सतर्क मुनि चर्या - संस्मरण क्रमांक 12
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? सुनो भाई खुशियां मनाओ रे
आयी संयम स्वर्ण जयंती?
?????????? ☀☀ संस्मरण क्रमांक 12☀☀
? सतर्क मुनि चर्या ?
आचार्य श्री विद्यासागर जी संघ सहित विहार करके एक गांव में पहुंचे।
लंबा विहार होने से उन्हें थकावट अधिक हो गई।कुछ मुनि महाराज वैयावृत्ति कर रहे थे।सामायिक का समय होने वाला था,अचानक आचार्य श्री बोले - मन कहता है शरीर को थोड़ा विश्राम दिया जाए .......सभी शिष्यों ने एक स्वर में आचार्य श्री जी की बात का समर्थन करते हुए कहा-हां हां आचार्य श्री जी आप थोड़ा विश्राम कर लीजिए
आचार्य श्री जी हंसने लगे और तत्काल बोले मन भले ही विश्राम की बात करें पर आत्मा तो चाहती है कि- सामायिक की जाए।और देखते ही देखते आचार्य श्री दृढ़ आसन लगाकर सामायिक में लीन हो गए।
चाहे हरपिस रोग हुआ हो या 105- 108 डिग्री बुखार आया कोई भी प्रतिकूल परिस्थिति बनी हो, परंतु आचार्य श्री जी ने अपने आवश्यकों पर उसका कोई प्रभाव नहीं पढ़ने दिया,हमेशा आवश्यकों का निर्दोष पालन किया
वह कहते हैं-आचार्य महाराज(ज्ञानसागर जी) आवश्यकों को साधक की परीक्षा कहते थे,यदि हम सफल हो गए तो आचार्य महाराज (ज्ञानसागर जी) हमें वहां से क्या फेल हुआ देखेंगे।
धन्य है ऐसे गुरुदेव,जो अपनी मुनि चर्या का हर स्थिति में कठोरता से पालन कर रहे है, अपने अंदर बिल्कुल भी शिथिलाचार को नही आने दे रहे
शिक्षा- जैसे आचार्य श्री अपनी चर्या अपने आवश्यकों के प्रति हमेशा सावधान रहते हैं,वैसे ही हमें धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए, कितनी भी परेशानियां आये, उन्हें समता से स्वीकार कर धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
? आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम प्रणाम अंजिली भाग 1
प्रस्तुतिकर्ता - नरेन्द्र जबेरा (सांगानेर)
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