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गुरुजी का हमारी आत्मा में निवास - संस्मरण क्रमांक 41


संयम स्वर्ण महोत्सव

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☀☀ संस्मरण क्रमांक 41☀☀
   ? गुरुजी का हमारी आत्मा में निवास ? 


आहारजी सिद्धक्षेत्र पर चातुर्मास के उपरांत आचार्य महाराज संघ सहित सिद्ध क्षेत्र नैनागिर आ गए। शीतकाल यहीं बीत गया।
1 दिन अचानक दोपहर में आचार्य महाराज ने बुलाया ।मुनि श्री योग सागर जी भी आए,मैं भी(क्षमासागर जी) पहुंचा। आचार्य महाराज बोले कि-"ऐसा सोचा कि तुम दो-तीन साधु मिलकर सागर की ओर विहार करो।वहां स्वास्थ्य लाभ भी हो जाएगा और धर्म प्रभावना भी होगी। तुम सभी को अब बाहर रहकर धीरे-धीरे सब बातें सीखनी है।
संघ में पहली बार हम लोगों पर यह जिम्मेदारी आई थी,तो हम घबराए कि ऐसा तो कभी सोचा भी नहीं था हम तो अपना जीवन आचार्य महाराज के चरणों में समर्पित करके निश्चिंत होकर आत्मकल्याण में लगे थे।कुछ समझ में नहीं आया।गुरु की आज्ञा अनुलंघनीय हुआ करती है, पर मन को कैसे समझाए, मन भर आया। हमने कहा कि महाराज जी आपसे दूर रहकर हम क्या करेंगे?कैसे रह पाएंगे?
 आचार्य महाराज गंभीर हो गये, बोले- मन से दूर चले जाओगे क्या? हमने फौरन कहा-कि यह तो कभी संभव ही नहीं स्वप्न में भी नहीं"तब वे हंसने लगे।बोले कि- "जाओ हमारा खूब आशीर्वाद है। घबराना नहीं।अध्यात्म में मन लगाना। 


☀☀ मेरी आज्ञा में रहने वाला मुझसे दूर रहकर भी मेरे अत्यंत समीप ही है, और मेरी आज्ञा नहीं मानने वाला मेरे निकट रहकर भी मुझसे बहुत दूर है।☀☀
आज भी हम उनसे दूर रहकर भी उन्हें अपने अत्यंत समीप पाते हैं। कभी दूरी का एहसास नहीं होता सचमुच गुरु की आज्ञा में अब रहना ही सच्चा सामीप्य है।
   नैनागिरी (1986)


? आत्मान्वेशी पुस्तक से साभार?
✍ मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज

 ? शिक्षा- सच मे गुरु जी की आज्ञा में चलने पर गुरु हमेशा हमारे साथ रहा करते है,हमे हमेशा आगे बढ़ाते रहते है।आज गुरुजी रामटेक में है , पर कभी भी नही लगता कि वो हम से दूर है,ऐसा लगता है कि वो हमेशा हमारे साथ है,उनका हमारी आत्मा से कभी वियोग ही नहीं हुआ,गुरुजी हृदय की धड़कन की तरह हमेशा हमारे हृदय में धड़कते रहते है।?
 

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