सत्गुरु मैं तेरी पतंग हवा विच उड़ती जाऊंगी
तुमने न पकड़ी डोर मेरी तो मैं गिर जाऊँगी।
बड़ी नाजुक है ये डोर गुरु रखना थाम के
हम तो हैं बस दीवाने गुरु तेरे नाम के
तेरा हाथ रहे जो सर पे भव पार हो जाऊंगी
तुमने न......................
ये मोह माया की आंधी, कहीं मुझको न ले जाए।
तेरी दया मिले तो, मेरा जीवन संवर जाए।
मैं छोड़ के झूठे जग को, तेरी ही हो जाऊंगी
तुमने न......................
ये राह बड़ी कठिन है, और ऊँचा है आकाश
बस है यही तमन्ना, आ जाऊं तेरे पास
तेरी कृपा से गुरुवर, प्रभु से मिल जाऊंगी
तुमने न.......................
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव