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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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गुरुजी का हमारी आत्मा में निवास - संस्मरण क्रमांक 41

☀☀ संस्मरण क्रमांक 41☀☀    ? गुरुजी का हमारी आत्मा में निवास ?  आहारजी सिद्धक्षेत्र पर चातुर्मास के उपरांत आचार्य महाराज संघ सहित सिद्ध क्षेत्र नैनागिर आ गए। शीतकाल यहीं बीत गया। 1 दिन अचानक दोपहर में आचार्य महाराज ने बुलाया ।मुनि श्री योग सागर जी भी आए,मैं भी(क्षमासागर जी) पहुंचा। आचार्य महाराज बोले कि-"ऐसा सोचा कि तुम दो-तीन साधु मिलकर सागर की ओर विहार करो।वहां स्वास्थ्य लाभ भी हो जाएगा और धर्म प्रभावना भी होगी। तुम सभी को अब बाहर रहकर धीरे-धीरे सब बातें सीखनी है। संघ में पहली बा

निमित्त - संस्मरण क्रमांक 40

☀☀ संस्मरण क्रमांक 40☀☀            ? निमित्त ? जिनेंद्र वर्णी जी ने अपने अंत समय में आचार्य महाराज को अपना गुरु बना कर उनके श्री चरणों में समाधि के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था।  सल्लेखना अभी प्रारंभ नहीं हुई थी,इससे पहले ही एक दिन अचानक संघ सहित आचार्य महाराज बिना किसी से कुछ कहे ईसरी से निमिया-घाट होकर पार्श्वनाथ टोंक की वंदना करने के लिए निकल पड़े,सारा दिन वंदना में बीत गया इसलिए आश्रम आते-आते शाम हो गई। चूंकि बिना किसी पूर्व सूचना कि यह सब हुआ, इसलिए वर्णी जी दिनभर बहुत चिंतित रहे

श्मशान में ध्यान - संस्मरण क्रमांक 39

☀☀ संस्मरण क्रमांक 39☀☀            ? श्मशान में ध्यान ? पहले जब संघ इतना बड़ा नहीं था,आचार्य श्री जी अष्टमी और चतुर्दशी को जंगल में वीराने शमशान में ध्यान किया करते थे उपवास रहता था और 24 घंटे तक एक ही आसन पर स्थिर रहा करते थे।ऐसा तप श्रेष्ठ मुनि करते हैं। एक बार राजस्थान केकड़ी ग्राम का प्रसंग है आचार्य महाराज के साथ एक क्षुल्लक जी भी थे। संध्या समय वहां के श्रावक गुरु- भक्ति के लिए आये।देखा- आचार्य महाराज जी नहीं है आचार्य श्री विहार कभी बताकर नहीं करते।सब चिंतित हो गए लोगों ने सोचा कहीं

हल - संस्मरण क्रमांक 38

☀☀ संस्मरण क्रमांक 38☀☀            ? हल ? आचार्य श्री जी विहार करते हुए नेमावर की ओर से जा रहे थे,आचार्य श्री जी से पूछा-आप तो आचार्य श्री जी नवमी कक्षा तक पढ़े हैं और हम लोगों को m.a. पढ़ने के लिए कहते हैं यदि आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने आपको m.a.करने को कहा होता तो आप हम लोगों को कहां तक पढ़ने को कहते पीएचडी लॉ आदि।  आचार्य श्री जी हसंकर बोल उठे-नहीं पहले मल्लिसागर जी (मल्लप्पा जी) कहते थे- ज्यादा क्या पढ़ना, खेती किसानी तो करना ही है। मेन सब्जेक्ट तो कृषि ही है।यह हल चलाओ जो की समस्त स

"बचो शराबी से" - संस्मरण क्रमांक 37

☀☀ संस्मरण क्रमांक 37☀☀            ? "बचो शराबी से" ? एक दिन आचार्य श्री मोहनीय कर्म एवं मोही प्राणी के बारे में समजा रहे थे। उन्होंने कहा कि  मोह को सबसे बड़ा शत्रु कहा है, क्योंकि यह मोह ही संसारी प्राणी को चारों गतियों में भटकाता रहता है। ऐसे मोह की संगित से बचो औऱ जो मोह से बच कर निर्मोही, साधु त्यागीवार्ति बन गए है,  उन्हें मोहियों से भी बचना चाहिए, दूर रहना चाहिए। मोह को महामद यानि शराब की उपमा दी गयी है तो मोह को शराबी की उपमा दी।जा सकती है।      आचार्य श्री ने आगे कहा- जैसे सभ्य लोग

धन के साथ धर्म भी - संस्मरण क्रमांक 36

☀☀ संस्मरण क्रमांक 36☀☀            ? धन के साथ धर्म भी ? आज अर्थ के युग में व्यक्ति धर्म को भूलता जा रहा है,मात्र उसे अर्थ ही अर्थ(पैसा) दिखाई दे रहा है,आज विद्यालय में भी अर्थ कारी विद्या हो गई ऐसी संस्कार शून्य विद्या व्यक्ति को m.a. की डिग्री तो दे देगी लेकिन हे m a n (आदमी)नहीं बना पावेगी। आज मानवता लुप्त होती जा रही है *व्यक्ति धन की इच्क्षा करता है चाहे उसे कुछ भी अनैतिक कार्य करना पड़े,करने तैयार रहता है वह धन की चाह में अपने मानवीय धर्म को भी भूलता चला जा रहा है,धन को ही जीवन का लक्ष

नमस्कार में चमत्कार - संस्मरण क्रमांक 35

☀☀ संस्मरण क्रमांक 35☀☀            ? नमस्कार में चमत्कार ? पथरिया नगर की बड़े मंदिर में नई वेदी पर पारसनाथ भगवान को विराजमान किया जा रहा था, पाषाण की प्रतिमा वजन में भारी थी,व्यवस्थित वेदी पर रखी नहीं जा रही थी, हम सभी साधक गुरुदेव के साथ वही उपस्थित थे। बहुत प्रयास के बाद जब प्रतिमा जी नहीं विराजमान हो पाई तो आचार्य महाराज से कहा आप प्रतिमा जी में हाथ लगा दीजिए ताकि प्रतिमा जी विराजमान हो जाए, आचार्य भगवान ने जैसे ही प्रतिमा जी में हाथ लगाया प्रतिमा जी व्यवस्थित वेदी में विराजमान हो गई यह

क्षमामूर्ति - संस्मरण क्रमांक 34

☀☀ संस्मरण क्रमांक 34☀☀            ? क्षमामूर्ति ? पूज्य आचार्य भगवन उत्तम क्षमा को धारण करने वाले अद्भुत संत है, उनकी हर क्रिया क्षमा से ओतप्रोत है। एक बार की बात है रात्रि के समय आचार्य श्री जी की वैयावृत्ति चल रही थी तब किसी श्रावक ने आचार्य श्री की आंखों में गलती से अमृतधारा लगा दी, जिसे लगाते ही आचार्य श्री जी की आंखों से आंसू निकलने लगे,लेकिन आचार्य भगवन तो क्षमा के भंडार हैं उन्होंने उस श्रावक को कुछ नहीं कहा और समता पूर्वक उस दर्द को स्वयं सहन कर लिया वास्तव में यह है वास्तविक क्षम

क्रोध - संस्मरण क्रमांक 33

☀☀ संस्मरण क्रमांक 33☀☀            ? क्रोध ?  प्रतिकूल परिस्थितियों में आने वाले आवे का नाम क्रोध है, क्रोध एक ऐसा विकारी भाव है जो हमारे तन मन और धर्म सभी को दूषित करता है, यह एक खतरनाक बीमारी है और हमेशा से चली आ रही है एवं व्यापक भी है इसलिए यह बीमारी नहीं लगती।  दूसरों की गलती पर कॉल करने का अर्थ है-दूसरों की गलती की सजा स्वयं को देना।  कुछ लोगों का लोगों का कहना है कि- क्रोध मैं नहीं करता कर्म का उदय आता है,इसका समाधान देते हुए, आचार्य श्री जी ने कहा कि-कर्म कभी क्रोध नहीं करता, क

अंतर्बोध - संस्मरण क्रमांक 32

☀☀ संस्मरण क्रमांक 32☀☀            ? अंतर्बोध ? उस दिन शाम का समय था । आचार्य महाराज मन्दिर के बाहर खुली दालान में विराजे थे। थोड़ी देर तत्व-चर्चा होती रही। उस पवित्र और शान्त वातावरण में आचार्य महाराज का सामीप्य पाकर सभी बहुत खुश थे। फिर सामायिक का समय हो गया। आचार्य महाराज वह से उठकर भीतर मन्दिर में चले गए । बाहर किसी ने मुझसे कहा कि  भीतर भी बिजली जला आओ। आचार्य श्री ने यह बात सुन ली । मैंने जैसे ही भीतर कदम रखा कि भीतर से वे बोल उठे - " हाँ भाई, भीतर की बिजली जला लो।"  उनका आशय आन्तरिक

वीतरागता - संस्मरण क्रमांक 31

☀☀ संस्मरण क्रमांक 31☀☀            ? वीतरागता ? यह बात उस समय कि है जब आचार्य महाराज भोपाल में झिरनों के मन्दिर में  दर्शन करने गए थे। बहुत प्राचीन खड़गासन प्रतिमाजी के दर्शन किये। वहाँ एक सज्जन ने पूछा-आचार्यश्री जी यह कौनसे भगवान है ? ,आचार्यश्री जी बोले - कौन से भगवान है ! भगवान है बस इतना ही जानो । सज्जन पुनः बोले- चिह्न तो देखो इस प्रतिमा में स्पष्ट नहीं है  !  तब आचार्य गुरुदेव ने कहा कि बस वीतरागता ही इनका चिह्न है। ? दिशाबोध पुस्तक से साभार? ? मुनि श्री कुन्थुसागर जी महाराज

अध्यात्म - संस्मरण क्रमांक 30

☀☀ संस्मरण क्रमांक 30☀☀            ? अध्यात्म ? एक बार आचार्य श्री ने बताया कि आप लोगों (मुनिराजों) की रत्नत्रय की गाड़ी है। इसमें रत्न भरे है, अध्यात्म इस गाड़ी की स्टरीग है। मोक्ष की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु को अध्यात्म की ओर दृष्टि रखना चाहिए। अध्यात्म को भी भूलना नही चाहिए । अध्यात्म स्टेरिग की भांति है जैसे गाड़ी में स्टेरिग होती है जहाँ ,जब चाहो उसे स्टेरिग के मध्यम से मोड़ सकते हो, ऑक्सीडेन्ट (दुर्घटना) से बच सकते हो।वैसे ही मोक्ष मार्ग में बढ़ने वाले साधक को अध्यात्म स्टेरिंग की भांति है,

सात्विक धंधा - संस्मरण क्रमांक 29

☀☀ संस्मरण क्रमांक 29☀☀            ? सात्विक धंधा ? सर्वोदय तीर्थ अमरकंटक में श्रावकाचार की कक्षा में श्रावक को किस प्रकार से आजीविका चलना चाहिए । गुरुदेव ने बतलाते हुए कहा की आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज जी ने बताया था की एक सेठजी थे वे अहिंसा धर्म मे बड़ी ही निष्ठा रखते थे। उन्होंने अपने पुत्र से कह दिया था कि तुम कपड़े की दुकान खोल सकते हो, लेकिन कपड़े की फैक्ट्री(मिल) नही खोल सकते क्योंकि उसमें हिंसा होती है। और सोने, चांदी, हीरे, जवाहरात की दुकान खोल सकते हो लेकिन खदान में ठेका नही ले सकते ह

अहिंसा का आयतन - संस्मरण क्रमांक 28

☀☀ संस्मरण क्रमांक 28☀☀            ? अहिंसा का आयतन ? किसी सज्जन के आचार्य गुरुदेव से कहा साधुओं को गौशाला खुलवाले की प्रेरणा नही देनी चाहिए उसमें हिंसा होती है। उन्हें तो आत्म ध्यान करना चाहिए। यह सुनकर आचार्य श्री ने कहा गौशाला में हिंसा नही होती, साक्षात दया पलती है, करुणा के दर्शन होते है, गौशाला भी आयतन है, "अहिंसा का आयतन"। सम्यकदर्शन में अनुकम्पा गुण कहा है वह गौशाला में पशुओं के संरक्षण से प्रयोग में आता है। यह सक्रिय सम्यकदर्शन माना जाता है। बच्चों को पालना मोह है, किन्तु पशुओं को प

त्याग की भावना - संस्मरण क्रमांक 27

☀☀ संस्मरण क्रमांक 27☀☀            ? त्याग की भावना ? *ठंड के दिन थे। दिन ढलने से पहले आचार्य महाराज संघ-सहित बण्डा ग्राम पहुँचे। रात्रि-विश्राम के लिए मंदिर के ऊपर एक कमरे में सारा संघ ठहरा। कमरे का छप्पर लगभग टूटा था। खिड़कियाँ भी खूब थी और दरवाजा काँच के अभाव से खुला ना खुला बराबर ही था। जैसे-जैसे रात अधिक हुई , ठंड भी बड़ गई। सभी साधुओं के पास मात्र एक-एक चटाई थी। घास किसी ने ली नही थी। सारी रात बैठे-बैठे ही गुजर गई । सुबह हुई, आचार्य वंदना के बाद आचार्य महाराज ने मुस्कुराते हुए पूछा की रा

उपाधि - संस्मरण क्रमांक 26

☀☀ संस्मरण क्रमांक 26☀☀            ? उपाधि ? सागर में आचार्य महाराज के सानिध्य में पहली बार षट्खंडागम वाचन-शिविर आयोजित हुआ। सभी के खूब रुचि ली। लगभग सभी वयोवृद्ध औऱ मर्मज्ञ विद्वान आए। जिन महान ग्रन्थों को आज तक दूर से ही माथा झुकाकर अपनी श्रद्धा सभी ने व्यक्त की थी , आज उन पवित्र ग्रथों को छूने ,देखने, पढ़ने और सुनने का सौभाग्य मिला। यह जीवन की अपूर्व उपलब्धि थी। वाचना की समापन  बेला में सभी विद्वानों के परामर्श से नगर में प्रतिष्ठित एवं प्रबुद्ध नागरिकों के एक प्रतिनिधि मंडल ने आचार्य मह

निरंतर प्रयास - संस्मरण क्रमांक 25

☀☀ संस्मरण क्रमांक 25☀☀            ? निरंतर प्रयास ? जबलपुर से मुक्तागिरी की ओर आचार्य महाराज का विहार हुआ।  मुलताई के आस-पास रास्ते में एक दिन बहुत तेज बारिश आ गई,थोड़ी देर पानी बरसता रहा फिर थक गया,  महाराज मुस्कुराए और आगे बढ़ते-बढ़ते बोले-"भाई इतनी जल्दी थक कर थम गए, हम तो अभी नहीं थके"  उनका इशारा बादलों की ओर था सभी हंसने लगे। आचार्य महाराज ने इस तरह चलते-चलते एक संदेश दे दिया कि कितनी भी बारिश आये, धूप हो या ठंड लगे,मोक्षार्थी को बिना थके शांत भाव से अपने मोक्षमार्ग पर निरंतर आगे

अनुग्रह - संस्मरण क्रमांक 24

☀☀ संस्मरण क्रमांक 24☀☀            ? अनुग्रह ?        नैनागिरि में आचार्य महाराज के तीसरे चातुर्मास की स्थापना से पूर्व की बात है।सारा संघ जल-मन्दिर में ठहरा हुआ था।वर्षा अभी शुरू नहीं हुई थी।गर्मी बहुत थी।एक दिन जल मन्दिर के बाहर रात्रि के अन्तिम प्रहर में सामायिक के समय एक जहरीले कीड़े ने मुझे दंश लिया।बहुत वेदना हुई।सामायिक ठीक से नहीं कर सका।आचार्य महाराज समीप ही थे और शान्त भाव से सब देख रहे थे।जैसे-तैसे सुबह हुई।वेदना कम हो गई।हमने आचार्य महाराज के चरणों में निवेदन किया कि वेदना अधिक

अनुकम्पा - संस्मरण क्रमांक 23

☀☀ संस्मरण क्रमांक 23☀☀            ? अनुकम्पा ?        सागर से विहार करके आचार्य महाराज संघ-सहित नैनागिरि आ गए।वर्षाकाल निकट था,पर अभी बारिश आई नहीं थी।पानी के अभाव में गाँव के लोग दुखी थे।एक दिन सुबह-सुबह जैसे ही आचार्य महाराज शौच-क्रिया के लिए मन्दिर से बाहर आए,हमने देखा कि गाँव के सरपंच ने आकर अत्यंत श्रद्धा के साथ उनके चरणों में अपना माथा रख दिया और विनत भाव से बुन्देलखण्डी भाषा में कहा कि "हजूर ! आप खों चार मईना इतई रेने हैं और पानू ई साल अब लों नई बरसों,सो किरपा करो,पानू जरूर चानें

दृढ़ चरित्र - संस्मरण क्रमांक 22

☀☀ संस्मरण क्रमांक 22☀☀            ? दृढ़ चरित्र ?  आचार्य भगवन भविष्य में दृढ़ चारित्र का पालन करेंगे, चरित्र को अपने जीवन की अंतिम श्वासों तक बहुत अच्छे से अपनाएंगे, इसका पता पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी को बहुत पहले चल चुका था बात उस समय कि है जब आचार्य भगवन ब्रम्हचारी अवस्था मे थे, जब ब्रह्मचारी विद्याधर जी मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज के सानिध्य में केशलोंच कर रहे थे, उस समय प्रत्येक बाल खींचतें समय खून निकल रहा था, उस दृश्य को देखकर वहां पर उपस्थित क्षुल्लक श्री आदिसागर जी ने मुनिवर

आत्मबोध - संस्मरण क्रमांक 21

☀☀ संस्मरण क्रमांक 21☀☀            ? आत्मबोध ? मुक्तागिरी का चातुर्मास सानंद संपन्न हुआ, आचार्य महाराज संघ सहित रामटेक होते हुए बालाघाट पहुंचे।सुबह संघ सहित शौच क्रिया के लिए जंगल की ओर गए। वहां वन-विभाग के ऑफिसर के बंगले पर दो शेर के बच्चे खेलते हुए दिखे सारा संघ  क्षणभर को वहां ठहर गया।वन विभाग के ऑफिसर ने उन बच्चों के मिलने की जानकारी दी। आचार्य महाराज सारी बातें चुपचाप सुनते रहे, फिर सहसा बोले कि- हे वनराज जैसे देश काल की परिस्थिति आज तुम वन के स्थान पर भवन में रह रहे हो ऐसे ही वनों में

परीक्षा - संस्मरण क्रमांक 20

☀☀ संस्मरण क्रमांक 20☀☀            ? परीक्षा ?   चातुर्मास स्थापना का समय था, क्षुल्लक सुमति सागर जी की मुनि बनने की बड़ी भावना थी,साधना भी थी पर वृद्ध हो गए थे, आचार्य महाराज ने उनकी भावना के अनुरुप उन्हें मुनि दीक्षा दे दी। और वह मुनि वैराग्य सागर हो गए। दो-तीन माह तक उन्होंने महाव्रतों का बड़ी सावधानी से पालन किया, जीवन का अंत निकट जानकर और वृद्धावस्था का विचार करके आचार्य महाराज से सल्लेखना ग्रहण कर ली। मुनि की आहार चर्या सर्वोत्कृष्ट है, स्वस्थ व  अस्वस्थ हर दशा में समताभाव रखकर निर्

अनुशासन - संस्मरण क्रमांक 19

☀☀ संस्मरण क्रमांक 19☀☀            ? अनुशासन ? मैंने सुना है एक दिन रात्रि के समय जब लोग आचार्य महाराज की सेवा में व्यस्त थे,तब किसी की ठोकर लगने से तेल की शीशी गिर गई।शीशी का ढक्कन खुला था, तो तेल भी फैल गया।  सभी थोड़ा घबराये ,पर आचार्य महाराज मुस्कुराते रहे,सुबह आचार्य वंदना के बाद आचार्य महाराज चर्चा करते-करते बोले की देखो- शिष्य और शीशी दोनों में डांट लगाना कितना जरूरी है जैसे शीशी में डाट(ढक्कन )ना लगा हो तो उसमें रखी कीमती चीज गिर जाती है, ऐसे ही शिष्य को डांट (अनुशासन के लिए कठोरता
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