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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • Acharya Vidyasagar Ji has attained Samadhi. This Samadhi is a vessel of his lifelong penance, a celebration of death. Although he is not with us in this body, the ideals he set, the path he showed (5).png
     

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  • भले दूर हूं, निकट भेज देता अपनापनआचार्य श्री विद्यासागर

    भारत को भारत बनाना हैं - आचार्य श्री विद्यासागर जीआचार्य श्री विद्यासागर

    आचार्य श्री विद्यासागर जी दर्शनआचार्य श्री विद्यासागर

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    10 मई 2023 आचार्य श्री जी के दर्शनआचार्य श्री विद्यासागर

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    संयम स्वर्ण महोत्सव
    संयम स्वर्ण महोत्सव
    आचार्यश्री विद्यासागर जी की सूक्तियाँ (quotes)
  • वाचन के साथ पाचन भी

    आज का युग ज्ञान-विज्ञान का युग है, इस युग में ज्ञान की पूजा अधिक हो रही है। चारित्र को गौण करते जा रहे हैं। लेकिन ज्ञान के साथ-साथ चारित्र की ओर भी कदम बढ़ाना चाहिए। जो ज्ञान अर्जित किया है उसे प्रयोग में भी लाना चाहिए क्योंकि असंयत ज्ञान कभी भी खतरा पैदा कर सकता है।   पहले के युग में गुरु के सान्निध्य में रहकर ही शिक्षा ली जाती थी उन्हीं के सान्निध्य में ज्ञान आचरण का सर्वांगीण विकास होता है। गुरुकुल आदि की भी पहले यहाँ व्यवस्था भी थी। वहाँ ज्ञान के साथ-साथ सदाचार की भी शिक्षा मिलती थ

    संयम स्वर्ण महोत्सव
    संयम स्वर्ण महोत्सव
    अनुभूत रास्ता

    कर्तव्य दृष्टि

    राजधानी भोपाल में आचार्य श्री के सान्निध्य में पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव का कार्यक्रम चल रहा था। गजरथ फेरी के दिन प्रतिष्ठाचार्य महोदय ने आचार्य महाराज से कहा कि- हाथी को पहले से ज्यादा खिलाया-पिलाया नहीं जाता। वरना वह रथ फेरी के समय गड़बड़ कर देगा फिर उसे कोई सम्हाल नहीं पावेगा। उसमें स्फूर्ति आ जाती है फिर वह महावत से भी नहीं डरता उसे कंट्रोल में रखना बड़ा मुश्किल काम हो जाता है। यह सब आचार्य भगवन् चुपचाप सुनते रहे और यह बात अपने शिष्यों पर लागू करते हुए हँसकर बोले- आज एक बात मालूम चली कि शिष्यो

    संयम स्वर्ण महोत्सव
    संयम स्वर्ण महोत्सव
    अनुभूत रास्ता
  • विचार सूत्र संकलन

  • सबको जीने का अधिकार

    यह भारत योग प्रधान है, भोग प्रधान नहीं। अब उपयोग लगाकर योग की साधना करो। यहाँ आत्मा-परमात्मा की साधना होती है और यह आत्मा सभी के पास है, पशुओं के पास भी है फिर पशुओं का कत्ल क्यों? यह पापाचार कब तक चलेगा। याद रखो! जब किसी की अति हो जाती है तो उसकी इति भी होती है। अब पाप की इति करना है, कीमत पैसों की नहीं, कीमत तो जीवन की है। किसी के जीवन को छीनने का हमको कोई अधिकार नहीं, सबको जीने का अधिकार है। अत: किसी को मत मारो, सबको जीने दो, जीवन सबको प्यारा है, चाहे वह जानवर हो या आदमी। अत: किसी भी जीव को म

    संयम स्वर्ण महोत्सव
    संयम स्वर्ण महोत्सव
    हिंसक व्यापार देश को बनाता अशान्त - लाचार

    मूकमाटी संगोष्ठी समापन सत्र और रविवारीय धर्मसभा

    भोपाल। मूकमाटी संगोष्ठी का समापन सत्र सुभाष स्कूल मैदान में प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम प्रो. अमिता मोदी और प्रो. रश्मि जैन ने मूकमाटी के सन्दर्भ में विचार व्यक्त किए। प्रो. उमाशंकर शुक्ल ने कहा कि मानव मंगल की अनेक बातें इसमें कही गई हैं। प्रो. जे. के. जैन सागर ने कहा कि ये वैज्ञानिक तथ्यों से परिपूर्ण है। छत्तीसगढ़ राज्य शिखर सम्मान से विभूषित प्रो. चंद्रकुमार जैन राजनांदगाँव ने संचालन का कठिन और साहसपूर्ण कार्य अपने कन्धों पर दायित्व के रूप में सम्भाल रखा था। अगले वक्ता के रूप में डॉ. बारेलाल जैन

    संयम स्वर्ण महोत्सव
    संयम स्वर्ण महोत्सव
    शिक्षा और भारत

    भारत के कलंक को मिटाओ

    गौ का दूध आदमी के बच्चों को पुष्ट करता है, शक्ति देता है, उनको एक लम्बी उम्र देता है। जो शक्ति माँ के दूध में नहीं, वह शक्ति है गौमाता के दूध में। ऐसी शक्तिवर्धक, स्वास्थ्य की जननी गौमाता का आज वध हो रहा है, जिसका हमने दूध पिया, उसी का आज खून बेच रहे हैं। भारत के लिए यह बहुत बड़ा कलंक है।   भारत कृषि प्रधान देश है, माँस प्रधान नहीं। आज भारत में माँस का व्यापार हो रहा है, शराब का व्यापार हो रहा है, अण्डों की खेती हो रही है, यह सब भारत के लिये कलंक है। माँस, शराब, अण्डे, मछली को बेचकर य

    संयम स्वर्ण महोत्सव
    संयम स्वर्ण महोत्सव
    हिंसक व्यापार देश को बनाता अशान्त - लाचार
  • पाठ १० जैसे के जैसे 

    कहते हैं कि कार्य के आरंभिक समय में उत्साह एवं विशुद्धि का होना इतना महत्त्वशाली नहीं, जितना कि कार्य की पूर्णतापर्यंत उसका अनवरत बना रहना। इसी तरह दीक्षा के समय वैराग्य, उत्साह एवं विशुद्धि का होना तो स्वाभाविक है। महत्त्व तो तब है, जब समाधिमरण पर्यंत तक वह अनवरत बनी रहे।आचार्य भगवन् श्री विद्यासागरजी मोक्षमार्ग के एक ऐसे महत्त्वशाली व्यक्तित्व हैं, जिनकी विशुद्धि, उत्साह, चेतना एवं आध्यात्मिकता दीक्षा के समय जैसी थी, आज ५० वर्ष पश्चात् भी वैसी की वैसी ही है। वह तब से अब तक 'जैसे के जैसे हैं। ग

    Vidyasagar.Guru
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    पाठ्यपुस्तक 3 - श्रमण परम्परा सम्प्रवाहक

    पाठ ७ उत्तम दस धर्मधारी 

    आचार्य भगवन् कहते हैं- 'आत्मा के स्वभाव की उपलब्धि रत्नत्रय में निष्ठा के बिना नहीं होती और रत्नत्रय में निष्ठा दया धर्म के माध्यम से, क्षमादिधर्मों से ही मानी जाती है।' मूल गुणों में पठित दस धर्मों का आचार्यश्रीजी पूर्ण निष्ठा एवं उत्कृष्टता से किस तरह परिपालन करते हैं, इससे जुड़े हुए कुछ प्रसंगों को यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है।     श्रमणत्व अंगरक्षक : दस धर्म    * अर्हत्वाणी * धम्मो वत्थु-सहावो ... .... जीवाणं रक्खणं धम्मो ॥ ४७८॥   वस्तु के स्वभ

    Vidyasagar.Guru
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    पाठ्यपुस्तक 3 - श्रमण परम्परा सम्प्रवाहक

    पाठ ९ जिनमार्ग पोषक 

    गुरु वह आध्यात्मिक शिल्पकार हैं, जो शिष्य को दीक्षा के साँचे में ढालकर न केवल एक मूर्ति का रूप देते हैं, बल्कि निर्वाण प्राप्ति के लिए आवश्यक संस्कारों के रंग-रोगन से भरकर उसके जीवन को श्रेष्ठ बनाते हुए उस पर अनुग्रह करते हैं। गुरु के द्वारा शिष्य में पोषित किए जाने वाले ऐसे ही अनमोल संस्कारों एवं शिक्षाओं से जुड़े कुछ प्रसंगों को इस पाठ का विषय बनाया जा रहा है। आचार्यश्रीजी उच्चकोटी के साधक होने के साथ-साथ श्रमण परंपरा को संप्रवाहित करने के लिए शिष्यों को संग्रहित एवं अनुग्रहित करने व

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    पाठ्यपुस्तक 3 - श्रमण परम्परा सम्प्रवाहक
  • कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971)

    कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971)   ‘कल्याणमंदिर स्तोत्र' आचार्य कुमुदचन्द्र, अपरनाम श्री सिद्धसेन दिवाकर द्वारा विरचित है। इसका पद्यानुवाद आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने मदनगंज-किशनगढ़, अजमेर (राज.) में सन् १९७१ के वर्षायोग में किया। इस स्तोत्र को पार्श्वनाथ स्तोत्र भी कहते हैं। मूल स्तोत्र एवं अनुवाद दोनों ही वसन्ततिलका छन्द में निबद्ध हैं।   इस कृति में उन कल्याणनिधि, उदार, अघनाशक तथा विश्वसार जिन-पद-नीरज को नमन किया गया है जो संसारवारिधि से स्व-पर का सन्तरण करने के लिए

    संयम स्वर्ण महोत्सव
    संयम स्वर्ण महोत्सव
    कल्याण मंदिर स्तोत्र 2

    अंतर घटना

    उपलब्ध जैन-दर्शन साहित्य में प्राकृत-भाषा-निष्ठ साहित्य का बाहुल्य है। कारण यही है कि यह भाषा सरल, मधुर एवं ज्ञेय है। इसीलिए कुन्दकुन्द की लेखनी ने प्राकृत-भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना कर डाली। उन अनेक सारभूत ग्रंथों में अध्यात्म-शान्तरस से आप्लावित ग्रंथराज 'समयसार' है। इसमें सहज-शुद्ध तल की निरूपणा, अपनी चरम सीमा पर सोल्लास 'नृत्य करती हुई. पाठक को, जो साधक एवं अध्यात्म से रुचि रखता है, बुलाती हुई सी प्रतीत होती है। यथार्थ में, कुन्दकुन्द ने अपनी अनुभूतियों को 'समयसार' इस ग्रंथ के रूप में रूप

    Vidyasagar.Guru
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    कुन्दकुन्द का कुन्दन

    स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी

    स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी   ज्ञानावरणादिक कर्मों से, पूर्णरूप से मुक्त रहे। केवल संवेदन आदिक से युक्त, रहे, ना मुक्त रहे ॥ ज्ञानमूर्ति हैं परमातम हैं, अक्षय सुख के धाम बने। मन वच तन से नमन उन्हें हो, विमल बने ये परिणाम घने ॥१॥   बाह्यज्ञान से ग्राह्य रहा पर, जड़ का ग्राहक रहा नहीं। हेतु-फलों को क्रमशः धारे, आतम तो उपयोग धनी॥ ध्रौव्य आय औ व्यय वाला है, आदि मध्य औ अन्त बिना। परिचय अब तो अपना कर लो, कहते हमको सन्त जना ॥२॥   प्रमेयतादिक गुणधर्

    संयम स्वर्ण महोत्सव
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    स्वरूप संबोधन पच्चीसी
  • कुण्डलपुर देशना 18 - विद्वान - शास्त्री की समाधी

    मोहरूपी शत्रु से सारी दुनिया पीड़ित एवं हताहत हुई है। किन्तु आत्म तत्व को प्राप्त करने के लिए सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण करने पर मोहरूपी शत्रु को ही हताहत या नष्ट किया जाता है। पंडित जगन्मोहनलाल जी शास्त्री ने समाधिमरण करके विद्वत् जगत के समक्ष एक आदर्श उपस्थित किया है।   इस शरीर के कारण आस्था और निष्ठा में कमी आकर साधना कमजोर पड़ जाती है। पर आस्था एवं निष्ठा को दृढ़ बनाकर ज्ञान, आराधना को शास्त्रीजी ने जीवन में चरितार्थ किया। पंडित जी अनेक वर्षों से सल्लेखना हेतु आचार्य श्री से दि

    संयम स्वर्ण महोत्सव
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    विद्या वाणी

    कुण्डलपुर देशना 2 - स्वयं को देखे

    जब तक इंद्रिय संपदा तथा शारीरिक स्वस्थता, मन एवं बुद्धि ठीक-ठाक है तब तक शरीर और कर्मों को आत्मा से पृथक् करने की साधना अच्छी तरह से कर लेनी चाहिए। पर की ओर नहीं बल्कि स्व की ओर देखने, लक्ष्य करने से ही अपूर्व आनंद की अनुभूति होगी। यदि भविष्य में और अवधारण करने की इच्छा नहीं है तो राग-द्वेष के चक्कर से ऊपर उठने की उत्कंठा रखकर पर्याय बुद्धि को छोड़ने तथा द्रव्य दृष्टि बनाने से ही कल्याण होना संभव होगा, शरीर को धारण करना एवं उसका जीर्ण-शीर्ण होकर छूट जाना अनादिकाल का क्रम है। अभी तक अनेकों

    संयम स्वर्ण महोत्सव
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    विद्या वाणी

    तपोवन देशना 8 - भीतर की डांट

    एक व्यक्ति को डॉक्टर ने कहा कि इस दवाई को दिन में ३ बार पी लेना। उस व्यक्ति ने दवाई पीने के लिए डांट खोली और दवाई निकालना चाही, किन्तु दवाई नहीं निकली। दो-तीन बार प्रयास करने पर भी जब दवाई नहीं निकली, तब उसने सोचा इसमें दवाई नहीं है। इसी बीच दूसरे व्यक्ति ने कहा कि इसमें दवाई है परन्तु एक डांट और खोलना पड़ेगी तब दवाई निकलेगी। दवाई, डांट और शीशी का रंग एक सा होने से उसे ज्ञान नहीं हो रहा था। ज्ञान होते ही उस डांट को निकाल दिया गया और दवाई बाहर आ गई। इसी प्रकार मोक्ष मार्ग में दो प्रकार की डांट हो

    संयम स्वर्ण महोत्सव
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