मन वीणा के तार तुम, मेरी हो आवाज तुम
मेरा मन गुरुवर एक पंछी, पंछी के परवाज तुम
तुम ज्ञान के सागर हो, तेरी बूंद के प्यासे हम।
एक बूंद जो मिल जाए, तो प्यास बुझानें हम
त्याग तपस्या की तुम मूरत, तुम स्वामी तेरे दास हम
मेरा मन.............
जब से आया तुम्हारी शरण, मेरा जीवन हो गया पावन
तुम बिना कौन है गुरुवर जो, साधे मेरे सुरो सरगम
भक्ति भजन की ताज सिर बांधी, हो सुर के सरताज तुम
मेरा मन.................
मेरी विनती सुन लो गुरुवर, अपने चरण कमल में जगह दो
भटका हूँ मैं अंधियारे में, ज्ञान की किरण दिखा दो
आतम को पहचानूं मैं, ऐसी नजर दो आज तुम
मेरा मन गुरुवर.............