_*💦🥀नेमावर अपडेट🥀💦*_
_*✨गुरुवार,1 अगस्त 2019✨*_
_*गौवंश को किसी ट्रक वाले ने टक्कर लगा कर घायल कर दिया।* अहो सौभाग्य उस गौवंश का जो सिद्धोदय नेमावर जी के मंदिर जी के बाहर ही *आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज* द्वारा बहुत ही करुणा भाव से उसे *णमोकार मंत्र* सुनाया गया...हम सब ये दृश्य देखकर उपस्थित सभीजन *भाव विभोर* हो गये।_
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*नेमावर से गौरझामर के बिहार के समय, बापौली धाम, फरवरी 2015*
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*आहार चर्या के लिए यह स्थान निश्चित किया गया था, महंत जी के विशेष आग्रह पर संघ सहित गुरु जी ने उस आश्रम के अंतरंग परिसर में प्रवेश किया एवं आहार हेतु उठने के पहले की जाने वाली भक्तियॉ वहीं पर बैठ कर सभी मुनि महाराजों ने की, इसी दौरान महंत जी सहित सभी शिष्यों ने आचार्य महाराज का पाद प्रक्षालन एवं पुष्पमाला आदि से भक्ति पूजन संपन्न किया।*
*लाल वस्त्रों में जो स्वामी जी हैं उनका 12 वर्ष से मौन
मुझे आज भी वो दृश्य याद है जब 1983 में आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज कलकत्ता आये थे और कलकत्ता प्रवेश से पूर्व बाली मंदिर में ठहरे थे । मैं सुबह 4 बजे गुरुदेव का दर्शन करने तथा उनके साथ विहार करने के उद्येश्य से गया था । आचार्य श्री नवम्बर महीने की सर्दी में खुले में बैठकर सामायिक / ध्यान कर रहे थे । सारा शरीर मच्छरों से ढका था । मैं टकटकी लगाकर उन्हें देखता रहा । आँखों पर, कानों में, नाक में, हाथों पर, हाथों की अंगुलियों पर, पूरे पैरों पर मोटे मोटे मच्छर जमा हो रखे थे । आचार्य श्री दो घंटे से
ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, के ज्ञाता गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के रत्नत्रयी गुणों के सागर में अवगाहन कर वंदन करता हूँ.... हे गुरुवर! आपने मुनि विद्यासागर जी की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें हिन्दी, संस्कृत भाषा में तो निपुण बनाया ही साथ ब्रम्हचारी अवस्था में विद्याधर जी को अंग्रेजी भाषा की रुचि होने के कारण आपने उन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान कराने के लिए भी विद्वान लगवाए थे। एक वर्ष की अवधि में ही विद्याधर जी अंग्रेजी में पारंगत हो गए थे। इस विषय में दीपचंद जी छाबड़ा नांदसी वालो ने एक संस्म
जीवन में स्वयंभू, सत्यधर्मो का प्रकाश प्रकट करने वाले गुरूवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के प्रकाशवान् चरणो में वंदना करता हूँ.... हे गुरुवर! मेरे गुरु की साधना और वैराग्य को देखते हुए आप इतने प्रभावित हुए थे, कि आपने, उनको उदाहरण के रूप में उपस्थित किया था। वह वाकया पण्डित विद्याकुमार सेठी जी ने १९९४ अजमेर चातुर्मास में मुझे सुनाया। जिसे सुनकर हम शिष्यों को गौरव की अनुभूति होती है। वह संस्मरण हमने लिख लिया था, जो आपको प्रेषित कर रहा हूँ........
गुरुदेव ने मुनि विद्यासागर जी को उदाहरण क
ज्ञानरथ के सार्थवाह गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को कोटिशः प्रणाम करता हूँ.... हे गुरुवर! आपके लाडले शिष्य ब्रम्हचारी विद्याधर जी आपको तो जवाब नही देते थे किन्तु अज्ञानियों के अज्ञान अंधकार को दूर करने के लिए कम शब्दों में, टू द पॉइंट बोलकर संतुष्ट करके निरुत्तर कर देते थे। इस सम्बन्ध में नसीराबाद के आपके। अनन्य भक्त रतनलाल पाटनी जी ने विद्याधर के हाजिर जवाबी का संस्मरण सुनाया-
हाजिरजवाबी ब्रम्हचारी विद्याधर
"१९६८ ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान नसीराबाद में ज्ञानसागर मुनिराज न
भवभव के नीरंध्र अज्ञान को ज्ञानप्रभा से भेदने वाले गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में त्रिकाल प्रणति अर्पित करता हूँ..... हे गुरुवर! अब में नसीराबाद के कुछ संस्मरण आपको प्रेषित कर रहा हूँ। ब्र विद्याधर जी आपके साथ-साथ जहाँ भी जा रहे थे वहाँ के लोग उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होते और उनकी मधुर बातों से शिक्षा लेते। विद्याधर की साधना ऐसी साधना थी जिसको देखकर हर कोई अचम्भित हुए बिना नही रहता था। आज जब नसीराबाद के किसी भी समाज जन से उस समय की बात करते है तो वो ब्र विद्याधर के अनेकों संस्मर
अब तक का सफर
(1) प्रस्तावना एक शिष्य दिन-रात, प्रतिपल यही मन में भावना भाता है कि- जिन सद्गुरु ने एक नया जीवन दिया, जो हर 1 श्वास में बसे हुए है, जो हृदय की धड़कन की तरह सदा इस दिल में धड़कते रहते है। जिन सद्गुरु ने रास्ते मे पड़े हुए इस कंकड़, पत्थर को उठाकर अपनी छत्रछ्या में रखकर इसे अच्छे संस्कारो से पल्लवित कर इसमें छुपी हुई अनन्त संभावनाओं को उजागर कर उसे एक हीरे का रूप दिया। इस कंकड़ पर अनन्त उपकार किये, जो वह अपने जीवन की अंतिम श्वासों तक स्मरण करेगा। कभी नहीं भूल पाएंगे, उन उपकारों को। इ
अविरल स्वभाव बोध में परिणमन कर असीमित रहस्य के समाधान प्राप्त गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के श्री चरणों में सम्पूर्ण विनय अर्पित करता हूं.... हे गुरुवर आपने ब्रह्मचारी विद्याधर को जितना दिया वो लेते गए, कुछ भी छोडना नहीं चाहते थे। इस कारण उन्होंने दृढ़ संकल्प कर रखा था कि रोज का होमवर्क रोज करके ही विश्राम करना एवं अपने संकल्प के पूरा करने में ऐसे दत्तचित्त रहते थे कि कोई भी बाधा उन्हें बाधा दे ही नहीं पाती थी। इस संबंध मे नसीराबाद के आपके भक्त कुंतीलाल जी गदिया ने ब्रह्मचारी विद्याधर जी के ब
आत्मानुशासित चर्या में केंद्रित गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में नमोस्तु - नमोस्तु - नमोस्तु..... हे गुरुवर! ब्रह्मचारी विद्याधर आपकी हर आज्ञा को पूर्ण श्रद्धा, भक्ति के साथ पालन करते थे। इस में किसी भी प्रकार का प्रमाद नहीं करते थे। गुरु आज्ञा को दृढ़ता के साथ पालन करने का यह संस्कार बचपन से ही आ गया था। बचपन में यह संस्कार कहां से मिला इसका समाधान चिंतन में यह आता है कि - पूर्व जन्म के संस्कार जाग्रत हुए हैं। आज्ञाकारिता के बारे में नसीराबाद मे आप के परम भक्त श्री शांतिलाल जी पाटनी न
सूक्ष्मातिसूक्ष्म संबोधनात्मक कल्पना शक्ति की धनि महाकवि गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में सीमातीत नमोस्तु..... हे गुरुवर! दक्षिण की त्यौहार हो या सामाजिक कोई कार्यक्रम या लोक संस्कृति का कोई उत्सव परिवार की सहभागिता में बालक विद्याधर सदा उत्साह के साथ बालोचित कार्य करके सभी की शाबाशी लेता था। इस संबंध में एक स्मृति आपकी लिख रहा हूं जो विद्याधर के अग्रज भाई महावीर जी ने बतलाई - दक्षिण के सभी लोग शरद पूर्णिमा के दिन अपने अपने खेतों पर जाते हैं और भूमि पूजन करते हैं। हम लोग भी प्रतिवर्ष
मदनगंज किशनगढ़ चातुर्मास में ब्रह्मचारी विद्याधर जी, पंडित श्री महेंद्र कुमार जी पाटनी शास्त्री जी से संस्कृत एवं हिंदी भाषा का ज्ञानार्जन करते थे। पंडित जी से उन्होंने कातंत्र रूपमाला (संस्कृत व्याकरण) धनंजय नाममाला (शब्द कोश) एवं श्रुतबोध (छंद रचना) इन 3 संस्कृत ग्रंथों को पढ़ा था। जितना वो पढ़ते थे उतना वह याद कर लेते थे और पंडित जी को सुनाते थे।
इसी प्रकार मदनगंज किशनगढ़ के शांतिलाल गोधा जी (आवड़ा वाले) ने लिखा- 1967 मदनगंज-किशनगढ़ के दिगंबर जैन चंद्रप्रभु मंदिर में ज्ञान सागर जी म
अयाचक वृत्ति के धनी स्वाभिमानी गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों मे नमस्कार- नमस्कार- नमस्कार.... हे गुरुवर! ब्रम्हचारी विद्याधर जी आपको पूर्णतः समर्पित होकर, आपके समान बनने के लिए, आपकी हर क्रिया को अपने अन्दर आचरित करते जा रहे थे। सही मायने में वो आपकी पर्याय बन आप में मिलना चाह रहे थे। इस सम्बन्ध में नसीराबाद के आपके भक्त प्रवीणचन्द गदीया ने एक स्मृति सुनायी-
स्वाभिमानी ब्रम्हचारी विद्याधर
"नसीराबाद में प्रवास में हमारे घर पर चौक लगा करता था। जब जब परमपूज्य ज्ञानसागर जी महाराज
आत्मपरीक्षक, आत्मोत्तरदाता, आत्मसमालोचक, गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज की आत्मदृष्टि को कोटिशः प्रणाम करता हूं...हे गुरुवर! आपश्री ने दादिया ग्राम में ब्रम्हचारी विद्याधर जी की साधना की चार बार परीक्षा ली थी ओर ब्रम्हचारी जी उन परीक्षा में शतःप्रतिशत पास ही नही हुए बल्कि त्यागी विद्यार्थी के रूप में सब के आदर्श बन गए थे। इस बारे में दादिया के पारस झाँझरी सुपुत्र हरकचंद जी झाँझरी ने बताया।
प्रथम परीक्षा में परीक्षक हुए हक्के- बक्के
"दादिया प्रवास में ब्रम्हचारी विद्याधर जी बडी ही साधना
आत्माभा में लीन गुरु ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों मे सीमातीत वंदन... हे गुरुदेव! आपने ज्ञानपिपासु ब्रम्हचारी विद्याधर में जोज्ञान ज्योति प्रज्ज्वलित की। जिसे आज तक मेरे गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज दिन-रात जलाये रखते है। किसी को उपसर्ग-परिषह-संकटो को झंझावातो में बूझने नही देते है। यह संस्कार बचपन से ही विद्याधर को प्राप्त हुए थे। इस सम्बन्ध में विद्याधर की गृहस्थावस्था की बहने ब्रह्महचारिणी सुश्री शान्ता, सुश्री सुवर्णा जी जब अशोकनगर(म.प्र.) प्रवास में थी, तब संस्मरण लिखकर भेजा था।
अंधियारे भवारण्य के ज्ञानप्रकाश गुरुवार श्री ज्ञान सागर जी महाराज को त्रिकाल वंदन करता हूँ.... हे गुरुवर!आज में आपको आपके शिष्य, पाक कलाकार विद्याधर के बारे में बताता हूँ। इस सम्बन्ध में विद्याधर की बहने ब्रम्हचारिणी सुश्री शान्ता जी, सुश्री सुवर्णा जी ने प्रश्न का जवाब लिखकर भिजवाया पाक कलाकार विद्याधर "भोजन करना अलग बात है, भोजन बनाना अलग। जिसे पाक कला के नाम से जाना जाता है। पाक कला से संस्कृति का परिचय सहज हो जाता है। इस कला में महिलाएं निपुण होती है, किन्तु पुरषों का निपुण होना कला सज्ञा को
"माँ श्रीमन्ती ने हम दोनों पुत्रियों को ऐसी समज दी थी कि अभी तुम छोटी हो तुम्हसे उपवास नही हो सकता है। इसलिए एकासन किया करो। एकासन का मतलब एक बार सुबह भोजन करना और शाम को तला हुआ पदार्थ जैसे पूड़ी, बूंदी, लाडू, जलेबी आदि। छोटे बच्चों को सब को सब छूट होता है। माँ की ममता की झूठ समज को सच समझकर हम बच्चें वैसे ही एकासन करने लगे। हम लोगो की उम्र उस समय ९ और १२ वर्ष की थी। एक दिन भैया विद्याधर ने ऐसा करते हुए देख लिया तब कहा 'ऐसे भी कोई एकासन होता है क्या ? ऐसा तो मैं हमेशा कर सकता हूँ। एक बार भोजन कर
लोक-परलोक की ज्ञाता गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी के चरणो में नमन करता हूं.....हे गुरूवर! आज मैं आपको विद्याधर के शौक के बारे में बताता हूं। युवा जवान को देखकर सहज ही उत्कंठा हो जाती है कि इसकी कैसी क्या प्रवृत्ति होगी ? आज विद्याधर की युवा अवस्था के बारे में हर किसी को जिज्ञासा बनी हुई है कि वे कैसे क्या करते थे ? इस संबंध में विद्याधर के अग्रज महावीर प्रसादजी ने जो बताया वही लिख रहा हूं-
उस जमाने में तो दूरदर्शन नहीं था किंतु कर्ण से ज्ञानार्जन का साधन अवश्य था। तब नया नया रेडियो का प्रचलन ह
चलते फिरते तीर्थ गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में भावों की विशुद्धिपूर्वक प्रणाम करता हूं..... हे गुरूवर! किशनगढ़ चातुर्मास की एक विशेष बात आपको याद होगी कि-जब विद्याधर को आपने तीर्थ यात्रा जाने की बात कही थी, किंतु उन्होंने मना कर दिया था। इस संबंध में श्रीमती कनक जैन (दिल्ली)हाल निवासी ज्ञानोदय, अजमेर ने बताया- जब हम किशनगढ़ गुरु महाराज के दर्शन करने के लिए आए तब यह बात पता चली, वही बात मैं आपको लिख रहा हूं-
सन 1967 में किशनगढ़ के कुछ सज्जनों ने ब्रह्मचारी विद्याधर को नि
चरित्र सौरभ के प्रवाही गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज! मेरे कोटि-कोटि नमन स्वीकारें... हे गुरुवर!आज मैं आपको वह दिन याद करा रहा हूं जब भोले- भाले ब्रह्मचारी विद्याधर जी की बात सुनकर श्रावक समूह के साथ आप भी अत्याधिक मुस्कुरा उठे थे। इस संबंध में मुनि निर्वेगसागर जी महाराज ने सन 1997 नेमावर चातुर्मास की स्वाध्याय कक्षा में आचार्य श्री के मुख से सुना संस्मरण लिख भेजा, वह मैं आप तक प्रेषित कर रहा हूं-
जब विद्याधर किशनगढ़ में गुरु महाराज ज्ञानसागर जी के पास आया और सवारी का त्याग कर दि
जैसे गुरु ज्ञानसागर जी महाराज अपने नियम के पक्केऔर अनुशासन के पक्के थे। ऐसे ही उनके शिष्य मुनि विद्यासागर जी भी बन गए थे। हमने कई बार मुनि विद्यासागर जी को आतेड़ की छतरियों में घंटो घंटो सामायिक करते सुना और देखा है।आतेड़ की छतरियां उस समय शहर से चार पांच किलो मीटर दूर जंगल में पहाड़ियों से घिरी हुई थी। एक दो बार गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज ने मेरे पतिदेव (पदमचंद जी पाटनी) को कहा-विद्यासागर को शीघ्र बुलाकर लाओ। तो विद्यासागर जी छतरियों की ओर से आते हुए मिलते थे उनको बोला- गुरु महाराज ने आपको बुलाने
सुगमपथ वीतराग मार्गी आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में नमोस्तु-नमोस्तु- नमोस्तु....हे हितचिंतक गुरुवर! जन्म- जन्मांतरों से प्राणी मित्र विद्याधर स्वयं किसी जीव की हिंसा नहीं करते और ना ही परिवार जनों को करने देते थे। इस संबंध में विद्याधर के अग्रज भ्राता(महावीर प्रसाद जी)ने बताया-
विद्याधर घर वालों को मच्छर भगाने के लिए धुआं नहीं करने देता था, और खटमल मारने की दवाई भी नहीं छिड़कने देता था- "कि इससे जीव हिंसा होगी, पाप लगेगा, वो भी तो जीना चाहते हैं।" तब उसको हम लोग कहते- व
ज्ञानेंद्र गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को शत-शत नमन करता हूं.....
हे वात्सल्य रत्नाकर गुरुवर एक महापुरुष के अंदर सहज स्वाभाविक असीम गुणों के भंडार से समय-समय पर गुणरत्न प्रकट होते रहते हैं और उस विराट व्यक्तित्व को चमकातेे रहते हैं। विद्याधर में एक तरफ वैराग्य की ऊर्जा वृद्धिंगत हो रही थी तो दूसरी तरफ व्यावहारिक गुण भी अपनी सुगंधी फैलाते जा रहे थे। परिवार के सदस्यों से उसे गहरा लगाव था, वे प्रत्येक सदस्य का बड़ा ही ख्याल रखते थे। उसकी संवेदनाएं महापुरुषत्व की आधारशिलाएं स्थापित कर रही थ
ब्रह्मांड ज्ञान ऊर्जा धारक गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज आपके ज्ञानाचरण को नमन करता हूं...... हे गुरुवर! दया अहिंसा की मां है दया ही अहिंसा में परिणत होती है। विद्याधर सहज उत्पन्न दया के भंडार थे।यही कारण है कि विद्याधर की शुद्ध दया ही अहिंसा महाव्रत में परिणत हुई।
इस संबंध में मुनि योग सागर जी महाराज ने बताया- जेसे दूध में घी तैरता है वैसे ही भव्य पुरुष के हृदय में दया स्वाभाविक रूप से तैरती हुई नजर आती है। दया-अहिंसा,परोपकार को जन्म देती है योगियों की योग्यता का मापदंड दया है बच
सदेह में विदेह भोक्ता गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को मेरा कोटि कोटि वंदन......
हे गुरुवर!आज मैं आपको वह घटना याद करा रहा हूं जिससे आप कुछ विचलित सेे हुए थे किंतु विद्याधर जी के जवाब से आपके हर्षाश्रु आ गए थे, जिसे आप सहजता से छुपा दिए थे और रात भर आशीर्वाद देते रहे होंगे तो लाडले ब्रह्मचारी सुबह हंसते हुए मिले थे, जिसको किशनगढ़ के वो लोग आज तक नहीं भूले। जो उसके साक्षी थे। इस संबंध में शांतिलाल गोधा जी(आवड़ा वाले) मदनगंज किशनगढ़ से लिखते हैं-
"सन 1967 मदनगंज किशनगढ़ चातुर्मास के दौरान