आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के सानिध्य में 1008 श्री नेमिनाथ भगवान के भव्य मंदिर निर्माण का भूमिपूजन कार्य सानंद संपन्न
राजनांदगांव। सोमवार को आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज की सानिध्य में जैन प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मचारी दीपक भैया द्वारा गंज लाईन, राजनांदगांव में स्थित दिगंबर जैन मंदिर नेमिनाथ भगवान के नए भव्य जिनालय हेतु भूमि शुद्ध एवं भूमिपूजन का मंगल कार्य विधि-विधान से मांगलिक मंत्रोचार्य के साथ संपन्न हुआ। दिगंबर जैन समाज के सूर्यकांत जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि दिनांक 25 दिसंबर को प्रातः 7.30 बजे आचार्य श्री विद्यासागर महा मुनिराज के आशीर्वाद से भूमिपूजन कार्य के लिए चयनित श्रावक श्रेष्ठी सौधर्म इंद्र बनकर रविकांत जैन, अशोक झांझरी, पीसी जैन, सुदेश जैन, अमित जैन, नरेश जैन, सूर्यकांत जैन, अनिल बड़कुल, शिरीष जैन द्वारा मांगलिक क्रियाएं करते हुए प्रतिष्ठाचार्य जी के निर्देशन एवं आचार्य भगवान के सानिध्य अनुकंपा से मंगल कार्य का भूमिपूजन संपन्न हुआ।
श्री जैन ने बताया कि उक्त अवसर पर श्वेतांबर जैन समाज के साधु श्रेष्ठ मनीष सागर जी महाराज का आगमन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन एवं मंगल देशना सुनने दिगंबर जैन मंदिर प्रांगण में हुआ। उन्होंने आचार्य श्री के दर्शन करते हुए आचार्य श्री जी को एवं उनके व्यक्तित्व को अपनी प्रेरणा बताते हुए आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी से मार्गदर्शन एवं मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके पश्चात उपस्थित जन समुदाय के आग्रह पर आचार्य श्री की मंगल देशना सभी को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आचार्य श्री ने अपने प्रवचन में कहा कि परोक्ष से प्रत्यक्ष की ओर जाने का पुरुषार्थ कमजोर नहीं होना चाहिए। एक बार पुरुषार्थ भले ही कमजोर हो कोई बाधा नहीं, लेकिन वह सही दिशा की ओर हो यह महत्वपूर्ण है। आचार्य श्री ने दूध का उदाहरण देते हुए कहा कि जब आप दूध को देखते हो तो क्या इसमें घी है विश्वास करते हो, लेकिन दूध में घी छिपा हुआ है लेकिन उसका दर्शन नहीं हो पाता, जब हम पुरुषार्थ करते हैं तो 12 घंटे नहीं निकल पाते की दूध के रूप में परिवर्तन दही के रूप में हो जाता है और नवनीत की उपलब्धि हो जाती है। अभी भी आपको घी के दर्शन नहीं हुए, लेकिन जब उस नवनीत को तपाया जाता है, तो उसमें जो विकार है, वह दूर होते चले जाते हैं, फिर आंख बंद भी कर लो तो उसकी गंध से ही सुगंधी दूर से ही महसूस हो जाती है।
आचार्य श्री ने कहा कि यह जो एक श्रमण संस्कृति की परंपरा है वह नीचे से ऊपर की ओर जाने की है, जैसे दूध कहता है कि मेरा स्वभाव दबने का नहीं है। 12 घंटे में उसके स्वभाव में परिवर्तन हो जाता है। इस प्रकार आत्मा का स्वभाव उर्ध्वगामी है, हम लोग उसके स्वभाव से वंचित हैं, वंचित ही रहे, ऐसा कोई नियम नहीं है, पुरुषार्थ की परंपरा है यदि आप करोगे तो उस पुरुषार्थ की सुगंधी आपको निश्चित रूप से मिलेगी। आचार्य श्री ने कहा कि जब तक आपके अंदर के विकार दूर नहीं होंगे, तब तक आप कितने ही भगवान के चरणों में बैठ ही जाए, वह आपको भगवान बनाने वाले नहीं है। देव शास्त्र और गुरु का जो उपदेश आपको प्राप्त हुआ है, उस उपदेश को स्वीकार करना चाहिए, जैसे एक मां अपने बालक को काला टीका इसलिए लगाती है, जिससे उसकी खुद की ही नजर ना लग जाए, अपने अंदर के विकारों को हटाने के लिए हमें अपने अंदर काला टीका लगाना पड़ेगा, जिससे व्रत को दोष न लगे विकृति को हटाए बिना प्रकृति को प्राप्त नहीं कर सकते। यह ध्यान रखना अपने सिद्धांत को सुरक्षित रखना है। अहिंसा धर्म को बाहर से और भीतर से वीतराग धर्म यदि सुरक्षित रहेगा, तो आपका पैसा भी वह बहुत दिनों तक जीवित रहेगा और बोलता रहेगा, हां आप तो बोलते हो आपका धन भी बोल सकता है, यदि बुलवाना है तो देख लो।
यह उद्गार आचार्य श्री ने भूमिपूजन के मंगल कार्य को पूर्ण करने उपरांत सभी उपस्थित श्रावकजनों के से कहा।
आचार्य श्री की मंगल देशना उपरांत आचार्य श्री की आहारचार्य संपन्न हुई, जिसमें नवधा भक्ति से पडगाहन कर आहार देने का सौभाग्य सुदेश जैन महावीर फर्नीचर संयम जैन शशांक जैन परिवार को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। राजनांदगांव की सकल जैन समाज उनके इस पुण्य की बहुत-बहुत अनुमोदना करती है। आज के कार्यक्रम का प्रभावी संचालन चंद्रकांत जैन ने किया एवं भूमिपूजन के मांगलिक कार्य में प्रभात जैन और ताराचंद शास्त्री जी ने महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया। आहारचर्या के उपरांत आचार्य श्री प्रतिक्रमण एवं अन्य मांगलिक चर्या करने के उपरांत दोपहर 2 बजे आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का ससंघ विहार डोंगरगढ़ चंद्रगिरी के लिए हुआ, जिसमें रात्रि विश्राम कोपेडीह स्थित रथ मंदिर में हुआ।
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