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वात्सल्य अंग का प्रभाव आचार्यश्री खजुराहो, 22 सितम्बर दयोदय महासंघ के लोगों ने हमारे सामने एक चित्र रखा था इस चित्र को देख कर हम तो गदगद हो गए। इस चित्र में एक गैया है उसके बड़े बड़े सींग है यह गाय एक घर के सामने कुछ खाने पीने के लिये सीढियों तक चली गई थी। उसी समय उस घर का एक छोटा सा नादान यथाजत बालक आकर उस गाय के दोनो सींग के बीच मे बिना डरे लेट जाता है और गाय भी उसे वात्सल्य देती है। आप लोग इतनी सहजता से वह चित्र देख लेते तो मालूम पड़ जाता कि गोवत्स क्या होता है आप इस
छतरपुर / खजुराहो में विराजमान परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ने अपने मांगलिक प्रवचन के दौरान मनुष्य को प्राप्त अलौकिक अनुभूतियों के बारे में बताया आचार्य श्री ने कहा देवों के पास बहुत सारी विभूतियां होती हैं । और देवों का देव सोधर्म इन्द्र सभी देवताओं में अग्रणी माना जाता है। परंतु उसके मन में एक प्रश्न की उलझन सदैव बनी रहती है । कि मैं सर्वशक्तिमान होकर भी अपनी इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पा रहा हूँ। भगवान के दीक्षित होने के उपरांत सौधर्म इंद्र जब भगवान का अभिषेक करता है और देवों
दिन में आप सूर्य को ही मात्र देख सकते हैं ज्योतिष मंडल में बहुत प्रकार के तारामंडल विद्यमान रहते हैं सूर्य के प्रकाश से हम सभी वस्तुओं को तो देख सकते हैं परंतु ज्योतिष में विद्यमान तारामंडल को नहीं देख सकते। तारामंडल बहुत चमकदार होते हैं । लेकिन प्रभाकर का प्रकाशपुंज इतना तेज होता है कि उस प्रकाश के कारण संपूर्ण तारामंडल लुप्त रहता है । चंद्रमा ज्योतिष मण्डल मे गायब तो नहीं होता लेकिन पर वह अपना प्रकाश भी नहीं फैला पाता है चंद्रमा अपना प्रकाश सूर्य के सामने नहीं फेंक सकता । ऐसा क्यों होता है क
आँगन में दादाजी बैठे है, उनकी गोदी में नाती बैठा है, दोनों प्रातःकाल की सुनहरी धूप का आनन्द ले रहे है। इसी बीच भीतर से आवाज आती है, ले जाओ..., ले जाओ....., नाती उछल कर भीतर जाता है, भीतर में उसे कहा जाता है यह लडडू तुम्हारे लिए और यह लडडू दादाजी के लिए है। अब वह नाती नाचता हुआ लडडू खा रहा है, दादाजी देखते हुए सोचते है यह होनहार है, अभी इसे अनुभव नही है। फिर इसके उपरांत जो दादाजी को लडडू मिला था, उसमें से भी आधा लडडू नाती को दे देते है इस बार तो कहना ही क्या, नाती और अधिक नाचने लगता है।
अब
सागर से ढाई हजार लोगों ने श्रीफल भेंट कर चातुर्मास का किया निवेदन
सागर/ प्रसिद्ध जैन तीर्थक्षेत्र पपौराजी में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को सागर से ढाई हजार श्रावको ने सामूहिक रुप से आचार्यश्री से सागर में चातुर्मास हेतु निवेदन करते हुए श्रीफल समर्पित किया
सागर समाज की तरफ से मुकेश जैन ढाना ने कहा कि 1998 के बाद से सागर में आचार्य संघ का वर्षा कालीन चातुर्मास नहीं हुआ है। सागर में चतुर्मुखी जिनालय का का निर्माण कार्य चल रहा है आपके चातुर्मास से इस कार्य में और तेजी आएगी
टीकमगढ़ - आचार्य श्री ने कहा कि 2 मित्र बहुत दिन बाद मिलते हैं वे दोनों मित्र कुशल कुशलता उनमें प्राय बनी रहती थी दोनों ने मिलने के बाद ठान लिया कि जो बचपन के दिनों में जो तत्व चर्चा होती है उस पर बात करेंगे एक मित्र ने कहा मैंने राजा के बारे मे आंखों के द्वारा देखा दूसरे मित्र ने पूछा क्या देखा भाई देखना तो पड़ेगा भाई आप बतला दो भाई मैंने वह दृश्य देखा एक राजा को पहले घोड़ी पर बैठा दिया जाता है फिर राजा को घोड़े से हाथी पर बैठा दिया हाथी पर बैठकर राजा अपने नगर में भ्रमण कर रहा था राजा अपने नगर
जब तक ज्ञान नहीं होता तब तक परिणामों का नियंत्रण नहीं हो पाता। मोक्ष मार्ग का यदि श्रवण ही कर ले तो हमारे परिणाम भी उस पर चलने के हो जाते है। अंत समय में भी यदि हम धर्म के मार्ग पर चलकर मृत्यु को प्राप्त होते है तो भी हमारा कल्याण हो सकता है। यद्यपि हमें आज के काल में अवधि ज्ञानी नहीं मिलते लेकिन आज जो मोक्षमार्ग तीर्थंकरों के द्वारा लिखाया गया उस पर ही बढ़ना चाहिये।
गुरूवर ने बताया रोगी व्यक्ति लौकिक चिकित्सा से निराश होकर अन्त में आध्यात्मिक चिकित्सा में संतो के पास आता है।
आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने पपौराजी में प्रवचन में कहा कि वर्षों पूर्व यहां हमारा चातुर्मास हुआ था। उसका स्मरण ताजा हो रहा है। आपकी बहुत सालों से भावना थी आशीर्वाद की। आज की प्रात:काल की पूर्णिमा के मंगल अवसर पर इंदौर में भी आर्यिका के सान्निध्य में शिलान्यास होने जा रहा है। वे लोग यहां के शिलान्यास का स्मरण कर रहे हैं। कार्य वहां का भी सानंद संपन्न हो जाए, आशीर्वाद उनका मिल रहा है।
महाराजश्री ने कहा कि गुरुजी ने संघ को गुरुकुल बनाने का कहा था। यहां से धर्म-ध्यान मिलता है। हमें गुरुजी
निर्मलकुमार पाटोदी,इंदौर :
वर्षों पूर्व यहाँ हमारी चातुर्मास हुआ था। उसका स्मरण ताज़ा हो रहा है। आपकी बहुत सालों से भावना थी, आशीर्वाद की। आज की प्रात:काल की पूर्णिमा के मंगल अवसर पर इंदौर में भी आर्यिका के सानिध्य में शिलान्यास होने जा रहा है। वे लोग यहाँ के शिलान्यास का स्मरण कर रहे हैं। कार्य वहाँ का भी सानंद सम्पन्न हो जाए, आशीर्वाद उनके मिल रहा है। गुरु जी ने संघ को गुरुकुल बनाने का कहा था। यहाँ से धर्म-ध्यान मिलता है। हमें गुरु जी का जो आशीर्वाद मिला है, वरदान मिला है। गुरु जी की की ज
डिंडौरी (मप्र)- सोयावीन भारत का बीज नहीं है, यह विदेशों में जानवरो को खिलाने वाला आहार है। उक्त उदगार दिगम्बर जैनाचार्य श्री विधासागर जी महाराज ने मध्यप्रदेश के वनांचल में वसे डिंडौरी नगर में एक महती धर्म सभा को सम्बोधित करते हुऐ व्यक्त किये। आचार्य श्री ने वताया कि भारत मे सोयावीन से दूध,विस्किट, तेल आदि खाद्यय उपयोगी वस्तुएं लोग खाने में उपयोग कर रहे है। सोयावीन का बीज भारत मे षणयंत्र पूर्वक भेजा गया है। इसे अमेरिका जैसे अनेक देशों में शुअर आदि जानवरों को खिलाने के लिये उत्पादित करते है।
डिंडोरी (म.प्र.)- आप लोग भिन्न भिन्न प्रकार के हार गले में पहनते हैं और यदि नकली हो तो नहीं पहनेगे।लेकिन आज नकली आभूषण भी पहने जा रहे हैं। नकली आभूषणो,फटे वस्त्रो,का प्रभाव व्यक्ति पर पङता है ज्योतिष शास्त्रों में इसका स्पष्ट उल्लेख है,यहाँ तक की जिन फटे वस्त्रो को भिखारी भी नहीं पहनता उन जींस आदि वस्त्रों को फैशन के नाम पर बच्चे पहन लेते है इसका दुष्प्रभाव देखने में आ रहा है। उक्त आशय के उदगार डिडोरी में धर्म सभा को संबोधित करते हुए संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज ने कहे।आचार्य श
मंगल प्रवचन- आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज @ अमरकंटक
उपदेश के बिना भी विद्या प्राप्त हो सकती है। जिस राह नहीं चलते वहां रास्ता नहीं, यह धारणा नहीं बनाना चाहिए। कुछ लोग होते हैं, जो रास्ता बनाते जाते हैं। महापुरुष आगे चलते जाते हैं और रास्ता बनता जाता है।
आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहा कि समवशरण में सब कुछ प्राप्त हो जाता है किंतु सम्यग्दर्शन मिले, जरूरी नहीं। बाहरी कारण मिलने के साथ भीतरी कारण मिले, यह नियम नहीं होता। अंतरंग निमित्त बहुत महत्वपूर्ण होता है।
चक्रवर्त
अमरकंटक (छत्तीसगढ़)। प्रसिद्ध दार्शनिक व तपस्वी जैन संत शिरोमणिश्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा है कि सांसारिक वैभव अस्थिर व अस्थायी होता है। यह एक पल में प्राप्त और अगले ही पल समाप्त हो सकता है। यही संसार की लीला है। इसलिए यह वैभव प्राप्त होने पर भी कभी संतोष का त्याग नहीं करें और न ही अहंकार को पास में फटकने दें।
आचार्यश्री ने बताया कि सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों ही लक्ष्यों पर ध्यान रखते हुए यह भी सदैव याद रखें कि लक्ष्य को प्राप्त करने का रास्ता कठिनाइयोंभरा है। यह याद रखने से तो
विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {10 दिसंबर 2017}
चन्द्रगिरि (डोंगरगढ़) में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि नीम का वृक्ष बहुत योगी होता है। उसकी छाल से बनी जड़ी-बूटियों से बड़े से बड़े रोगों व विभिन्न बीमारियों का उपचार संभव है।
वृक्ष ऑक्सीजन छोड़ते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण करते हैं जिससे हमें प्राणवायु प्राप्त होती है। नीम का फल कड़वा होता है, परंतु उसका स्वास्थ्य के लिए लाभ बहुत है। नीम की शाखाओं एवं टहनी का उपयोग दातुन आदि के लिए भी उ
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {9 दिसंबर 2017}
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराजजी ने कहा की समन्वय से गुणों में वृद्धि हो तो वह सार्थक है किन्तु यदि समन्वय से गुणों में कमी आये तो वह समन्वय विकृत कहलाता है। उदाहरण के माध्यम से आचार्यश्री ने समझाते हुए कहा की यदि दूध में घी मिलाया जाये तो वह उसके गुणों को बढाता है जबकि दूध में मठा मिलाते हैं (कुछ लोग कहते हैं दूध भी सफ़ेद होता है और मठा भी सफ़ेद होता है) तो वह विकृति उत्पन्न
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {3 दिसंबर 2017}
चन्द्रगिरि (डोंगरगढ़) में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने प्रात:कालीन प्रवचन में कहा कि जब तीर्थंकर भगवान का समवशरण लगता है तो उसमें काफी भीड़ होती है और जगह की कमी कभी नहीं पड़ती है। बहरे के कान ठीक हो जाते हैं, उसे सब सुनाई देने लगता है। अंधे की आंखें ठीक हो जाती हैं और उसे सब दिखाई देने लग जाता है, लंगड़े के पैर ठीक हो जाते हैं और वह चलने लग जाता है। वो भी बिना किसी ऑपरेशन, सर्जरी या बिना किस
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {2 दिसंबर 2017}
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की आप लोग कहते हैं की अग्नि जल रही है जबकि अग्नि जलती नहीं जलाती है, जलता तो ईंधन है। इसी प्रकार गाड़ी अपने आप चलती नहीं है उसे ड्राईवर चलाता है। वैसे ही हमारी आत्मा हमारे शरीर को चलाती है और हमारा शरीर उसी के अनुसार कार्य करता है। इसे ही भेद विज्ञान कहा जाता है जो इसे समझ लिया उसे फिर कुछ और समझने की आवश्यकता नहीं होती है।
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {30 नवंबर 2017}
चन्द्रगिरि, डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने एक दृष्टांत के माध्यम से बताया कि एक पिता अपने बेटे को सही राह (धर्म मार्ग) बताता है, परंतु बेटे को पिता की बात कम ही समझ में आती है। वह केवल अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु प्रयत्न करता है और उसमें सफलता भी प्राप्त करता है।
जब उसके पास उसकी इच्छा अनुरूप सभी साधन और सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं तो वह बैठा सोचता है कि उसके पास आ
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {29 नवंबर 2017}
चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की गायें होती हैं, उसके गले में रस्सी डाली जाती है और वह जब जंगल आदि जगह चरने जाती हैं तो वह रस्सी उसके गले में ही रहती है और वह चरने के बाद अपने यथास्थान पर आ जाती हैं किन्तु बछड़े के गले में रस्सी नहीं होती है, वह अपनी माता (गाय) के इर्द – गिर्द ही घूमता रहता है और दौड़कर दूर भी निकल जाये तो गाय की आवाज के संपर्क में रहता है और भागकर
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {22 नवंबर 2017}
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि वृक्ष होता है जिसकी शाखाएं होती है उसमें से पहले कली खिलती है फिर फूल खिलता है फिर उसमें फल आता है। यह एक स्वतः होने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसी प्रकार यह प्रतिभास्थली है जिसमें ये छोटी-छोटी बच्चियां पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी ग्रहण कर रही हैं। आप लोगों की संख्या अभी कम है, आप संख्या की चिंता मत करो, आप अपना काम ईमानदारी से मन ल
विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {21 नवंबर 2017}
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की बिम्ब और प्रतिबिम्ब में अंतर होता है। बिम्ब किसी वस्तु का स्वाभाव व उसके गुण आदि होते हैं परन्तु उसका प्रतिबिम्ब अलग – अलग हो सकता है यह देखने वाले की दृष्टि पर निर्भर करता है की वह उस बिम्ब में क्या देखना चाह रहा है। यदि सामने कोई बिम्ब है और उसे दस लोग देख रहे होंगे तो सबके विचार उस प्रतिबिम्ब के प्रति अलग – अलग हो सकते हैं। किसी को कोई चीज अच्छी ल
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {20 नवंबर 2017}
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की बांस काफी लम्बे होते हैं और ऊपर की ओर परस्पर तोरण द्वार की तरह लगते हैं। पंडित जी कहते हैं न की दोनों हांथों को ऊपर उठाओ और हांथ जोड़कर शिखर बनाकर जय कारा लगाओ उसी तरह बांस भी एक – दूसरे से जुड़े हुए रहते हैं, एक – दूसरे से गुथे हुए होते हैं। यदि कोई बांस को नीचे से काटे और खिचे तो उसे ऊपर से निकालना बहुत मुश्किल होता है क्यों
प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज; (डोंगरगढ़) {19 नवंबर 2017}
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा का आकार प्रतिदिन परिवर्तित होता है बढ़ता जाता है और पूर्णिमा के दिन उसकी उषमा से समुद्र की लहरों में उछाल आ जाता है ऐसे ही डोंगरगढ़ वासियों के भावों में भगवान के शमोशरण आने से उत्साह, उल्लास नज़र आ रहा है।
आचार्य श्री ने कहा की आगे कब भगवान के समवशरण देखने को मिलेगा पता नहीं परन्तु पिछले 3 दिनों के विहार
चन्द्रगिरि (डोंगरगढ़) में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि पहले असी, मसि, कृषि, वाणिज्य के हिसाब से कार्य होता था और विवाह में कन्यादान होता था। इस प्रथा में कन्या दी जाती थी। इसमें कन्या का आदान-प्रदान नहीं होता था।
आज पाश्चात्य सभ्यता का चलन होने के कारण सब प्रथाओं में परिवर्तन आ रहे हैं, यह विचारणीय है। पहले पिता अपनी बच्ची के लिए योग्य वर ढूंढता था, पर आज बच्चे से पूछे बिना कोई काम नहीं कर सकते हैं। पहले बच्ची अपने पिता की बात को ही अपना भाग्य समझती थी, अ
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने मोह, राग और द्वेष की परिभाषा बताते हुए कहा की मोह हमें किसी भी वस्तु या मनुष्य आदि से हो सकता है जैसे दूध में एक बार जामन मिलाने पर वह जम जाता है फिर दोबारा उसी बर्तन पर दूध डालने पर दूध अपने आप जम जाता है उसमे दोबारा जामन नहीं डालना पड़ता।
उसी प्रकार मनुष्य भी मोह में जम जाता है। राग और मोह में अंतर होता है। राग के कारण वस्तु का वास्तविक स्वरुप न दिखकर उसका उल्टा स्वरुप दिखने लगता है। जैसे कोई वस्तु है, यदि आ