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संयमी जीवन - संस्मरण क्रमांक 14


संयम स्वर्ण महोत्सव

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  ??????????    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 14☀☀
           ? संयमी जीवन? 

आज पंचमकाल में कैसी भौतिकता है,चारों तरफ वासनाओं का वास हो चुका है, और ऐसे समय में एक अकेला संत जो संयम की रक्षा करते हुए संतत्व से सिध्दत्व की यात्रा करते हुए, मोक्ष मार्ग की ओर निरंतर बिना रुके आगे बढ़ता जा रहा है वह यात्रा जो स्वयं ने अकेले शुरू की थी आज वह यात्रा अविरल रूप से प्रवाहमान है और लाखो हजारों लोग उस  यात्रा में शामिल होकर मोक्ष मार्ग की ओर निरंतर गमन कर रहे हैं लाखों लोगों की मन की सिर्फ एक ही इच्छा होती है कि बस आचार्य श्री जी एक इशारा कर दें और वो लोग वस्त्र उतारकर फेंकने को तैयार हो जाते है ,बस एक इशारे की जरूरत है
लेकिन आचार्य श्री जी नीचे देखकर एक - एक चींटी, एक-एक जीवकी रक्षा करते हुए संयम के मार्ग पर निरन्तर आगे बढ़ते जा रहे हैं, उनकी एक एक दृष्टि में संयम झलक रहा है।
बात उस समय की है जब आचार्य श्री जी जबलपुर के निकट भेड़ाघाट की चट्टानों पर विराजमान थे, भेड़ाघाट मध्यप्रदेश का एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है जहां पर नर्मदा नदी का जलप्रपात बना हुआ है और वहां नर्मदा नदी का जल निर्बाध रूप से निरंतर शांतभाव से बहता जाता है


पूज्य गुरुदेव वही भेड़ाघाट की चट्टानों पर बैठ कर नदी के प्रवाह को शांत भाव से देख रहे थे, आचार्य श्री ने संघ के महाराजों से कहा कि - आज सामायिक यही करेंगे और पूज्य गुरुदेव ने अपनी जिंदगी में पहली बार आंखें खोलकर सामायिक की, सामायिक में गुरुदेव निरंतर बहते जा रहे उस नदी के जल को देख रहे थे सामायिक पूर्ण होने के पश्चात संघ के कुछ महाराजों ने पूछा कि - आचार्य श्री जी आप  बहुत देर से  उस जल में क्या देख रहे हैं,तब पूज्य गुरुदेव ने कहा कि- मैं बहते हुए नदी के जल में सिद्ध शिला में स्थित अनंतानंत सिद्धों से भी अनंत भावी सिद्धजीवों को उन जल की बूंदों में देख रहा हूं ,उस जल में स्थित प्रत्येक जीव में सिद्ध बनने की, भगवान बनने की क्षमता विद्यमान है,और आज सामायिक में उन्हें देख कर यही विचार कर रहा था।
 सभी महाराजाओं ने आचार्य श्री जी के मुख से यह बात सुनी तो सबका मन प्रफुल्लित हो उठा और वे आचार्य श्री जी के प्रति नतमस्तक हो गए।

धन्य है ऐसे गुरुदेव जिन्हें प्रत्येक जीव में सिद्ध परमेष्ठी के दर्शन होते हैं।
एक तरफ भेड़ाघाट में दुनिया राग-रंग देखने आती है,मौज मस्ती करने आती है और वहीं दूसरी तरफ गुरुजी वहां के जल में स्थित भविष्य की सिद्ध परमेष्ठी  देख रहे थे। धन्य है ऐसे गुरुदेव , जिनकी प्रत्येक क्रिया में संयम झलकता है।
बस हमारी तो यही भावना रहती है कि ऐसे परम दर्शनीय, परम उपकारी आचार्य भगवन को बिना पलके झपकाए देखते रहे।
और बस उन्हें देखकर यही श्लोक याद आता है - 
दृष्ट्वा भवंत-मनिमेष- विलोकनीयं
नान्यत्र - तोष - मुपयाति जनस्य चक्षु:
पीत्वा पय: शशिकर द्युति दुग्ध सिंधो:
क्षारं जलं जलनिधे रसितुं का इच्छेत
बस गुरुजी बिना पलक झपकाए अपलक रूप से आपको बस देखते रहे,बस देखते रहे और जब तक हम मोक्षमहल नहीं प्राप्त कर लेते , तब तक हम आपके चरणों की धूल बनकर हमेशा आपके साथ रहे। 
पूज्य मुनिपुंगव सुधासागर जी के मुख से समयसार जी शिविर, व्याबर में साक्षात सुना हुआ संस्मरण।
 

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