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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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वीतरागी से अनुराग - संस्मरण क्रमांक 18

☀☀ संस्मरण क्रमांक 18☀☀            ? वीतरागी से अनुराग ?  आचार्य महाराज संग सहित  विहार कर रहे थे, खुरई नगर में प्रवेश होने वाला था ,एक गरीब सा दिखने वाला व्यक्ति साइकिल पर अपनी आजीविका का बोझ लिए समीप से निकला और थोड़ी दूर जाकर ठहर गया,जैसे हीआचार्य महाराज उसके सामने से निकले वह भाव विह्वल होकर उनके श्री चरणों में गिर पड़ा।गदगद कंठ से बोला कि-" भगवान राम की जय हो"आचार्य महाराज ने क्षण भर उसे देखा और अत्यंत करुणा से भर कर धर्म वृद्धि का आशीष दिया,और आगे बढ़ गए। वह व्यक्ति हर्ष विभोर होकर बह

दृष्टि लक्ष्य की और - संस्मरण क्रमांक 17

☀☀ संस्मरण क्रमांक 17☀☀            ? दृष्टि लक्ष्य की और ?  एक बार एक साधक के दांत में छेद हो गया, जिस से तकलीफ बनी रहती,आहार के समय और तकलीफ बढ़ जाती डॉक्टर को दिखाया उस दिन उनका उपवास था, डॉक्टर ने उसको निकाल दिया बहुत खून गिरा,  जब आचार्य श्री जी को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने पूछा क्यों,उन्हें दांत से बहुत खून आया मैंने (कुंथुसागर जी)कहा -जी आचार्य श्री जी डॉक्टर ने ऊपर गाल पर बर्फ रखा, वह ठंडा लगा उस ओर ध्यान गया कि झटके से दांत निकाल दिया मालूम ही नहीं पड़ा दांत कब निकल गया,यह सब उपयो

मुक्ति - संस्मरण क्रमांक 16

☀☀ संस्मरण क्रमांक 16☀☀            ? मुक्ति ? मुक्तागिरी 1980 वर्षाकाल पूरा होने को था,दीपावली की पूर्व संध्या में आचार्य महाराज ध्यानस्थ हुए तो सारी रात निश्चल ध्यान में बैठे-बैठे ही बीत गई। महावीर स्वामी के परिनिर्वाण की प्रत्युष बेला में उन्होंने आंखें खोली और क्षणभर हम सभी की ओर देख कर कहा कि-  भगवान तो वर्षों पहले मुक्त हो गए हम भी ऐसे ही कभी मुक्त होंगे पर जाने कब होंगे उस क्षण उनकी दिगंत में झांकती आंखें मुख्य मंडल पर छाई अपार शांति और गदगद कंठ से झरती यह अमृतवाणी देख- सुनकर हम सभी

विनम्र श्रद्धा - संस्मरण क्रमांक 15

☀☀ संस्मरण क्रमांक 15☀☀            ? विनम्र श्रद्धा ?   एक बार की बात है सिवनी के बड़े मंदिर में पूज्य आचार्य भगवान विराजमान थे,वयोवृध्द पंडित सुमेर चंद जी दिवाकर उनके दर्शन करने आए,तत्व चर्चा चलती रही, जाते समय पंडित जी बोले कि-  महाराज हमें तो आचार्य शांति सागर जी महाराज ने एक बार मंत्र जपने के लिए माला दी थी, जो अभी तक हमारे पास है।  पंडित जी का आशय था कि-आप भी हमें कुछ दें,पर आचार्य भगवन तत्काल बोले कि - पंडित जी हमें तो हमारे आचार्य महाराज *(ज्ञानसागर जी)मालामाल कर गए हैं। माला की ल

संयमी जीवन - संस्मरण क्रमांक 14

??????????    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 14☀☀            ? संयमी जीवन?  आज पंचमकाल में कैसी भौतिकता है,चारों तरफ वासनाओं का वास हो चुका है, और ऐसे समय में एक अकेला संत जो संयम की रक्षा करते हुए संतत्व से सिध्दत्व की यात्रा करते हुए, मोक्ष मार्ग की ओर निरंतर बिना रुके आगे बढ़ता जा रहा है वह यात्रा जो स्वयं ने अकेले शुरू की थी आज वह यात्रा अविरल रूप से प्रवाहमान है और लाखो हजारों लोग उस  यात्रा में शामिल होकर मोक्ष मार्ग की ओर निरंतर गमन कर रहे हैं लाखों लोगों की मन की सिर्फ एक ही इच्छा होती है कि

प्रथम दर्शन की अनुभूति - संस्मरण क्रमांक 13

☀☀ संस्मरण क्रमांक 13☀☀      ? प्रथम दर्शन की अनुभूति ?        घटना 1975 की है,एक दिन जब हम ब्र. सुरेन्द्रनाथ जी (पूर्व अधिष्ठाता ईशरी आश्रम) से श्री समयसार जी का अध्ययन कर रहे थे,तब ही अचानक वे बोल उठे कि छीपीटोला,आगरा में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज पधारे हुये है।दोपहर 2 बजे उनके दर्शन करने चलेंगे। ठीक 2 बजे हम छीपीटोला, आगरा पहुँच गये। धर्मशाला के प्रथम तले पर एक कमरे में पू. आचार्य विद्यासागर जी महाराज अकेले स्वाध्याय में तल्लीन विराजमान थे। ब्र. सुरेन्द्रनाथ जी तथा में उनको नमोस

सतर्क मुनि चर्या - संस्मरण क्रमांक 12

??????????  ? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे                      आयी संयम स्वर्ण जयंती?   ??????????    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 12☀☀            ? सतर्क मुनि चर्या ? आचार्य श्री विद्यासागर जी संघ सहित विहार करके एक गांव में पहुंचे। लंबा विहार होने से उन्हें थकावट अधिक हो गई।कुछ मुनि महाराज वैयावृत्ति कर रहे थे।सामायिक का समय होने वाला था,अचानक आचार्य श्री बोले - मन कहता है शरीर को थोड़ा विश्राम दिया जाए .......सभी शिष्यों ने एक स्वर में आचार्य श्री जी की बात का समर्थन करते हुए कहा-हां हां आचार्

सतर्क मुनि चर्या - संस्मरण क्रमांक 11

☀☀ संस्मरण क्रमांक 11☀☀            ? सतर्क मुनि चर्या ? आचार्य श्री विद्यासागर जी संघ सहित विहार करके एक गांव में पहुंचे। लंबा विहार होने से उन्हें थकावट अधिक हो गई।कुछ मुनि महाराज वैयावृत्ति कर रहे थे।सामायिक का समय होने वाला था,अचानक आचार्य श्री बोले - मन कहता है शरीर को थोड़ा विश्राम दिया जाए .......सभी शिष्यों ने एक स्वर में आचार्य श्री जी की बात का समर्थन करते हुए कहा-हां हां आचार्य श्री जी आप थोड़ा विश्राम कर लीजिए आचार्य श्री जी हंसने लगे और तत्काल बोले मन भले ही विश्राम की बात कर

अंतिम लक्ष्य सिद्धि - संस्मरण क्रमांक 10

??????????  ? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे                      आयी संयम स्वर्ण जयंती?   ??????????    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 10☀☀            ? अंतिम लक्ष्य सिद्धि ?  अपने गुरु के समान ही आचार्य श्री विद्यासागर जी भी जीवन का अंतिम लक्ष्य समाधि मरणकी सिद्धि हेतु कृतसंकल्प है। इसका स्पष्ट चित्रण संघस्थ ज्येष्ठ साधु मुनि श्री योग सागर जी की आचार्य श्री जी से हुई चर्चा से स्पष्ट हो जाता है  आचार्य श्री विद्यासागर जी का भोपाल मध्यप्रदेश चातुर्मास सन 2016 के बाद डोंगरगढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़

सच्चा रास्ता - संस्मरण क्रमांक 9

??????????  ? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे                      आयी संयम स्वर्ण जयंती?   ??????????     ☀☀ संस्मरण क्रमांक 9☀☀            ? सच्चा रास्ता ? 1978  नैनागिरी चातुर्मासमें जयपुर से कुछ लोग आचार्य महाराज के दर्शन करने नैनागिरी आ रहे थे, वह रास्ता भूल गए और नैनागिरी के समीप दूसरे रास्ते पर मुड़ गए। थोड़ी देर जाकर उन्हें एहसास हुआ कि वह भटक गए हैं , इस बीच 4 बंदूकधारी लोगों ने उन्हें घेर लिया,  गाड़ी में बैठे सभी यात्री घबरा गए एक यात्री ने थोड़ा साहस करके कहा कि - भैया ह

अभयदान - संस्मरण क्रमांक 8

??????????    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 8☀☀            ? अभयदान?  चातुर्मास स्थापना का समय समीप आ गया था, सभी की भावना थी कि इस बार आचार्य महाराज नैनागिरी में ही वर्षाकाल व्यतीत करें,वैसे नैनागिरी के आसपास डाकुओं का भय बना रहता है, पर लोगों को विश्वास था कि आचार्य महाराज के रहने से सब काम निर्भयता से सानंद संपन्न होंगे सभी की भावना साकार हुई चातुर्मास की स्थापना हो गई। एक दिन हमेशा की तरह है जब आसान महाराज आहारचर्या से लौटकर पर्वत की ओर जा रहे थे तब रास्ते में समीप की जंगल से निकलकर

चेतन धन - संस्मरण क्रमांक 7

??????????    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 7☀☀            ? चेतन धन ?  प्रवचन के पूर्व किसी सज्जन ने दान के बारे में अपनी बात रखी।हंसी के तौर पर उनने कहा - बुंदेलखंड के लोग बड़े कंजूस है ये दान नही देते। यह सुनकर आचार्य गुरुदेव मन ही मन मुस्कुराने  लगे और मंद मंद मुस्कान उनके चेहरे पर आ गयी , तो सभी सभा मे बैठे श्रद्धालु गण हँसने लगे।      आचार्य महाराज ने प्रवचन के समय कहा - अभी एक सज्जन कह रहे थे कि  ये बुन्देलखण्ड के लोग धन का त्याग नही करते। देखो ( मंचासीन सभी मुनिराजों की और अ

पेट्रोल - संस्मरण क्रमांक 6

??? संस्मरण क्रमांक 6 ???        ?? पेट्रोल ?? किसी सज्जन ने आचार्यश्री जी से शंका व्यक्त करते हुए कहा कि-कुछ लोग व्रत लेकर छोड़ देते है या उनके व्रतों में शिथिलता आ जाती है। ऐसा किस कारण से होता है ? तब आचार्य श्री जी ने कहा कि- मुख्य कारण तो इसमें चारित्र मोहनीय का उदय रहता है दूसरा स्वयं की पुरुषार्थ हीनता भी काम करती है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए समझाया कि जैसे कोई व्यक्ति मोटरसाइकिल शोरूम पर जाकर उत्साह के साथ बढ़िया कम्पनी की एक मोटरसाइकिल बड़े उत्साह के साथ खरीदकर लाता है। उसमें थोड़ा-स

आदर्श ग्रहस्थ - संस्मरण क्रमांक 5

??????????? ??? संस्मरण क्रमांक 5 ???        ?? आदर्श ग्रहस्थ ?? आचार्यश्रीजी गृहस्थ धर्म की व्याख्या कर रहे थे उन्होंने बताया कि - गृहस्थ रागी जरुर होता है,किंतु वीतरागी का उपासक अवश्य होता है।सच्चा श्रावक हमेशा देव,शास्त्र व गुरु पर समर्पित रहता है। देव पूजा आदि छः आवश्यकों का प्रतिदिन पालन करता है। पर्व के दिनों में एकाशन करता हुआ ब्रह्मचर्य का पालन करता है।जिसके माध्यम से संकल्पी हिंसा होती हो ऐसा व्यापार नहीं करता। उसका आजीविका का साधन न्याय-संगत एवं सात्विक होता है। वह विवाह भी करता

संस्मरण क्रमांक 4

??????????? ??? संस्मरण क्रमांक 4 ???          आचार्य श्री का एक बहुत अच्छा संस्मरण है कुछ तथाकथित विद्वान यह कहते हुए पाये जाते है कि पंचम काल में यहाँ से किसी को मुक्ति नहीं मिलती इसलिए हम अभी मुनि नहीं बनते बल्कि विदेह क्षेत्र में जाकर मुनि बनेंगे इस प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य श्री जी ने कहा कि-जो व्यक्ति यहाँ मुनि न बनकर विदेह क्षेत्र में जाकर मुनि बनने की बात करते है,वे ऐसे खिलाड़ी की तरह हैं जो अपने गाँव की पिच पर मैच नहीं खेल पाते एवं कहते है मैं तो विदेश में मैच खेलूंगा या सीध

  गुरु होकर भी लघु बने रहना - संस्मरण क्रमांक 3

??????????? ??? संस्मरण क्रमांक 3 ???   गुरु होकर भी लघु बने रहना  एक बार  भोपाल में आचार्य श्री जी के दर्शन करके अत्यंत भावविभोर होकर किसी भक्त ने  कह दिया कि- पंचम काल की काया पर चतुर्थ काल की आत्मा।   जिसे सुनकर आचार्य श्री जी ने कहा कि- आप कह सही रहे हो , पर एक सुधार करना है कि पंचम काल की तो काया है , पर अनंत काल की आत्मा  ये आत्मा अनादि काल से संसार मे भटक रही है , फिर आप कैसे कह सकते है कि चतुर्थ काल की आत्मा  लोगो को सुनकर आश्चर्य हुआ और सभी गुरुजी के प्रति समर्पण भाव से भर गए ।

संस्मरण क्रमांक 2

??????????? ??? संस्मरण क्रमांक 2 ??? पूज्यमुनिश्री क्षमासागर जी महाराज का अपने गुरु आचार्यश्री विद्यासागर जी के प्रति अनूठा समर्पण था। उनका जीवन मानो अपने गुरुकी ही धारा में बहता था... साये की तरह आचार्य श्री के पदचिन्हों पर चलते समय उनके जीवन से जुड़े अनेक संस्मरणों को मुनिश्री ने अपनी पुस्तक आत्मान्वेषी में संकलित किया...प्रस्तुत है संस्मरण  "आत्मीयता"शीतकाल में सारा संघ अतिशय क्षेत्र बीना-बारहा(देवरी) में साधनारतरहा। आचार्य महाराज के निर्देशानुसार सभी ने खुली दालान में रहकर मूलाचार व

संस्मरण क्रमांक 1

??????????  ???  संस्मरण क्रमांक 1??? हमने (आ.श्री विद्यासागर जी ने ) एक बार आ.ज्ञानसागर महाराजजी से पूछा था - ' महाराज ! मुझसे धर्म की प्रभावना कैसे बन सकेगी ? तब उनका उत्तर था कि ' आर्षमार्ग में दोष लगा देना अप्रभावना कहलाती है । तुम ऐसी अप्रभावना से बचते रहना, बस प्रभावना हो जाऐगी । ❄❄" मुनि मार्ग सफेद चादर के समान है, उसमें जरा सा दाग लगना अप्रभावनाका कारण है । उनकी यह सीख बड़ी पैनी है । इसलिए मेरा प्रयास यही रहा कि दुनिया कुछ भी कहे या न कहे, मुझे अपने ग्रहण किये हुए व्रतों का परिपालन

विवाह धर्म प्रभावना में सहायक

चन्द्रगिरि (डोंगरगढ़) में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि पहले असी, मसि, कृषि, वाणिज्य के हिसाब से कार्य होता था और विवाह में कन्यादान होता था। इस प्रथा में कन्या दी जाती थी। इसमें कन्या का आदान-प्रदान नहीं होता था। आज पाश्चात्य सभ्यता का चलन होने के कारण सब प्रथाओं में परिवर्तन आ रहे हैं, यह विचारणीय है। पहले पिता अपनी बच्ची के लिए योग्य वर ढूंढता था, पर आज बच्चे से पूछे बिना कोई काम नहीं कर सकते हैं। पहले बच्ची अपने पिता की बात को ही अपना भाग्य समझती थी, अ

मोह राग और द्वेष आत्मा को किंकर्तव्यविमूढ़ बनाते हैं

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने मोह, राग और द्वेष की परिभाषा बताते हुए कहा की मोह हमें किसी भी वस्तु या मनुष्य आदि से हो सकता है जैसे दूध में एक बार जामन मिलाने पर वह जम जाता है फिर दोबारा उसी बर्तन पर दूध डालने पर दूध अपने आप जम जाता है उसमे दोबारा जामन नहीं डालना पड़ता। उसी प्रकार मनुष्य भी मोह में जम जाता है। राग और मोह में अंतर होता है। राग के कारण वस्तु का वास्तविक स्वरुप न दिखकर उसका उल्टा स्वरुप दिखने लगता है। जैसे कोई वस्तु है, यदि आ

समझदार मंझधार में नहीं होते

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की प्रवचन यहाँ पंडाल में बैठे लोगों के लिए भी है और जो किसी माध्यम से इसे समझ रहे हैं उनके लिए भी है। आचार्य श्री ने एक दृष्टान्त के माध्यम से समझाया की एक बार एक जंगली सुवर गुफा के बाहर बैठ कर समायक कर रहा होता है और वहाँ एक सिंह आ जाता है तो जंगली सुवर सिंह को आगे जाने के लिए मना करता है तो इस पर जंगल के राजा सिंह को गुस्सा आ जाता है और इसी बात को लेकर दोनों में युद्ध शुरू हो जाता है। सिंह अपने पंजे से वार क
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