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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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प्रबंधन अर्थात् मैनेजमेंट महत्वपूर्ण है……!

चंद्रगिरि, डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) में आयोजित आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का समाधि दिवस ! ग्रीष्मकालीन ज्यों ही आता है गुरूजी की पुण्य तिथि आ जाती है पिछली बार भी यह अवसर चंद्रगिरि को मिला था इस बार भी मिला है ! तीर्थंकरों के कल्याणक तोह हम मनाते ही है लेकिन पुण्य तिथि मनाने का अलग ही महत्व है ! गुरु उन्नत होते भी उन्नत बनाने में लगाए रखते है! सिद्धि में गुरुओं की बात कई विशेषणों में कई है ! परहित संपादन विशेषण बहुत महत्वपूर्ण दिया है ! प्रायः व्यवस्ताओं के सही नहीं होने के कारण गाड़ियाँ रुक ज

अहिंसा की पूजा करो

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में रविवारीय प्रवचन में आचर्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की भावों के ऊपर धर्म है भावों के उपन अधर्म है भाव से ही सब कुछ होता है ! आचर्य श्री विद्यासागर जी ने राघव मच्छ के कान में तदुले मच्छ रहता है उसका द्रिस्तान्थ दिया और कहा की आचार्य ज्ञानसागर जी ने बनारस में गम्हा बेचकर बड़े – बड़े शास्त्रों की रचना की हैं ! जीवन को उन्नत बनाने के लिए शिक्षा की आवशयकता है ! आज लड़कियां सेरविसे करने जाती है और घर पर दिन में ताला लगा रहता है और रात्रि में अन्दर से ताला लगे रहता

शिकायत जरुरी है !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ तीर्थ पर विराजमान दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की रामचंद्र जी को भी कर्म का उदय आता है जब लक्ष्मण जी को जब मूर्च्छा आई थी यह दृष्ठांत आचार्य श्री ने बताया ! आचार्य श्री ने कहा की लोग हमसे शिकायत करते हैं की हमारे यहाँ नहीं आतें हैं (ललितपुर वालों की ओर इशारा करते हुए) आचार्य श्री ने कहा की हमने वाचना की है ग्रीष्मकालीन, शीतकालीन, महावीर जयंती, अक्षय तृतीया आदि पर्व मनाएं हैं फिर भी लोग कह रहें है की आते नहीं हैं ! पुण्य को गाढ़ा करें अभी पतला है ऐसी र

भाव के द्वारा निवेश होता है

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ तीर्थ चेत्र पर विराजमान दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की कोई भी कार्य हाँथ में लो उसे पूर्ण करो ! उस दाता की जब तक प्रसंशा नहीं करो जब तक वह भोजन पच नहीं जाए ! नारी की जब तक प्रशंसा नहीं करो जब तक वह बूढी नहीं हो जाए ! राजा की जब तक प्रसंशा नहीं करो जब तक वह यशस्वी नहीं हो जाए ! साधू की जब तक प्रशंसा नहीं करो जब तक वह पार नहीं हो जाए अर्थात संलेखना नहीं हो जायें! जहाज में रत्ना भरकर लायें और किनारे पर डूब जायें ऐसे ही व्यक्ति के साथ होता है ! एक बार
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