गुरु ने जहाँ-जहाँ भी ज्योति जलाई है।
काले-काले बादलों पर रोशनी सी छाई है।
अखियों को खोल जरा ज्ञान के उजाले में
रख विश्वास पूरा जग रखवाले में ।
कितनी ही बार मैंने खुद को समझाई है।
गुरु के सिवा हर प्रीत पराई है।
मुक्तियों के बंधनों को बाँध पक्की डोर से
आंधियाँ चलेंगी इन सब पर बड़ी जोर से
क्योंकि इस रास्ते पर बड़ी कठिनाई है।
गुरु के.....................
एक बार सोच ले तू जीवन के अंधियारें में
गुरु ही सहारा है इस जीवन के चौराहे में।
कितनी ही बार मैंने है ठोकरे तो खाई है।
गुरु के सिवा.................
तन मन में वैराग्य जिनके समाया है।
शाश्वत सुख पाने को छोड़ी जग माया है।
निर्मोही गुरुवर पे जनता रिसाई है।
गुरु के सिवा...................