स्वर्गीय भुक्ति नहीं
पार्थिक शक्ति नहीं
ऐसी एक युक्ति चाहिए
बार बार ही नहीं
एक बार भी अब !
बाहर नहीं आ पाऊँ
निशि दिन रमण करूँ
अपने में
द्वैत की नहीं
अद्वैत की भक्ति चाहिए
आभरण से
आवरण से
चिरकाल तक मुक्ति चाहिए
ओ! परम सत्ता!
अनन्त शक्ति के लिये
निगूढ़ में बैठी
विलम्ब नहीं अब
अविलम्ब!
निरी निरावरण की
व्यक्ति चाहिए
भावी भटकन की
आकाँक्षाओं-कुण्ठाओं
डाकिनी सम्मुख न आये
विगत वनी में रहती
पिशाचिनी का
मन में स्मरण नहीं आये
स्मरण-शक्ति नहीं
विस्मरण की
शक्ति चाहिए।