Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

आस्तिक्य भाव


संयम स्वर्ण महोत्सव

344 views

आस्तिक्य भाव

 

उपासक जानता है कि जो जैसा करता है वह वैसा ही पाता है। जहर खाता है, सो मरता है और जो मिश्री खाता उसका मुँह मीठा होता है। सिंह, जो कि लोगों को बर्बाद करने पर उतारू होता है तो वह खुद ही बर्बाद होकर जंगल के एक कोने में छिप कर रहता है। गाय जो कि दूध पिलाकर लोगों को आबाद करना चाहती है इसलिये वह लोगों के द्वारा आबादी को प्राप्त होती है। लोग उसका बड़े प्यार से साथ में पालन-पोषण करते हुए पाए जाते हैं। हम देखते हैं कि जो औरों के लिये गड्ढा खोदता है वह स्वयं नीचे को जाता है किन्तु महल चिनने वाला विश्वकर्मा ऊपर को चढ़ता है। इससे हमें समझ लेना चाहिये कि जो दूसरों का बुरा सोचता है वह खुद बुरा बनता है, किन्तु जो दूसरों के भले के लिये प्रयत्न करता है वह भलाई पाता है।

 

एक समय की बात है एक राजमंत्री था वह वायु सेवनार्थ निकला तो एक जगह कुछ लड़के खेलते हुये मिले। उन सबमें एक लड़का बहुत चतुर और बुद्धिमान तथा सुलक्षण था। अत: उसे बुलाकर राजमंत्री अपने पास पुत्रभाव से रखने लगा। थोड़े दिनों के बाद प्रसंग पाकर राजा ने मंत्री से पूछा कि बताओ इस दुनिया का रंग कैसा है। और इसके साथ में मेरा कब तक, कैसा क्या संबंध है? जिसको सुनकर मंत्री घबराया, उसे इसका कुछ भी उत्तर नहीं सूझ पड़ा। परन्तु लड़का दौड़ा और एक पंचरंगे फूलों का गुलदस्ता लाकर उसने राजा के आगे रख दिया, एवं राजा के सिर पर जो ताज था उसे लेकर झट ही उसने अपने सिर पर रख लिया। इस पर लोग हंसने लगे, किन्तु राजा ने उन्हें समझाया कि लड़के ने बहुत ठीक कहा है कि जैसे इस गुलदस्ते में पांच रंग के फूल हैं वैसे ही यह दुनियां भी पांच परिवर्तन रूप पंचरगी है ओर इस दुनियां के साथ में मेरा राजापने का संबंध जभी तक है जब तक कि यह ताज मेरे सिर पर है जिसके कि रहने या न रहने का पल भर का भी कोई भरोसा नहीं है।

 

तुम लोग व्यर्थ ही ऐसे क्यों हँसते हो? यह लड़का बड़ा बुद्धिमान है। मैं मेरे मंत्री का उत्तराधिकार इसे देता हूं। जब तक ये मंत्री जी हैं तब तक है इनके बाद में यही मेरा मंत्री होगा। ऐसा सुनते ही मंत्री के दिल को बड़ी चोट पहुंची। वह सोचने लगा कि हाय, यह तो बुहत बुरा हुआ। यह मंत्री बनेगा तो फिर मेरा जायन्दा लड़का तो ऐसे ही रह जायेगा वह क्या करेगा? क्या वह इसका पानी भरेगा? अत: इसे अब मार डालना चाहिये। इस प्रकार विचार कर वह एक भड़भूजे से मिला और बोला कि मैं अभी चने लेकर एक लड़के को भेजता हैं सो तुम उसको भाड़ में झोंक देना। भड़भूजा यह सुनकर यद्यपि कुछ संकोच में पड़ा क्योंकि इस तरह से एक बेकसूर बच्चे को आग में झुलसा देना तो घोर निर्दयता होगी। परन्तु वह बेचारा भड़पूँजा था, ओर इधर मंत्री का कहना था। अगर उसका कहना न करे तो रहे कहां?

 

मंत्री ने जाकर उस लड़के से कहा कि आज मुझे भुंगडे खाने की जी में आ गई, तुम जाओ और उस भड़भंजे से यह चने मुंजवा लाओ। लड़का तो आज्ञाकारी था। वह चने लेकर रवाना हुआ। उधर उस मंत्री का जायन्दा लड़का मिल गया, वह बोला भैया तुम कहां जा रहे हो? पहला लड़का बोला- पिताजी ने चने दिये हैं सो मुंजवाने जा रहा हूं। इस पर दूसरा लड़का बोला- तुम यहीं ठहरो, इन लड़कों के साथ मेरी जगह गेंद खेलो, इन्हें मात दो, लाओ चने मैं भुजवा लाता हूं। ऐसा कहकर उसके हाथ से चने छीनकर दौड़ पड़ा और भूड़भूजे के पास गया तो जाते ही उसका काम तमाम हो गया।

 

बन्धुओ ! व्यर्थ की ईर्ष्या के वश होकर मंत्री पराये लड़के को मारना चाहता था तो उसका खुद का प्राणों से प्यारा लड़का मारा गया। यही सोचकर उपासक पुरुष किसी भी दूसरे के लिए कुछ भी बुरा विचार कभी नहीं करता है। वृक्ष हो और उसकी छाया न हो तो उसका होना बेकार है। नदी में यदि जल न हो तो वह नदी भी सिर्फ नाम मात्र के लिए है। उसी प्रकार मनुष्य में अगर सच्चरित्रता नहीं तो उस मनुष्य का भी जीवन नि:सार ही होता है। चरित्रहीन मानव का जीवन सुगन्धहीन फूल जैसा है।

 

मकान का पाया बहुत गहरा हो, दीवारें चौड़ी और संगीन हों, रंग रोगन भी अच्छी तरह से किया हो और सभी बातें तथा रीति ठीक हो, परन्तु ऊपर में यदि छत नहीं हो तो सभी बेकार। बैसे ही सदाचार के बिना मनुष्य में बलवीर्यादि सभी बातें होकर भी निकम्मी ही होती हैं। देखो रावण बहुत पराक्रमी था। उसके शारीरिक बल के आगे सभी कायल थे। फिर भी वह आज निन्दा का पात्र बना हुआ है। हम देख रहे हैं कि हर एक आदमी अपने लड़के का नाम राम तो बड़ी खुशी के साथ रख लेता है, किन्तु रावण का नाम भी सुनना पसन्द नहीं करता, सो क्यों? इस पर सोचकर देखा जावे तो एक ही कारण प्रतीत होता है कि रावण के जीवन में दुराचार की बदबू ने घर कर लिया था। जिससे कि रामचन्द्रजी हजारों कोस दूर थे, किन्तु सदाचार को अपने हृदय का हार बनाये हुये थे। यही बात है कि सारी दुनिया आज श्रीरामचन्द्रजी का नाम लेकर अपने को गौरवान्वित समझती है। हम भी यदि अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहते हैं तो हमें चाहिये कि हम अपने अन्तरंग में सदाचार को स्थान दें।

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Create an account or sign in to comment

You need to be a member in order to leave a comment

Create an account

Sign up for a new account in our community. It's easy!

Register a new account

Sign in

Already have an account? Sign in here.

Sign In Now
  • बने सदस्य वेबसाइट के

    इस वेबसाइट के निशुल्क सदस्य आप गूगल, फेसबुक से लॉग इन कर बन सकते हैं 

    आचार्य श्री विद्यासागर मोबाइल एप्प डाउनलोड करें |

    डाउनलोड करने ले लिए यह लिंक खोले https://vidyasagar.guru/app/ 

     

     

×
×
  • Create New...