दृष्टि लक्ष्य की और - संस्मरण क्रमांक 17
☀☀ संस्मरण क्रमांक 17☀☀
? दृष्टि लक्ष्य की और ?
एक बार एक साधक के दांत में छेद हो गया, जिस से तकलीफ बनी रहती,आहार के समय और तकलीफ बढ़ जाती डॉक्टर को दिखाया उस दिन उनका उपवास था, डॉक्टर ने उसको निकाल दिया बहुत खून गिरा,
जब आचार्य श्री जी को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने पूछा क्यों,उन्हें दांत से बहुत खून आया
मैंने (कुंथुसागर जी)कहा -जी आचार्य श्री जी डॉक्टर ने ऊपर गाल पर बर्फ रखा, वह ठंडा लगा उस ओर ध्यान गया कि झटके से दांत निकाल दिया मालूम ही नहीं पड़ा दांत कब निकल गया,यह सब उपयोग के परिवर्तन से हुआ उपयोग/ध्यान बर्फ की ठंडक पर गया और यहां काम हो गया
यह सुनकर आचार्य महाराज बोले- यदि हमारा उपयोग भी लक्ष्य की ओर हो जावे,तब मार्ग में आने वाली समस्याएं उपसर्ग परीषय सभी सहज रुप से सहन हो जाते हैं
ठीक पुनः मैंने कहा आचार्य श्री जी उस दांत की जड़ बहुत मजबूत थी,
आचार्य श्री सहसा ही बोले-जड़ें मजबूत होती है तभी चने छपते हैं वैसे ही सम्यग्दर्शन मजबूत होता है तभी संसार के चने चंबते हैं
यह घटना बताती है कि गुरुदेव की लक्ष्य की ओर दृष्टि हमेशा रहती है विपरीत वह हमेशा प्रत्येक घटना को मोक्षमार्ग के साथ जोड़कर उदाहरण बना देते हैं एवं हर क्षण हम सभी को भी लक्ष्य को ध्यान में रखकर चलने का उपदेश देते हैं लक्ष्य निर्धारण एवं लक्ष्य पर चलना का,लक्ष्य प्राप्ति में बाधाओं का सहर्ष सामना करना महान पुरुषों का कार्य हुआ करता है,महापुरुष कभी भी लक्ष्य को प्राप्त करते समय आ रही बाधाओं से डरते नहीं हैं बल्कि उन बाधाओं को सफलता की सीढ़ी समझकर उस पर पैर रख कर आगे बढ़ जाते हैं।
(सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर जी 2002)
? अनूभूत रास्ता पुस्तक से साभार?
? मुनि श्री कुंथुसागर जी महराज
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