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आज का विचार - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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आचार्य विद्यासागर जी के स्वर्णिम संस्मरण
मन-मंदिर में
सर्वोदय तीर्थ अमरकण्टक में नवनिर्मित अष्टधातु की आदिनाथ भगवान् की प्रतिमा जी को वेदी में स्थापित करने के लिए ट्रक में लाया जा रहा था, पर वह वहीं बीच में ही रुक गया। ट्रक का आधा पहिया जमीन में धंस गया। ट्रक वहीं रुक गया, आगे नहीं बढ़ रहा था तब आचार्य श्री ने कहा - भैया भगवान् बिना परीक्षा के वेदी में नहीं बैठते तो सोच लो आपके मन मंदिर में भी बिना परीक्षा के कैसे बैठेंगे।
काहे को दुनिया बसायी
एक बार रास्ते में विहार करते हुए आ रहे थे। एक गाँव से गुजरना हुआ वहाँ दुकान पर एक भजन चल रहा था। "दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी, तूने काहे को दुनिया बनायी।” इस पंक्ति को सुनकर आचार्य श्री के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ गयी तो साथ में चलने वाले सभी हँसने लगे। आचार्य महाराज ने कहा - ऐसा कहना ठीक नहीं बल्कि ऐसा कहो "दुनिया बसाने वाले क्या तेरे मन में समायी, तूने काहे को दुनिया बसायी।” संसार में तुम ही फँसे हो, गृहस्थी तुमने ही बसायी है खुद को दोषी कहो, भगवान को दोषी मत कहो।
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विचार सूत्र संकलन
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आज्ञा
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आयुकर्म
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कर्त्तव्य
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काम
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गर्भ
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चिन्तन
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उपगूहन अंग
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गाय और किसान
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चिन्तन
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आचार्य विद्यासागर जी की राष्ट्रीय देशना
राजनेता की योग्यता
जिस तरह प्रशासिनक वर्ग स्थाई होता है उस तरह राजनेता स्थाई नहीं होता, राजनेता सीमित समय के लिए बनते हैं, किन्तु राजनेता को जो मौका मिलता है उसे सही दिशा में लगा दे तो फिर जनता उन्हें भी स्थाई बना देते हैं। जो देशहित में उचित निर्णय ले, नि:स्वार्थ सेवाभावी हो, स्वच्छ छवि वाला हो, निष्पक्षी हो, निरहंकारी हो, संस्कृति का जानकार हो। इतनी योग्यताओं के साथ कार्य करने वाला हो। -२६ अगस्त २o१६, भोपाल
७o साल की आजादी में जनता का पक्ष कमजोर
मुख्यमंत्री जी, आपको जनता ने विधायक बनाया था इसलिए जनता जो शासक है उसके भले के लिए सोचकर ही आगे कदम बढ़ाएँ क्योंकि केन्द्र कोई भी हो जनता केन्द्र बिंदु है। चुनाव के समय ही नहीं, आचार संहिता हमेशा के लिए लागू होना चाहिए। ७० साल हो गए आजादी को आज, परन्तु जनता का पक्ष कमजोर हो गया है। -२ अक्टूबर २०१६, भोपाल
अपने आपको सशक्त बनाएँ
आज परमाणु की शक्ति जो एकत्रित की गई है वो बहुत विनाशकारी है। आज राष्ट्र को सशक्त बनाने के पहले अपने आपको सशक्त बनाएँ। -१७ अक्टूबर २०१६, सोमवार, भोपाल
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आचार्य विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम
पाठ १० जैसे के जैसे
कहते हैं कि कार्य के आरंभिक समय में उत्साह एवं विशुद्धि का होना इतना महत्त्वशाली नहीं, जितना कि कार्य की पूर्णतापर्यंत उसका अनवरत बना रहना। इसी तरह दीक्षा के समय वैराग्य, उत्साह एवं विशुद्धि का होना तो स्वाभाविक है। महत्त्व तो तब है, जब समाधिमरण पर्यंत तक वह अनवरत बनी रहे।आचार्य भगवन् श्री विद्यासागरजी मोक्षमार्ग के एक ऐसे महत्त्वशाली व्यक्तित्व हैं, जिनकी विशुद्धि, उत्साह, चेतना एवं आध्यात्मिकता दीक्षा के समय जैसी थी, आज ५० वर्ष पश्चात् भी वैसी की वैसी ही है। वह तब से अब तक 'जैसे के जैसे हैं। ग
पाठ ७ उत्तम दस धर्मधारी
आचार्य भगवन् कहते हैं- 'आत्मा के स्वभाव की उपलब्धि रत्नत्रय में निष्ठा के बिना नहीं होती और रत्नत्रय में निष्ठा दया धर्म के माध्यम से, क्षमादिधर्मों से ही मानी जाती है।' मूल गुणों में पठित दस धर्मों का आचार्यश्रीजी पूर्ण निष्ठा एवं उत्कृष्टता से किस तरह परिपालन करते हैं, इससे जुड़े हुए कुछ प्रसंगों को यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है। श्रमणत्व अंगरक्षक : दस धर्म * अर्हत्वाणी * धम्मो वत्थु-सहावो ... .... जीवाणं रक्खणं धम्मो ॥ ४७८॥ वस्तु के स्वभ
पाठ ९ जिनमार्ग पोषक
गुरु वह आध्यात्मिक शिल्पकार हैं, जो शिष्य को दीक्षा के साँचे में ढालकर न केवल एक मूर्ति का रूप देते हैं, बल्कि निर्वाण प्राप्ति के लिए आवश्यक संस्कारों के रंग-रोगन से भरकर उसके जीवन को श्रेष्ठ बनाते हुए उस पर अनुग्रह करते हैं। गुरु के द्वारा शिष्य में पोषित किए जाने वाले ऐसे ही अनमोल संस्कारों एवं शिक्षाओं से जुड़े कुछ प्रसंगों को इस पाठ का विषय बनाया जा रहा है। आचार्यश्रीजी उच्चकोटी के साधक होने के साथ-साथ श्रमण परंपरा को संप्रवाहित करने के लिए शिष्यों को संग्रहित एवं अनुग्रहित करने व
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आचार्य विद्यासागर जी द्वारा ग्रन्थ पद्यानुवाद
कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971)
कल्याणमन्दिर स्तोत्र (1971) ‘कल्याणमंदिर स्तोत्र' आचार्य कुमुदचन्द्र, अपरनाम श्री सिद्धसेन दिवाकर द्वारा विरचित है। इसका पद्यानुवाद आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने मदनगंज-किशनगढ़, अजमेर (राज.) में सन् १९७१ के वर्षायोग में किया। इस स्तोत्र को पार्श्वनाथ स्तोत्र भी कहते हैं। मूल स्तोत्र एवं अनुवाद दोनों ही वसन्ततिलका छन्द में निबद्ध हैं। इस कृति में उन कल्याणनिधि, उदार, अघनाशक तथा विश्वसार जिन-पद-नीरज को नमन किया गया है जो संसारवारिधि से स्व-पर का सन्तरण करने के लिए
अंतर घटना
उपलब्ध जैन-दर्शन साहित्य में प्राकृत-भाषा-निष्ठ साहित्य का बाहुल्य है। कारण यही है कि यह भाषा सरल, मधुर एवं ज्ञेय है। इसीलिए कुन्दकुन्द की लेखनी ने प्राकृत-भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना कर डाली। उन अनेक सारभूत ग्रंथों में अध्यात्म-शान्तरस से आप्लावित ग्रंथराज 'समयसार' है। इसमें सहज-शुद्ध तल की निरूपणा, अपनी चरम सीमा पर सोल्लास 'नृत्य करती हुई. पाठक को, जो साधक एवं अध्यात्म से रुचि रखता है, बुलाती हुई सी प्रतीत होती है। यथार्थ में, कुन्दकुन्द ने अपनी अनुभूतियों को 'समयसार' इस ग्रंथ के रूप में रूप
स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी
स्वरूप सम्बोधन पच्चीसी ज्ञानावरणादिक कर्मों से, पूर्णरूप से मुक्त रहे। केवल संवेदन आदिक से युक्त, रहे, ना मुक्त रहे ॥ ज्ञानमूर्ति हैं परमातम हैं, अक्षय सुख के धाम बने। मन वच तन से नमन उन्हें हो, विमल बने ये परिणाम घने ॥१॥ बाह्यज्ञान से ग्राह्य रहा पर, जड़ का ग्राहक रहा नहीं। हेतु-फलों को क्रमशः धारे, आतम तो उपयोग धनी॥ ध्रौव्य आय औ व्यय वाला है, आदि मध्य औ अन्त बिना। परिचय अब तो अपना कर लो, कहते हमको सन्त जना ॥२॥ प्रमेयतादिक गुणधर्
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आचार्य विद्यासागर जी के लिखित प्रवचन
प्रवचन सुरभि 67 - वात्सल्य अंग
आज सम्यक दर्शन के वात्सल्य अंग के बारे में विचार करना है। जब संसारी प्राणी एक दूसरे से परस्पर प्रेम भाव रखता है, अर्थात् जीव जीव को पहचानता है वास्तविक दृष्टि से जान लेता है वह सम्यक दृष्टि हो जाता है। यह पहचान मात्र शब्दों से नहीं, अन्दर से हो। जब सम्यक दृष्टि तत्व चिंतन में लगता है, तब उसकी दृष्टि में कोई भी जीव किसी भी रूप में आ जाये तो भी वह विरोध भाव नहीं रखता। चाहे वह अनिष्ट करने वाला हो तब भी वह सब जीवों में मैत्री भाव रखेगा। जिस प्रकार सूर्योदय को देखकर कमल खिल जाता है उसी प्रकार वह गुणव
प्रवचन सुरभि 75 - बल का मद
आज बल मद के बारे में बताना है। संसार अवस्था में अनेक प्रकार का बल माना जाता है, जैसे मनोबल, वचन बल, काय बल, इन्द्रिय बल, धन बल इत्यादि हैं। इनको लेकर अभिमान करना अनन्त बल यानि आत्मा के बल को खोना है। ये मनोबल हरेक के लिए प्राप्य नहीं है। मनोबल का वास्तविक लाभ कर्म मल को धोने के लिए होता है। मन के बिना मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते तथा उसके बारे में विचार भी नहीं कर सकते। प्रयोजन भूत तत्व के बारे में विचार मन के द्वारा होता है। अन्तिम पर्याप्ति मन:पर्याप्ति ही है, ये जब प्राप्त हो जाये तो मोक्ष म
सर्वोदयसार 16 - द्रश्य नहीं द्रष्टा को पहचानो
किसी भी कार्य की शुरूआत और सानंद सम्पन्नता के लिये विशेष पुण्य-भावनाओं की आवश्यकता होती है, धन की नहीं। आँखें सभी के पास हैं जो देखने का काम करती हैं किन्तु बीच में कुछ ऐसी खराबी आ जाती है जिसकी वजह से साफ-साफ दिखाई नहीं देता। नेत्र चिकित्सा भी इसीलिए की जाती है कि हम एक दूसरे को पहचान सकें। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें आँखों में मोतियाबिंद आदि कोई रोग नहीं है फिर भी उन्हें किसी की पहिचान नहीं हो पाती। पता नहीं उनकी दृष्टि में कौन सा रोग है। इसे तो दृष्टि दोष (विकृति) ही कहा जा सकता है। इन आँखों स
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काव्य रचनाएँ
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पवित्र मानव जीवन / कर्तव्य पथ प्रदर्शन
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जिनेन्द्र देव की वाणी , जिसे पूर्वाचार्यो ने प्राकृत संस्कृत भाषा में निबद्ध किया था, उसी का आचार्य विद्यासागर जी द्वारा हिंदी भाषा में अनुदित पद्यानुवादजैन गीता (समणसुत्तं) कुन्दकुन्द का कुन्दन (समयसार) -
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सभी से क्षमा, सभी को क्षमा
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सौरभ जैन जयपुर
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दिनांक :- २६ फरवरी २०२४
परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य पूज्य निर्यापक श्रमण ज्येष्ठ श्रेष्ठ मुनि श्री समय सागर जी महाराज ससंघ डोंगरगढ़ में विराजमान है ।
उनके अलावा लगभग सभी निर्यापक संघ एवं पूज्य मुनि संघ का मंगल विहार चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से डोंगरगढ़ सिटी की ओर हुआ।आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
संभावित मुनि संघ एवं विहार दिशा
संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ योगसागरजी महाराज
★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ समतासागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ पूज्यसागरजी महाराज
★ मुनिवरश्री १०८ महासागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निष्कंपसागर जी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निस्सीमसागर जी महाराज
★ऐलकश्री १०५ निश्चय सागरजी महाराज
★ऐलकश्री १०५ धैर्य सागरजी महाराजससंघ का मंगल विहार अभी अभी चंदगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से हुआ
◆आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
◆विहार दिशा :- राजेन्द्र नगर/ अमरकंटक की ओर
संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य★ निर्यापक श्रमण मुनिवरश्री १०८ प्रसादसागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ अजितसागरजी महाराज
★ मुनिवरश्री १०८ चंद्रप्रभसागरजी महाराज
★मुनिवरश्री १०८ निरामयसागर जी महाराज
★ऐलकश्री १०५ विवेकानंद सागरजी महाराजससंघ का मंगल विहार अभी अभी चंदगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ से हुआ
◆आज आहारचर्या :- डोंगरगढ़ नगर में ।।
◆विहार दिशा :- बालाघाट की ओरसूचना इसी लिंक पर अपडेट की जाएगी
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जन्म का उत्सव तो सभी मानते हैं, किंतु जो मरण का उत्सव मनाते हैं वह मौत को भी जीत जाते है। जैन परम्परा में मरण को जीतने की इसी कला को समाधिमरण कहते है।
छत्तीसगढ़ की धर्मनगरी डोगरगढ़ चंद्रगिरी दिगंबर तीर्थक्षेत्र पर समाधि साधनारत दिगंबर जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज ने दिनांक 18 फरवरी 2024 के ब्रम्हमुहूर्त में जीवन की इसी श्रेष्ठतम समाधि अवस्था को प्राप्त किया। मानों एक क्षण के लिए समय का चक्र थम गया। भाजपा के केंद्रीय अधिवेशन दिल्ली में आज कार्यवाही प्रारंभ होने के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमान जेपी नड्डा जी ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, आदि उपस्थित सभी विशिष्ट महानुभावों को यह दुखद सूचना देकर गुरुदेव के प्रति मौन श्रद्धांजलि अर्पित कराई। इस अवसर पर देश के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र जी मोदी ने कहा की समाधि की सूचना मिलने के बाद उनके भक्त और हम सभी शोक में है और हम सब भी शोक में हैं और मेरे लिए तो यह व्यक्ति गत बहुत बड़ी क्षति है। इस समय वह गुरुदेव अपना अपना छोटा सा संघ लिए आत्मा साधना में लिए लीन रहते थे। जबकि उनके द्वारा दीक्षित हजारों शिष्य, शिष्याएं समूचे देश विहार कर रहे है। समाचार फैलते ही समूचे देश के श्रद्धालुओं, भक्तों की भीड़ गुरुदेव के अंतिम दर्शन करने उमड़ पड़ी। मध्यान्ह काल 1 बजे गुरुदेव की विमान यात्रा प्रारंभ होते ही लाखों नयन अश्रुपूरित हो उठे।मुख्य मंत्री मोहन यादव के निर्देशन से आए चेतन कश्यप :केबिनेट मंत्री सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय ने किए अंतिम दर्शन
"जैनम जयति शासनम, वंदे विद्यासागरम" के उद्घोषों के साथ ही मुनिसंघ के साथ विमान यात्रा अंतिम संस्कारस्थली पर पहुंची। मुनीसंघ के द्वारा किए गए अंतिम धार्मिक अनुष्ठान, भक्तिपाठ संपन्न होते ही प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी विनय भैया जी द्वारा दाह संस्कार की विधि संपन्न की गई। देश के प्रसिद्ध श्रावक श्रेष्ठि श्रीमान अशोक जी पाटनी(R.K.मार्बल) किशनगढ़, प्रभात जी मुंबई, राजा भैया सूरत, अतुल सराफ पूना, विनोद बड़जात्या रायपुर, प्रमोद कोयला दिल्ली, पंकज जी पारस चैनल दिल्ली, दिलीप घेवारे ठाणे, किरीट भाई मुंबई, चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र कमेटी से किशोर जी जैन, चंद्रकांत जैन, सुधीर जैन छुईखदान आदि सभी ट्रष्टिगण उपस्थित थे।हम सबके प्राणदाता, जीवन निर्माता गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण कर ली थी और जागरूक अवस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुवे 3 दिन का निर्जल उपवास करते हुवे प्रत्याख्यान किया था। अखंड मौन धारण करके उन्होंने अपनी यह समाधि साधना संपन्न की।
इस अवसर पर प्रतिभामंडल की समस्त ब्रह्मचारिणी बहने चंद्रगिरी क्षेत्र रामटेक, तिलवारा जबलपुर, ललितपुर एवम इंदौर की विशेष उपस्तिथि के साथ विभिन्न प्रदेशों से भी श्रद्धालुजन आए। ब्रम्हचारी भैया, ब्रम्हचारी बहनें, समस्त गौशलाओ के कार्यकर्तगण, पुर्नायु, शांतिधारा, हथकरघा, भाग्योदय के कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे। ब्राम्ही विद्या आश्रम की बहने, श्राधिका आश्रम, उदासीन आश्रम इंदौर की बहने, ब्रम्हचारी समस्त ब्रम्हचारी भैया आदि इस अवसर पर विशेष रूप से विभिन्न प्रदेशों की समाज एवम कार्यकर्ता के संगठन उपस्थित रहे। गुरुदेव के संघ जहां जहां विराजमान थे आर्यिका संघ जहां जहां विराजमान थे, के द्वारा गुरुदेव के श्रीचरणों में अपनी विनयांजलि अर्पण की।
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Aacharyashri Maharaj shri shri Vidyasagar ji maharaj k pravachan Youtube k channel Kundal pur mahotsav 2022 par upload nhi ho rahe hai bas bade baba ki shanti dhara he upload ho rahi hai Kripaya help kareआचार्य श्री जी के अवतरण दिवस पर उनके श्री चरणों में कोटि कोटि नमोस्तु अर्पित करते हैं। नमोस्तु गुरु देव। नमोस्तु गुरु देव। नमोस्तु गुरु देव।This is very gudप्रतिभास्थली के बारे में जानकारी एवम प्रचार अधिक हो ये आचार्य श्री जी भाव को आप के माध्यम से सभी तक पहुंचा सकते है सप्रेम जैन संयुक्त मंत्री प्रतिभास्थली चन्द्रगिरी डोंगरगढ़मुझे यह ,साइट बहुत पसंद आई यह बहुत उपयोगी साइट है धन्यवादइस वेबसाइट पर सबसे कुछ विषय अति उत्तम है । कार्य कर्ता सभी को सादर प्रणाम धन्यवाद ।Is website k dwara muje ye tatwarath sutra ka Jo adhyan krne ko Mila vo adbhut hai me apne aap ko Bhot dhyan manti hu aur ye website hai har hamesha kuch naya swadhya krne ko mile aise asha rakhti hu.. Bhot DhanyavadGreat initiativeMe yah janana chata hu ki marte hue tote ko namokar mantra kisne sunayaजय जिनेंद्र 🙏 नमोस्तु शासन जयवंत हो 🤗 इस एप से हमारे जैन धर्म की बहुत प्रभावना हो रही हैHappy to see this website and web.. u had done a good job, keep it continue.. Feel free to subordinate any kind of work to me, will be glad to serve you. JAI JINENDRA!!बहुत ही शानदार ज्ञानवर्धक साईट का निर्माण किया है और हम सभी को इसका पूर्ण लाभ उठाना चाहिए.जयजिनेन्द्र । सम्यक दर्शन । सादर प्रणाम! गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागर वेबसाइट बहुत उपयोगी है । हम इस वेबसाइट द्वारा धर्म, साहित्य, भजन ,पूजा ,धर्म समाचार, प्रतिष्ठा महोत्सव, आचार्य श्री की प्रवचन, गीत, कई तरह विभिन्न प्रकार के विषयो की जानकारी मिलते है । अतः यह वेबसाइट जैन धर्म की सागर है । श्री सौरभ जी को हमारी बधाई ।सौरभ भाई आपके प्रयास से बहुत अच्छी वेब बनकर तैयार हुई है। आचार्य भगवन के बारे में संपूर्ण जानकारी के साथ ही वेब पर त्वरित अपडेट मिलने से यह बहुत ही प्रासंगिक वेब बन गई है। आपको और आपकी पूरी टीम को बहुत बधाई।आपके द्वारा मीडिया का बहुत ही सुन्दर प्रयोग किया गया है।आन लाइन स्वाध्याय एकबहुत ही सुन्दर प्रयोग है जिसके लिएआप बधाई के पात्र हैं। आपको बहुत बहुत साधुवाद । मुझे इससे बहुत फ़ायदा हुआ है।आपका कोटि कोटि धन्यवाद । इस स्वाध्याय को प्रतियोगिता से जोड़ कर तो आपने इसे बहुत ही दिलचस्प भी बना दिया है। पुन:बहुत बहुत धन्यवाद प्रमोद जैन लखनऊMany thanks for sharing this useful information. Its an eye opener for all modern Jain's who don't seem to be interested to know their rich past and are forgetting their Jain religion and it's contribution to the world. Please keep updating this app.मेरे भगवन मेरे गुरुवर आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के चरणो में मेरा कोटी कोटी नमन नमोस्तु भगवन नमोस्तु गुरूदेव नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु *जैनम् जयतु शासनम्* *वंदे विघा सागरम्*बहुत अच्छी वेबसाइट है गुरु जी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहाँ प्राप्त होती है । बहुत बहुत आभार आपका जो आप लोगो के वजह से गुरुदेव की जानकारी हमे प्राप्त होती रहती है ।bhut hi accha website h or guru ke dura dhrm ki prabhavna hoti rhe......No words for this website. Your efforts are really appreciable. Whole content is just above the mark. -
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संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज
ये ऐसे संत है जिनका जीवन एक सम्पूर्ण दर्शन है जिनके आचरण में जीवों के लिए करुणा पलती है जिनके विचारों में प्राणी मात्र का कल्याण आकर लेता है,जिनकी देशना में जगत अपने सदविकास का मार्ग प्रशस्त करता है |आप निरीह, निस्पृह वीतरागी है फिर भी आपके विचार भारतीयता के प्रति अगाध निष्ठा, राष्ट्रभक्ति और कर्तव्यपरायणता से ओतप्रोत है आपका चिंतन प्राचीन भारतीय हितचिंतको दार्शनिको एवं संतो का अनुकरण करते हुए भी मौलिक है |आचार्य महाराज तो ज्ञानवारिधी है और उनके विचारों को संकलित करना छोटी सी अंजुली में सागर को भरने का असंभव प्रयास करना है|
रास्ता उनका, सहारा उनका, मैं चल रहा हूँ दीपक उनका, रौशनी उनकी मैं जल रहा हूँ प्राण उनके हर श्वास उनकी मैं जी रहा हूँ
From Wikipedia Acharya Shri Vidyasagarji Maharaj (born 10 October 1946) is one of the best known modern Digambara Jain Acharya(philosopher monk). He is known both for his scholarship and tapasya (austerity). He is known for his long hours in meditation. While he was born in Karnataka and took diksha in Rajasthan, he generally spends much of his time in the Bundelkhand region where he is credited with having caused a revival in educational and religious activities. Know more about him
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