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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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वीतरागी से अनुराग - संस्मरण क्रमांक 18


संयम स्वर्ण महोत्सव

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  ☀☀ संस्मरण क्रमांक 18☀☀
           ? वीतरागी से अनुराग ?
 आचार्य महाराज संग सहित  विहार कर रहे थे, खुरई नगर में प्रवेश होने वाला था ,एक गरीब सा दिखने वाला व्यक्ति साइकिल पर अपनी आजीविका का बोझ लिए समीप से निकला और थोड़ी दूर जाकर ठहर गया,जैसे हीआचार्य महाराज उसके सामने से निकले वह भाव विह्वल होकर उनके श्री चरणों में गिर पड़ा।गदगद कंठ से बोला कि-" भगवान राम की जय हो"आचार्य महाराज ने क्षण भर उसे देखा और अत्यंत करुणा से भर कर धर्म वृद्धि का आशीष दिया,और आगे बढ़ गए।
वह व्यक्ति हर्ष विभोर होकर बहुत देर तक आगे बढ़ते हुए आचार्य महाराज की वीतराग छवि को देखता रहा।
उस घटना को सुनकर लगा की वीतराग के प्रति अनुराग हमें अनायास ही आत्मानंद देता है, उन क्षणों में उस व्यक्ति की आंखों में आचार्य महाराज की वीतराग छवि अत्यंत मधुर और दिव्य रही होगी , जो हम सभी को आज कल्याण का संदेश देती है।

सच मे जो भी आचार्य श्री जी को देखता है, उन्हें पहली ही नज़र में अपना भगवान मान लेता है।

? आत्मान्वेषी पुस्तक से साभार ?
? मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज

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