"बचो शराबी से" - संस्मरण क्रमांक 37
☀☀ संस्मरण क्रमांक 37☀☀
? "बचो शराबी से" ?
एक दिन आचार्य श्री मोहनीय कर्म एवं मोही प्राणी के बारे में समजा रहे थे। उन्होंने कहा कि मोह को सबसे बड़ा शत्रु कहा है, क्योंकि यह मोह ही संसारी प्राणी को चारों गतियों में भटकाता रहता है। ऐसे मोह की संगित से बचो औऱ जो मोह से बच कर निर्मोही, साधु त्यागीवार्ति बन गए है, उन्हें मोहियों से भी बचना चाहिए, दूर रहना चाहिए। मोह को महामद यानि शराब की उपमा दी गयी है तो मोह को शराबी की उपमा दी।जा सकती है।
आचार्य श्री ने आगे कहा- जैसे सभ्य लोग शराब पीने से तो बचते ही है, लेकिन शराबी की संगित से भी बचते है। शराबी से बात करना भी पसंद नही करते , वैसे ही साधुजनों को मोह तो करना ही नही चाहिए और हमेशा मोहि श्रावकों से भी बचना चाहिए। उनसे ज्यादा बात नही करनी चाहिए । अंत मे उन्होंने कहा कि मोह ओर मोहियों से दूर रहना ही।मोक्ष मार्ग हैं।
? अनुभूत रास्ता ?
? मुनि श्री कुंथुसागर महाराज
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