गुरु होकर भी लघु बने रहना - संस्मरण क्रमांक 3
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??? संस्मरण क्रमांक 3 ???
गुरु होकर भी लघु बने रहना
एक बार भोपाल में आचार्य श्री जी के दर्शन करके अत्यंत भावविभोर होकर किसी भक्त ने कह दिया कि- पंचम काल की काया पर चतुर्थ काल की आत्मा।
जिसे सुनकर आचार्य श्री जी ने कहा कि- आप कह सही रहे हो , पर एक सुधार करना है कि पंचम काल की तो काया है , पर अनंत काल की आत्मा ये आत्मा अनादि काल से संसार मे भटक रही है , फिर आप कैसे कह सकते है कि चतुर्थ काल की आत्मा
लोगो को सुनकर आश्चर्य हुआ और सभी गुरुजी के प्रति समर्पण भाव से भर गए ।
वास्तव में आचार्य श्री जी हमेशा अपने आप को बहुत ही लघु मानते है , जब भी कोई कार्य करते है , तो कहते है , सब गुरुजी (ज्ञानसागर जी) की कृपा से हो गया।
धन्य है ऐसे गुरुजी के काल मे हमे जन्म लेने का अद्वितीय सौभाग्य मिला।
??????????? समस्त स्वर्णिमसंस्मरण परिवार
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