संस्मरण क्रमांक 1
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??? संस्मरण क्रमांक 1???
हमने (आ.श्री विद्यासागर जी ने ) एक बार आ.ज्ञानसागर महाराजजी से पूछा था - ' महाराज ! मुझसे धर्म की प्रभावना कैसे बन सकेगी ? तब उनका उत्तर था कि ' आर्षमार्ग में दोष लगा देना अप्रभावना कहलाती है । तुम ऐसी अप्रभावना से बचते रहना, बस प्रभावना हो जाऐगी ।
❄❄" मुनि मार्ग सफेद चादर के समान है, उसमें जरा सा दाग लगना अप्रभावनाका कारण है । उनकी यह सीख बड़ी पैनी है । इसलिए मेरा प्रयास यही रहा कि दुनिया कुछ भी कहे या न कहे, मुझे अपने ग्रहण किये हुए व्रतों का परिपालन निर्दोष करना है ।❄❄
धीरे-धीरे सब व्यवस्थित हो जाएगा, आगम सामने रखना । ' आगम चक्खू साहू' कहा है ।अपनी चर्या इस प्रकार बनाकर चलें ताकी दूसरे लोग भी आपके साथ चलने को लालायित हो उठें ।" मूल के ऊपर सोचो और विचार करो " - यह सूत्र उनका मुझे आज भी प्राप्त है ।
????तत्वार्थसूत्र जितने बार पढ़ता हूँ उतने बार मुझे बहुत आनंद आता है, और आचार्य महाराज का सूत्र सार्थक होता चला जाता है ।
भाद्रपद में ही इसका विषय उद्घाटित होता है । बहुत सारी बातें अपने आप होती चली जाती है,यह गुरु महाराज की कृपा है।
जितना मूल के ऊपर अध्ययन करेंगे, उतना ही आनन्द आयेगा ।मूलगुण पल जाएँ बहुत यह बड़ी बात है । एक प्रश्न नहीं है, अट्ठाईस प्रश्न है जीवनभर करना है ।
जैसे प्रतिदिन भोजन करना आवश्यक होता है, वैसे ही भेद - विज्ञान साधक को प्रतिदिन बारह भावनाओं के चिंतन रुपी भोजन को करना भी अति आवश्यक होता है, तभी साधक के कदम साधना पथ पर अबाध गति से बढ़ते जातेहै ।
और अंतिम मोक्षसुख को पा जाते है ।' मोक्ष जब चाहते हो तो ख्याति क्यों चाहते हो ? प्राकृत में ख्याति को 'खाई' बोलते है ।खाई में तो सर्प, मगरमच्छ सब रहते हैं । जबउसका जीवन पूरा हो जाता है अर्थात उसका नाम भी डूब जाता । इसलिए वे मान को जीवन में नहीं आने देते थे
अज्ञानियों से वर्षों प्रशंसा मिलने की अपेक्षा ज्ञानी के द्वारा डाँट मिलना भी श्रेष्ठ है , क्योंकि ज्ञानी की डाँट के द्वारा दिशाबोध प्राप्त हो जाता है और यही डाँट व्यक्ति की दशा परिवर्तन करा देती सै एवं दुर्दशा होने से बचा लेती है
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