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आज का विचार - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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आचार्य विद्यासागर जी के स्वर्णिम संस्मरण
टोपी बनी पहचान
गुना नगर में चातुर्मास चल रहा था, उसी समय महावीर भाई (ब्रह्मचारी विद्याधर जी के बड़े भाई) दर्शनार्थ आये। गुना के श्रावकों को टोपी लगाकर प्रवचन सुनते देखा तो वे बहुत खुश हुए और बोले टोपी लगाने की यह परंपरा आज समाप्त होती चली जा रही है। मुझे यहां सभी श्रावकों को टोपी लगाये हुए देखकर बहुत खुशी हो रही है। दक्षिण प्रांत में तो सभी श्रावकगण टोपी लगाया करते हैं, यह सज्जन की पहचान है। हमेशा सिर ढककर ही आना चाहिए, यह देव, शास्त्र एवं गुरू का बहुमान है। उन्होंने बताया कि जब मैं ब्रह्मचारी विद्
ज्ञानी का कर्तव्य
जैसा कर्म सिद्धांत का वृहद विवेचन जैन दर्शन में मिलता है, वैसा अन्य किसी दर्शन में नहीं मिलता। जैन दर्शन का सिद्धांत कर्म को प्रधानता देता है। जीव को सुख-दुःख, पुण्य-पाप रूपी कर्मों के फल से प्राप्त होता है, ईश्वर का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ करता है। जीव की एक अपनी स्वतंत्र सत्ता है वह चाहे तो नर से नारकी एवं नर से नारायण भी बन सकता है। एक दिन आचार्य श्री जी ने कहा कि- प्रत्येक व्यक्ति के लिए कर्म सिद्धांत को समझकर कर्म बंधन से बचना चाहिए। तब किसी ने शंका व्यक्त करते हुए कहा कि-
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विचार सूत्र संकलन
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आज्ञा
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कार्य
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काल
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गर्भ
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चिन्तन
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जीव
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गुरु
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गाय और किसान
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क्षमा, अनुराग
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आचार्य विद्यासागर जी की राष्ट्रीय देशना
मांस नियति : हिंसक घोटाला
माँस निर्यात करना सबसे बड़ा घोटाला है लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि इस महा घोटाले को कोई घोटाला नहीं समझ रहा है और इसके विषय में कोई आवाज नहीं उठा रहा है। देशवासियों का यह पहला कर्तव्य है कि वे सबसे पहले माँस नियति के हिंसक घोटाले को बंद करवायें, जब तक पशु हत्या का घोटाला रुकेगा नहीं, तब तक यह भारत अपना विकास नहीं कर सकता। भारत का विकास पशु हत्या को रोकने में ही है। इन जानवरों को मारकर हम कैसे जिंदा रह सकते हैं? इन गायबैल इत्यादि को फसल की तरह नहीं उगाया जा सकता। पेड़-पौधों को तो उगा
वोट की शक्ति पहचानो
जनता का भी कर्तव्य होता है कि वह ऐसे व्यक्ति का चयन करे जो अहिंसक हो। पापों का समर्थन करने वाले व्यक्ति का चयन नहीं करना चाहिए। यह प्रजातन्त्र है। यहाँ प्रजा ही अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है। अत: जनता को बड़े सोच विचारकर, विवेकपूर्ण उस व्यक्ति का चुनाव करना चाहिए जो प्रजा को सुख-समृद्धि के लिए व्यवस्था दे एवं देश की गरिमा को कलंकित न करे, जो पशु हत्या रोके, कत्लखाने बंद कर पशुओं का संरक्षण करे एवं अहिंसा, दया, न्याय का पालन करे। आपके वोट में बहुत शक्ति है। आप जरा विचार करो, जिनको आपने चुना है
ये कैसा पागल मनुष्य
ओवर कान्फीडेन्स मात्र मनुष्य में ही पाया जाता है, जानवरों में नहीं। जीवन के लिए कान्फीडेन्स चाहिए ओवर कान्फीडेन्स नहीं। पाप करने में मनुष्य जितना आगे बढ़ जाता है, उतना जानवर नहीं, सबसे अधिक क्रोध करने में, सबसे अधिक अहंकार करने में, सबसे अधिक छल कपट करने में और सबसे अधिक लालच करने में मात्र मनुष्य ही आगे रहता है जानवर नहीं, मनुष्य क्या-क्या नहीं करता, सभी कुछ तो करता हैं, इस मनुष्य ने सबको सुखा दिया है और स्वयं ताजा रहना चाहता है, यह कैसा मनुष्य है जो हरी को समाप्त करके हरियाली को चाहता है, स्वय
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आचार्य विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम
पाठ १० जैसे के जैसे
कहते हैं कि कार्य के आरंभिक समय में उत्साह एवं विशुद्धि का होना इतना महत्त्वशाली नहीं, जितना कि कार्य की पूर्णतापर्यंत उसका अनवरत बना रहना। इसी तरह दीक्षा के समय वैराग्य, उत्साह एवं विशुद्धि का होना तो स्वाभाविक है। महत्त्व तो तब है, जब समाधिमरण पर्यंत तक वह अनवरत बनी रहे।आचार्य भगवन् श्री विद्यासागरजी मोक्षमार्ग के एक ऐसे महत्त्वशाली व्यक्तित्व हैं, जिनकी विशुद्धि, उत्साह, चेतना एवं आध्यात्मिकता दीक्षा के समय जैसी थी, आज ५० वर्ष पश्चात् भी वैसी की वैसी ही है। वह तब से अब तक 'जैसे के जैसे हैं। ग
पाठ ७ उत्तम दस धर्मधारी
आचार्य भगवन् कहते हैं- 'आत्मा के स्वभाव की उपलब्धि रत्नत्रय में निष्ठा के बिना नहीं होती और रत्नत्रय में निष्ठा दया धर्म के माध्यम से, क्षमादिधर्मों से ही मानी जाती है।' मूल गुणों में पठित दस धर्मों का आचार्यश्रीजी पूर्ण निष्ठा एवं उत्कृष्टता से किस तरह परिपालन करते हैं, इससे जुड़े हुए कुछ प्रसंगों को यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है। श्रमणत्व अंगरक्षक : दस धर्म * अर्हत्वाणी * धम्मो वत्थु-सहावो ... .... जीवाणं रक्खणं धम्मो ॥ ४७८॥ वस्तु के स्वभ
पाठ ६ पंचाचार पालक
पंचाचार संसार सागर से पार होने में घाट के समान होने से परम तीर्थ तथा जन्म-मरणादि की बाधा दूर करने में सहायक होने से परम मंगल रूप हैं। इन पंचाचारों का निर्मल रीति से पालन स्वयं करने एवं अपने शिष्यों को भी करवाने से जिनका जीवन एक उत्कृष्ट तीर्थ बन गया है, ऐसे आचार्य भगवन् के जीवन में परिपालित पंचाचारों से संबंधित प्रसंगों को इस पाठ का विषय बनाया जा रहा है। शुद्धात्म-परिचायक : पंचाचार * अर्हत्वाणी * सुदृनिवृत्ततपसां.......आचारो वीर्याच्छुद्धेषु तेषु तु॥७/३५॥
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आचार्य विद्यासागर जी द्वारा ग्रन्थ पद्यानुवाद
कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971)
कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971) ‘कल्याणमंदिर स्तोत्र' आचार्य कुमुदचन्द्र, अपरनाम श्री सिद्धसेन दिवाकर द्वारा विरचित है। इसका पद्यानुवाद आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने मदनगंज-किशनगढ़, अजमेर (राज.) में सन् १९७१ के वर्षायोग में किया। इस स्तोत्र को पार्श्वनाथ स्तोत्र भी कहते हैं। मूल स्तोत्र एवं अनुवाद दोनों ही वसन्ततिलका छन्द में निबद्ध हैं। इस कृति में उन कल्याणनिधि, उदार, अघनाशक तथा विश्वसार जिन-पद-नीरज को नमन किया गया है जो संसारवारिधि से स्व-पर का सन्तरण करने के लिए
अंतर घटना
उपलब्ध जैन-दर्शन साहित्य में प्राकृत-भाषा-निष्ठ साहित्य का बाहुल्य है। कारण यही है कि यह भाषा सरल, मधुर एवं ज्ञेय है। इसीलिए कुन्दकुन्द की लेखनी ने प्राकृत-भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना कर डाली। उन अनेक सारभूत ग्रंथों में अध्यात्म-शान्तरस से आप्लावित ग्रंथराज 'समयसार' है। इसमें सहज-शुद्ध तल की निरूपणा, अपनी चरम सीमा पर सोल्लास 'नृत्य करती हुई. पाठक को, जो साधक एवं अध्यात्म से रुचि रखता है, बुलाती हुई सी प्रतीत होती है। यथार्थ में, कुन्दकुन्द ने अपनी अनुभूतियों को 'समयसार' इस ग्रंथ के रूप में रूप
स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी
स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी ज्ञानावरणादिक कर्मों से, पूर्णरूप से मुक्त रहे। केवल संवेदन आदिक से युक्त, रहे, ना मुक्त रहे ॥ ज्ञानमूर्ति हैं परमातम हैं, अक्षय सुख के धाम बने। मन वच तन से नमन उन्हें हो, विमल बने ये परिणाम घने ॥१॥ बाह्यज्ञान से ग्राह्य रहा पर, जड़ का ग्राहक रहा नहीं। हेतु-फलों को क्रमशः धारे, आतम तो उपयोग धनी॥ ध्रौव्य आय औ व्यय वाला है, आदि मध्य औ अन्त बिना। परिचय अब तो अपना कर लो, कहते हमको सन्त जना ॥२॥ प्रमेयतादिक गुणधर्
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आचार्य विद्यासागर जी के लिखित प्रवचन
प्रवचन सुरभि 78 - तन पाकर - तनो नहीं
यदि मोक्षमार्गी बने रहना चाहते हो तो आठ प्रकार के मद, जो कि आप लोगों को मोक्ष मार्ग से स्खलित करने वाले हैं, उनसे दूर रहें। आठवाँ मद शरीर को लेकर है। प्राय: लोग शारीरिक सुरक्षा के लिए मद करते हैं। वपु यानि शरीर कहा है। शरीर की कीमत है या आत्मा की कीमत है, इसके बारे में सोचना है। शरीर तो शरारती है, पर आत्मा के पास गुण है, वह शरीफ है। शरीर को वही व्यक्ति महत्व देता है जो वास्तविक आत्मा का विकास नहीं करना चाहता है। अनादि से बंधन का अनुभव जो हो रहा है, वह शरीर को लेकर है। आत्मा को दुख शरीर के कारण ह
सर्वोदयसार 17 - दर्पण सा संन्यास
पुनरावृत्ति हानिकारक है तथा मंजिल प्राप्ति में बाधक। मनुष्य का जीवन यदि वृत्त सम हो जाय तो पूर्णता की प्राप्ति तथा पुनरावृत्ति से मुक्ति मिल सकती है। भव्य जीवों ने पूर्णता प्राप्त कर ली, वे वृत्त हो गये। ऐसे वृत्तों के वृतांत जीवन में उतारते ही हमारी यात्रा पूर्ण हो सकती है और हम उस सुख को प्राप्त कर सकते हैं जिसे भगवान् ने प्राप्त किया है। संसारी प्राणी सुख की गवेषणा में रत रहता है किन्तु उसे सुख मिलता नहीं। लक्ष्य तक पहुँच ही नहीं पाता। वह। सारा का सारा संसार समस्याओं का संस्थान हो गया है क्यो
तपोवन देशना 16 - वे कहेते नहीं
धर्म की बात सुनने का अधिकार जीव मात्र को है। ये बात अलग है कि सुनने के उद्देश्य की पूर्ति कौन करता है ? भगवान् महावीर स्वामी के समवसरण की रचना होने के बाद देवों से खचा-खच भरा था समवशरण फिर भी वाणी नहीं खिरी, क्योंकि भगवान् को एक भव्य मुमुक्षु मनुष्य की आवश्यकता थी। दुनिया की बात तो किसी से भी की जा सकती है किन्तु मोक्ष की बात मुमुक्षु से ही की जाती है। अहिंसा धर्म और मोक्ष की बात सुनकर उसके उद्देश्य की पूर्ति मनुष्य ही कर सकता है और कुछ अंशों में तिर्यच भी कर सकते हैं। देव मोक्ष की ब
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पवित्र मानव जीवन / कर्तव्य पथ प्रदर्शन
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जिनेन्द्र देव की वाणी , जिसे पूर्वाचार्यो ने प्राकृत संस्कृत भाषा में निबद्ध किया था, उसी का आचार्य विद्यासागर जी द्वारा हिंदी भाषा में अनुदित पद्यानुवादजैन गीता (समणसुत्तं) कुन्दकुन्द का कुन्दन (समयसार) -
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दिनांक :- २६ फरवरी २०२४
परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य पूज्य निर्यापक श्रमण ज्येष्ठ श्रेष्ठ मुनि श्री समय सागर जी महाराज ससंघ डोंगरगढ़ में विराजमान है ।
उनके अलावा लगभग सभी निर्यापक संघ एवं पूज्य मुनि संघ का मंगल विहार चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से डोंगरगढ़ सिटी की ओर हुआ।आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
संभावित मुनि संघ एवं विहार दिशा
संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ योगसागरजी महाराज
★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ समतासागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ पूज्यसागरजी महाराज
★ मुनिवरश्री १०८ महासागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निष्कंपसागर जी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निस्सीमसागर जी महाराज
★ऐलकश्री १०५ निश्चय सागरजी महाराज
★ऐलकश्री १०५ धैर्य सागरजी महाराजससंघ का मंगल विहार अभी अभी चंदगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से हुआ
◆आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
◆विहार दिशा :- राजेन्द्र नगर/ अमरकंटक की ओर
संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ प्रसादसागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ अजितसागरजी महाराज
★ मुनिवरश्री १०८ चंद्रप्रभसागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निरामयसागर जी महाराज
★ऐलकश्री १०५ विवेकानंद सागरजी महाराजससंघ का मंगल विहार अभी अभी चंदगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से हुआ
◆आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
◆विहार दिशा :- बालाघाट की ओरसूचना इसी लिंक पर अपडेट की जाएगी
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जन्म का उत्सव तो सभी मानते हैं, किंतु जो मरण का उत्सव मनाते हैं वह मौत को भी जीत जाते है। जैन परम्परा में मरण को जीतने की इसी कला को समाधिमरण कहते है।
छत्तीसगढ़ की धर्मनगरी डोगरगढ़ चंद्रगिरी दिगंबर तीर्थक्षेत्र पर समाधि साधनारत दिगंबर जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज ने दिनांक 18 फरवरी 2024 के ब्रम्हमुहूर्त में जीवन की इसी श्रेष्ठतम समाधि अवस्था को प्राप्त किया। मानों एक क्षण के लिए समय का चक्र थम गया। भाजपा के केंद्रीय अधिवेशन दिल्ली में आज कार्यवाही प्रारंभ होने के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमान जेपी नड्डा जी ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, आदि उपस्थित सभी विशिष्ट महानुभावों को यह दुखद सूचना देकर गुरुदेव के प्रति मौन श्रद्धांजलि अर्पित कराई। इस अवसर पर देश के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र जी मोदी ने कहा की समाधि की सूचना मिलने के बाद उनके भक्त और हम सभी शोक में है और हम सब भी शोक में हैं और मेरे लिए तो यह व्यक्ति गत बहुत बड़ी क्षति है। इस समय वह गुरुदेव अपना अपना छोटा सा संघ लिए आत्मा साधना में लिए लीन रहते थे। जबकि उनके द्वारा दीक्षित हजारों शिष्य, शिष्याएं समूचे देश विहार कर रहे है। समाचार फैलते ही समूचे देश के श्रद्धालुओं, भक्तों की भीड़ गुरुदेव के अंतिम दर्शन करने उमड़ पड़ी। मध्यान्ह काल 1 बजे गुरुदेव की विमान यात्रा प्रारंभ होते ही लाखों नयन अश्रुपूरित हो उठे।मुख्य मंत्री मोहन यादव के निर्देशन से आए चेतन कश्यप :केबिनेट मंत्री सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय ने किए अंतिम दर्शन
"जैनम जयति शासनम, वंदे विद्यासागरम" के उद्घोषों के साथ ही मुनिसंघ के साथ विमान यात्रा अंतिम संस्कारस्थली पर पहुंची। मुनीसंघ के द्वारा किए गए अंतिम धार्मिक अनुष्ठान, भक्तिपाठ संपन्न होते ही प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी विनय भैया जी द्वारा दाह संस्कार की विधि संपन्न की गई। देश के प्रसिद्ध श्रावक श्रेष्ठि श्रीमान अशोक जी पाटनी(R.K.मार्बल) किशनगढ़, प्रभात जी मुंबई, राजा भैया सूरत, अतुल सराफ पूना, विनोद बड़जात्या रायपुर, प्रमोद कोयला दिल्ली, पंकज जी पारस चैनल दिल्ली, दिलीप घेवारे ठाणे, किरीट भाई मुंबई, चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र कमेटी से किशोर जी जैन, चंद्रकांत जैन, सुधीर जैन छुईखदान आदि सभी ट्रष्टिगण उपस्थित थे।हम सबके प्राणदाता, जीवन निर्माता गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण कर ली थी और जागरूक अवस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुवे 3 दिन का निर्जल उपवास करते हुवे प्रत्याख्यान किया था। अखंड मौन धारण करके उन्होंने अपनी यह समाधि साधना संपन्न की।
इस अवसर पर प्रतिभामंडल की समस्त ब्रह्मचारिणी बहने चंद्रगिरी क्षेत्र रामटेक, तिलवारा जबलपुर, ललितपुर एवम इंदौर की विशेष उपस्तिथि के साथ विभिन्न प्रदेशों से भी श्रद्धालुजन आए। ब्रम्हचारी भैया, ब्रम्हचारी बहनें, समस्त गौशलाओ के कार्यकर्तगण, पुर्नायु, शांतिधारा, हथकरघा, भाग्योदय के कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे। ब्राम्ही विद्या आश्रम की बहने, श्राधिका आश्रम, उदासीन आश्रम इंदौर की बहने, ब्रम्हचारी समस्त ब्रम्हचारी भैया आदि इस अवसर पर विशेष रूप से विभिन्न प्रदेशों की समाज एवम कार्यकर्ता के संगठन उपस्थित रहे। गुरुदेव के संघ जहां जहां विराजमान थे आर्यिका संघ जहां जहां विराजमान थे, के द्वारा गुरुदेव के श्रीचरणों में अपनी विनयांजलि अर्पण की।
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Jai JINENDRA, Very useful to getting in touch with Guruvar & their speeches. I am very thankful to Web. Maker.इस साइट से मुझे बहुत सीखने को मिलाजयजिनेन्द्र । सम्यक दर्शन । हरेक शब्द । नही ।नही । हरेक अक्षर उत्तम है । जीने का सारा है। आत्मा की पुकार है । यह कार्यक्रम संयम स्वर्ण महोत्सव के बाद भी जारी करें। आप सभी कार्यकर्ताओं को मेरा नमस्कार ।इसमे सभी ज्ञानवर्द्धक उल्लेखों का वर्णन बहुत ही सरलता से समझ जाते है। ज्ञान वर्धन का बहुत ही अच्छा ,सरल साधन है।स्वाध्याय के साथ क्विज तो सोने पे सुहागा है।इससे हमें यह भी समझ आता है कि हम कितने गहन अध्ययन में है और कितना करना चाहिए ताकि स्वाध्याय में निपूर्ण हो । हमारा सौभाग्य है जो संत शिरोमणि का सानिध्य मिला। जय -जय गुरुदेव।When notification received, the App isn't opening. No response. Please develop the App.आचार्य श्री और संघ के अन्य महाराज की आहार चर्या की फोटो और वीडियो डालें डेली प्लीज.आचार्य श्री जी के अवतरण दिवस पर उनके श्री चरणों में कोटि कोटि नमोस्तु अर्पित करते हैं। नमोस्तु गुरु देव। नमोस्तु गुरु देव। नमोस्तु गुरु देव।Me yah janana chata hu ki marte hue tote ko namokar mantra kisne sunayaजय जिनेन्द्र ।बहुत सराहनीय कार्य है।बहुत अच्छी वेबसाइट है गुरु जी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहाँ प्राप्त होती है । बहुत बहुत आभार आपका जो आप लोगो के वजह से गुरुदेव की जानकारी हमे प्राप्त होती रहती है ।कृपया करके 26 July 2019 का प्रवचन भी upload कर दीजिए।आपके द्वारा मीडिया का बहुत ही सुन्दर प्रयोग किया गया है।आन लाइन स्वाध्याय एकबहुत ही सुन्दर प्रयोग है जिसके लिएआप बधाई के पात्र हैं। आपको बहुत बहुत साधुवाद । मुझे इससे बहुत फ़ायदा हुआ है।आपका कोटि कोटि धन्यवाद । इस स्वाध्याय को प्रतियोगिता से जोड़ कर तो आपने इसे बहुत ही दिलचस्प भी बना दिया है। पुन:बहुत बहुत धन्यवाद प्रमोद जैन लखनऊजय जिनेन्द्र! घर बैठे ही तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ जिसे जैन गीता भी कहते हैं का स्वाध्याय करने का अवसर मिल रहा है। इसमें चारों अनुयोगो का ज्ञान है। पिछले चातुर्मास में माता जी से कक्षा ली थी अब पुनरावृति हो जाएगी। इस सराहनीय कार्य के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। जय जय गुरुदेव!बहुत अच्छा है भगवान को जाने के लिए कुंडलपुर के बड़े बाबा की जय ।।।।।बहुत ही शानदार ज्ञानवर्धक साईट का निर्माण किया है और हम सभी को इसका पूर्ण लाभ उठाना चाहिए.एकलव्यों के लिए, जो आपने किया है प्रयास अतुलनीय एवं प्रशंसनीय है बना रहे गुरु कृपा इसी प्रकार आप पर - हम सभी पर निर्बाध ... प्रणाम !! नमोस्तु आचार्यश्री ! मम गुरुवर , एवं प्रसादसागर जी महाराज के चरणों में वंदन बारंबार ... Saurabh ji ko hardik shubhkamnayen ! गुरुवर मेरे ! हुआ पूर्ण एक साल आज ही के दिन बकरीद के मौके पर भाव बने थे जब संयम मार्ग में बढ़ने के मिला था आपसे आशीर्वाद करा था संकल्प पहली प्रतिमा का ... गुरुवर ! जरुरी इस इस मौके पर करूँ पेश आपके समक्ष लेख…सौरभ भैया आपने बहुत ही अच्छी वेबसाइट डिजाइन किया हमारे लिए यह सबसे अच्छा तरीका है स्वाध्याय करने का यह जैन धर्म का सागर है और आचार्य भगवन् के लिए आपका जो समर्पण भाव है वह बहुत ही अच्छा है सभी जरूर इस ऐप और वेवसाईट के द्वारा स्वाध्याय करने का प्रयास करें सादर जय जिनेन्द्र 🙏🙏🙏इस वेबसाइट के द्वारा मुझे स्वाध्याय करने का अवसर मिला और मुझे बहुत आनन्द आया । इस वेबसाइट के द्वारा धर्म की प्रभावना निरन्तर होती रहे....... अति उत्तमI am very happy to join this website and thank you for sending me the information through this website. Thank u so much Jai jinedra 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏No words for this website. Your efforts are really appreciable. Whole content is just above the mark. -
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संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज
ये ऐसे संत है जिनका जीवन एक सम्पूर्ण दर्शन है जिनके आचरण में जीवों के लिए करुणा पलती है जिनके विचारों में प्राणी मात्र का कल्याण आकर लेता है,जिनकी देशना में जगत अपने सदविकास का मार्ग प्रशस्त करता है |आप निरीह, निस्पृह वीतरागी है फिर भी आपके विचार भारतीयता के प्रति अगाध निष्ठा, राष्ट्रभक्ति और कर्तव्यपरायणता से ओतप्रोत है आपका चिंतन प्राचीन भारतीय हितचिंतको दार्शनिको एवं संतो का अनुकरण करते हुए भी मौलिक है |आचार्य महाराज तो ज्ञानवारिधी है और उनके विचारों को संकलित करना छोटी सी अंजुली में सागर को भरने का असंभव प्रयास करना है|
रास्ता उनका, सहारा उनका, मैं चल रहा हूँ दीपक उनका, रौशनी उनकी मैं जल रहा हूँ प्राण उनके हर श्वास उनकी मैं जी रहा हूँ
From Wikipedia Acharya Shri Vidyasagarji Maharaj (born 10 October 1946) is one of the best known modern Digambara Jain Acharya(philosopher monk). He is known both for his scholarship and tapasya (austerity). He is known for his long hours in meditation. While he was born in Karnataka and took diksha in Rajasthan, he generally spends much of his time in the Bundelkhand region where he is credited with having caused a revival in educational and religious activities. Know more about him
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