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2,347 ExcellentAbout संयम स्वर्ण महोत्सव
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Acharya Shree Vidyasagar Quotations in English - 2
संयम स्वर्ण महोत्सव added images to a gallery album in आचार्यश्री विद्यासागर जी की सूक्तियाँ (quotes)
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Quotes By Acharya Vidyasagar Ji Maharaj
संयम स्वर्ण महोत्सव added images to a gallery album in आचार्यश्री विद्यासागर जी की सूक्तियाँ (quotes)
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वक्ता / गायक / प्रस्तुतकर्ता: आर्यिका 105 पूर्णमती माता जी
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चैत्यभक्ति अजेय अघहर अद्भुत-अद्भुत पुण्य बन्ध के कारक हैं। करें उजाला पूर्ण जगत् में सत्य तथ्य भव तारक हैं॥ गौतम-पद को सन्मति-पद को प्रणाम करके कहता हूँ। चैत्य-वन्दना' जग का हित हो जग के हित में रहता हूँ ॥१॥ अमर मुकुटगत मणि आभा जिन को सहलाती सन्त कहे। कनक कमल पर चरण कमल को रखते जो जयवन्त रहे ॥ जिनकी छाया में आकर के उदार उर वाले बनते। अदय क्रूर उर धारे आरे मान दम्भ से जो तनते ॥१/१॥ जैनधर्म जयशील रहे नित सुर-सुख शिव-सुख का दाता। दुर्गति दुष्पथ दुःखों से जो हमें बचाता है त्राता ॥ प्रमाणपण औ विविध नयों से दोषों के जो वारक
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‘समयसार' का पद्यानुवाद ‘कुन्दकुन्द का कुन्दन' और अध्यात्मरस से भरपूर ‘समयसारकलश' का पद्यानुवाद ‘निजामृतपान' ('कलशागीत' नाम से भी) है। यह ग्रन्थ संस्कृत में मूलरूप में है। इसमें अनुष्टुप्, आर्या, द्रुतविलम्बित, मन्दाक्रान्ता, शार्दूलविक्रीडित, शिखरिणी, स्रग्धरा, वसन्ततिलका एवं मालिनी आदि छन्दों का प्रयोग हुआ है, परन्तु निजामृतपान में छन्दों के अनुसार अनुवाद न होकर समस्त ग्रन्थ को अपने गुरुवर श्री ज्ञानसागरजी के नाम पर ही ‘ज्ञानोदय छन्द' में अनूदित किया गया है। नाटक समयसार कलश' की कठिन भाषा को ध्यान में रखते हुए आचार्यश्री ने लिखा है कि-मनोगत भावों को भाषा का रूप देना तो कठिन है ही,
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वक्ता / गायक / प्रस्तुतकर्ता: व्रती डॉ. मोनिका सुहास शहा
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अध्ययन - अध्यापन एवं लेखन कार्य में जिनका संपूर्ण जीवन व्यतीत हुआ, ऐसे सरस्वती के पुत्र आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज से जुड़े पठन-पाठन सम्बन्धी प्रसंग, जो मुख्यतः आचार्य श्री विद्यासागरजी के श्रीमुख से निकले एवं कुछ अन्यत्र से भी चयन किए गए हैं, संकलित किए गए। उन प्रसंगों को इस पाठ में प्रस्तुत किया जा रहा है- शिक्षा लेना-देना गुरुजी को अच्छा लगता था। ढलती अवस्था में भी उन्हें इस बात की प्रतीक्षा रहती थी कि किसी को दे दें। उन्होंने ऐसा दिया कि जो दीया, बाती और लाइट से भी अधिक प्रकाशित है। वह टिमटिमाते दीपक को देखकर भागती हुई रात के समान है। चोटी के विद्वान् आएँ या बा
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मंगलाचरण शुद्ध भाव से नमन हो, शुद्धभाव के काज। स्मरों, स्मरूं नित थुति करूं उरमें करूं विराज।। अगार गुण के गुरु रहे, अगुरु गन्ध अनगार। पार पहुँचने नित नर्मू नमूं, प्रणाम बारम्बार ।। नमू भारती भ्रम मिटे, ब्रह्म बनूँ मैं बाल। भार रहित भारत बने, भास्वत भारत भाल।। श्री आदिनाथ भगवान आदिम तीर्थकर प्रभु, आदिनाथ मुनिनाथ। आधि व्याधि अघ मद मिटे तुम पद में मममाथ।। वृष का होता अर्थ है, दयामयी शुभ धर्म। वृष से तुम भरपूर हो, वृष से मिटते कर्म।। दीनों के दुर्दिन मिटे तुम दिनकर को देख। सोया जीवन जागता, मिटता अघ अविवेक।। शरण चरण
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संस्तुति 1 - आराध्यआराधना
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संस्तुति 1 - आराध्य/आराधना विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार https://vidyasagar.guru/quotes/sagar-boond-samaye/araadhya-aaraadhna/ -
एक समाचार मिला था कि चपरासी के लिए नौकरी निकली,उसमें २५0 से ज्यादा पी-एच.डी. वाले, जिनको डॉक्ट्रेट की उपाधि मिली हुई है उन्होंने उस नौकरी को करने के लिए परीक्षा दी। मात्र १0– १२ हजार रुपये के लिए वे मोहताज हो गए। यह समाचार सुनकर मैंने सोचा-इतनी पढ़ाई करने के बाद भी किसी काम की नहीं! इसका मतलब उन्हें विद्या प्राप्त नहीं हुई, तभी तो वे लोग मोहताज हो गए। जाती थी कि वह अपने जीवन के साथ-साथ दूसरे के जीवन को भी सहारा दे देता था। कला बहत्तर पुरुष की, तामें दो सरदार। एक जीव की जीविका, एक जीव उद्धार ॥ यह भारतीय संस्कृति की देन है-स्त्रियों के लिए ६४ कलाएँ एवं पुरुषों के लिए ७२ कल
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परम श्रद्धेय गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के अनेक रूपों में दर्शन होते हैं जब प्रज्ञाचक्षु उन्हें किसी भी अवस्था में देखते हैं तो वे मुनि, आचार्य, उपाध्याय, निर्यापकाचार्य, अभीक्षणज्ञानोपयोगी, आगमनिष्ठ, श्रेष्ठचर्यापालक, साधना की कसौटी, श्रमणसंस्कृति उन्नायक, ध्यानयोगी, आत्मवेत्ता-आध्यात्मिक संत, निस्पृही साधु, दार्शनिक कवि, साहित्यकार, महाकवि, बहुभाषाविद्, भारतीय भाषाओं के पैरोकार, भारतीय संस्कृति के पुरोधा महापुरुष, युगदृष्टा, युगप्रवर्तक, राष्ट्रीय चिंतक, शिक्षाविद्, सर्वोदयी संत, नवपीढ़ी प्रणेता, अपराजेय साधक आदि के रूप में पाते हैं। सन् १९६८ अजमेर नगर (राज.) में मह
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धर्म उसे कहते हैं जो संसार रूपी महा समुद्र से इस दुखी जीव को उच्च स्थान पर पहुँचा दे। जो उत्तम ज्ञान और उत्तम चारित्र युक्त हो। कुदृष्टि, कुज्ञान, कुचारित्र संसार में दुख के कारण हैं। इनका अभाव सो ही धर्म है। सद्दृष्टि, सद्ज्ञान और सद्चारित्र का आलंबन लेना हमारा परम कर्तव्य है। हम बाह्य कारणों से दूर नहीं रहते हैं। साधक कारणों को भी संग्रह करने लग जाते हैं। जब तक हम अपनी दृष्टि को नहीं मांजते, तब तक वस्तु ठीक-ठीक देखने में नहीं आती है। पीलिया के रोगी को जगत के सब पदार्थ पीले नजर आते हैं, उसे यह मालूम नहीं कि मेरी आँखें पीली हैं। हमें उस दृष्टि को, उस विकार को, उस रोग को दूर हटाना है। संसारी जी
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"एक साधक ने अपने लक्ष्य के अनुकूल पुरुषार्थ कर प्राप्त की कालजयी सफलता।" उन महान साधक की साधना से जुड़े विस्मयकारी प्रसंगों को, जिनसे जिनशासन हुआ गौरवान्वित, उन प्रसंगों को ही इस लेख का विषय बनाया जा रहा है। गुरुवाणी के साथ-साथ विषय की पूर्णता हेतु अन्य स्रोतों से भी विषय वस्तु को ग्रहण किया गया है। आगामी 2दिसम्बर 20 को हैं आचार्य पदारोहण दिवस आचार्य श्री ज्ञानसागर द्वारा मुनिश्री विद्यासागर को आचार्य पद प्रदान करने की घोषणा एवं संस्कार २२ नवम्बर १९७२, माघ शीर्ष कृष्ण द्वितीया, नसीराबाद, राजस्थान आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज का सन् १९७२ में नसीराबाद
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कौन-सी गति में कौन-कौन से संस्थान रहते हैं। इसका वर्णन इस अध्याय में है। 1. संस्थान नाम कर्म किसे कहते हैं ? जिस कर्म के उदय से औदारिक आदि शरीर की आकृति बनती है, उसे संस्थान नाम कर्म कहते हैं। 2. संस्थान कितने प्रकार के होते हैं, परिभाषा सहित बताइए ? संस्थान छ: प्रकार के होते हैं समचतुरस्र संस्थान - जिस नाम कर्म के उदय से शरीर की आकृति बिल्कुल ठीक-ठीक बनती है। ऊपर, नीचे, मध्य में सुन्दर हो, उसे समचतुरस्र संस्थान कहते हैं। न्यग्रोध परिमंडल संस्थान - न्यग्रोध नाम वट वृक्ष का है, जिसके उदय से शरीर में नाभि से नीचे का भाग पतला और ऊपर का भाग मोटा हो,
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जिस प्रकार नींव के बिना मकान का महेत्व नहीं, उसी प्रकार सम्यकदर्शन के बिना संसारी आत्माओं का महत्व नहीं। सम्यकदर्शन किसे कहते हैं, यह कितने प्रकार का होता है, इसके कितने दोष हैंआदि का वर्णन इस अध्याय में है। 1. सम्यकदर्शन किसे कहते हैं ? सच्चे देव, शास्त्र और गुरु का तीन मूढ़ता रहित, आठ मद से रहित और आठ अंग सहित श्रद्धान करना सम्यकदर्शन है। 2. चार अनुयोगों में सम्यकदर्शन की क्या परिभाषा है ? प्रथमानुयोग - सच्चे देव-शास्त्र-गुरु पर श्रद्धान करना। करणानुयोग - सात प्रकृतियों के उपशम, क्षय, क्षयोपशम से होने वाले श्रद्धा रूप परिणाम। चरणानुयोग - प्रशम, संवेग, अनुकम्पा