करूणा का स्रोत
करूणा का स्रोत
उपासक के उदार हृदय सरोवर में करूणा का निर्मल स्रोत निरन्तर बहता रहता है। वह अपने ऊपर आई आपत्ति को तो आपत्ति ही नहीं समझता उसे तो हँसकर टाल देता है परन्तु वह जब किसी दूसरे को आपत्ति से घिरा हुआ देखता है तो उसे सहन नहीं कर सकता है। वह उसकी आपत्ति को अपने ही ऊपर आई हुई समझता है। अतः जब तक उसे दूर नहीं हटा देता तब तक उसे विश्राम कहां?
भाण्डों ने श्रीपाल को जब अपना भाई बेटा कहकर बतलाया तो गुणमाला के पिता ने रूष्ट होकर श्रीपाल के लिये सूली का हुक्म लगा दिया, तो वे सहर्ष सूली पर चढ़ने को तैयार हो गये। परन्तु जब सत्य बात खुल गई और राजा को पता चला कि भांड़ो ने धवल सेठ के बहकाने से झूठी बात बनाई है। तब फिर उसने अपने पूर्व आदेश को बदल कर उन भोंड़ों के लिये कत्ल का हुक्म दिया। जिसे सुनकर श्रीपाल कुमार कांप गये और बोले कि हे प्रभो! आप क्या कर रहे हैं जो कि बेचारों के लिये ऐसा कर रहे हैं? इनका इसमें क्या अपराध हुआ है? ये तो खुद ही गरीबी से दबे हुए हैं, और गरीबी के बोझ को हल्का करने के लिये इन्होंने ऐसा कहना स्वीकार कर रखा है। जो बेचारे आर्थिक संकट के सताये हुये हैं, उन्हें प्रजा के स्वामी कहला कर भी आप और भी सतावें, मरे हुओं को मारें, यह तो मेरी समझ में घोर अन्याय है।
प्रत्युत इसके आपको तो चाहिये कि आप इन्हें कुछ पारितोषक देकर संतुष्ट करिये ताकि आगे के लिए ये लोग इस धन्धे को छोड़कर उसके द्वारा अपना जीवन निर्वाह करने लगे। राजा ने ऐसा ही किया और इस असीम उपकार से भाण्ड लोग श्रीपालजी के सदा के लिए ऋणी हो गये।
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