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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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अधूरा पूरा - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४४

अधूरा पूरा, सत्य हो सकता है, बहुत नहीं।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपन

हायकू कृति - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४३

हायकू कृति, तिपाई सी अर्थ को, ऊँचा उठाती।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अ

मान शत्रु है - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४२

मान शत्रु है, कछुवाबनूँ बचूँ, खरगोश से।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपन

सरोवर का - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४१‍

सरोवर का, अन्तरंग छुपा है ? तरंग वश।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना ज

फूल खिला पै - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ४०

फूल खिला पै, गंध न आ रही सो, काग़ज़ का है|   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम

प्रश्नों से परे - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३९

प्रश्नों से परे, अनुत्तर है उन्हें, मेरा नमन।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से

सीना तो तानो - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३८

सीना तो तानो, पसीना तो बहा दो, सही दिशा में।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से ह

पर पीड़ा से - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३७

पर पीड़ा से, अपनी करुणा सो, सक्रिय होती।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अप

धर्म का फल - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३६

धर्म का फल, बाद में न अभी है, पाप का क्षय।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम

योग प्रयोग - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हाइकू ३५

योग प्रयोग, साधन है साध्य तो, सदुपयोग।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना

योग साधन - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३४

योग साधन, है उपयोग शुद्धि, साध्य सिद्ध हो।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम

प्रदर्शन तो - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३३

प्रदर्शन तो, उथला है दर्शन, गहराता है।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना

संघर्ष में भी - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३२

संघर्ष में भी, चंदन सम सदा, सुगन्धि बाटूँ।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम

गुरु मार्ग में - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३१‍

गुरु मार्ग में, पीछे की वायु सम, हमें चलाते।   हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से ह

डूबना ध्यान - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३०

डूबना ध्यान, तैरना स्वाध्याय है, अब तो डूबो। भावार्थ-ध्यान में डूबना होता है और स्वाध्याय तैरने के समान है। स्वाध्याय में प्रवृत्ति है और ध्यान में निर्वृत्ति । रत्नाकर में स्थित रत्नों को गोताखोर ही प्राप्त कर सकते हैं इसलिए अपने आत्मा में डूबो और अनंत चतुष्टय रूप रत्नों की उपलब्धि करो । आचार्य महाराज ने लिखा है- डूबो मत, लगाओ डुबकी।  - आर्यिका अकंपमति जी    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्

कछुवे सम - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २९

कछुवे सम, इन्द्रिय संयम से, आत्म रक्षा हो।   भावार्थ - जिस प्रकार कछुवा संकट आने पर अपने अंगोपांग को संकुचित कर अपना जीवन सुरक्षित करता है । उसी प्रकार से देशव्रती और महाव्रती इन्द्रिय विषयों का त्याग करके अपनी आत्मा की रक्षा कर लेते हैं । - आर्यिका अकंपमति जी    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्व

वर्षा के बाद - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २८

वर्षा के बाद, कड़ी मिट्टी सी माँ हो, दोषी पुत्र पे।   भावार्थ - जैसे खेत की सूखी मिट्टी वर्षा होने के बाद पुनः मृदु होकर एक समान हो जाती है । उसीप्रकार माँ पुत्र को अनुशासित करने के लिए दण्डित भी करती है परन्तु कुछ देर पश्चात् पुनः मातृत्व से भरकर मृदु हो जाती है।  - आर्यिका अकंपमति जी    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।

तैराक बना - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २७

तैराक बना, बनूँ गोताखोर सो, अपूर्व दिखे।   भावार्थ-समुद्र के पानी की सतह पर तैरते रहने से रत्नों की प्राप्ति नहीं होती। नीचे गहरे पानी में गोता लगाने से ही वे रत्न मिल सकेंगे जो आज तक तैरने मात्र से नहीं मिल पाये । उसीप्रकार पर पदार्थों का ध्यान करने से कभी भी आत्म तत्त्व की प्राप्ति नहीं हो सकेगी। उस अपूर्व (जो आज तक प्राप्त नहीं हुआ) रत्नत्रय रूप आत्म तत्त्व की प्राप्ति करना है तो आत्मा के ज्ञान दर्शन आदि अनंत गुणों के समुद्र में गोता लगाना ही पड़ेगा ।  - आर्यिका अकंपम

ज्ञेय चिपके - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २६

ज्ञेय चिपके, ज्ञान चिपकाता सो, स्मृति हो आती।   भावार्थ - आत्मा ज्ञान गुण के द्वारा जानता है । आत्म द्रव्य ज्ञायक पिण्ड है। ज्ञान में अनन्त ज्ञेय आते हैं । ज्ञान, ज्ञान रूप परिणमन करता है अर्थात् ज्ञेय ज्ञान में आता तो है पर वे स्वयं चिपकते नहीं बल्कि आत्मा का जाननहारा ज्ञान गुण उन्हें चिपकाता है । उन (जानने योग्य) ज्ञेय पदार्थों को जानते हुए यदि स्मृति में लाकर हम उनमें राग द्वेष करते हैं तो वे अनन्तकालीन संसार की यात्रा हमें करा देते हैं क्योंकि ज्ञान गुण जबरदस्ती आत्मा को

ध्वजा वायु से - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २५

ध्वजा वायु से, लहराता पै वायु, आगे न आती।   भावार्थ - जिस प्रकार ध्वजा के लहराने में मुख्य सहायक निमित्त वायु का वेग ही है लेकिन वायु कभी भी आगे आकर अपने अस्तित्व का प्रदर्शन नहीं करती। इसी प्रकार सच्चे गुरुदेव, माता, पिता और हितैषी मित्रगण क्रमशः अपने शिष्य को, अपने पुत्र को और अपने मित्र को उसके विकास में बिना किसी प्रदर्शन का कर्त्तत्व भाव से सहयोग करते हैं ।  - आर्यिका अकंपमति जी    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति मे

मद का तेल - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २४

मद का तेल, जल चुका सो बुझा, विस्मय दीप।   भावार्थ- जब कोई व्यक्ति नई अनोखी वस्तु या स्थिति को पहली बार देखता है तो उसे मोह के सद्भाव में आश्चर्य अथवा विस्मय होता है लेकिन जो केवलज्ञानी, सर्वज्ञ होते हैं उनके मोहनीय कर्म का पूर्ण अभाव हो जाने से उनके निर्मल ज्ञान में तो सम्पूर्ण चराचर पदार्थ और उनकी त्रैकालिक सभी पर्याएँ स्पष्ट झलकती हैं । अतः उन्हें विस्मय नहीं होता । जिसप्रकार दीपक का तेल समाप्त होने पर दीपक बुझ जाता है उसीप्रकार मद-मोह रूपी तेल के समाप्त होने पर मोहनीय कर्म

सामायिक में - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २३

सामायिक में, कुछ न करने की, स्थिति होती है।   भावार्थ - सामायिक के काल में कुछ करना नहीं होता बल्कि मन, वचन, काय की एकाग्रता से शांत बैठना होता है। - आर्यिका अकंपमति जी    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।   आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते

इष्ट-सिद्धि में - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २२

इष्ट-सिद्धि में, अनिष्ट से बचना, दुष्टता नहीं।   भावार्थ - किसी भी कार्य की सिद्धि में बाधक कारणों का अभाव एवं साधक कारणों का सद्भाव आवश्यक है इसलिए अपने इष्ट कार्य की सिद्धि में अनिष्ट कार्यों से बचना अनुचित नहीं है। गाँधीजी के तीन बंदर अनिष्ट से बचने का ही संकेत कर रहे हैं ।  - आर्यिका अकंपमति जी    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट कर
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