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आज का विचार - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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आचार्य विद्यासागर जी के स्वर्णिम संस्मरण
कृतज्ञता के आंसू
सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर से विहार हुआ। गर्मियों में मेरे पैर में हरपिश रोग हो गया था जिसके कारण पैर में दर्द बना रहता था, ज्यादा दूर तक चल नहीं पाता था। पैर का दर्द बढ़ रहा था मैं नसरुल्लागंज में कक्ष के बाहर बैठा था। आचार्य भगवन् विहार करने के उद्देश्य से कक्ष के बाहर आ गये। मुझे वहीं बैठा देखकर मेरे करीब आ गये और सहानुभूति भरे शब्दों में बोले - क्यों कुंथु ! कैसा है पैर का दर्द ? मैंने नमोऽस्तु करते हुए कहा - आचार्य श्री जी पैर में दर्द बढ़ता ही जा रहा है, ज्यादा तेज चलते नहीं बन रहा है। त
हल
विहार करते हुए नेमावर की ओर से जा रहे थे। रास्ते में ही आचार्य श्री जी से पूछा - आप तो आचार्य श्री जी नवमीं कक्षा तक पढ़े हैं और हम लोगों को एम0ए0 पढ़ने के लिए कहते हैं| यदि आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज ने आपको एम0ए0 तक पढ़ने को कहा होता तो आप हम लोगों को कहाँ तक पढ़ने को कहते - पी.एच.डी., लॉ आदि। आचार्य श्री जी हँसकर बोल उठे - नहीं पहले मल्लिसागर जी (मल्लप्पा जी) कहते थे ज्यादा क्या पढ़ना, खेती-किसानी तो करना ही है। मेन सब्जेक्ट तो कृषि ही है। यह हल चलाओ जो कि समस्त समस्याओं का हल है। पहले लोग न
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विचार सूत्र संकलन
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विद्यागुरु की दिव्य वाणी
- By Jitendra Dalal,
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साधना 1- रत्नत्रय
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गर्भ
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चिन्तन
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परिवर्तन
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रोग
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संकल्प-विकल्प
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सिद्धान्त
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वैय्यावृत्ति
- By संयम स्वर्ण महोत्सव,
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आचार्य विद्यासागर जी की राष्ट्रीय देशना
७o साल की आजादी में जनता का पक्ष कमजोर
मुख्यमंत्री जी, आपको जनता ने विधायक बनाया था इसलिए जनता जो शासक है उसके भले के लिए सोचकर ही आगे कदम बढ़ाएँ क्योंकि केन्द्र कोई भी हो जनता केन्द्र बिंदु है। चुनाव के समय ही नहीं, आचार संहिता हमेशा के लिए लागू होना चाहिए। ७० साल हो गए आजादी को आज, परन्तु जनता का पक्ष कमजोर हो गया है। -२ अक्टूबर २०१६, भोपाल
वोट की शक्ति पहचानो
जनता का भी कर्तव्य होता है कि वह ऐसे व्यक्ति का चयन करे जो अहिंसक हो। पापों का समर्थन करने वाले व्यक्ति का चयन नहीं करना चाहिए। यह प्रजातन्त्र है। यहाँ प्रजा ही अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है। अत: जनता को बड़े सोच विचारकर, विवेकपूर्ण उस व्यक्ति का चुनाव करना चाहिए जो प्रजा को सुख-समृद्धि के लिए व्यवस्था दे एवं देश की गरिमा को कलंकित न करे, जो पशु हत्या रोके, कत्लखाने बंद कर पशुओं का संरक्षण करे एवं अहिंसा, दया, न्याय का पालन करे। आपके वोट में बहुत शक्ति है। आप जरा विचार करो, जिनको आपने चुना है
जानवर प्रकृति का संतुलन बनाते : उनकी रक्षा करो
इन छोटे-छोटे पशुपक्षियों में भी प्राण हैं, उनके पास भी ज्ञान है, सोचने-विचारने की शक्ति है। वे भी धर्म को समझ जाते हैं और अपने जीवन की उन्नति कर लेते हैं। हमारा इन तमाम पशु-पक्षियों की रक्षा करना परम कर्तव्य है, ये जानवर प्रकृति के संतुलन को बनाते हैं। यह धरती की हरियाली जानवरों की किस्मत से है, मनुष्य की किस्मत से नहीं। यदि ये जानवर समाप्त हो जायेंगे तो धरती की हरियाली भी समाप्त हो जायेगी और हरियाली के अभाव में यह मनुष्य जाति भी जिंदा नहीं रह सकती। अत: जानवरों की रक्षा करना ही हरियाली को जिन्दा
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आचार्य विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम
पाठ १० जैसे के जैसे
कहते हैं कि कार्य के आरंभिक समय में उत्साह एवं विशुद्धि का होना इतना महत्त्वशाली नहीं, जितना कि कार्य की पूर्णतापर्यंत उसका अनवरत बना रहना। इसी तरह दीक्षा के समय वैराग्य, उत्साह एवं विशुद्धि का होना तो स्वाभाविक है। महत्त्व तो तब है, जब समाधिमरण पर्यंत तक वह अनवरत बनी रहे।आचार्य भगवन् श्री विद्यासागरजी मोक्षमार्ग के एक ऐसे महत्त्वशाली व्यक्तित्व हैं, जिनकी विशुद्धि, उत्साह, चेतना एवं आध्यात्मिकता दीक्षा के समय जैसी थी, आज ५० वर्ष पश्चात् भी वैसी की वैसी ही है। वह तब से अब तक 'जैसे के जैसे हैं। ग
पाठ ७ उत्तम दस धर्मधारी
आचार्य भगवन् कहते हैं- 'आत्मा के स्वभाव की उपलब्धि रत्नत्रय में निष्ठा के बिना नहीं होती और रत्नत्रय में निष्ठा दया धर्म के माध्यम से, क्षमादिधर्मों से ही मानी जाती है।' मूल गुणों में पठित दस धर्मों का आचार्यश्रीजी पूर्ण निष्ठा एवं उत्कृष्टता से किस तरह परिपालन करते हैं, इससे जुड़े हुए कुछ प्रसंगों को यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है। श्रमणत्व अंगरक्षक : दस धर्म * अर्हत्वाणी * धम्मो वत्थु-सहावो ... .... जीवाणं रक्खणं धम्मो ॥ ४७८॥ वस्तु के स्वभ
पाठ ६ पंचाचार पालक
पंचाचार संसार सागर से पार होने में घाट के समान होने से परम तीर्थ तथा जन्म-मरणादि की बाधा दूर करने में सहायक होने से परम मंगल रूप हैं। इन पंचाचारों का निर्मल रीति से पालन स्वयं करने एवं अपने शिष्यों को भी करवाने से जिनका जीवन एक उत्कृष्ट तीर्थ बन गया है, ऐसे आचार्य भगवन् के जीवन में परिपालित पंचाचारों से संबंधित प्रसंगों को इस पाठ का विषय बनाया जा रहा है। शुद्धात्म-परिचायक : पंचाचार * अर्हत्वाणी * सुदृनिवृत्ततपसां.......आचारो वीर्याच्छुद्धेषु तेषु तु॥७/३५॥
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आचार्य विद्यासागर जी द्वारा ग्रन्थ पद्यानुवाद
कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971)
कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971) ‘कल्याणमंदिर स्तोत्र' आचार्य कुमुदचन्द्र, अपरनाम श्री सिद्धसेन दिवाकर द्वारा विरचित है। इसका पद्यानुवाद आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने मदनगंज-किशनगढ़, अजमेर (राज.) में सन् १९७१ के वर्षायोग में किया। इस स्तोत्र को पार्श्वनाथ स्तोत्र भी कहते हैं। मूल स्तोत्र एवं अनुवाद दोनों ही वसन्ततिलका छन्द में निबद्ध हैं। इस कृति में उन कल्याणनिधि, उदार, अघनाशक तथा विश्वसार जिन-पद-नीरज को नमन किया गया है जो संसारवारिधि से स्व-पर का सन्तरण करने के लिए
अंतर घटना
उपलब्ध जैन-दर्शन साहित्य में प्राकृत-भाषा-निष्ठ साहित्य का बाहुल्य है। कारण यही है कि यह भाषा सरल, मधुर एवं ज्ञेय है। इसीलिए कुन्दकुन्द की लेखनी ने प्राकृत-भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना कर डाली। उन अनेक सारभूत ग्रंथों में अध्यात्म-शान्तरस से आप्लावित ग्रंथराज 'समयसार' है। इसमें सहज-शुद्ध तल की निरूपणा, अपनी चरम सीमा पर सोल्लास 'नृत्य करती हुई. पाठक को, जो साधक एवं अध्यात्म से रुचि रखता है, बुलाती हुई सी प्रतीत होती है। यथार्थ में, कुन्दकुन्द ने अपनी अनुभूतियों को 'समयसार' इस ग्रंथ के रूप में रूप
स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी
स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी ज्ञानावरणादिक कर्मों से, पूर्णरूप से मुक्त रहे। केवल संवेदन आदिक से युक्त, रहे, ना मुक्त रहे ॥ ज्ञानमूर्ति हैं परमातम हैं, अक्षय सुख के धाम बने। मन वच तन से नमन उन्हें हो, विमल बने ये परिणाम घने ॥१॥ बाह्यज्ञान से ग्राह्य रहा पर, जड़ का ग्राहक रहा नहीं। हेतु-फलों को क्रमशः धारे, आतम तो उपयोग धनी॥ ध्रौव्य आय औ व्यय वाला है, आदि मध्य औ अन्त बिना। परिचय अब तो अपना कर लो, कहते हमको सन्त जना ॥२॥ प्रमेयतादिक गुणधर्
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आचार्य विद्यासागर जी के लिखित प्रवचन
सर्वोदयसार 16 - द्रश्य नहीं द्रष्टा को पहचानो
किसी भी कार्य की शुरूआत और सानंद सम्पन्नता के लिये विशेष पुण्य-भावनाओं की आवश्यकता होती है, धन की नहीं। आँखें सभी के पास हैं जो देखने का काम करती हैं किन्तु बीच में कुछ ऐसी खराबी आ जाती है जिसकी वजह से साफ-साफ दिखाई नहीं देता। नेत्र चिकित्सा भी इसीलिए की जाती है कि हम एक दूसरे को पहचान सकें। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें आँखों में मोतियाबिंद आदि कोई रोग नहीं है फिर भी उन्हें किसी की पहिचान नहीं हो पाती। पता नहीं उनकी दृष्टि में कौन सा रोग है। इसे तो दृष्टि दोष (विकृति) ही कहा जा सकता है। इन आँखों स
कुण्डलपुर देशना 8 - अनंतकालीन संतति
आत्मिक संस्कारों के सामने वैषयिक संस्कार बलजोर नहीं हो पाते, अपितु बलहीन हो जाते हैं। विषय कषायों के संस्कार तो अनंतकालीन हैं जो अज्ञान के कारण सदा बलजोर रहे, पर जो व्यक्ति तत्वज्ञान को प्राप्त कर लेता उसके बुरे संस्कार समाप्त होना प्रारंभ हो जाते हैं। उसमें ऐसी भी शक्ति विद्यमान है जिससे अत्यल्प समय में भी उन्हें धोया जा सकता है। संसारी प्राणी तो पंचेन्द्रिय विषयों के प्रति राग के आकर्षण से खिंचता चला जाता किन्तु जिसके पास तत्व ज्ञान होता, वह उन विषयों के बीच में रहते हुए उनसे निर्लिप्त अप्रभाव
कुण्डलपुर देशना 9 - एक जन्म ऐसा भी हो
आज हमारे चारों ओर अंधकार ही अंधकार है, उजाले का ठिकाना नहीं है। सूर्य और चंद्रमा के कारण दिन एवं रात का विभाजन तो हो जाता है किन्तु मोह के कारण दिन में भी रात होती है। मोह का अभाव हो जाने पर रात्रि में भी दिन जैसा ही प्रकाश भासित होता है। विषयों के प्रति लगाव को सम्यग्ज्ञान के द्वारा ही शांत किया जा सकता अन्यथा नहीं। यह सावधानी रखना आवश्यक है कि आज का संयोग कल नियम से वियोग में परिणित होगा ही । इस सत्य से हम शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और अपने समय को प्रभु की भक्ति में/अपने आत्म कल्याण में लगा सक
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पवित्र मानव जीवन / कर्तव्य पथ प्रदर्शन
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जिनेन्द्र देव की वाणी , जिसे पूर्वाचार्यो ने प्राकृत संस्कृत भाषा में निबद्ध किया था, उसी का आचार्य विद्यासागर जी द्वारा हिंदी भाषा में अनुदित पद्यानुवादजैन गीता (समणसुत्तं) कुन्दकुन्द का कुन्दन (समयसार) -
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सभी से क्षमा, सभी को क्षमा
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गुरु प्रभावना में आपका सहयोग हमेशा मिलता रहे।टीम विद्यासागर डॉट गुरु
सौरभ जैन जयपुर
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पंजीकरण फॉर्म
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गूगल फॉर्म : प्रतियोगिता प्रश्न
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दिनांक :- २६ फरवरी २०२४
परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य पूज्य निर्यापक श्रमण ज्येष्ठ श्रेष्ठ मुनि श्री समय सागर जी महाराज ससंघ डोंगरगढ़ में विराजमान है ।
उनके अलावा लगभग सभी निर्यापक संघ एवं पूज्य मुनि संघ का मंगल विहार चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से डोंगरगढ़ सिटी की ओर हुआ।आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
संभावित मुनि संघ एवं विहार दिशा
संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ योगसागरजी महाराज
★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ समतासागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ पूज्यसागरजी महाराज
★ मुनिवरश्री १०८ महासागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निष्कंपसागर जी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निस्सीमसागर जी महाराज
★ऐलकश्री १०५ निश्चय सागरजी महाराज
★ऐलकश्री १०५ धैर्य सागरजी महाराजससंघ का मंगल विहार अभी अभी चंदगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से हुआ
◆आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
◆विहार दिशा :- राजेन्द्र नगर/ अमरकंटक की ओर
संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ प्रसादसागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ अजितसागरजी महाराज
★ मुनिवरश्री १०८ चंद्रप्रभसागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निरामयसागर जी महाराज
★ऐलकश्री १०५ विवेकानंद सागरजी महाराजससंघ का मंगल विहार अभी अभी चंदगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से हुआ
◆आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
◆विहार दिशा :- बालाघाट की ओरसूचना इसी लिंक पर अपडेट की जाएगी
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जन्म का उत्सव तो सभी मानते हैं, किंतु जो मरण का उत्सव मनाते हैं वह मौत को भी जीत जाते है। जैन परम्परा में मरण को जीतने की इसी कला को समाधिमरण कहते है।
छत्तीसगढ़ की धर्मनगरी डोगरगढ़ चंद्रगिरी दिगंबर तीर्थक्षेत्र पर समाधि साधनारत दिगंबर जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज ने दिनांक 18 फरवरी 2024 के ब्रम्हमुहूर्त में जीवन की इसी श्रेष्ठतम समाधि अवस्था को प्राप्त किया। मानों एक क्षण के लिए समय का चक्र थम गया। भाजपा के केंद्रीय अधिवेशन दिल्ली में आज कार्यवाही प्रारंभ होने के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमान जेपी नड्डा जी ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, आदि उपस्थित सभी विशिष्ट महानुभावों को यह दुखद सूचना देकर गुरुदेव के प्रति मौन श्रद्धांजलि अर्पित कराई। इस अवसर पर देश के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र जी मोदी ने कहा की समाधि की सूचना मिलने के बाद उनके भक्त और हम सभी शोक में है और हम सब भी शोक में हैं और मेरे लिए तो यह व्यक्ति गत बहुत बड़ी क्षति है। इस समय वह गुरुदेव अपना अपना छोटा सा संघ लिए आत्मा साधना में लिए लीन रहते थे। जबकि उनके द्वारा दीक्षित हजारों शिष्य, शिष्याएं समूचे देश विहार कर रहे है। समाचार फैलते ही समूचे देश के श्रद्धालुओं, भक्तों की भीड़ गुरुदेव के अंतिम दर्शन करने उमड़ पड़ी। मध्यान्ह काल 1 बजे गुरुदेव की विमान यात्रा प्रारंभ होते ही लाखों नयन अश्रुपूरित हो उठे।मुख्य मंत्री मोहन यादव के निर्देशन से आए चेतन कश्यप :केबिनेट मंत्री सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय ने किए अंतिम दर्शन
"जैनम जयति शासनम, वंदे विद्यासागरम" के उद्घोषों के साथ ही मुनिसंघ के साथ विमान यात्रा अंतिम संस्कारस्थली पर पहुंची। मुनीसंघ के द्वारा किए गए अंतिम धार्मिक अनुष्ठान, भक्तिपाठ संपन्न होते ही प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी विनय भैया जी द्वारा दाह संस्कार की विधि संपन्न की गई। देश के प्रसिद्ध श्रावक श्रेष्ठि श्रीमान अशोक जी पाटनी(R.K.मार्बल) किशनगढ़, प्रभात जी मुंबई, राजा भैया सूरत, अतुल सराफ पूना, विनोद बड़जात्या रायपुर, प्रमोद कोयला दिल्ली, पंकज जी पारस चैनल दिल्ली, दिलीप घेवारे ठाणे, किरीट भाई मुंबई, चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र कमेटी से किशोर जी जैन, चंद्रकांत जैन, सुधीर जैन छुईखदान आदि सभी ट्रष्टिगण उपस्थित थे।हम सबके प्राणदाता, जीवन निर्माता गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण कर ली थी और जागरूक अवस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुवे 3 दिन का निर्जल उपवास करते हुवे प्रत्याख्यान किया था। अखंड मौन धारण करके उन्होंने अपनी यह समाधि साधना संपन्न की।
इस अवसर पर प्रतिभामंडल की समस्त ब्रह्मचारिणी बहने चंद्रगिरी क्षेत्र रामटेक, तिलवारा जबलपुर, ललितपुर एवम इंदौर की विशेष उपस्तिथि के साथ विभिन्न प्रदेशों से भी श्रद्धालुजन आए। ब्रम्हचारी भैया, ब्रम्हचारी बहनें, समस्त गौशलाओ के कार्यकर्तगण, पुर्नायु, शांतिधारा, हथकरघा, भाग्योदय के कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे। ब्राम्ही विद्या आश्रम की बहने, श्राधिका आश्रम, उदासीन आश्रम इंदौर की बहने, ब्रम्हचारी समस्त ब्रम्हचारी भैया आदि इस अवसर पर विशेष रूप से विभिन्न प्रदेशों की समाज एवम कार्यकर्ता के संगठन उपस्थित रहे। गुरुदेव के संघ जहां जहां विराजमान थे आर्यिका संघ जहां जहां विराजमान थे, के द्वारा गुरुदेव के श्रीचरणों में अपनी विनयांजलि अर्पण की।
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जय जिनेन्द्र ।बहुत सराहनीय कार्य है।इसमे सभी ज्ञानवर्द्धक उल्लेखों का वर्णन बहुत ही सरलता से समझ जाते है। ज्ञान वर्धन का बहुत ही अच्छा ,सरल साधन है।स्वाध्याय के साथ क्विज तो सोने पे सुहागा है।इससे हमें यह भी समझ आता है कि हम कितने गहन अध्ययन में है और कितना करना चाहिए ताकि स्वाध्याय में निपूर्ण हो । हमारा सौभाग्य है जो संत शिरोमणि का सानिध्य मिला। जय -जय गुरुदेव।Jai JINENDRA, Very useful to getting in touch with Guruvar & their speeches. I am very thankful to Web. Maker.बहुत ही अच्छी वेबसाइट है, गुरु जी के बारे मे सभी को जानने का मौका मिला। पुण्य बाले लोगो को ही पंचम काल में ऐसे गुरु मिल सकते है। और उनकी अनुमोदना करने वाली ये वेबसाइट बहुत ही अच्छी है।मै इस साईट पर उपलब्ध शास्र ग्रन्थ लेख का बड़ी रुचिपूर्वक स्वाध्याय करता हू मन आनंद से भर जाता है इस समूह के भाई सौरभजी की सक्रियता से लाखों गुरुभक्तो को यहाँ वः सब कुछ मिल जाता है जो बाहर कही सुलभ नही है इसे इसी तरह उचाईया प्रदान करते रहें आपके इस जटिल परिश्रम शील कार्य की अनुमोदनासौरभ भैया आपने बहुत ही अच्छी वेबसाइट डिजाइन किया हमारे लिए यह सबसे अच्छा तरीका है स्वाध्याय करने का यह जैन धर्म का सागर है और आचार्य भगवन् के लिए आपका जो समर्पण भाव है वह बहुत ही अच्छा है सभी जरूर इस ऐप और वेवसाईट के द्वारा स्वाध्याय करने का प्रयास करें सादर जय जिनेन्द्र 🙏🙏🙏आचार्य श्री जी के अवतरण दिवस पर उनके श्री चरणों में कोटि कोटि नमोस्तु अर्पित करते हैं। नमोस्तु गुरु देव। नमोस्तु गुरु देव। नमोस्तु गुरु देव।सौरभ भाई आपके प्रयास से बहुत अच्छी वेब बनकर तैयार हुई है। आचार्य भगवन के बारे में संपूर्ण जानकारी के साथ ही वेब पर त्वरित अपडेट मिलने से यह बहुत ही प्रासंगिक वेब बन गई है। आपको और आपकी पूरी टीम को बहुत बधाई।बहुत अच्छा स्वध्याय कराया गया हैअविश्वसनीय कार्य। जैन समाज के लिए यह बहुत ही गर्व का कार्य है जो आप लोगो ने किया है। आशा करता हूँ सकल जैन समाज खास तोर पर हम युवा इससे जुड़े। उम्मीद करता हूँ भविष्य में आप लोगो के साथ काम करने का एक अवसर जरूर मिले।इस साइट से मुझे बहुत सीखने को मिलाThis is very gudकृपया करके 26 July 2019 का प्रवचन भी upload कर दीजिए।बहुत अच्छी वेबसाइट है गुरु जी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहाँ प्राप्त होती है । बहुत बहुत आभार आपका जो आप लोगो के वजह से गुरुदेव की जानकारी हमे प्राप्त होती रहती है ।जयजिनेन्द्र । सम्यक दर्शन । हरेक शब्द । नही ।नही । हरेक अक्षर उत्तम है । जीने का सारा है। आत्मा की पुकार है । यह कार्यक्रम संयम स्वर्ण महोत्सव के बाद भी जारी करें। आप सभी कार्यकर्ताओं को मेरा नमस्कार ।इस वेबसाइट के द्वारा मुझे स्वाध्याय करने का अवसर मिला और मुझे बहुत आनन्द आया । इस वेबसाइट के द्वारा धर्म की प्रभावना निरन्तर होती रहे....... अति उत्तमजय हो आचार्य विद्यासागर मुनि महाराज की, इस वेबसाइट से मुझे काफी कुछ सीखने को मिला, स्वाध्याय को तो एक अलग ही ढंग से प्रस्तुतु किया है, जैसे की हमारे ही मन के प्रश्नो का कोई उत्तर दे रहा हो. वेबसाइट पर प्रतियोगिताएं हैं जो काफी सहज ढंग से बनायीं गयी है . इसके इलावा मुनि श्री की भक्ति में आत्मा लवलीन करने वाले भजन से तो मन गदगद हो गया. और मैं व्यक्त करना चाहूँ तो भी इसकी प्रशंशा नहीं सकता. ऐसा लगता है, इस वेबसाइट में सब कुछ समां गया हैThis is really a very great webpage. Thank you so much.*Acharya Guruvar Vidhyasagar Jee Maharaj Ko Paschimi Uttar Pradesh Laane Ki Ek Vishesh Aur Adbhut Pehal Shantinath Yuva Sangh Asoda House Meerut Dwaara* Kaun Kehta Hai Ke Acharye Shri Vidhyasagar Jee Maharaj Paschimi Uttar Pradesh Nahi Aana Chahte? Agar Aap Bhi Yahi Sochte Hain Toh Yeh Video Dekhiye, Unki Muskuraahat Dekhkar Aapko Khud Samajh Ajaayega Ki Woh Kya Chahte Hain. Shantinath Yuva Sangh Ka Utsaah Evam Akalpniye Tareeka Dekhiye Apne Guruwar Ko Manane Ka. Poori tarah se jut gaye h…🙏🙏🙏 -
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संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज
ये ऐसे संत है जिनका जीवन एक सम्पूर्ण दर्शन है जिनके आचरण में जीवों के लिए करुणा पलती है जिनके विचारों में प्राणी मात्र का कल्याण आकर लेता है,जिनकी देशना में जगत अपने सदविकास का मार्ग प्रशस्त करता है |आप निरीह, निस्पृह वीतरागी है फिर भी आपके विचार भारतीयता के प्रति अगाध निष्ठा, राष्ट्रभक्ति और कर्तव्यपरायणता से ओतप्रोत है आपका चिंतन प्राचीन भारतीय हितचिंतको दार्शनिको एवं संतो का अनुकरण करते हुए भी मौलिक है |आचार्य महाराज तो ज्ञानवारिधी है और उनके विचारों को संकलित करना छोटी सी अंजुली में सागर को भरने का असंभव प्रयास करना है|
रास्ता उनका, सहारा उनका, मैं चल रहा हूँ दीपक उनका, रौशनी उनकी मैं जल रहा हूँ प्राण उनके हर श्वास उनकी मैं जी रहा हूँ
From Wikipedia Acharya Shri Vidyasagarji Maharaj (born 10 October 1946) is one of the best known modern Digambara Jain Acharya(philosopher monk). He is known both for his scholarship and tapasya (austerity). He is known for his long hours in meditation. While he was born in Karnataka and took diksha in Rajasthan, he generally spends much of his time in the Bundelkhand region where he is credited with having caused a revival in educational and religious activities. Know more about him
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