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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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निमित्त - संस्मरण क्रमांक 40


संयम स्वर्ण महोत्सव

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  ☀☀ संस्मरण क्रमांक 40☀☀
           ? निमित्त ?
जिनेंद्र वर्णी जी ने अपने अंत समय में आचार्य महाराज को अपना गुरु बना कर उनके श्री चरणों में समाधि के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था।
 सल्लेखना अभी प्रारंभ नहीं हुई थी,इससे पहले ही एक दिन अचानक संघ सहित आचार्य महाराज बिना किसी से कुछ कहे ईसरी से निमिया-घाट होकर पार्श्वनाथ टोंक की वंदना करने के लिए निकल पड़े,सारा दिन वंदना में बीत गया इसलिए आश्रम आते-आते शाम हो गई।
चूंकि बिना किसी पूर्व सूचना कि यह सब हुआ, इसलिए वर्णी जी दिनभर बहुत चिंतित रहे कि पता नहीं आचार्य महाराज कब लौटेंगे जैसे ही ईसरी आश्रम में आचार्य महाराज लौट कर आए वर्णी जी ने उनके चरणों में माथा रख दिया,आंखों में आंसू भर आए और अवरूद्ध कंठ से बोले कि- महाराज आप मुझे बिना बताए अकेला छोड़ कर चले गए,मन बहुत घबराया मुझे तो अब आपका ही सहारा है मेरे जीवन के अंतिम समय में अब,सब आपको ही संभालना है।
 आचार्य महाराज क्षण भर को गंभीर हो गए फिर मुस्कुरा कर बोले कि- वर्णी जी सल्लेखना तो आत्माश्रित है,अपने भावों की संभाल आपको स्वयं करनी है। अपने उपादान को जाग्रत रखिए, मैं तो निमित्त मात्र हूं।
इस तरह अपने प्रति समर्पित हर शिष्य को संभालना, सहारा देना, संयम के प्रति जागृत रखना,और नियंतर आत्मकल्याण की शिक्षा देते रहना परंतु स्वयं असंपृक्त रहना यह उनकी विशेषता है।
  
        (ईसरी 1983)
? आत्मान्वेषी पुस्तक से साभार?
✍ मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज
 

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