अस्त हो रहे ज्ञान सूर्य ने सोचा था इक दिन शाम ।
मेरे ढल जाने के बाद, कौन करेगा मेरा काम
अंधकार मय मोह जगत में, ज्ञान प्रकाश भरेगा कौन ।
मेरे जीवन की बुझती ज्योति को और जलाये कौन
सब अयोग्य कातर दिखते है, कोई न दिखता है निष्काम
मेरे ढ़ल जाने के बाद..................
धर्म महा है, पाथ कठिन है, किसको इसका रहस्य कहे।
निष्ठा का जो दीप जलाये, ज्ञान चरित्र में लीन रहे
तभी एक विद्याधर आया, दूर कहीं से गुरु के धाम ।
मेरे ढ़ल जाने के बाद.....................
फिर गुरु ने शिक्षा-दीक्षा दे, इच्छा जल को जला दिया
स्वयं शिष्य के चरणों में आ बैठ अहं को गला दिया
खूब जले विद्या का दीपक, हुआ ज्ञान की आठो याम
मेरे ढ़ल जाने के बाद....................
तुम प्रकाश के पूंज बने और तुम्ही बनो सुरज श्रीमान
तुम्ही चलाओ सबको पथ पे और चलो खुद ही गमन
मैं निश्चित हुआ विद्याधर, जीवन सफल बना वरदान
मेरे ढ़ल जाने के बाद.....................
गुरुकुल बना कुलगुरु बनना, वचन नहीं प्रवचन देना ।
छोटा-बड़ा भेद को तजके, तुम सबको अपना लेना
यूँ कहकर फिर विदा हो गया, ज्ञान सूर्य वह गुरु महान
मेरे ढ़ल जाने के बाद................