क्षमा का स्पष्टीकरण
नहीं शत्रु से भर जरा भी नहीं मित्र भी स्नेह मही।
जीना मरना एक सरीखा यतिपन में समदाम सही ॥१८८॥
अपनी निन्दा में न मलिनता और न खुशी बड़ाई में।
ऐसी क्षमता भेद न कुछ भी सेवक में या सांई में॥
नहीं शत्रु से भर जरा भी नहीं मित्र भी स्नेह मही।
जीना मरना एक सरीखा यतिपन में समदाम सही ॥१८८॥
अपनी निन्दा में न मलिनता और न खुशी बड़ाई में।
ऐसी क्षमता भेद न कुछ भी सेवक में या सांई में॥
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