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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. महान जैन तीर्थंकरों, आचार्यों एवं मुनियों के द्वारा दी गई कायोत्सर्ग की विधि अपनी आत्मा को शरीर से अलग कर आत्मस्वभाव में आने का माध्यम है। कायोत्सर्ग अवस्था में योगी, श्रावक अपने ध्यान की क्रियाओं से शरीर को स्वयं से अलग कर देता है तथा अपने आत्मा के अनन्त सुखों का अनुभव करता है। वह केवल होने की स्थिति (State of Being Alone) के द्वारा इसी कायोत्सर्ग के माध्यम से अपने अस्तित्व की पहचान करता है। जैन परम्परा में कायोत्सर्ग के दो मुख्य आसन हैं:- पद्मासन मुद्रा खड्गासन मुद्रा भगवान ऋषभदेव की पद्मासन मुद्रा व भगवान बाहुबली की खड्गासन मुद्रा हमें इसका परिचय देती है। देव वन्दना से पूर्व, धार्मिक अनुष्ठान करने से पूर्व व उपरान्त सामायिक, प्रतिक्रमण आदि के समय कायोत्सर्ग एक आवश्यक क्रिया है, जिससे हम अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित कर सकें। इसके अन्य लाभ निम्न प्रकार हैं:- मानसिक तनाव दूर करना (ToRemove Mental Stresses) ध्यान के लिए स्वयं को तैयार करना (Get ready to self for Dhyan) मानसिक शक्ति का विकास (Development of MentalPower) शारीरिक शक्ति का विकास (Physical Development) शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास एवं शरीर के अन्य अंगों पर शक्तिपात करना। (Development of Antibodies for Resisting Disease and power transformation on deceased organs) इस कायोत्सर्ग की प्रक्रिया में श्वासोच्छ्वास पर ध्यान देते हुए उनको गिना जाता है, तथा साथ ही णमोकार जैसे महाप्राण मंत्र का उन श्वासों पर आरोहण किया जाता है। जिससे यह प्रक्रिया ना केवल शारीरिक रोगों अपितु मानसिक विकारों को दूर करती है तथा आत्मा में जन्म-जन्मान्तर से बंधे हुए कर्मों को भी जलाती है। इसी प्रक्रिया से योगी केवलज्ञान (enlightenment or supreme knowledge) प्राप्त करते हैं। कायोत्सर्ग (Kayotsarg) एक Relaxation Technique है। Kayotsarg means relaxation of the body with full awareness. According to Lord Mahavir 'relaxation relieves one from all sorrow.' Modern era has termed kayotsarg as relaxation. Relaxation is the process of awakening the consciousness and relieving oneself from all mental and physical stresses. A process which finally enlightened the soul power by practice. जब 27 बार श्वासोच्छवास को गिना जाता है, तब एक कायोत्सर्ग पूर्ण हो जाता है। साथ ही 09 बार णमोकार मंत्र का पाठ हो जाता है।
  2. श्रमण संस्कृति इस युग में भगवान आदिनाथ के द्वारा प्रथम तीर्थंकर के रूप में सर्वप्रथम प्रवाहित हुई। भगवान आदिनाथ चतुर्थकाल में हुए। जैन दर्शन के अनुसार यह काल 1 कोड़ा कोड़ी (असंख्यात वर्षों) का होता है। भगवान आदिनाथ की ध्यान की मुद्राएँ पद्मासन और कायोत्सर्ग के साथ आज भी विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं जैसे हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में प्राप्त मोहरों पर अंकित हुई मिली श्रमण संस्कृति में दिगम्बर मुनि ज्ञान और ध्यान में ही पूरा जीवन व्यतीत करते हैं। ध्यान से ही कर्मों का क्षय होता है। आत्मिक गुणों की उपलब्धि होती है। जैन दर्शन में चार प्रकार के ध्यानों का वर्णन भगवान ऋषभदेव ने सर्वप्रथम किया। उसके बाद आने वाले 23 तीर्थकरों ने भी ध्यान से कर्मों का क्षय होता है यह उपदेश दिया। वर्तमान में चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी का तीर्थ चल रहा है, जिसमें अनेक श्रमण मुनि, साधु, दिगंबर ऋषियों ने प्रयोग करके ध्यान से आत्मिक शांति प्राप्त की है। इस तरह ध्यान और योग की परम्परा सनातन है और श्रमण संस्कृति के द्वारा प्रवाहमान रही है। णमोकार महामंत्र ध्यान का आलम्बन रहा है, इसी णमोकार मंत्र से अनेक बीजाक्षरों की उत्पत्ति हुई है। ॐ, अर्हम् आदि बीजाक्षर इसी णमोकार मंत्र से निकले हैं। जिनके ध्यान करने की विधि और उसके फल, ध्यान के महान ग्रंथ ज्ञानार्णव में विस्तृत रूप से दी गई है। ॐ को प्रणव मंत्र माना जाता है और अर्हम् को मंत्रराज स्वीकार किया गया है। अर्हं मंत्र के बारे में ज्ञानार्णव में लिखा है। अकारादि हकारांतं रेफमध्यं सबिन्दुकम्। तदेव परमं तत्त्वं यो जानाति स तत्त्ववित्।। ज्ञानार्णव 35/25-1 अर्थ - जिसके आदि में अकार है, अंत में हकार है और मध्य बिंदु रेफ सहित है। वही उत्कृष्ट तत्त्व है। जो इस अर्हं को जानता है, वह तत्त्वज्ञ बन जाता है। इस अर्हम् के ध्यान से योगी अनेक ऋद्धियों को प्राप्त करता है। अनेक दैत्य, राक्षस, भूत-प्रेत स्वयं वश में हो जाते हैं। यह अर्हम् का ध्यान अतीन्द्रिय, अविनश्वर आत्म सुख प्राप्त कराता है। केवल ज्ञान, सम्पूर्ण ज्ञान, सर्वज्ञ की प्राप्ति इसी से होती है। इस तरह अर्हम् का इतिहास उतना ही प्राचीन है। जितना मानव जाति का इतिहास है। मुनि श्री 108 प्रणम्यसागर जी महाराज कहते है कि - णमोकार मंत्र का संक्षिप्त रूप अर्हम् है और अर्हम् का विस्तार णमोकार मंत्र है। पवित्र आत्माओं की विशिष्ट शक्तियाँ इस णमोकार मंत्र के अंदर समाहित हैं। जैसे घर्षण से आग उत्पन्न होती है, ऐसे ही मंत्र के ध्यान से एक आग उत्पन्न होती है, जिसमें हमारे सारे विकार, अहंकार, दुराचार, आक्रामक भावनाएँ, अराजक उद्देश्य, अश्लील मनोवृत्तियां (मानसिकताएँ), अशुभ विचार आदि सभी निष्क्रिय हो जाते हैं। स्वाभाविक शक्तियाँ प्रकट होने लग जाती हैं। यहीं से मनुष्य का विकास प्रारम्भ होता है। मनुष्य का यह विकास उसे देवत्व की ओर ले जाता है और आगे चलकर वही परम ब्रह्म ईश्वर की प्राप्ति कर लेता है एवं ईश्वर को अपने अंदर प्रकट कर लेता है। इस अर्हम् योग परम्परा को परम पूज्य मुनिराज 108 श्री प्रणम्य सागर जी ने पुनजीर्वित कर मानव सृष्टि को एक ऐसी नई राह दिखाई है, जो प्राणियों के जीवन को सुन्दर एवं स्वस्थ बना सके। अर्हम् योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है। अपितु ध्यान के साथ चित्त और आत्मा को स्थाई आध्यात्मिक प्रभाव (Deep Spiritual Impact) भी देता है। गुरूदेव श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने पंच नमस्कार मुद्रा का स्वरूप बताकर सभी प्राणियों को प्रतिदिन इन्हें जीवन में अपनाकर अपने जीवन को स्वस्थ एवं सुंदर बनाने का उपदेश दिया है। यह पंच नमस्कार मुद्राएं निम्न प्रकार है:- लाभ :- 1) आलस्य दूर होता है। 2) कमर एवं रीढ़ की हड्डी सम्बन्धी रोग दूर होते हैं। 3) कद बढ़ता है। 4) नई ऊर्जा का संचार होता है। 5) मोटापे में कमी आती है। लाभ :- 1) ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है। 2) हृदय सम्बन्धी रोगों में आराम। 3) श्वास सम्बन्धी बीमारी ठीक होती है। 4) लगातार अभ्यास से अपनी ऊर्जा को नाप सकते हैं। लाभ :- 1) एकाग्रता बढ़ती है। 2) स्मरण शक्ति बढ़ती है। 3) मानसिक तनाव में कमी आती है। 4) कंधे मजबूत होते हैं। लाभ:- 1) सर्वाईकल (गर्दन) के दर्द में आराम 2) फ्रोजन सोल्डर में आराम 3) कलाई के दर्द (कंधे के दर्द में आराम 4) ज्ञान की वृद्धि लाभ :- 1) विनम्रता का विकास 2) सकारात्मक सोच की वृद्धि 3) पेट-पीठ सम्बन्धी रोग में आराम 4) अनिद्रा में लाभ 5) डायबिटीज आदि रोगों में लाभ। पंच मुद्राएं पंच तत्वों का भी नियंत्रण करती हैं तथा तत्त्व की कमी को पूरा करती हैं। “वृक्ष बीज में छिपा हुआ है जागेगा अंतर्बल से नर में नारायण बैठा है प्रकटेगा चिंतन से”
  3. भगवान ऋषभदेव, बाहुबली, भरत आदि की प्राचीन दिगम्बर जैन परम्परा से आज तक के सभी आचार्यो कुन्दकुन्द देव, भद्रबाहू, चन्द्रगुप्त मौर्य ने योग परम्परा को शाश्वत मोक्ष का मार्ग बताकर वियोग (कायोत्सर्ग) की मुद्रा में ध्यान लगाकर आत्म कल्याण किया है तथा इसे अपनाकर सभी जीवों को आत्म कल्याण करने का उपदेश दिया है। आचार्य उमास्वामी ने भी तत्त्वार्थ सूत्र में योग को प्ररूपित किया है। परम पूज्य 108 मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने अर्हम् योग का मूल मंत्र देकर दिगम्बर जैन संस्कृति की ऋषभ योग परम्परा को पुनः जीवित कर विश्व कल्याण एवं विश्व शांति के मंगल मार्ग का आह्वान कर नई ऊर्जा का संचार कर दिया है। अर्हम् योग में णमोकार मंत्र का अन्तरनाद, योग मुद्राएं पंच नमस्कार), कायोत्सर्ग की मुद्राएं जीवन को सरल, सहज एवं स्वाभाविक बनाने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। इस मंगल भावना के साथ यह अर्हम् योग पुष्प पुस्तिका गुरूदेव के चरणों में समर्पित है। आशा है सभी पाठक इसे जीवन में अपनाकर अपना एवं जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगे। सेवा में एक गुरू भक्त
  4. आज आपके लिए लाये हैं - 2 प्रतियोगिताएं - हम चाहते हैं आप दिए गए निर्देशों को अच्छे से पढ़े | प्रतियोगिता 6 अ - प्रस्नोत्री क्रमंब्क 2 https://vidyasagar.guru/quizzes/quiz/5-1 प्रतियोगिता 6 ब.
  5. View this quiz संयम स्वर्ण महोत्सव प्रश्नोत्तरी क्रमांक 2 दिनांक २० जून २०१८ संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता 6 अ भाग ले प्रतियोगिता में और दावेदार बने आकर्षक उपहार के | प्रतियोगिता कल सुबह 7 बजे तक खुली रहेगी Submitter संयम स्वर्ण महोत्सव Type Graded Mode Time 5 minutes Total Questions 5 Category संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता Submitted 06/16/2018
  6. निपुण जैन (ठाणे, मुंबई) ,आयुष जैन (विजय मार्किट, कोटा) आप दोनों को पुरस्कार स्वरूप प्रदान की जा रही हैं -हथकरघा निर्मित श्रमदान ब्रांड की हाफ शर्ट आपको आपके उपहार आपसे संपर्क कर के शीघ्र भेजे जायेंगे | सभी Twitter और Facebook पर विजेताओं को बधाई दे |
  7. एकजुट हो, एक से नहीं जुड़ो, बेजोड़ जोड़ो | हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. *संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता क्रमांक 5* ?????? https://vidyasagar.guru/quizzes/quiz/4-1 Take this Quiz - हरे बटन को दबाने से आपकी प्रतियोगिता शुरू हो जाएगी | आज की प्रश्नोत्तरी में 5 प्रश्न हैं, समय होगा 5 मिनिट *भाग लेने के लिए वेबसाइट पर अपने अकाउंट से लॉग इन करना होगा* https://vidyasagar.guru/login/ अगर आप ने अकाउंट नहीं बनाया हैं तो पहले आपको अकाउंट बनाना होगा https://vidyasagar.guru/register/ आज आपको अपने अंक साथ के साथ मिल जायेंगे | सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाला विजेता चुना जायेगा - एक से अधिक होने पर लक्की ड्रा द्वारा विजेता चुने जायेंगे | नोट - यह एक गुरु प्रभावना का प्रयास हैं - टेक्नोलॉजी फेलियर जैसे इन्टरनेट बंद होना मोबाइल hang होना इत्यादि व्यवधान हो सकता हैं *हमारा प्रयास आपका सहयोग* www.vidyasagar.guru
  9. View this quiz संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता क्रमांक 5 दिनांक 19 June 2018 संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता क्रमांक 5 19 June 2018 भाग ले प्रतियोगिता में और दावेदार बने आकर्षक उपहार के | Submitter संयम स्वर्ण महोत्सव Type Graded Mode Time 5 minutes Total Questions 5 Category संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता Submitted 06/15/2018
  10. पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के पावन सान्निध्य में मोनिका सुहास शाह द्वारा स्वरबद्ध श्री भक्तामर स्तोत्र और श्री वर्द्धमान स्तोत्र का विमोचन
  11. अंकिता जैन (महेंद्रगढ़ कोरिया ) को पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया जा रहा है आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से संचालित हथकरघा द्वारा निर्मित श्रमदान ब्राण्ड की साड़ी | अनुभव कठरया (बामोरा सागर) को पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया जा रहा है आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से संचालित हथकरघा द्वारा निर्मित श्रमदान ब्राण्ड का कुर्ता पायजामा आपको आपके उपहार आपसे संपर्क कर के शीघ्र भेजे जायेंगे |
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