मेरे महान तपस्वी
गुरुवर के पावन चरणों में कोटिशः वन्दन, नमन, आभार। मुझे यह प्रतियोगिता बहुत रूचिकर लगी। गुरुवर के बारे में कुछ भी कहना असम्भव हैं मैं बस इतना ही कहना चाहती हूँ कि गुरुदेव का व्यक्तित्व तो समुद्र से भी ज्यादा गहरा हैं मैं तो गुरुदेव के बारे में पढ़ते-पढते थक गई और गुरुदेव ने सब कुुछ अपने भीतर घटित किया हैैंं मैं उनकी तपस्या की हृदय से खूब अनुुमोदना करती हूँ उन्होनेे 1969 से ही नमक, मीठे का त्याग किया हैंं । धन्य हैं गुरुदेव।