सबको जीने दो, जीवन सबको प्यारा है, चाहे वह जानवर हो या आदमी। अत: किसी भी जीव को म
मूकमाटी संगोष्ठी समापन सत्र और रविवारीय धर्मसभा
भोपाल। मूकमाटी संगोष्ठी का समापन सत्र सुभाष स्कूल मैदान में प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम प्रो. अमिता मोदी और प्रो. रश्मि जैन ने मूकमाटी के सन्दर्भ में विचार व्यक्त किए। प्रो. उमाशंकर शुक्ल ने कहा कि मानव मंगल की अनेक बातें इसमें कही गई हैं। प्रो. जे. के. जैन सागर ने कहा कि ये वैज्ञानिक तथ्यों से परिपूर्ण है। छत्तीसगढ़ राज्य शिखर सम्मान से विभूषित प्रो. चंद्रकुमार जैन राजनांदगाँव ने संचालन का कठिन और साहसपूर्ण कार्य अपने कन्धों पर दायित्व के रूप में सम्भाल रखा था। अगले वक्ता के रूप में डॉ. बारेलाल जैन
भारत के कलंक को मिटाओ
गौ का दूध आदमी के बच्चों को पुष्ट करता है, शक्ति देता है, उनको एक लम्बी उम्र देता है। जो शक्ति माँ के दूध में नहीं, वह शक्ति है गौमाता के दूध में। ऐसी शक्तिवर्धक, स्वास्थ्य की जननी गौमाता का आज वध हो रहा है, जिसका हमने दूध पिया, उसी का आज खून बेच रहे हैं। भारत के लिए यह बहुत बड़ा कलंक है। भारत कृषि प्रधान देश है, माँस प्रधान नहीं। आज भारत में माँस का व्यापार हो रहा है, शराब का व्यापार हो रहा है, अण्डों की खेती हो रही है, यह सब भारत के लिये कलंक है। माँस, शराब, अण्डे, मछली को बेचकर य
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आचार्य विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम
पाठ १० जैसे के जैसे
कहते हैं कि कार्य के आरंभिक समय में उत्साह एवं विशुद्धि का होना इतना महत्त्वशाली नहीं, जितना कि कार्य की पूर्णतापर्यंत उसका अनवरत बना रहना। इसी तरह दीक्षा के समय वैराग्य, उत्साह एवं विशुद्धि का होना तो स्वाभाविक है। महत्त्व तो तब है, जब समाधिमरण पर्यंत तक वह अनवरत बनी रहे।आचार्य भगवन् श्री विद्यासागरजी मोक्षमार्ग के एक ऐसे महत्त्वशाली व्यक्तित्व हैं, जिनकी विशुद्धि, उत्साह, चेतना एवं आध्यात्मिकता दीक्षा के समय जैसी थी, आज ५० वर्ष पश्चात् भी वैसी की वैसी ही है। वह तब से अब तक 'जैसे के जैसे हैं। ग
पाठ ७ उत्तम दस धर्मधारी
आचार्य भगवन् कहते हैं- 'आत्मा के स्वभाव की उपलब्धि रत्नत्रय में निष्ठा के बिना नहीं होती और रत्नत्रय में निष्ठा दया धर्म के माध्यम से, क्षमादिधर्मों से ही मानी जाती है।' मूल गुणों में पठित दस धर्मों का आचार्यश्रीजी पूर्ण निष्ठा एवं उत्कृष्टता से किस तरह परिपालन करते हैं, इससे जुड़े हुए कुछ प्रसंगों को यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है। श्रमणत्व अंगरक्षक : दस धर्म * अर्हत्वाणी * धम्मो वत्थु-सहावो ... .... जीवाणं रक्खणं धम्मो ॥ ४७८॥ वस्तु के स्वभ
पाठ ९ जिनमार्ग पोषक
गुरु वह आध्यात्मिक शिल्पकार हैं, जो शिष्य को दीक्षा के साँचे में ढालकर न केवल एक मूर्ति का रूप देते हैं, बल्कि निर्वाण प्राप्ति के लिए आवश्यक संस्कारों के रंग-रोगन से भरकर उसके जीवन को श्रेष्ठ बनाते हुए उस पर अनुग्रह करते हैं। गुरु के द्वारा शिष्य में पोषित किए जाने वाले ऐसे ही अनमोल संस्कारों एवं शिक्षाओं से जुड़े कुछ प्रसंगों को इस पाठ का विषय बनाया जा रहा है। आचार्यश्रीजी उच्चकोटी के साधक होने के साथ-साथ श्रमण परंपरा को संप्रवाहित करने के लिए शिष्यों को संग्रहित एवं अनुग्रहित करने व
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आचार्य विद्यासागर जी द्वारा ग्रन्थ पद्यानुवाद
कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971)
कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971) ‘कल्याणमंदिर स्तोत्र' आचार्य कुमुदचन्द्र, अपरनाम श्री सिद्धसेन दिवाकर द्वारा विरचित है। इसका पद्यानुवाद आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने मदनगंज-किशनगढ़, अजमेर (राज.) में सन् १९७१ के वर्षायोग में किया। इस स्तोत्र को पार्श्वनाथ स्तोत्र भी कहते हैं। मूल स्तोत्र एवं अनुवाद दोनों ही वसन्ततिलका छन्द में निबद्ध हैं। इस कृति में उन कल्याणनिधि, उदार, अघनाशक तथा विश्वसार जिन-पद-नीरज को नमन किया गया है जो संसारवारिधि से स्व-पर का सन्तरण करने के लिए
अंतर घटना
उपलब्ध जैन-दर्शन साहित्य में प्राकृत-भाषा-निष्ठ साहित्य का बाहुल्य है। कारण यही है कि यह भाषा सरल, मधुर एवं ज्ञेय है। इसीलिए कुन्दकुन्द की लेखनी ने प्राकृत-भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना कर डाली। उन अनेक सारभूत ग्रंथों में अध्यात्म-शान्तरस से आप्लावित ग्रंथराज 'समयसार' है। इसमें सहज-शुद्ध तल की निरूपणा, अपनी चरम सीमा पर सोल्लास 'नृत्य करती हुई. पाठक को, जो साधक एवं अध्यात्म से रुचि रखता है, बुलाती हुई सी प्रतीत होती है। यथार्थ में, कुन्दकुन्द ने अपनी अनुभूतियों को 'समयसार' इस ग्रंथ के रूप में रूप
स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी
स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी ज्ञानावरणादिक कर्मों से, पूर्णरूप से मुक्त रहे। केवल संवेदन आदिक से युक्त, रहे, ना मुक्त रहे ॥ ज्ञानमूर्ति हैं परमातम हैं, अक्षय सुख के धाम बने। मन वच तन से नमन उन्हें हो, विमल बने ये परिणाम घने ॥१॥ बाह्यज्ञान से ग्राह्य रहा पर, जड़ का ग्राहक रहा नहीं। हेतु-फलों को क्रमशः धारे, आतम तो उपयोग धनी॥ ध्रौव्य आय औ व्यय वाला है, आदि मध्य औ अन्त बिना। परिचय अब तो अपना कर लो, कहते हमको सन्त जना ॥२॥ प्रमेयतादिक गुणधर्
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आचार्य विद्यासागर जी के लिखित प्रवचन
कुण्डलपुर देशना 18 - विद्वान - शास्त्री की समाधी
मोहरूपी शत्रु से सारी दुनिया पीड़ित एवं हताहत हुई है। किन्तु आत्म तत्व को प्राप्त करने के लिए सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण करने पर मोहरूपी शत्रु को ही हताहत या नष्ट किया जाता है। पंडित जगन्मोहनलाल जी शास्त्री ने समाधिमरण करके विद्वत् जगत के समक्ष एक आदर्श उपस्थित किया है। इस शरीर के कारण आस्था और निष्ठा में कमी आकर साधना कमजोर पड़ जाती है। पर आस्था एवं निष्ठा को दृढ़ बनाकर ज्ञान, आराधना को शास्त्रीजी ने जीवन में चरितार्थ किया। पंडित जी अनेक वर्षों से सल्लेखना हेतु आचार्य श्री से दि
कुण्डलपुर देशना 2 - स्वयं को देखे
जब तक इंद्रिय संपदा तथा शारीरिक स्वस्थता, मन एवं बुद्धि ठीक-ठाक है तब तक शरीर और कर्मों को आत्मा से पृथक् करने की साधना अच्छी तरह से कर लेनी चाहिए। पर की ओर नहीं बल्कि स्व की ओर देखने, लक्ष्य करने से ही अपूर्व आनंद की अनुभूति होगी। यदि भविष्य में और अवधारण करने की इच्छा नहीं है तो राग-द्वेष के चक्कर से ऊपर उठने की उत्कंठा रखकर पर्याय बुद्धि को छोड़ने तथा द्रव्य दृष्टि बनाने से ही कल्याण होना संभव होगा, शरीर को धारण करना एवं उसका जीर्ण-शीर्ण होकर छूट जाना अनादिकाल का क्रम है। अभी तक अनेकों
तपोवन देशना 8 - भीतर की डांट
एक व्यक्ति को डॉक्टर ने कहा कि इस दवाई को दिन में ३ बार पी लेना। उस व्यक्ति ने दवाई पीने के लिए डांट खोली और दवाई निकालना चाही, किन्तु दवाई नहीं निकली। दो-तीन बार प्रयास करने पर भी जब दवाई नहीं निकली, तब उसने सोचा इसमें दवाई नहीं है। इसी बीच दूसरे व्यक्ति ने कहा कि इसमें दवाई है परन्तु एक डांट और खोलना पड़ेगी तब दवाई निकलेगी। दवाई, डांट और शीशी का रंग एक सा होने से उसे ज्ञान नहीं हो रहा था। ज्ञान होते ही उस डांट को निकाल दिया गया और दवाई बाहर आ गई। इसी प्रकार मोक्ष मार्ग में दो प्रकार की डांट हो
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काव्य रचनाएँ
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पवित्र मानव जीवन / कर्तव्य पथ प्रदर्शन
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जिनेन्द्र देव की वाणी , जिसे पूर्वाचार्यो ने प्राकृत संस्कृत भाषा में निबद्ध किया था, उसी का आचार्य विद्यासागर जी द्वारा हिंदी भाषा में अनुदित पद्यानुवादजैन गीता (समणसुत्तं) कुन्दकुन्द का कुन्दन (समयसार) -
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सभी से क्षमा, सभी को क्षमा
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दिनांक :- २६ फरवरी २०२४
परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य पूज्य निर्यापक श्रमण ज्येष्ठ श्रेष्ठ मुनि श्री समय सागर जी महाराज ससंघ डोंगरगढ़ में विराजमान है ।
उनके अलावा लगभग सभी निर्यापक संघ एवं पूज्य मुनि संघ का मंगल विहार चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से डोंगरगढ़ सिटी की ओर हुआ।आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
संभावित मुनि संघ एवं विहार दिशा
संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ योगसागरजी महाराज
★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ समतासागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ पूज्यसागरजी महाराज
★ मुनिवरश्री १०८ महासागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निष्कंपसागर जी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निस्सीमसागर जी महाराज
★ऐलकश्री १०५ निश्चय सागरजी महाराज
★ऐलकश्री १०५ धैर्य सागरजी महाराजससंघ का मंगल विहार अभी अभी चंदगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से हुआ
◆आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
◆विहार दिशा :- राजेन्द्र नगर/ अमरकंटक की ओर
संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ प्रसादसागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ अजितसागरजी महाराज
★ मुनिवरश्री १०८ चंद्रप्रभसागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निरामयसागर जी महाराज
★ऐलकश्री १०५ विवेकानंद सागरजी महाराजससंघ का मंगल विहार अभी अभी चंदगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से हुआ
◆आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
◆विहार दिशा :- बालाघाट की ओरसूचना इसी लिंक पर अपडेट की जाएगी
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जन्म का उत्सव तो सभी मानते हैं, किंतु जो मरण का उत्सव मनाते हैं वह मौत को भी जीत जाते है। जैन परम्परा में मरण को जीतने की इसी कला को समाधिमरण कहते है।
छत्तीसगढ़ की धर्मनगरी डोगरगढ़ चंद्रगिरी दिगंबर तीर्थक्षेत्र पर समाधि साधनारत दिगंबर जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज ने दिनांक 18 फरवरी 2024 के ब्रम्हमुहूर्त में जीवन की इसी श्रेष्ठतम समाधि अवस्था को प्राप्त किया। मानों एक क्षण के लिए समय का चक्र थम गया। भाजपा के केंद्रीय अधिवेशन दिल्ली में आज कार्यवाही प्रारंभ होने के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमान जेपी नड्डा जी ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, आदि उपस्थित सभी विशिष्ट महानुभावों को यह दुखद सूचना देकर गुरुदेव के प्रति मौन श्रद्धांजलि अर्पित कराई। इस अवसर पर देश के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र जी मोदी ने कहा की समाधि की सूचना मिलने के बाद उनके भक्त और हम सभी शोक में है और हम सब भी शोक में हैं और मेरे लिए तो यह व्यक्ति गत बहुत बड़ी क्षति है। इस समय वह गुरुदेव अपना अपना छोटा सा संघ लिए आत्मा साधना में लिए लीन रहते थे। जबकि उनके द्वारा दीक्षित हजारों शिष्य, शिष्याएं समूचे देश विहार कर रहे है। समाचार फैलते ही समूचे देश के श्रद्धालुओं, भक्तों की भीड़ गुरुदेव के अंतिम दर्शन करने उमड़ पड़ी। मध्यान्ह काल 1 बजे गुरुदेव की विमान यात्रा प्रारंभ होते ही लाखों नयन अश्रुपूरित हो उठे।मुख्य मंत्री मोहन यादव के निर्देशन से आए चेतन कश्यप :केबिनेट मंत्री सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय ने किए अंतिम दर्शन
"जैनम जयति शासनम, वंदे विद्यासागरम" के उद्घोषों के साथ ही मुनिसंघ के साथ विमान यात्रा अंतिम संस्कारस्थली पर पहुंची। मुनीसंघ के द्वारा किए गए अंतिम धार्मिक अनुष्ठान, भक्तिपाठ संपन्न होते ही प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी विनय भैया जी द्वारा दाह संस्कार की विधि संपन्न की गई। देश के प्रसिद्ध श्रावक श्रेष्ठि श्रीमान अशोक जी पाटनी(R.K.मार्बल) किशनगढ़, प्रभात जी मुंबई, राजा भैया सूरत, अतुल सराफ पूना, विनोद बड़जात्या रायपुर, प्रमोद कोयला दिल्ली, पंकज जी पारस चैनल दिल्ली, दिलीप घेवारे ठाणे, किरीट भाई मुंबई, चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र कमेटी से किशोर जी जैन, चंद्रकांत जैन, सुधीर जैन छुईखदान आदि सभी ट्रष्टिगण उपस्थित थे।हम सबके प्राणदाता, जीवन निर्माता गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण कर ली थी और जागरूक अवस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुवे 3 दिन का निर्जल उपवास करते हुवे प्रत्याख्यान किया था। अखंड मौन धारण करके उन्होंने अपनी यह समाधि साधना संपन्न की।
इस अवसर पर प्रतिभामंडल की समस्त ब्रह्मचारिणी बहने चंद्रगिरी क्षेत्र रामटेक, तिलवारा जबलपुर, ललितपुर एवम इंदौर की विशेष उपस्तिथि के साथ विभिन्न प्रदेशों से भी श्रद्धालुजन आए। ब्रम्हचारी भैया, ब्रम्हचारी बहनें, समस्त गौशलाओ के कार्यकर्तगण, पुर्नायु, शांतिधारा, हथकरघा, भाग्योदय के कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे। ब्राम्ही विद्या आश्रम की बहने, श्राधिका आश्रम, उदासीन आश्रम इंदौर की बहने, ब्रम्हचारी समस्त ब्रम्हचारी भैया आदि इस अवसर पर विशेष रूप से विभिन्न प्रदेशों की समाज एवम कार्यकर्ता के संगठन उपस्थित रहे। गुरुदेव के संघ जहां जहां विराजमान थे आर्यिका संघ जहां जहां विराजमान थे, के द्वारा गुरुदेव के श्रीचरणों में अपनी विनयांजलि अर्पण की।
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आचार्य श्री जी के अवतरण दिवस पर उनके श्री चरणों में कोटि कोटि नमोस्तु अर्पित करते हैं। नमोस्तु गुरु देव। नमोस्तु गुरु देव। नमोस्तु गुरु देव।*Acharya Guruvar Vidhyasagar Jee Maharaj Ko Paschimi Uttar Pradesh Laane Ki Ek Vishesh Aur Adbhut Pehal Shantinath Yuva Sangh Asoda House Meerut Dwaara* Kaun Kehta Hai Ke Acharye Shri Vidhyasagar Jee Maharaj Paschimi Uttar Pradesh Nahi Aana Chahte? Agar Aap Bhi Yahi Sochte Hain Toh Yeh Video Dekhiye, Unki Muskuraahat Dekhkar Aapko Khud Samajh Ajaayega Ki Woh Kya Chahte Hain. Shantinath Yuva Sangh Ka Utsaah Evam Akalpniye Tareeka Dekhiye Apne Guruwar Ko Manane Ka. Poori tarah se jut gaye h…आपके द्वारा मीडिया का बहुत ही सुन्दर प्रयोग किया गया है।आन लाइन स्वाध्याय एकबहुत ही सुन्दर प्रयोग है जिसके लिएआप बधाई के पात्र हैं। आपको बहुत बहुत साधुवाद । मुझे इससे बहुत फ़ायदा हुआ है।आपका कोटि कोटि धन्यवाद । इस स्वाध्याय को प्रतियोगिता से जोड़ कर तो आपने इसे बहुत ही दिलचस्प भी बना दिया है। पुन:बहुत बहुत धन्यवाद प्रमोद जैन लखनऊAacharyashri Maharaj shri shri Vidyasagar ji maharaj k pravachan Youtube k channel Kundal pur mahotsav 2022 par upload nhi ho rahe hai bas bade baba ki shanti dhara he upload ho rahi hai Kripaya help kareआपका यह सराहनीय कार्य जैन धर्म के लिए अतुलनीय योगदान है 🙏नीरज जैन 🙏बहुत अच्छा स्वध्याय कराया गया हैसौरभ भैया आपने बहुत ही अच्छी वेबसाइट डिजाइन किया हमारे लिए यह सबसे अच्छा तरीका है स्वाध्याय करने का यह जैन धर्म का सागर है और आचार्य भगवन् के लिए आपका जो समर्पण भाव है वह बहुत ही अच्छा है सभी जरूर इस ऐप और वेवसाईट के द्वारा स्वाध्याय करने का प्रयास करें सादर जय जिनेन्द्र 🙏🙏🙏Me yah janana chata hu ki marte hue tote ko namokar mantra kisne sunayaआचार्य श्री और संघ के अन्य महाराज की आहार चर्या की फोटो और वीडियो डालें डेली प्लीज.Jai JINENDRA, Very useful to getting in touch with Guruvar & their speeches. I am very thankful to Web. Maker.Bahut acche website heiHappy to see this website and web.. u had done a good job, keep it continue.. Feel free to subordinate any kind of work to me, will be glad to serve you. JAI JINENDRA!!bhut hi accha website h or guru ke dura dhrm ki prabhavna hoti rhe......जय जिनेंद्र 🙏 नमोस्तु शासन जयवंत हो 🤗 इस एप से हमारे जैन धर्म की बहुत प्रभावना हो रही हैजय हो आचार्य विद्यासागर मुनि महाराज की, इस वेबसाइट से मुझे काफी कुछ सीखने को मिला, स्वाध्याय को तो एक अलग ही ढंग से प्रस्तुतु किया है, जैसे की हमारे ही मन के प्रश्नो का कोई उत्तर दे रहा हो. वेबसाइट पर प्रतियोगिताएं हैं जो काफी सहज ढंग से बनायीं गयी है . इसके इलावा मुनि श्री की भक्ति में आत्मा लवलीन करने वाले भजन से तो मन गदगद हो गया. और मैं व्यक्त करना चाहूँ तो भी इसकी प्रशंशा नहीं सकता. ऐसा लगता है, इस वेबसाइट में सब कुछ समां गया हैप्रतिभास्थली के बारे में जानकारी एवम प्रचार अधिक हो ये आचार्य श्री जी भाव को आप के माध्यम से सभी तक पहुंचा सकते है सप्रेम जैन संयुक्त मंत्री प्रतिभास्थली चन्द्रगिरी डोंगरगढ़जयजिनेन्द्र । सम्यक दर्शन । हरेक शब्द । नही ।नही । हरेक अक्षर उत्तम है । जीने का सारा है। आत्मा की पुकार है । यह कार्यक्रम संयम स्वर्ण महोत्सव के बाद भी जारी करें। आप सभी कार्यकर्ताओं को मेरा नमस्कार ।बहुत सूंदर वेब साईड है।बहुत ही अच्छी वेबसाइट है, गुरु जी के बारे मे सभी को जानने का मौका मिला। पुण्य बाले लोगो को ही पंचम काल में ऐसे गुरु मिल सकते है। और उनकी अनुमोदना करने वाली ये वेबसाइट बहुत ही अच्छी है।जय जिनेन्द्र! घर बैठे ही तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ जिसे जैन गीता भी कहते हैं का स्वाध्याय करने का अवसर मिल रहा है। इसमें चारों अनुयोगो का ज्ञान है। पिछले चातुर्मास में माता जी से कक्षा ली थी अब पुनरावृति हो जाएगी। इस सराहनीय कार्य के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। जय जय गुरुदेव! -
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संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज
ये ऐसे संत है जिनका जीवन एक सम्पूर्ण दर्शन है जिनके आचरण में जीवों के लिए करुणा पलती है जिनके विचारों में प्राणी मात्र का कल्याण आकर लेता है,जिनकी देशना में जगत अपने सदविकास का मार्ग प्रशस्त करता है |आप निरीह, निस्पृह वीतरागी है फिर भी आपके विचार भारतीयता के प्रति अगाध निष्ठा, राष्ट्रभक्ति और कर्तव्यपरायणता से ओतप्रोत है आपका चिंतन प्राचीन भारतीय हितचिंतको दार्शनिको एवं संतो का अनुकरण करते हुए भी मौलिक है |आचार्य महाराज तो ज्ञानवारिधी है और उनके विचारों को संकलित करना छोटी सी अंजुली में सागर को भरने का असंभव प्रयास करना है|
रास्ता उनका, सहारा उनका, मैं चल रहा हूँ दीपक उनका, रौशनी उनकी मैं जल रहा हूँ प्राण उनके हर श्वास उनकी मैं जी रहा हूँ
From Wikipedia Acharya Shri Vidyasagarji Maharaj (born 10 October 1946) is one of the best known modern Digambara Jain Acharya(philosopher monk). He is known both for his scholarship and tapasya (austerity). He is known for his long hours in meditation. While he was born in Karnataka and took diksha in Rajasthan, he generally spends much of his time in the Bundelkhand region where he is credited with having caused a revival in educational and religious activities. Know more about him
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