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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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आज प्रातः ८० से अधिक ब्रह्मचारी भैया लोगों ने दीक्षा के निवेदन के साथ गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के श्री चरणों में श्रीफल समर्पित किए

आज प्रातः ८० से अधिक ब्रह्मचारी भैया लोगों ने दीक्षा के निवेदन के साथ गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के श्री चरणों में श्रीफल समर्पित किए और सभी ब्रह्मचारी भाइयों को पाद प्रक्षालन का सौभाग्य प्राप्त हुआ । गुरूदेव की मुखमुद्रा देखकर ऐसी संभावना लग रही है कि दीक्षा प्रदाता पूज्य गुरुदेव दीक्षा देकर अपने शिष्यों को कृतार्थ करेंगे।  तत्पश्चात् ब्र संजीव भैया कटंगी ब्रहमचारी मनोज भैया, ब्रहमचारी दीपक भैया ने पूज्य गुरुदेव की संगीतमय पूजा संपन्न करवाई  

आचार्य श्री  विद्यासागर जी की दीक्षा के 50 वर्ष का महोत्सव छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में 28 से 30 जून 2017 को

·       दीक्षा के 50 वर्ष पूरे होने का पर्व संयम स्वर्ण महोत्सव के रूप पूरे एक वर्ष तक चलेगा। ·       मातृभाषा में शिक्षा और हथकरघा के माध्यम से स्वदेशी क्रांति का आरम्भ ·       ऐसे संत जो प्रतिपल जनहित, राष्ट्रहित और भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए सोचते हैं   रायपुर : दिगंबर जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की दीक्षा के 50 वर्ष सन 2018 में पूर्ण हो रहे हैं इस पावन पर्व को देश-विदेश में “संयम स्वर्ण महोत्सव” के रूप में मनाया जाएगा जो बुधवार, 28 जून 2017 से आरंभ हो र

सामान्य बालक ऐसे बना आचार्य विद्यासागर, जानिए पूरी कहानी

हाईस्कूल के बाद लिया था सन्यास, कठिन तप-साधना से बने आचार्य जबलपुर। आचार्य विद्यासार जी को देश-दुनिया के लोग जानते हैं। उनके संघर्ष और तप से पूरी दुनिया प्रभावित है। मंगलवार को वे जबलपुर आए तो हजारों की संख्या में श्रावक उनके दर्शन के लिए पहुंच गए। ऐसे में हम यहां आचार्य श्री के जीवन से जुड़ी जानकारी साझा कर रहे हैं। आचार्य विद्यासागर जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946, शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा व मां श्री मति ने उनका नाम विद्या

सत्तन की कविताओं से आचार्यश्री हुए भाव-विभोर

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016]   कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी

सत्तन की कविताओं से आचार्यश्री हुए भाव-विभोर

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016]   कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी

सत्तन की कविताओं से आचार्यश्री हुए भाव-विभोर

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016]   कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी

सत्तन की कविताओं से आचार्यश्री हुए भाव-विभोर

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016]   कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी

सत्तन की कविताओं से आचार्यश्री हुए भाव-विभोर

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016]   कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी

सत्तन की कविताओं से आचार्यश्री हुए भाव-विभोर

मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016]   कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी

संयम स्वर्ण महोत्सव के रूप में मनेगा 50वां मुनि दीक्षा वर्ष

संयम स्वर्ण महोत्सव 28 जून से कोटा|आचार्य विद्यासागरमहाराज का 50वां दीक्षा दिवस 28 जून को पूरे भारत में मनाया जाएगा। सकल दिगंबर जैन समाज ने तलवंडी जैन मंदिर में एक गोष्ठी को आयोजन किया गया। जिसमें साल भर के कार्यक्रमों की रूपरेखा तय की गई। सकल समाज के कार्याध्यक्ष जेके जैन ने बताया कि जबलपुर उदासीन आश्रम से कोटा आई ब्रह्म चारणी सविता दीदी, बबिता दीदी ने बताया कि 1968 में 30 जून को आचार्य ज्ञान सागर महाराज से मुनि विद्यासागर महाराज ने मुनि दीक्षा ली थी। अध्यक्ष अजय बाकलीवाल ने इसकी जानकारी द

दयाभाव के अभाव में आंखों का पानी सूख जाता है

योग से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रयोग होता है चन्द्रगिरि, डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने एक दृष्टांत के माध्यम से बताया कि अड़ोस-पड़ोस में दो किसान रहते थे। उनके पास सैकड़ों एकड़ जमीन थी लेकिन उस जगह दूर-दूर तक पानी नहीं होने के कारण उनकी आंखों में पानी था। एक दिन एक किसान एक व्यक्ति को लेकर आता है और अपनी जमीन दिखाता है और फिर जमीन देखने के बाद वह उचित स्थान पर खुदाई करवाकर कुआं बनवाता है जिससे पानी लेकर किसान भगवान का अभिषेक करता है और अपनी खेती-किसानी

मन की तरंगें मोक्ष मार्ग में बाधक : आचार्यश्री

चन्द्रगिरि (डोंगरगढ़) में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने मांगलिक उपदेश देते हुए एक दृष्टांत के माध्यम से बताया कि एक संघ में मुनि महाराज ने संलेखना के कुछ दिनों पहले यम संलेखना का नियम ले लिया था, ऐसे मुनि महाराज के दर्शन के लिए चक्रवर्ती तक आए थे। मुनि महाराज के शरीर में कुछ भी ग्रहण करने की शक्ति नहीं बची थी। ऐसे परीक्षा के समय में उन्हें मन में विकल्प हो रहा था तो उन्होंने गुरु महाराज से कहा कि उन्हें मन में आहार लेने का विकल्प आ रहा है। इस बात को सुनकर सम

भक्ति निःस्वार्थ होना चाहिए – आचार्यश्री

छत्तीसगढ़ के प्रथम दिगम्बर जैन तीर्थ चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के शिष्य मुनि श्री निर्दोष सागर जी ने रविवार को हुये प्रवचन में कहा की आचार्य श्री कहते है कि भक्त कि भक्ति निःस्वार्थ होना चाहिए जिसमे किसी भी प्रकार की फल की प्राप्ति की कामना नही होना चाहिए तभी वह भक्ति सच्ची भक्ति होती है। उन्होने उदाहरण के माध्यम से समझाया कि भक्त दो प्रकार के होते है एक भक्त मंदिर में भगवान ने जो छोड़ा है उसकी प्राप्ति के लिये जाते हैं और दूसरे वे जो भगवान ने प्र

मंगल देशना

पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि जीवन में यदि आगे बढ़ना है तो व्यवस्थित क्रम से ही आगे बढ़ा जा सकता है।   पहले भोजन फिर स्नान ये क्रम नहीं चलता है बल्कि स्नान के उपरान्त ही भोजन ग्रहण करके हम स्वस्थ्य रह सकते हैं। एक दिन एक युवा को तेज भूख लग रही थी उसने स्नान के पूर्व ही एकदम गरम भोजन ग्रहण कर लिया फिर ठन्डे जल से स्नान कर लिया तो उसी दिन से उसको सिरदर्द की समस्या शुरू हो गई। व्यवस्थित क्रम से जीवन का निर्धारण करेंगे तो सही प्रबंधन हो सकेगा, व्यवस्था का मतलब ही है अवस्था

राने रेडियो

पुज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि जिस तरह पुराने रेडियो में हम एक स्टेशन लगाते थे और यदि हाथ हिल जाता था तो दूसरा स्टेशन लग जाता था तो गीत की जगह कई अन्य कार्यक्रम सुनाई देने लगता था। क्योंकि स्टेशन की रेंज बदल जाती थी और ये रेंज ऊपर लगे एरियल के माध्यम से मिलती थी ठीक उसी प्रकार हमारे विचार रुपी विभिन्न स्टेशन हैं जो हमारे मस्तिष्क रुपी एरियल के माध्यम से बदलते रहते हैं, अच्छे विचारों वाला स्टेशन यदि लगाना है तो मस्तिष्क को निर्मल बनाना होगा। स्थिरता लाने पर ही हम एक विचारों वाले

अहिंसा स्थली (इक़बाल मैदान)

गुरुवर ने कहा कि तालाब में कंकर फेंकते हैं तो नीचे की और चला जाता है। लकड़ी बजनदार होती है फिर भी नहीं डूबती है,जबकि उसमें गाँठ भी होती है। जिसके भीतर पकड़ नहीं है बो तैरता रहता है छोटा डूब जाता है। लकड़ी पानी में गलती नहीं है और पत्थर गल जाता है। पानी के जहाज में नीचे लकड़ी लगाई जाती है और उसी बजह से जहाज डूबता नहीं है। हमें भी लकड़ी की तरह बनना है ताकि हम संसार सिंधु में डूबें नहीं। ऊपर देखता हूँ तो भगवान दिखते हैं नीचे देखता हूँ तो होनहार भगवान दिखते हैं। आप सभी में भगवान बनने के गुण विद्यमान हैं 

सर्वांगीण विकास में बुद्धि

पुज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि सर्वांगीण विकास में बुद्धि और शरीर दोनों का विकास समाहित होता है। किसी भी अच्छे कार्य की यदि नींव रखी जाती है तो नीचे से लेकर ऊपर तक एक ही दीवार बनायीं जाती है उस पर छत डाली जाती है। बाँध पर भी पानी रोका जाता था उसके लिए पूर्ण प्रबंध किया जाता है उसे निकलने की व्यवस्था की जाती है और नहर के माध्यम से अनेक राज्यों में जाता है। भाखड़ा नंगल बांध में ऐंसी व्यवस्था है उसका उद्देश्य परिग्रह नहीं होता बल्कि कृषि का विकास हो इसके लिये होता है। आप भी यदि संग्

बड़े बड़े मंदिरों का निर्माण

पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि आपने बड़े बड़े मंदिरों का निर्माण कर लिया अनेकों प्रतिमाओं को विराजित कर पुण्य कमा लिया परंतु मुख्य कार्य तो अभी बाकी है। अब इन वीतरागीयों की आराधना के लिए युवाओं में जागृति लाने का कार्य कीजिये और जो दूर दराज के विद्यार्थी राजधानी में अध्ध्यनरत हैं उन्हें प्रेरित कीजिये। ऐंसी व्यवस्था बनाइये की वे मंदिर के आसपास ही रहकर अध्यन कर सकें और इसके लिए एक व्यवस्थित छात्रावास होना चाहिए। संस्कारों को यदि प्रतिस्ठापित करना चाहते हैं तो सबसे पहले ये काम प्रार

शिक्षा और भारत

इस अवसर पर पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि बूँद बूँद के मिलन से जल में घट आ जाय बूँद मिले सागर से सागर बूँद समाय।   एक बूँद दूसरी बूँद से मिल जाती है तो प्यास बुझाती है। सागर का अस्तित्व क्या है,उत्पत्ति कैंसे है ये जानना जरूरी है। लोग कहते है सरकार सुनती नहीं है, आपकी आवाज में दम होगी तो बेहरी सरकार भी सुन लेती है। स्वर के मिलते ही व्यंजन में गति आ जाती है, आप स्वर बन जाएँ तो सरकार व्यंजन बन जायेगी। कर्ता यदि सरकार है तो कार्य की अनुमोदना आपको करना है। 70 बर्षों में सर

ज्वालामुखी का फटना

पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि ज्वालामुखी का फटना अलग बात है, भूकंप अलग बात है और सूर्य की तेज किरणें अलग बात है। कांच पर जब किरणें पड़ती हैं तभी प्रकाश फैलता है । ज्ञान को बाँधने का नाम ध्यान है जब तक ज्ञान को बाँधने का उपक्रम नहीं करेंगे तब तक अन्तर्मुहरत की साधना को गति नहीं मिल पाती है। जब सूर्य की किरणों की उष्णता से कंडे में भी अग्नि प्रज्ज्वलित होती है। समयसार को रटने से ज्ञान प्रज्ज्वलित नहीं हो सकता है जब सूर्य की किरण की तरह वो अंतरात्मा में प्रवेश करता है तब ज्ञान की ज
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