ऐसे परम दिगम्बर मुनिवर देखे हृदय हर्षित होता है,
आनन्द आल्हादित होता है,
सम्यग्दर्शन होता है,
वास जिनका वन-उपवन में, गिरी शिखर के नदी तटे,
वास जिनका चित्त गुफा में, आतम आनन्द में रमें,
ऐसे परम दिगम्बर..........
कंचन कामिनि के त्यागी, महातपस्वी ज्ञानी ध्यानी,
काय के माया के त्यागी, तीन रतन गुण भंडारी,
ऐसे परम................
परम पावन मुनिवरों के, पावन चरणो में नमू,
शांत मुर्ति सौम्य मुद्रा, आनन्द आतम में रमें,
ऐसे परम..
चाह नहीं है, राज की, चाह नहीं है रमणी की,
चाह हृदय में एक यही है, शिव रमणी को परने की,
ऐसे परम.................
भेद ज्ञान की ज्योति जलाकर, शुद्धातम में रमते है,
क्षण क्षण में अन्र्तमुख होंकर, सिद्धो से बातें करते है,
ऐसे परम............