इस योग्य हम कहाँ हैं, गुरुवर तुम्हें रिझायें
फिर भी मना रहे हैं, शायद तू मान जाये
जबसे जनम लिया है विषयों ने हमको घेरा
छल और कपट ने डाला, इस भोले मन पे डेरा-2
सद्बुद्धि को अहम् ने हरदम रखा दबाये
फिर भी मना................
निश्चय ही हम पतित है, लोभी हैं स्वार्थी है।
तेरा ध्यान जब लगाये, माया पुकारती है-2
सुख भोगने की इच्छा, कभी तृप्त हो न पाये
फिर भी मना.....................
जग में जहां भी देखा, बस एक ही चलन है।
एक दूसरे के सुख में, मुझको बड़ी जलन है-2
कर्मों का लेखा जोखा, कोई समझ न पाये
फिर भी मना....................
जब कुछ न कर सके तो, तेरी शरण में आये
अपराध मानते है, झेलेगें सब सजाएँ-2
अब ज्ञान हमको देदो, कुछ और अब न चाहें
फिर भी मना..................