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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. आज छोटे बाबा का हुआ पिच्छी परिवर्तन पपौरा जी मे प्रतिभामंडल की दीदी समूह को मिला गुरु की पिच्छी परविर्तन करने का सौभाग्य
  2. ओ मेरे गुरुवर परम, ओ मेरी अंतिम शरण तेरा ही वस ध्यान-2 तू ही मंदिर, तू ही पूजा, तू ही है भगवान ओ....................... तेरी शरणा आये जो भी, होगा वो ही जग की शान रख जिसपे हाथ अपना, वो ही बन जाये महान सबसे न्यारी कृपा तेरी, सबसे प्यारा तेरा नाम तेरा ही..................... माँ की ममता बन कभी, करुणा बहाते हो गुरु बदरी सुख की बन कभी, मुझ पे ही छा जाते गुरु उपकार तेरे लाख गुरुवर, ऑसू ये करते प्रणाम, तेरा ही................... मन में है बस एक आशा, तू ही मेरा हर करम आऊँ जब जग में दुवारा, पाऊँ तेरी ही शरण तु ही मेरी प्रात गुरुवर, तुम ही जीवन की हर शाम तेरा ही.....
  3. ऐसे परम दिगम्बर मुनिवर देखे हृदय हर्षित होता है, आनन्द आल्हादित होता है, सम्यग्दर्शन होता है, वास जिनका वन-उपवन में, गिरी शिखर के नदी तटे, वास जिनका चित्त गुफा में, आतम आनन्द में रमें, ऐसे परम दिगम्बर.......... कंचन कामिनि के त्यागी, महातपस्वी ज्ञानी ध्यानी, काय के माया के त्यागी, तीन रतन गुण भंडारी, ऐसे परम................ परम पावन मुनिवरों के, पावन चरणो में नमू, शांत मुर्ति सौम्य मुद्रा, आनन्द आतम में रमें, ऐसे परम.. चाह नहीं है, राज की, चाह नहीं है रमणी की, चाह हृदय में एक यही है, शिव रमणी को परने की, ऐसे परम................. भेद ज्ञान की ज्योति जलाकर, शुद्धातम में रमते है, क्षण क्षण में अन्र्तमुख होंकर, सिद्धो से बातें करते है, ऐसे परम............
  4. कुंद-कुंद से दिगम्बर ज्ञान समुंदर हो विद्यासागर वसुंधरा पर मेरे गुरुवर हो कुंदकुंद से..................... भू नभ से भी विशाल होकर सबको समा लिया-2 सदाचरण से ऊँचे पहुँचे, हिमगिरी हरा दिया-2 जैनधर्म की पावन गंगा ऽऽ-2 जग पावन कर दो विद्यासागर..................... अंधकार मय इस धरती पर, रवि सम उदित हुये-2 पाप तिमिर जब हटा गुरु तो, हम सब मुदित हुये-2 तुम तेजस्वी महाकवि हो ऽऽ-2 हमको कवि कर दो विद्यासागर................... मन का संयम वचनों का यम तन का संयम दो-2 रसना संयम, दृष्टि संयम, इन्द्रिय संयम दो-2 संयम के भंडार हो गुरुवर ऽऽऽ-2 तुम जैसा कर दो विद्यासागर..................
  5. कुण्डलपुर में छाया था, बड़े बाबा का बोल छोटे बाबा के आने से, बन गया ये अनमोल भक्तों की भक्ति से, गुंजे तीनों लोक बाबा की भक्ति से, डोल रहे सब लोग ला ला............... बड़े बाबा के चरणों में हम सब गायें आओ चलो भक्ति से, झूम के गायें ये वादा न छूटे, ये बंधन न छूटे । शाम ढलने वाली है, बस भक्ति का शोर तरमपरम धारा जो बहती है, बहती रहती है। शांति, वीर, शिव, ज्ञान से, विद्या बनती है। कुण्डलपुर................. गुरुवर का पुरुवर से रिश्ता न्यारा भक्ति करके थके कभी ना कण्ठ हमारा ये भक्तों की भक्ति, भक्ति की ये शक्ति भक्ति को पाकर के, हर कोई तर जाये । तरम वय, स्वर को उठा ले तू गूंज उठे हर तार गुरु पुरु के भक्तों ने, बोली जय-जयकार कुण्डलपुर.......................
  6. मीठे रस से भर्यो रे, गुरुवाणी लागे जिनवाणी लागे मन्ने प्यारो-प्यारो, गंगा जी रो पाणी लागे । ज्ञान के सागर विद्यासागर, की महिमा को गाऊँ पिता मलप्पा मात श्री मति, के ललना को ध्याऊँ गुरुदेव की वाणी हो सुहानी लागे, हाँ सुहानी लागे मन्ने. ............. मधुर मुरलिया जैसी लागे, गुरुदेव की वाणी प्रवचन ऐसे लगे कि जैसे शक्कर संग निबोरी गुरु की वाणी तो वीणा सी, सुहानी लागे हाँ सुहानी लगे। मन्ने प्यारो.............
  7. सारी दुनिया भुला दी तुम्हारे लिए-2 गुरु तुम ना भुलाना हमारे लिए-2 प्राणों से प्यारे हमको गुरु आप हो-2 प्राण सब कुछ नहीं है हमारे लिए सारी दुनिया...................... कष्ट दुख और गम सारे सह लेगें हम, कार्य जो भी बता दोगे कर लेगे हम होठ संतोष धर के भी सी लेगे हम, जैसे तैसे हो! कैसे भी जो लेंगे हमऽऽ किन्तु धड़कन ने धड़कन से बोला यही-2 हम न धड़केंगे प्रभु (गुरु) बिन तुम्हारे लिए सारी................. रात को रात ना दिन को दिन ना गिना, मन भी लगता नहीं है प्रभु (गुरु) तुम बिना दूर होकर मिला चैन क्षण भर नहीं, पास आये तो देखा भी पल भर नहीं फिर भी अन्दर से आवाज आयी यहीं-2, गुरु भूले नहीं हैं हमारे लिए सारी................ हम तुम्हारे बिना दूर रह न सकें, दूर जाने को मजबूर क्यों फिर करो पास आये तुम्हारे यही आश ले, दूर तुम फासले शीघ्र अपने करो दूर जाने की कहना कभी न गुरुन्द और नजदीक कर लो हमारे लिए। सारी... कोई सुव्रत की इच्छा रही शेष ना, कोई अरमान ना कोई सपना नहीं पाया सबकुछ मगर हाथ खाली रहे, कोई भी ना मिला तुमसा अपना नहीं आप अपने हुए पूर्ण सपने हुए, और क्या चाहिए अब हमारे लिए।
  8. अंखियों के झरोखे से, मैंने देखा जो सामने गुरु दूर नजर आये, बड़ी दूर नजर आये। बंद करके झरोखों को, जरा बैठी जो ध्यान में मन में गुरु मुस्काये ऽऽऽ, मन में वही मुस्काये अंखियों के.............. गुरु भक्ति में गुरु ध्यान में, मन खोने लगा है-2 संसार के दुख जाल में, हँस रोने लगा है। जिनवर के भरोसे पर, सब बैठी हूँ भूल के-2 यूँ ही उम्र गुजर जाये, लेके नाम गुजर जाये अंखियों के.............. मैं जब से विद्यागुरु के, रंगों में रंगी हूँ-2 सोई हुई आशा मेरी, कहती है जगी हूँ। मेरी मुक्ति का ये सपना, कहीं कोई न तोड़ दे-2 मन सोच के घबराये ऽऽ, यही सोच के घबराये अंखियों के................. माना मेरी पर्याय में मुक्ति तो नहीं है-2 पर हार के चुप बैठना युक्ति भी नहीं है। मेरी मुक्ति का ये लिखा जाऊँगी मैं रोप के-2 संभव है किसी भव में, मुक्ति भी मिल जाए। अंखियों के.................. माना कि मेरी पर्याय में मुक्ति तो नहीं है। पर हार के चुप बैहूँ कोई मुक्ति भी नहीं है। मुक्ति का ये सिक्का, जाऊँगी मैं रोप के संभव है किसी भव में मैं मुक्ति को भी पा जाऊँ अंखियों के...............
  9. अस्त हो रहे ज्ञान सूर्य ने सोचा था इक दिन शाम । मेरे ढल जाने के बाद, कौन करेगा मेरा काम अंधकार मय मोह जगत में, ज्ञान प्रकाश भरेगा कौन । मेरे जीवन की बुझती ज्योति को और जलाये कौन सब अयोग्य कातर दिखते है, कोई न दिखता है निष्काम मेरे ढ़ल जाने के बाद.................. धर्म महा है, पाथ कठिन है, किसको इसका रहस्य कहे। निष्ठा का जो दीप जलाये, ज्ञान चरित्र में लीन रहे तभी एक विद्याधर आया, दूर कहीं से गुरु के धाम । मेरे ढ़ल जाने के बाद..................... फिर गुरु ने शिक्षा-दीक्षा दे, इच्छा जल को जला दिया स्वयं शिष्य के चरणों में आ बैठ अहं को गला दिया खूब जले विद्या का दीपक, हुआ ज्ञान की आठो याम मेरे ढ़ल जाने के बाद.................... तुम प्रकाश के पूंज बने और तुम्ही बनो सुरज श्रीमान तुम्ही चलाओ सबको पथ पे और चलो खुद ही गमन मैं निश्चित हुआ विद्याधर, जीवन सफल बना वरदान मेरे ढ़ल जाने के बाद..................... गुरुकुल बना कुलगुरु बनना, वचन नहीं प्रवचन देना । छोटा-बड़ा भेद को तजके, तुम सबको अपना लेना यूँ कहकर फिर विदा हो गया, ज्ञान सूर्य वह गुरु महान मेरे ढ़ल जाने के बाद................
  10. गुरु ने जहाँ-जहाँ भी ज्योति जलाई है। काले-काले बादलों पर रोशनी सी छाई है। अखियों को खोल जरा ज्ञान के उजाले में रख विश्वास पूरा जग रखवाले में । कितनी ही बार मैंने खुद को समझाई है। गुरु के सिवा हर प्रीत पराई है। मुक्तियों के बंधनों को बाँध पक्की डोर से आंधियाँ चलेंगी इन सब पर बड़ी जोर से क्योंकि इस रास्ते पर बड़ी कठिनाई है। गुरु के..................... एक बार सोच ले तू जीवन के अंधियारें में गुरु ही सहारा है इस जीवन के चौराहे में। कितनी ही बार मैंने है ठोकरे तो खाई है। गुरु के सिवा................. तन मन में वैराग्य जिनके समाया है। शाश्वत सुख पाने को छोड़ी जग माया है। निर्मोही गुरुवर पे जनता रिसाई है। गुरु के सिवा...................
  11. समता को धारने वाले, भव पार कराने वाले आतम को ध्याने वाले, भक्तों को तिराने वाले इन गुरु को शत्-शत् वंदन है। चरणों में अर्चन है। तुम ही मेरे भगवान हो, मैं तुम पे वारी जाऊँ तेरे चरणों में आकर के, शत् शत् शीश झुकाऊँ तेरे आशीष चरणों में, मस्तक को झुका देगे हम तेरी महिमा गा करके, दुनिया को बता देगे हम इन गुरु............... ममता के मंदिर की है, तू सबसे प्यारी मूरत भगवान नजर आता है, जब देखें तेरी सूरत । जब-जब हम तुमको ध्यायें, तेरी ही शरणा पायें तेरा नाम जपे जो गुरुवर, मन वांछित फल पा जाये इन गुरु को...............
  12. सत्गुरु मैं तेरी पतंग हवा विच उड़ती जाऊंगी तुमने न पकड़ी डोर मेरी तो मैं गिर जाऊँगी। बड़ी नाजुक है ये डोर गुरु रखना थाम के हम तो हैं बस दीवाने गुरु तेरे नाम के तेरा हाथ रहे जो सर पे भव पार हो जाऊंगी तुमने न...................... ये मोह माया की आंधी, कहीं मुझको न ले जाए। तेरी दया मिले तो, मेरा जीवन संवर जाए। मैं छोड़ के झूठे जग को, तेरी ही हो जाऊंगी तुमने न...................... ये राह बड़ी कठिन है, और ऊँचा है आकाश बस है यही तमन्ना, आ जाऊं तेरे पास तेरी कृपा से गुरुवर, प्रभु से मिल जाऊंगी तुमने न.......................
  13. ये सागर से गहरे हिमालय से ऊँचे इन्हें कौन बाँधे इन्हें कौन रोके चंचल हवाओं के हैं ये झौंके इन्हें कौन बांधे इन्हें कौन रोके ये सागर.................. ये मलप्पा जी के राज दुलारे मातु श्री जी की आँखों के तारे-2 जिसे माँ की ममता नहीं रोक पाये। इन्हें........................ मुस्कान से जिनकी खिल जाएं कलियां चरण जिनके बतलाएं जन्नत की गलियां-2 ये बहती हुई नदी के किनारे इन्हें...................... ये कुन्द-कुन्द गुरु के हैं कुंदन लगते हैं जैसे हों त्रिशला के नंदन-2 ये सबके मन मंदिर में समाये इन्हें..................... ये ईश्वर या उनकी जादूगरी है। महावीर सी इनमें करुणा भरी है-2 ये राग-द्वेष को छोड़ चुके हैं। इन्हें....................
  14. इस योग्य हम कहाँ हैं, गुरुवर तुम्हें रिझायें फिर भी मना रहे हैं, शायद तू मान जाये जबसे जनम लिया है विषयों ने हमको घेरा छल और कपट ने डाला, इस भोले मन पे डेरा-2 सद्बुद्धि को अहम् ने हरदम रखा दबाये फिर भी मना................ निश्चय ही हम पतित है, लोभी हैं स्वार्थी है। तेरा ध्यान जब लगाये, माया पुकारती है-2 सुख भोगने की इच्छा, कभी तृप्त हो न पाये फिर भी मना..................... जग में जहां भी देखा, बस एक ही चलन है। एक दूसरे के सुख में, मुझको बड़ी जलन है-2 कर्मों का लेखा जोखा, कोई समझ न पाये फिर भी मना.................... जब कुछ न कर सके तो, तेरी शरण में आये अपराध मानते है, झेलेगें सब सजाएँ-2 अब ज्ञान हमको देदो, कुछ और अब न चाहें फिर भी मना..................
  15. बहती ज्ञान की धार, गुरुवर तुम्हारे द्वार विद्यासागर महाराज, तुम तो मेरे गुरुवर हो तुमही तो मेरे गुरुवर हो मन में ज्ञान भरा वचनों में ज्ञान भरा। जीवन में ज्ञान भरा तुम तो मेरे गुरुवर हो तुमही तो मेरे गुरुवर हो बहती ज्ञान.. संसार तो है नश्वर, संसार में क्या रहना जो साथ में न जाये, क्या साथ उसके रहना दो ऐसी ज्योति हमको, कर दो मेरा उद्धार बहती ज्ञान................ ये दुनिया काम न आए, तेरे ज्ञान में सच्चाई इसलिए छोड़ के दुनिया, तेरी ओर खिंची चली आई ऐ गुरुवर मेरे गुरुवर, कर दो मेरा उद्धार । बहती ज्ञान.................. भटके जिया भव-भव में नहीं चैन पल भर पाये नरकों में गिरकर देखो, ये कितना कष्ट उठाये मिले तुमसे ज्ञान हमको, कर दो मेरा उद्धार बहती ज्ञान की ..................
  16. आत्म शक्ति से ओत प्रोत, विद्या और ज्ञान से भर दो गुरुवर ऐसा वर दो-2 रहे मनोबल अचल मेरु सा तनिक नहीं घबराऊँ प्रबल आधियाँ रोक सके ना, आगे बढ़ता जाऊँ उड़ जाऊँ निर्बाध लक्ष्य तक, गुरुवर ऐसे पर दो गुरुवर ऐसा................ है अज्ञान निशा अंधियारी, तुम दिनकर वन आओ ज्ञान और भक्ति की शिक्षा बालक को समझाओ विनय भरा गुरु ज्ञान मुझे दो, मन ज्योतिर्मय कर दो गुरुवर ऐसा................. सुमति सुजस सुख सम्पत्ति दाता हे गुरुवर अपना लो संत समागम चाहूँ मैं मुझे अपने पास बिठा लो जैसा भी हूँ तेरा ही हूँ, हाथ दया का धर दो। गुरुवर ऐसा.................. मैं अबोध शिशु हूँ गुरु तेरा, दोष ध्यान मत देना सब भक्तों के साथ मुझे भी शरण चरण की देना हे गुरुवर सुख ज्ञान अभय और, मन भक्ति से भर दो गुरुवर ऐसा....................... आत्म शक्ति से.........................
  17. श्रुत संवर्धन ज्ञान संस्कार शिविरों में बह रही है संस्कार और ज्ञान की गंगा स्थानीय स्तर पर 12 को तथा सामूहिक समापन 13 को करगुवां जी झाँसी में होगा नई बस्ती, अटा मंदिर और जखौरा, तालबेहट में चल रहे हैं ज्ञान संस्कार शिविर ललितपुर। परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के संयम स्वर्ण महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में परम पूज्य सराकोद्धारक आचार्य श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से श्रुत संवर्धन संस्थान, मेरठ के तत्वावधान में श्रुत संवर्धन ज्ञान संस्कार शिक्षण शिविर टीकमगढ़- झांसी-ललितपुर के विभिन्न अंचलों में 4 से 13 जून 2018 तक बड़े ही उत्साह से आयोजित हो रहे हैं। केंद्रीय शिविर समिति के संयोजक मनीष शास्त्री ने बताया कि उक्त शिविरों में ज्ञान दर्पण भाग 1, 2 छहडाला, भक्तामर स्त्रोत, तत्वार्थ सूत्र, द्रव्य संग्रह आदि की कक्षाएं संचालित हो रही हैं साथ में ही रात्रि में अनेक प्रेरणादायक सांस्कृतिक आयोजन और अनेक धार्मिक प्रतियोगिताएं हो रही हैं । जनपद के ललितपुर नगर में नई बस्ती स्थित आदिनाथ जैन मंदिर में श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर जयपुर से आये विद्वान आशीष शास्त्री मबई और शुभम शास्त्री के निर्देशन में शिविर अनेक गतिविधियों के साथ चल रहा है वहीं अटा जैन मंदिर में पंडित ज्ञानचंद्र जैन शास्त्री, राहुल शास्त्री और राजेन्द्र शास्त्री शिविर में अध्यापन करा रहे हैं। स्थानीय संयोजक श्रीमती वीणा जैन, सचिन जैन शास्त्री, अनूप जैन सहयोग प्रदान कर रहे हैं। दोनों जैन मंदिरों के प्रबंधकगण आयोजन में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं।दोनों स्थानों पर पूजन प्रशिक्षण में बच्चे उत्साह से सम्मलित हो रहे हैं। जैन मंदिर जखौरा जैसे छोटे स्थान पर शिविरार्थियों का उत्साह देखते बनता है। यहाँ सभी आयु वर्ग के लोग रुचिपूर्वक शिविर का लाभ उठा रहे हैं।प्रतिदिन रात्रि में आयोजित विविध धार्मिक प्रतियोगिताओं में लोग बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। यहाँ पर रहित शास्त्री शाहगढ़ और भुवनेश शास्त्री बूंदी प्रशिक्षण दे रहे हैं। तालबेहट में जैन मंदिर में पीयूष शास्त्री टीकमगढ़ और अभिषेक शास्त्री बालाघाट के निर्देशन में शिविर में बड़ी संख्या में शिविर का लाभ उठा रहे हैं। पूज्य आर्यिका संभवमती माता जी का मङ्गल सान्निध्य भी मिल रहा है। अध्यापन कराने के लिए श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर जयपुर, श्रमण ज्ञान भारती मथुरा, स्याद्वाद महाविद्यालय बनारस आदि के वरिष्ठ विद्वान, नवोदित विद्वान एवं ब्रह्मचारी भैया, ब्रह्मचारिणी दीदी एवं वरिष्ठ विद्वान अध्यापन कार्य संपादित कर रहे हैं। केंद्रीय शिविर समिति के सह निर्देशक डॉ सुनील संचय ने बताया कि परम पूज्य आचार्य श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज की प्रेरणा से सन 2000 से 12 राज्यों के 1000 स्थानों पर ये शिविर आयोजित हो चुके हैं। श्रुत संवर्धन ज्ञान संस्कार शिक्षण शिविर एक बार फिर बुंदेलखंड के विभिन्न अंचलों में आयोजित हो रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति से लुप्त होते नैतिक संस्कार, विलुप्त होते आदर्शों को पुनः जीवित करने के लिए इन शिक्षण शिविरों का आयोजन होता आ रहा है । शिविर का स्थानीय स्तर पर समापन 12 जून को किया जाएगा तथा 13 जून को एक साथ सभी शिविरों का सामूहिक समापन समारोह आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र करगुवां जी झाँसी में आयोजित होगा। जिसमें सभी प्रशिक्षक विद्वानों का सम्मान, शिविर के प्रतिभाशाली शिविरार्थियों और स्थानीय संयोजकों को सम्मानित किया जाएगा। इस दौरान अनेक गणमान्य अतिथियों की गरिमामय उपस्थिति रहेगी। शिविर समिति के संयोजक चेतन शास्त्री बंडा और सुनील शास्त्री नागौद ने बताया कि इन शिविरों के माध्यम से पाश्चात्य की ओर बड़ रही युवा पीढ़ी को नैतिक शिक्षा देकर उन्हें संस्कारित करना उद्देश्य है। मानव जीवन में संस्करों का बडा महत्व है. संस्कार संपन्न संतान ही गृहस्थाश्रम की सफ़लता और समृध्दि का रहस्य है. प्रत्येक गृहस्थ अर्थात माता-पिता का परम कर्तव्य बनता है कि वे अपने बालकों को नैतिक बनायें और कुसंस्कारों से बचाकर बचपन से ही उनमें अच्छे आदर्श तथा संस्कारों का ही बीजारोपण करें शिक्षण शिविर संचालन हेतु एक केंद्रीय समिति बनाई गई जिसमें परम संरक्षक श्री प्रदीप जैन आदित्य पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सरकार ,श्री अनिल जैन विधायक निवाड़ी, कुलपति डॉक्टर शीतल चंद्र जयपुर, निर्देशक डॉक्टर श्रेयांश कुमारजैन बड़ौत, ब्र. अनीता दीदी , ब्र. मनीष भैया, प्रवीण जैन झांसी ,कपिल मलैया सागर ,सह निर्देशक डॉक्टर निर्मल शास्त्री हटा , डॉक्टर सुनील संचय ललितपुर, परामर्श प्रमुख श्री अनिल जैन दिल्ली ,राकेश जैन दिल्ली ,अजित शास्त्री अलवर, निरीक्षक समिति पंडित रमेश जैन शास्त्री जोबनेर, राजेंद्र जैन महावीर सनावद, रिषभ जैन झांसी, राजीव जैन झांसी, अक्षय आलिया ललितपुर, रवि जैन बबीना, मुख्य संयोजक ब्र. जय कुमार जी निशान्त भैया टीकमगढ़, संयोजक मनीष शास्त्री शाहगढ़ ,चेतन जैन बंडा, सुनील प्रसन्न शास्त्री नागौद,क्षेत्रीय संयोजक राजेश जैन शास्त्री सेसई बनाये गए हैं। सभी शिविर स्थानों पर स्थानीय संयोजक बनाये गए हैं जो स्थानीय स्तर पर शिविर की गतिविधियों को देख रहे हैं।आयोजक श्रुत संवर्धन संस्थान मेरठ एवं संस्कृति संरक्षण संस्थान दिल्ली है। नई बस्ती में शिविर के दौरान आशीष शास्त्री और शुभम शास्त्री ने कहा कि परिवाररुपी पाठशाला मे बच्चा अच्छे और बुरे का अन्तर समझाने का प्रयास करता है. जब इस पाठशाला के अध्यापक अर्थात माता-पिता, दादा-दादी संस्कारी होंगे, तभी बच्चों के लिए आदर्श उपस्थित कर सकते है. आजकल माता-पिता दोनों ही व्यस्तता के कारण बच्चों मे धैर्यपूरक सुसंस्कारों के सिंचन जैसा महत्वपूर्ण कार्य उपेक्षित हो रहा है. माता- पिता स्वय़ं को योग्य एवं सुसंस्कृत बनावें। इन शिविरों के माध्यम से जहॉ बच्चे संस्कारित होंगे वहीं उनके अभिभावक भी संस्कारित होंगे। आर्यिका अनुनयमति जी ,श्वेत मति जी
  18. ओ पूनम के चंदा गुरुवर तुमको अपना मानूं-2 मेरे मन के आँगन में इक बार खिलो तो जानू। ओ पूनम................. हृदय जलाया ज्ञान का दीपक, दूर किया अँधियारा-2 रत्नत्रय का बाना पहना, पंच महाव्रत धारा-2 अँधियारे में चमक चाँदनी तुमको अपना मानू मेरे मन................... वन पर्वत और कंदराओं में, ध्यान मगन रहते हो-2 भीड़ लगी रहती भक्तों से, आप घिरे रहते हो-2 नयन दर्श बिन हुये बाबरे, प्रति की रीत जानू। सबको छोड़ अकेले में, इक बार मिलो तो जानू। ओ पूनम.................. कई बार भेजा है न्यौता, मेरे इन होठों ने-2 तुम कंचन की एक कसौटी, मैं तो हूँ खोटो में सदियों से बीमार विषय का रोग नहीं पहचानू । तुम ही हो औषधि मेरी, इक बारे मिलो तो जानू। ओ पूनम....................
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव पर भगवान शान्ति नाथ जी के जन्म तप औऱ मोक्ष कल्याणक के अवसर पर तीन माड़नो द्वारा शान्ति विधान आर्यिका तपो मति जी माता जी के ससंघ सानिध्य में सहजपुर नगरी में बड़ी धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ |
  20. ओ मेरे गुरुवर, हम सबके प्रभुवर अँगना में फिर आजा रे-2 तुमने हमको हजारों ख्वाब दिये आशाओं के दियों को हाथ लिये हमने सोचा यही कब ये रंग लायेगी ये जमीं आसमां फिर से खिल जायेगी किसके दम पे चलेगा मेरा आँगना ओ मेरे................. मेरे जीवन में तुमने खुशियाँ भरी तुमको देखा तो आँखो को राहत मिली तुम जो दूर गये, आँखो आँसू बहे तुम जो आये यहाँ फिर से महका समां गुरु की चरणों की छांव में रहना सदा ओ मेरे................. गीली मिट्टी को तुमने जो कप दिया अपने नाम से हमको भी जोड़ लिया ये जो बिटिया तेरी प्रण लेगी यही जो कहा तूने ही हम करेंगें वही ख्वाब पूरा करेंगे इक दिन यही । ओ मेरे...................
  21. मन वीणा के तार तुम, मेरी हो आवाज तुम मेरा मन गुरुवर एक पंछी, पंछी के परवाज तुम तुम ज्ञान के सागर हो, तेरी बूंद के प्यासे हम। एक बूंद जो मिल जाए, तो प्यास बुझानें हम त्याग तपस्या की तुम मूरत, तुम स्वामी तेरे दास हम मेरा मन............. जब से आया तुम्हारी शरण, मेरा जीवन हो गया पावन तुम बिना कौन है गुरुवर जो, साधे मेरे सुरो सरगम भक्ति भजन की ताज सिर बांधी, हो सुर के सरताज तुम मेरा मन................. मेरी विनती सुन लो गुरुवर, अपने चरण कमल में जगह दो भटका हूँ मैं अंधियारे में, ज्ञान की किरण दिखा दो आतम को पहचानूं मैं, ऐसी नजर दो आज तुम मेरा मन गुरुवर.............
  22. हीरे को परख लिया आचार्य ज्ञानसागर-2 फिर ऐसा तरास दिया, वन गए विद्यासागर हीरे को................... छोटा मुँह बात बड़ी, महिमा गाऊँ कैसे-2 सूरज की ज्योति हूँ, दीपक दिखाऊँ कैसे शब्दों से भर देते ये गागर में सागर हीरे को................... जब ज्ञान के सागर में सरिता बहकर आई जिनकी महिमा का पार नहीं पा सकता कोई सरिता बहते-बहते, वन गया महासागर हीरे को................ विद्यासागर जी के शिष्यों की ये परिभाषा जंगल होता मंगल, होता जहां चौमासा मन पुलक-पुलक उठता, जिनके प्रवचन सुनकर हीरे को................
  23. पलकें ही पलकें बिछाऐगें जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएँगे-2 हम तो हैं गुरुवर के जन्मों से दीवाने रे-2 मीठे-2 भजन सुनाऐगें-2 जिस दिन................ घर का कोना-कोना मैंने फूलों से सजाया तोरण द्वार सजाए घी का दीपक जलाया-2 भक्ति के रस में नहाएगें-2 जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएँगे पलकें................ पलकें. अब तो एक ही लगन लगी है प्रेम सुधा बरसा दो जनम-जनम की मैली चादर अपने रंग रंगा दो-2 जीवन को सफल बनाऐंगे-2 जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएँगे पलकें................
  24. बिन तेरे गुरुवर मेरा हर गीत अधूरा लगता है, बिन तेरे जीवन का हर संगीत अधूरा लगता है। सम्यक पथ पर चलने का ऽऽऽ-2 संकल्प अधूरा लगता है। बिन तेरे..................... हम अबोध शिशु थे, गुरु तुमने, पथ पर चलना सिखाया सत्य अहिंसा और संयम का तुमने ही पथ दिखलाया बिन वाती बिन ज्योति के-2 हर दीप अधूरा लगता है। बिन तेरे..................... भक्ति के सुरताल मधुर, झंकार तुम्ही से है गुरुवर मन वीणा के तारों की टंकार, तुम्ही से है गुरुवर । शब्दों के लालित्य स्वरों में जान तुम्ही से है गुरुवर सच पूछों स्वर शब्दों में पहचान तुम्ही से है गुरुवर बिन फूलों बिन कलियों के-2 हर बाग अधूरा लगता है। बिन तेरे..................... तेरे पावन दरस से महका मन का हर इक कोना है। मेरे गुरुवर इस धरती पर बिना खोट का सोना है। बिन चंदा बिन तारों के-2 आकाश अधूरा लगता है। बिन तेरे.....................
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