अन्याय की उपासना कर
वासना का दास बनकर
धनिक बनने की अपेक्षा
न्याय-मार्ग का उपासक बन
धनिक नहीं बनना भी
श्रेष्ठतम है,
किन्तु
अकर्मण्यता
मानव मात्र को
अभिशाप है
महा पाप है
कारण !
अन्याय से जीवन बदनाम होता है
न्याय से नाम होता है
जीवन कृतकाम होता है
जबकि!
अकर्मण्य की छाँव में
जीवन तमाम होता है।