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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. रायपुर राजधानी के टैगोर नगर में इन दिनों धर्म की अमृतधारा बह रही है। यहां संत शिरोमणी आचार्य गुरूवर 108 विद्यासागर जी महाराज ससंघ विराजमान है। आचार्य श्री विनय अपने मंगल प्रवचन में एक दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि फल फुल से आता है, और फुल वृक्ष में उत्पन्न होता है। और वृक्ष की उत्पत्ति बीज से होती है, बीज फल से प्राप्त होता है। इस तरह यह चक्र चलता रहता है, बीज से वृक्ष, वृक्ष से फूल, फूल से फल और फल से पुनः बीज प्राप्त होता है। उन्होने श्रावको से सवाल किया इस चक्र को कोई तोड़ सकता है क्या तो सभी ने सिर हिलाकर ना में जवाब दिया फिर आचार्य श्री ने कहा इसे तोड़ा भी जा सकता है उस बीज को आग में जलाकर या उपर का छिलका निकालकर इस जनम मरण के चक्र को तोड़ा जा सकता है। उन्होने कहा कि छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहते है, धान पैदा होती है। यदि उस धान के उपरी छिलके को निकाल दिया जाये तो चावल निकलता है। चावल कभी पैदा नही होता धान को आग में सेंककर उसका मुर्रा भी बनाया जा सकता है। जैन आचार्य विद्यासागर जी ने इस दृष्टांत के माध्यम से बताया कि जनम मरण के बंधन से मुक्ति पाने हमें धान के छिलके को हटाने या उसे आग मे जलाकर मुर्रा बनाने की तरह तपस्या करनी होगी ।
  2. आज को नहीं देखा तो आज और कल दोनों हाथ से निकल जाएंगे जगदलपुर, 07 जनवरी। राष्ट्र संत शिरोमणी आचार्य विद्यासागरजी ने कहा कि जिस तरह स्टेशन में ट्रेन आ रही हो और हल्लागुल्ला हो रहा हो रहा है और रेडियो, टीवी भी चल रहा हो उसी समय किसी का मोबाईल आ जाये तो केवल उससे ही संपर्क होता है उसी तरह संत मुनि, श्रुति व ग्रंथों के माध्यम से पूर्व में घटी घटनाओं और विषयों को जान लेते हैं और उसका आनंद लेते हैं। दुकान पर हम आज नगद कल उधार लिखते हैं, लेकिन ग्राहक से ऐसा नहीं कह सकते। कल का कोई स्वरूप तो हमने देखा ही नहीं यदि आज को नहीं देखा तो आज और कल दोनों हाथ से निकल जायेंगे। घोर उत्सर्ग होने के बाद भी शरीर छिन्न-भिन्न हो जाता है। संतव्यक्ति भी उसी तरह शरीर को पड़ोसी समझते हैं, जिस तरह मोबाईल में बहुत सारे नंबर भरे हों तो जब हम उसे लगायेेंगे तभी बातचीत हो सकती है और उधर से नबंर आये और हम उठाये तभी बातचीत संभव है, जिस व्यक्ति से हम बातचीत नहीं करना चाहते उस समय उसका रिंग आने पर भी म्यिूट दबा देते हैं, क्योंकि उस समय हम ईश्वर से कनेक्शन जोड़े हुए होते हैं और हम अपना ध्यान नहीं बंटाना चाहते, अतरू ध्यान में ध्यान लगाने की आदत अच्छी है। मुनि महाराजों की कथा में सार भरा रहता है तथा कथा में उनके गुणों का वर्णन रहता है, मूल गुण 28 हैं। मुनि लक्ष्य से नहीं भटकते और न ही चमत्कार की ओर उनकी दृष्टि जाती है। अतिशय आत्मा का वैभव है उसमें दृष्टि रखनी चाहिए उपसर्ग को जीत कर सर्व सिद्धि के विमानों तक पहुंच जाती है। 24 भगवान के तीर्थ काल में दस काल होते हैं। उनका वर्णन सुनने पर शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। शरीर के ऊपर उपसर्ग होता है शरीर बिखर जाता है तब केवल ज्ञान प्राप्त होता है और हम मुक्त हो जाते हैं। शरीर छिन्नभिन्न होने के बाद जुड़ नहीं सकता विभिन्न परीक्षाओं में निष्णात होकर हम मुक्त हो जाते हैं। हम दिगंबर तो हुए नहीं और चाहते हैं कि राजा भरत जैसी कृपा बरस जाये, यदि शर्तें रखते हैं तो दीक्षा नहीं होगी। सम्यक ज्ञान की अवधारणा से कुशलता प्राप्त हो जाती है और कष्ट अनुभूत नहीं होते। कथाओं को पढ़ कर चिंतन का विषय बनाना चाहिए कथा आंसू बहने के लिए नहीं होते हम अपने दुखों पर आंसू नहीं बहाते बल्कि अपने किये हुए अनर्थों पर आंसू आ जाते हैं अज्ञानता से कितने ही अनर्थ हम से हुए हैं। आदर्श पुरूषों व महापुरूषों को हमें याद करना चाहिए और उनकी वेदना का ध्यान करना चाहिए, जिन तिथियों में हमने धार्मिक अनुष्ठान किये हैं उन्हें ध्यान करें तो हम दुष्कर्म से बच जायेंगे। अपनी दीक्षा की तिथि को याद करना चाहिए। तीर्थकरों की दीक्षा तिथि को या आचार्य की दीक्षा तिथि को नहीं बल्कि अपनी दीक्षा तिथि को याद रखना चाहिए और यदि तिथि को भी भुला दिया और कर्म पर ही पूरा ध्यान लगा दिया तो वहीं संत है, क्योंकि कल कभी नहीं आता कल किसी ने नहीं देखा है। दूर पेड़ पर जो दिख रहा है वह हाथ नहीं आता फल तो सारे ऊपर लगे हैं नीचे के सारे फल लोगों ने तोड़ लिये हैं। ऊपर जो लगा है वह समय बीतने पर पककर नीचे गिरेगा, किंतु वह फल किसका होगा नहीं कह सकते भीतर यदि आस्था हो तभी इसका रहस्य समझ में आाता है। तीर्थकरों को देखना केंद्र है। तीर्थकर के अलावा कुछ भी दिखता नहीं। आत्मा का वैभव तो आत्मा का वैभव है और वह संसार से न्यारा है। उसे छोड़कर संसारिक व्यक्ति नीरस पदार्थों की ओर आकर्षित होता है, किंतु आंख बंद होते ही दृश्य आ जायेगा और ज्ञान की परिणती होने लगेगी तथा ज्ञान का वैभव आप लूट सकते हैं। भावनाएं बारबार आने पर ही उसका मूल्य समझ में आता है। सत्संग सात्विक भूख है। इससे शारीरिक यात्रा समाप्त होगी और अलौकिक आनंद प्राप्त होगा।
  3. राष्ट्र संत जैनाचार्य विद्यासागरजी ने कहा कि वीतराग प्रभु को देखकर हमारे भाव शुद्ध होते हैं। मुनिराज भी पूज्य होते हैं, इनकी उपासना के महात्मय को चक्रवर्ती भरत और बाहुबली की कथा सुनाते हुए कहा कि अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए दोनों बाहुबल से लड़ रहे थे, किंतु सब कुछ जीतने बाद भी बाहुबली ने अपना सर्वस्व त्याग कर बैराग्य धारण कर लिया। उन्होंने कहा कि दर्पण हमें हमारी कमियां दिखाता है। हम अपनी कमियों को दूर कर भगवान की भक्ति पूजन करें, यही संदेश हमें प्रभु से मिलता है। आकांक्षा लॉन में दोपहर की प्रवचन माला में आचार्यश्री ने कहा कि तीर्थंकर अर्हन्त भगवान के उपदेश देने की सभा को समवशरण कहते हैं, वहां मुनष्य, देव, तीर्यंच आकर उपदेश सुनते हैं। यहां सुख, शांति, समता, अहिंसा, वात्सल्य की प्राप्ति होती है। यहां भगवान की दिव्य ध्वनि खिरती है। वर्तमान में प्रतिबिम्ब के रूप में भगवान विराजमान रहते हैं। एक बड़ा समवशरण है बाकी 24 छोटे समवशरण हैं जिनमें प्रतिमाएं विराजमान हैं। उन्होंने कहा कि समूचे छत्तीसगढ़ के मंदिरों के प्रतिबिम्ब इस समवशरण में विराजमान हैं। इन्हीं प्रतिमाओं के आगे सभी भक्ति पूजन करते हैं यह विधान दमोह, जबलपुर के बाद छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ है।
  4. आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि आज विवाह का उद्देश्य बदल गया है। प्राण ग्रंथों में कथायें आती हैं पहले ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करते थे, गुरूकुल पद्धति से शिक्षा होती थी संस्कार दिये जाते थे, आज शिक्षा का स्तर बिगड़ गया है। समवशरण विधान के छटवें दिन राष्ट्रीय संत छत्तीसगढ़ के राजकीय अतिथि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने एक कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि एक लड़का शुक्ल पक्ष और लड़की कृष्ण पक्ष ब्रम्हचर्य व्रत ले लेते हैं और आजीवन निभाते हैं। आचार्य श्री ने दिल्ली के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत नाटिका कुल भूषण देष भूषण का उदाहरण दिया, जिसमें कहा गया कि किसी भी लड़की की ओर ऑंख उठाकर नहीं देखना, सभी को मॉं, बहन, बेटी की तरह देखना है। ज्ञात हो कि आज मोबाईल, टीवी, कम्प्यूटर, इंटरनेट, फेस बुक, पत्रिकाएँ आदि पर बुरी चीजों के संस्कार के कारण बच्चे आदि बिगड़ रहे हैं, उनके लिए ब्रम्हचर्य व्रत पॉजीटिव एनर्जी है। इस बारे में बच्चों को बताना चाहिए क्योंकि ब्रम्हचर्य व्रत से हमारी रक्षा हो सकती है।
  5. राष्ट्र संत आचार्य विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि जैन धर्म भावों पर आधारित है। भावों से ही व्यक्ति का उत्थान और पतन होता है। जैन धर्म की परिभाषा बताते हुए उन्होंने कहा कि जैन वह होता है जो मन और इंद्रियों पर विजय पाता है। इंद्रियों को जीतना ही संयम है और संयम व्यक्ति के सच्चे सुख के लिए आधार प्रदान करता है। स्थानीय होटल आकांक्षा के लान में दिगम्बर जैन समाज द्वारा आचार्य विद्यासागर के सानिध्य में चल रहे समवशरण चैबीसी विधान में राष्ट्रीय संत के रूप में एवं गणधर परमेष्ठि के पद पर आसीन गुरूवर ने अपने प्रवचन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि दमोह जिले के कुंडलपुर तीर्थ क्षेत्र में जब वे प्रवास पर थे तब वे पहाड़ी पर स्थित बड़े बाबा के दर्शन के लिए जा रहे थे तब उन्होंने एक आश्चर्यजनक घटना देखी कि पहाड़ों से थोड़ी देर पहले हुयी वर्षा का जल बड़ी वेग से नीचे आ रहा है और उस वेग में भी विपरीत दिशा में एक मछली तेजी से ऊपर की ओर चली जा रही थी। तथा वह उस पहाड़ की चोटी पर पहुंच ही गयी। उन्होंने इस संबंध में चिंतन किया तो पाया कि बिना हाथ पैर के भी वह मछली केवल अपने आचरण तथा आत्मशक्ति से वहां तक पहुंचने में सफल हुयी। ठीक इसी प्रकार से मानव भी अपने आचरण में सुधार करते हुए स्वयं को आत्मसात कर भगवान बन सकता है। जिस प्रकार लोग अपने धन की रक्षा के लिए तिजोरी में ताला लगाकर चाबी अपने पास जेब में रखते हैं और उसका पूरा ख्याल रखते हैं उसी प्रकार इस मनुष्य के पास रत्नात्रय रूपी अर्थात तप-त्याग एवं संयम का रास्ता है, जिसकी रक्षा उसे अनेकों विरोधों के बावजूद समता एवं क्षमारूपी चाबी से करना चाहिए। वर्तमान में महाराजजी के प्रवचनों में तथा विधान में संभाग व प्रदेश के दिगर जिलों से सैकड़ों लोग यहां पहुंच रहे हैं और धर्म साधना कर रहे हैं।
  6. प्रातरूकाल उठते ही सबसे पहली जरुरत आदमी को अग्नि की होती है। चाहे वह पानी गरम करने के लिए हो अथवा भोजन बनाने के लिए या फिर प्रकाश करने के लिए, हर कार्य के लिए अग्नि की जरुरत होती है। उसी प्रकार से धन पर भी नियंत्रण रखना अतिआवश्यक होता है। यदि धन आने के बाद उस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो वह भी विनाश का कारण बनता है। यहां प्रवास कर रहे आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने एक जनसभा को स्थानीय जैन दिगम्बर मंदिर में प्रवचन करते हुए उक्त बातें कहीं। उन्होंने आगे कहा कि यदि सीमा से अधिक अग्रि का विस्तार हो जाता है तो वह विनाश का ही कारण बनती है। उसकी सीमा में आने वाले सभी को वह स्वाह कर जाती है और बाद में कुछ नहीं बचता। इसी लिए अग्नि का उपयोग करते समय बड़ी सावधानी से कार्य करना पड़ता है और उस अग्नि को सीमा से बाहर न जाये युक्तिपूर्वक कार्य करना पड़ता है। इसी प्रकार यदि व्यक्ति के पास आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह हो जाये और उसका विवेक पूर्वक उपयोग नहीं किया जाये तो वह धन मानव के लिए अग्नि का कार्य करता है। नीति एवं विवेक के अनुसार धन का उपयोग करने से वह न केवल व्यक्ति के लिए वरन् उसके परिवार, समाज, प्रदेश सहित समूचे देश के लिए उपयोगी होता है। उसके ठीक विपरीत यदि धन पर नियंत्रण नहीं रखा गया और उसे युक्तिपूर्वक खर्च नहीं किया गया तो वहीं धन घमंड, नशा सहित कई विकृतियां लाकर उस व्यक्ति, परिवार तथा समाज के लिए विनाश का कारण बनता है। इसीलिए धन और अग्नि को हमेशा भुक्ति सहित युक्ति से उपयोग करते हुए मुक्ति का मार्ग पर चलने का हर व्यक्ति को प्रयास करना चाहिए। सीमा से बाहर जाने पर यदि धन संग्रह हो गया है तो वह विनाश का कारण बनता है। इसीलिए जितना धन आता है उसका संग्रह करने के बजाये अतिरिक्त धन को धर्म, आध्यात्म तथा जनोपयोगी कार्यों में खर्च करना चाहिए। यदि व्यक्ति समझदार है तो वह स्वयं तो उस धन का उपयोग भंली भांति करेगा किन्तु उसने आवश्यकता से अधिक संग्रह कर लिया तो वह अतिरिक्त धन उस परिवार के आने वालों के लिए तथा उसकी संतान के लिए विकृति का कारण बनता है। इसीलिए समय रहते धन का अग्नि के समान युक्तियुक्त उपयोग करना आवश्यक होता है। इस अवसर पर प्रवचन के दौरान लोगों ने भाव विभोर होकर इसे अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया तथा आचार्य श्री के प्रति छोटी सी बात से इतना बड़ा जीवन जीने का सिद्धांत देने के लिए आभार मना।
  7. भगवान की भक्ति से भक्त अपने आप को स्वयं भगवान बना सकता है। इसी उद्देश्य को लेकर आगामी तीस दिसंबर से आठ जनवरी तक छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के मुख्यालय जगदलपुर में चैबीसी समवशरण विधान का आयोजन हो रहा है। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने नगर में होने वाले इस विश्व शांति महायज्ञ और चैबीसों जैन तीर्थंकरों की पूजा का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा कि यह पुण्य अवसर है कि समूचे भारत वर्ष में तीसरे स्थान पर यह विशेष अनुष्ठान का आयोजन हो रहा है। इसके लिए सीमित समय में बस्तर के दिगंबर जैन समाज ने जो तैयारियां की हैं वह प्रशंसनीय है। यह उल्लेखनीय है कि संभगीय मुख्यालय में आगामी 30 दिसंबर से यह विशेष अनुष्ठान आरंभ होकर 8 जनवरी तक संचालित होगा। इसके लिए रात दिन एक कर स्थानीय जैन समाज ने समूची तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। और निश्चित समय पर यह अनुष्ठान प्रांरभ हो जाएगा। इसके लिए पात्रों का चयन एवं अन्य व्यवस्थाओं का सिलसिला जारी है। महायज्ञ का निर्देशन ब्रम्हचारी विनय भैया बंडा वाले के द्वारा संपन्न होगा। इस अनुष्ठान से न केवल स्थानीय जैन समाज में अपूर्व उत्साह है वरन छत्तीसगढ़ सहित देश के कोने कोने से श्रद्धालु आकर इसमें भाग लेने की सहमति जता चुके हैं। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि व्यक्ति राग द्वेष और विभिन्न बुराईयों से घिरा हुआ रहता है। जीवन में उसे शांति नहीं मिल पाती। जीवन में यदि शांति पाना है तो अध्यात्म और धर्म का पथ अपनाना ही होगा। प्रस्तुत विधान एवं पूजा अर्चना में हम अपने घर परिवार और अन्य चिंताओं को छोड़कर केवल प्रभु की भक्ति और आराधना करेंगे। इस आराधना एवं भक्ति से हम राग द्वेष और क्रोध मान को छोड़कर सभी बुराईयों से मुक्त होकर भक्त से भगवना बनने की प्रक्रिया में संलग्र रहेंगेे। स्मरण रहे कि हम जब तक संसार के वैभव को नहीं छोड़ेंगे, उसका त्याग नहीं करेंगे तब तक वीतरागता प्राप्त नहीं होगी। इस आयोजन से न केवल मानव अपने आप को भगवान बनने की दिशा में वीतरागता पाने के लिए प्रस्तुत होगा वरन त्याग, संयम व तप के माध्यम से स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए सार्थक प्रयास करेगा। इस अनुष्ठान में संपूर्ण विश्व के कल्याण एवं मंगल की भावना भी निहित है जो मंत्रों के माध्यम से निश्चय ही फली भूत होगी।
  8. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि साक्षात महावीर भगवान आज नहीं है लेकिन उनके द्वारा बताया हुआ मार्ग तो है। यह धारा अनादि अनिधन है। जिनेन्द्र भगवान के द्वारा दिया हुआ यह चिन्ह है। यहाँ व्यक्ति की पूजा नहीं व्यक्तित्व की पूजा होती है। मुद्रा घर की नहीं रहती है, देष के द्वारा छपती है, उसके लिये सभी मान्यता देते हैं। विदेश की मुद्रा से यहाँ व्यापार नहीं होता है उसके लिये करेन्सी को कन्वर्ट करना पड़ता है। जीवन का निर्वाह नहीं निर्माण करना है। टेंशन मत रखो intension सही रखो और मैडिटेशन करो। जैसा उद्देश्य होता है वैसा ही निर्देश होता है। जैसे नगर में प्रवेष करने का उपाय उसका द्वार होता है वैसे ही ज्ञान, चारित्र आदि का द्वार सम्यक्त्व है। यदि जीव सम्यक्त्व रूप से परिणत होता है तो वह ज्ञानादि में प्रवेश कर सकता है। जैसे नेत्र मुख को शोभा प्रदान करते हैं वैसे ही सम्यक्त्व से ज्ञानादि शोभित होते हैं। ‘‘आप’’ यह शब्द आदर सूचक है। छोटो को भी सम्मान सूचक शब्द बोला जाता है। राजस्थान, महाराष्ट्र में भी आदर सूचक शब्दों का प्रयोग होता है। इस जगत में लोग पर पदार्थों में अनुराग रूप हैं, स्नेही जनों में प्रेमानुरागी है कोई मंजानुरागी है किन्तु तुम जिनषासन में रहकर सदा धर्मानुरागी रहो। अमेरिका में घाटा लगता है और भारत में चेहरा मुरझा जाता है, ब्लड़ प्रेशर में अंतर आ जाता है, श्वासोष्वास में अंतर आ जाता है, खून ही जल जाता है इसलिये इससे बचने के लिये देव, शास्त्र, गुरू के प्रति आस्था आवष्यक है।
  9. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि आज के दिन प्रभु को मुक्ति मिली उनका निमित्त पाकर असंख्य जीवों का कल्याण हुआ है। आज प्रातः हमने वर्षायोग का निष्ठापन किया है। प्रतिभा स्थली बनाने की भावना छत्तीसगढ़ वालों की बहुत अच्छी है और वे अच्छा प्रयास भी कर रहे हैं। इसमें बहुत लोगो ने सहयोग किया है। अभी हमने आग्रह स्वीकार नहीं किया है। प्रतिभा स्थली की रेंज कहाँ तक है यह अभी ज्ञात नहीं होगा। ज्ञान को सर्वगत कहा है, शिक्षा से जिंदगी क्या अगला भव भी सुधर जाता है। ब्रह्मचारणियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है (लगभग 150 है)। सरस्वती मंदिर तो अपने आप में महत्वपूर्ण है। प्रभु से प्रर्थना करते जाओ, कंधे और मजबूत करो। आचार्य श्री ने कहा कि अष्टहानिका पर भी कार्यक्रम होंगे। चातुर्मास समिति के अध्यक्ष श्री विनोद जैन ने कहा कि चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में 1200 बच्चों की शिक्षा एवं आवास की व्यवस्था के लिये भूमि उपलब्ध है और स्कूल एवं हास्टल बनाने में भी कोई कमी नहीं आयेगी ऐसा हम पूरे छत्तीसगढ़ वासियों का आष्वासन है। प्रतिभा स्थली बनाने के लिये पूरे भारत से लोग आ रहे हैं। निश्चित रूप से प्रतिभा स्थली चंद्रगिरि में ही खुलेगी।
  10. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छ्त्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि दुर्जन से की गई मित्रता हितकर नहीं होती दुःख दायक होती है। कोई रूधिर से सने हुए वस्त्र को रूधिर से ही धोता है तो वह विषुद्ध नहीं होता है। उसी तरह वह आलोचना शुद्धि दोष को दूर नहीं करता। जिन भगवान के वचनों का लोप करने वाले और दुष्कर पाप करने वालों का मुक्ति गमन अति दुष्कर है। यदि उपचार नहीं कर सकते मरहम पट्टी नहीं कर सकते तो डण्डा तो मत मारो उस रोगी को। मैत्री उससे करो जो समय पर काम दें। सभा उसी का नाम है जिसमें तालियाँ बजती रहे कभी – कभी कवि लोग बोलते हैं तो तालियाँ बजती रहती है। दोनों हाँथों की अंजली बनाकर सिर नवाकर गुरू के सामने उनकी बांयी ओर एक हाँथ दूर गवासन से बैठकर न अति जल्दी में और न अति रूक – रूक कर स्पष्ट आलोचना करें। आज इलाज होता है तो रिएक्षन का खतरा रहता है। चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत सारी परेशानियाँ रहती है यह सावधानी से करना चाहिये। प्रवचन के समय बारिष शुरू हुई तो आचार्य श्री ने कहा कि आरती भी हो रही है और संगीत भी हो रहा है। मन की कलुषता को दूर करना चाहिये। धर्म की शुरूआत होती है तो अषुद्ध मन शुद्ध बन जाता है। योजना बनाना तो सरल है लेकिन राॅ मटेरियल जब तक इकठ्ठा नहीं हो जाता योजना बनाना पर्याप्त नहीं है। फाउंडेषन मजबूत होना चाहिये। भूकम्प निरोधी फाउंडेषन होना चाहिये। भाव सबके एक होते हैं पर भाषा अलग – अलग हो सकती है। बच्चा माँ के भाव समझता है। बच्चा भी बार – बार आपकी फेस रीडिंग करता है। इसलिये प्लान आवष्यक है। जिस वस्तु से हमें राग हुआ है उसको छोड़ना चाहिये। आज परिवार के सदस्य सभी पार्टियों में रहते हैं जब कोई पार्टी नहीं बचती है तो निर्दलीय हो जाते हैं।
  11. चंद्रगिरि डोंगरगढद्य छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि कर्नाटक वालों ने कहा कुछ उद्बोधन कन्नड़ में हो, तो हम कुछ पंक्तियाँ सुनाते हैं – ‘‘मेहनत करो तो मीठा खाना भी सार्थक होता है ’’। एक पिता ने अपने पुत्र को पत्र लिखा उसमें धन को शक्ति कहा है लेकिन इसका दुरूपयोग नहीं करना। गाय, भैंस, हाँथि, घोड़े आदि को भी धन कहा है। आज भारत से मांस का निर्यात हो रहा है और गोबर अर्थात खाद का आयात हो रहा है यह शर्मनाक है। जिससे पशुओं की हिंसा हो रही है। गुरू जी (आचार्य श्री ज्ञानसागर जी) ने राजस्थान के मदनगंज किशनगढ़ में यह कहानी सुनाई थी। जो हमें पहली बार याद आ गई है जिसमें ससुर अपनी चार बहुओं को पुड़ीया में बीज देता है। पहली बहु पुडिया खोलकर देखती है तो धान का बीज मिलता है उसे वह कचरे में फेक देती है और सोचती है कि जब ससुर जी मांगेंगे तो बोरी में से निकालकर दे दूंगी। दूसरी बहू उसे खा लेती है। तीसरी बहू उसे कपड़े में लपेटकर तीजोरी में रख लेती है और चैथी सबसे छोटी बहु उन बीजों को अपनी बाड़ी में बोती है और उसको अच्छे से खाद – पानी देती है जिससे और बीज उत्पन्न होते हैं उसे वह सारे गाँव वालो को बाँट देती है। जिससे सभी के खेत लहलहा उठते हैं और हरे भरे हो जाते हैं और सारे गाँव को उसका लाभ होता है। एक दिन ससुर जब अपनी चारों बहुओं से पुछते हैं कि उन्होने जो पुडिया दिया था तो उसका क्या किया ? तो बड़ी बहु ने बोरी से निकालकर दे दीया तो ससुर ने पूछा क्या यह वही बीज है जो मैने आपको दीये थे तो उसने कहा नहीं उसे तो मैंने फेक दिया तो उन्होने कहा आज से तूम घर में साफ सफाई का काम करोगी। दूसरी बहु से पूछा कि तूमने उन बीजों का क्या किया ? तो उसने कहा कि खा लिया तो ससूर ने कहा कि तूम रसोई घर का काम करोगी। तीसरी बहु से पूछा कि तूमने उन बीजों का क्या किया ? तो उसने कहा कि उसे तिजोरी में रख दिया था तो उसे दिखाने को कहा । जब उसने पुडिया देखी तो उन गेहूँ में गुन लग गया था वह सड़ गया था। तो ससुर ने तीसरी बहु को घर का धन संभालने के लिये तिजोरी की चाबी दे दी। चैथी बहु (छोटी बहु) से पूछा कि तूमने उन बीजों का क्या किया ? तो उसने कहा कि उन बीजों को घर की बाड़ी में बो दिया और आज उन्ही बीजों से सारे गाँव में गेहूँ की फसल लहलहा रही है और उस पुडीया के बीजो से आज ट्रकों में गेहूँ भरा गया है। तो ससूर ने कहा कि छोटी बहु सबसे समझदार है और यह धन का सदुपयोग जानती है तो इसे ही गृहस्थी संभालने को दिया जाये जिससे कि धन का सही उपयोग हो सके। हमें धन का सही उपयोग करना चाहिये उसकी मदद करना चाहिये जिसको आवश्यकता है।
  12. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, भव पाँच प्रकार के संसार का वर्णन किया गया है। अनंत संसार सागर में मनुष्य पर्याय पाना दुर्लभ है। मनुष्य क्षेत्र अल्प है, त्रिर्यंच तो सब जगत में उत्पन्न होते हैं। बालू की लकीर के समान क्रोध, लकड़ी के समान मान, कीचड़ के समान लोभ है। दूसरे पर झूठा दोष लगाना, दूसरे के गुणों को न सहना, ठगना ये दुर्जनों के आचार है। दूसरे के धन को किसी भी बुरे माध्यम से लेना खोटा कार्य है। धन से भी जीवों को संतोष नहीं होता है। जैसे सूर्य मण्डल में अन्धकार, प्रचण्ड क्रोधी मे दया, लोभी में सत्य वचन,मानी में दूसरे के गुणों का स्तवन, दुर्जनों में उपकार की स्वीकृति, देष, कुल, रूप, आरोग्य, आयु, बुद्धि, ग्रहण, श्रवण और संयम ये लोक में दुलर्भ है। जाति, कुल, रूप, ऐष्वर्य, ज्ञान, तप और बल को पाकर अन्य भी इन गुणों में अधिक है ऐसा अपनी बुद्धि से मानकर गर्व न करना। दूसरों की अवज्ञा न करना, अपने से जो गुणों में अधिक हो उनसे नम्र व्यवहार करना एवं किसी के दोष नहीं देखना।
  13. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि यह जीव आहार मय है, अन्न ही इसका प्राण है। अनुशासन में रहना कठिन होता है। सिंह को भी रिंग मास्टर अपने काबू में कर लेते हैं। ज्ञानी आचार्य के द्वारा श्रुत का ज्ञान कराने से और योग्य शिक्षा रूप भोजन से उपकृत होने पर भूख प्यास से पीडि़त होते हुए भी ध्यान में स्थिर होता है। अनुशासन रूपी भोजन 24 घंटे करो आप। डाॅ. रोगी के आवेश से हताश नहीं होते हैं और होने भी नहीं देते, रोगी को “यू आर प्रोग्रेसिव” कहते हैं। साधक भले ही दुबला पतला हो लेकिन धैर्य शाली होता है। वह योद्धा की भाँति होता है। रोगी को औषधी के प्रति आस्था और बहुमान होना चाहिये और पावर भी होना चाहिये। जैन साइंस शब्द के बारे में कुछ अलग बताता है। शब्द कभी नहीं कहते कि हमें सुनो। केवली भगवान का यह वैचित्र है जो 4 घंटे लगातार दिव्य ध्वनि खिरती है। शब्दों के द्वारा लड़ो नहीं भाव देखो फिर बोलो। आप लोग बोलते हैं कि “हमारा लड़का तो ऐसा कर ही नहीं सकता”, भीतरी आत्मा की बात करते हैं तो शब्द गौंण हो जाते हैं। वह ठीक हो तो ट्रीटमेंट किया जाता है। मानसिकता अच्छी हो तो ही इलाज किया जा सकता है। आत्मा पर चोट पड़ जाये तो काम हो जाता है। बिन भाषा के भाव से भी काम हो जाता है। वह साधक पावरफुल हो जाता है उपदेश से। बहुत अच्छी आर्ट बतायी गयी है यहाँ धर्म के माध्यम से। यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन “संचार” एवं सप्रेम जैन ने दी है।
  14. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने एक वृद्ध का दृष्टांत सुनाते हुये कहा कि आपकी क्या चीज गुम गई है ? तो उन्होने कहा कि जवानी मेरी कहीं धूल में गुम गई है वह ढूंढ़ रहा हूँ। हम ठान ले तो कोई काम असंभव नहीं है । पासिबिलिटी रहती है तो कार्य होता है। आत्मा की कोई ऐज नहीं है इसलिये अपने आपको वृद्ध या जवान नहीं समझें। चींटी में वही आत्म तत्व है और बड़े पशुओं आदि में भी वही आत्म तत्व है। जितना जाना माना उस पर शोध प्रारंभ कर दो। आँखें बंद करोगे तो आत्म तत्व दिखेगा। गुरू जी (आचार्य श्री ज्ञानसागर जी) सभी की समस्याओं का हल निकाल देते थे| चाहे बूढ़े हो या जवान क्षमा भीतर से होना चाहिये। पहले गुरूकुल पद्धति से पढ़ाई होती थी, जब पढ़ाई होती थी ब्रह्मचर्य व्रत से रहते थे उसके बाद गृहस्थ मार्ग या मोक्ष मार्ग को धारण करते थे। एक लड़के ने कृष्ण पक्ष और एक लड़की ने शुक्ल पक्ष का ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया यह कथा सुनाते हुये कहा कि यह महत्वपूर्ण है। सत् संतान की प्राप्ति के लिये विवाह किया जाता है। मैं तो कन्या दान को ही विशेष मानता हूँ। आज बच्चों के सारे संस्कार खत्म होते जा रहे हैं। विदेशी संस्कृति से खान – पान आदि बिगड़ रहा है। ब्रह्मचर्य तो ठीक है पर परिवार ही नहीं रहेगा तो क्या करेंगे। बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहिये । भविष्य में आगे माता – पिता, भाई – बहिन, मामा आदि नहीं रहेंगे। “सत्यमेव जयते कार्यक्रम” में भी दिखाया गया है ऐसा सुना है कि आज गर्भपात बहुत हो रहे हैं। सोनोग्राफी के द्वारा पहले ही बच्चे का पता चल जाता है फिर उसे इच्छानुसार न होने पर समाप्त किया जा रहा है। अपने बच्चों को समझाओ नही तो बाद मे रोओगे। घर पर ताला रहेगा हमेशा , क्या स्थिति रहेगी बीमार होने पे पानी भी नहीं देगा कोई। ज्वाइंट फैमिली तो आज स्वप्न जैसा हो गया है। इसलिये माता – पिता का यह परम कर्त्तव्य है कि अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें ताकि उनका भविष्य एवं संस्कृति अच्छी बन सके।
  15. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि मेहमान के यहाँ खुलकर के कार्य नहीं कर पाते हैं संकोच से करते हैं। विदेश में ऐसे प्रयोग कर रहे हैं गाय का दूध 45 रू. लीटर है। उस दूध का नाम अहिंसक दूध रखा है, वहाँ गाय के नाम भी रखे जाते हैं श्यामा, गोरी आदि शब्दों में अंतर आ जाता है, वह दूध ज्यादा देती है। आपके प्रेम, वात्सल्य से बहुत अंतर आता है जैसे बच्चों में आहलाद होता है वैसे ही गायों में होता है। उस दूध का सेवन करने के बाद कहते हैं ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिलता। संस्कृत श्लोक, संगीत सुनाये जाते हैं उससे भी लाभ होता है। वहाँ का वातावरण ऐसा बना है कि सब ठीक रहता है। शब्द ऐसे बोलो कि गुलाब जामुन को लोग भूल जायें कैसे बोलना, कब बोलना यह महत्वपूर्ण है। शब्दों का व्यवस्थान भी महत्वपूर्ण है। जहाँ भी रहो अच्छा वातावरण बनाओ। ये लोग बडे़ बाबा के पास से आये हैं, बडे़ बाबा सिंहासन पर बैठ ही गये सबसे ज्यादा श्रेय दमोह वालो को जाता है। जो अच्छे आचरण वाले हैं उनके गुणों की कथा हम करते रहें। आप चाँवल चढ़ाते समय ध्यान रखें बच्चों को नहीं दें बादाम वगैरह दें जिससे बिखरायें नहीं। चढ़ाते समय गिरना नहीं चाहिये भगवान तो कुछ बोलते नहीं हैं इसलिये हम बोल रहे हैं। आप अच्छे से पालन करेंगे तो तालियाँ बजायेंगे लोग। पूजन कैसे करना यह भी ध्यान में रखना चाहिये। एक पूजन एक सांथ सामूहिक करेंगे तो आनंद आयेगा। ऐसी चेष्टा मत करो जिससे कि लोग बिगड़ जायें। नेता ऐसा हो जिससे लोग सींखे। एक नेता अच्छा होता है तो सबको लाभ होता है। तभी समाज का विकास, उद्धार होता है। अच्छाइयों का प्रचार – प्रसार होता रहना चाहिये। आप रोते हो तो यह सोचो की रोने की नौबत आयी क्यों ? बच्चे आचरण से नहीं गिरें क्योंकि आचरण से गिरे तो कोई नहीं उठा सकेगा। नेतृत्व देने वाले बहुत मजबूत होना चाहिये। एक शिक्षक को तैयार करने में करोड़ो रूपये व्यय होते हैं। आदर्श शिक्षक – शिक्षिकायें बहुत बड़ी निधि है। गरीब हो, अमीर हो सबको पढ़ाते हैं। कालेज तो खूब खुल रहे हैं पढाने वाले नहीं है। परीक्षा ली नहीं जाती दी जाती है। आज सब कम्प्यूटराइज हो गया है। भगवान से हम प्रार्थना करते हैं कि सबकी संलेखना अच्छी हो। भगवान के यहाँ कोई नौकर नहीं होता है तुम यदि स्वयं द्रव्य धोओं और और झाडू लगाना भी सौभाग्य है। यह सोंचे की मैं महान कार्य कर रहा हूँ अहो भाग्य समझो अपना। भगवान के दरबार में किया हुआ कोई कार्य व्यर्थ नहीं जाता है। आचार्य श्री ने कन्नड़ में प्रवचन किया एवं दमोह (म.प्र.) से 300 लोग एवं गोटेगांव से 200 लोग आये थे आचार्य श्री के दर्शन के लिये।
  16. मंच संचालक चंद्रकांत जैन ने बताया कि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के सानिध्य में विश्व अहिंसा दिवस मनाया गया वैसे भी देखा जाये तो महात्मा गांधी जी का जन्म भी अक्टूबर में हुआ और आचार्य श्री विद्यासागर जी का भी जन्म अक्टूबर में हुआ । दोनों महापुरूषों ने अहिंसा का शंखनाद किया। आचार्य श्री के आशीर्वाद , प्रेरणा एवं उपदेश से पूरे भारत में लगभग 100 गौशालायें चल रही है । हिंसा को मिटाने के लिये अहिंसा का प्रचार आवश्यक है। आचार्य श्री के हृदय में बहुत अनुकम्पा, दया है। वह प्रवचन में गाय की रक्षा, पालन के बारें में कहते हैं, गाय धन है। इसी उद्देश्य को लेकर शांति धारा दुग्ध योजना बनी है सागर (म.प्र.) के बीना बारह में । 100 एकड़ में प्लांट की शुरूआत की जायेगी जिसमें दूध से पनीर, मावा, दही, एवं अन्य वस्तुयें बनायी जायेगी। जिससे मिलावटी अशुद्ध खाद्य पदार्थों से होने वाली बीमारियों से बचेंगें। आचार्य श्री ने कहा दयावान व्यक्ति ही अहिंसा का पालन करता है।दूसरे का पदार्थ लेते हैं उसको उठाते हैं तो अहिंसा व्रत में दोष लगता है। संयम में मून लाईट होती है। प्राणी के प्राणों का वियोग करना हिंसा है और उससे विपरित करना अहिंसा व्रत है। आपका धन हिंसा के कार्यों में लगता है तो दोष आपको लगता है। आपके वोट से ही वोट बैंक बनता है। वस्तु खरीदते समय यह अवश्य देखें कि यह हिंसक सामग्री से तो नहीं बना है। गायों के पालन संबंधी डाक टिकिट आज तक क्यों नहीं आया। आपका वोट बहुत किमती है आप ऐसे लोगों को वोट दें जो गाय और बछडे़ की रक्षा करे। सरकार की बुद्धि को ठीक करने के लिये अहिंसा की यूनियन जरूरी है। कृत, कारित, अनुमोदना से हिंसा का समर्थन करते हैं सभी। अहिंसक लोगो का जीना मुष्किल हो जायेगा यदि हिंसा का समर्थन करते रहे तो। परिग्रह का सही उपयोग करना सीखो। आप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केबीनेट मंत्री से अहिंसक डाक टिकिट की माँग करिये। माँ बच्चों को अच्छी बातें सिखायें, माँ का अर्थ मास्टर होता है। आज 70 वर्ष हो गये हैं भारत को स्वतंत्रता मिले। आप लोगो को अहिंसक अभियान चलाना चाहिये। शाकाहारी लागों को पीड़ा हो रही है । आप लोग अहिंसा के प्रचार – प्रसार में भाग लीजिये। जो वोटर है उनका क्या दायित्व है समझो। आप लोग गाड़ी कम रखेंगे तो पेट्रोल के लिये मांस निर्यात नहीं करना पडेगा और गाय की रक्षा हो सकेगी। कत्लखाने खुलते जा रहे हैं इन पर रोक लगाने का उपाय है। वोटर पिता तुल्य होता है। बच्चों को पढ़ने में मदद करें– बच्चे जो बाहर पढ़ने एवं सर्विस करने जाते हैं तो उनके रहने के लिये स्थान नहीं मिलता है कोटा का कोटा पूरा हो गया है । इंदौर भी आगे बढ़ रहा है । बुंदेलखण्ड आदि से लोग पहुँच रहे हैं क्योंकि पास में है। बच्चे गाजर, मूली, प्याज, आलू आदि गढ़ंत नहीं खाते हैं, रात्रि में भोजन नहीं करते हैं। पूजन, देव दर्शन आदि करते हैं। संचालक ने कहा कि प्रतिभा स्थली का नाम पूरे विश्व में फैल गया है । आचार्य श्री कहते हैं “कहो मत करो”, ब्र. अनिल भैया (उदासीन आश्रम इंदौर) ने कहा कि आचार्य श्री के आशीर्वाद से कार्य कर रहे हैं। आचार्य श्री के आशीर्वाद से इंदौर में भी प्रतिभा स्थली प्रारंभ होने की सम्भावना है।
  17. छत्तीसगढ़ के प्रथम दिगम्बर जैन तीर्थ चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने रविवार को हुये प्रवचन में कहा की कई वर्ष पूर्व भोपाल में हुये त्रासदि के कारण आज भी कई जगहो के जल विषाक्त हैं। सबसे ज्यादा प्रदूषण उत्पादक मनुष्य स्वयं ही है। पर्यावरण दूषित करते हैं मनुष्य। दूषित मन को सत्साहित्य एवं उपदेश के माध्यम से हम ठीक कर सकते हैं। जल कितना भी दूषित क्यों न हो दिशा चेंज कर विधिवत उसे साफ (प्यूरीफाई) किया जा सकता है। मन को फिल्टराईज करें। गाड़ी चलाने वाले समय को बचाते हैं जबकि उन्हे अपनी जिंदगी को बचाना चाहिये। मन, वचन, काय तीनों दूषित हो रहे हैं। आप जितनी सुख – सुविधा में रहोगे उतना ही सम्यगदर्शन दूर रहेगा। भगवान की कीमत नहीं देखें उनके गुणों को देखें। हमें अपने दोषों को कम और गुणों को बढ़ाना चाहिये। जल प्रवाहित होता रहेगा तो ठीक रहता है। संगति अच्छी मिलती है तो सब ठीक हो जाता है। हे भगवान उलझे हुये मनुष्य को सुलझे हुये पशु – पक्षियों के उदाहरण देना आपके ही वश की बात है। मन, वचन, काय से भगवान की सच्ची भक्ति व पूजा की जाये तो सब ठीक हो जाता है। शिक्षक के द्वारा जब स्कूल में डाँटा जाता है तो पशुओं के नाम से डाँटा जाता है, उसके बिना व्यक्ति सुधरता नहीं है। हमने “मूक माटी” में लिखा है कि गधा भी अच्छा प्राणी है गद् + हा, गद = रोग, हा = दूर करने वाला, अर्थात् रोगो को दूर करने वाला। अज्ञान रूपी रोग को दूर करना चाहते हो तो गद्हा को साथी बना लो। यदि मनुष्य अपनी भीतरी आँखे खोल ले तो सब ठीक हो जायेगा। मनुष्य को अपने दोषों को कम और गुणों को बढ़ाने के लिये ” ट्राय अगेन एण्ड अगेन” करते रहना चाहिये।
  18. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि अशोभनीय गुण वाले मनुष्य के संसर्ग से मनुष्य उसी की तरह स्वयं भी अशोभनीय गुणवाला हो जाता है। दुर्जनों की गोष्ठी के दोष से सज्जन भी अपना बड़प्पन खो देता है। फूलों की कीमती माला भी मुर्दे पर डालने से अपना मूल्य खो देती है। दुर्जन के संसर्ग से लोग व्यक्ति के सदोष होने की शंका करते हैं। जैसे मद्यालय में (शराब की दुकान में) बैठकर दूध पीने वाले की भी मद्यपायी (शराबी) होने की शंका करते हैं। लोग दूसरों के दोषों को पकडने के इच्छुक होते हैं और परोक्ष में दूसरो के दोषों को कहने में रस लेते हैं। इसलिये जो दोषों का स्थान है उससे अत्यन्त दूर रहो क्योंकि ऐसा न करने से लोगोें को अपवाद करने का अवसर मिल जाता है।दुर्जनों की संगति से प्रभावित मनुष्य को सज्जनों का सत्संग रूचिकर नहीं लगता। वोट नहीं देता है लेकिन सपोर्ट तो रहता है। इसलिये जैसी स्थिति हो उसमें विवेक लगाकर कार्य करना चाहिये। हमें सभी बातों पर गौर करना चाहिये। हमें धार्मिक वातावरण बनाये रखना चाहिये जिससे परिणाम अच्छे रहते हैं। सज्जनों का सत्संग पुण्यवर्धन में सहायक होता है। पूज्य महापुरूषों की विनय करने से उनके जैसा बनने में सहायता मिलती है।
  19. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि जैसे सुगंध से रहीत फूल भी “वह देवता का आशीर्वाद है ” ऐसा मानकर सिर पर धारण किया जाता है। उसी प्रकार सुजनों के मध्य में रहने वाला दुर्जन भी पूजित होता है। जिसको धर्म से प्रेम नहीं है तथा जो दुःख से डरता है वह मनुष्य भी संसार भीरू के मध्य में रहकर भावना , भय, मान और लज्जा से पाप के कार्यों से निवृत होने का उद्योग करता है। अपने ही भरण – पोषण में लगे रहने वाले क्षुद्रजन तो हजारों हैं किन्तू परोपकार ही जिसका स्वार्थ है ऐसा पुरूष सज्जनों में अग्रणी विरल ही होता है। हृदय को अनिष्ट भी वचन गुरू के द्वारा कहे जाने पर मनुष्य को ग्रहण करना चाहिये। जैसे बच्चे को जबरदस्ती मुँह खोलकर पिलाया गया घी हितकारी होता है। उसी तरह वह वचन भी हितकारी होता है। अपनी प्रशंसा करना सदा के लिये छोड़ दो। अपने यश को नष्ट मत करो क्योंकि समीचीन गुणों के कारण फैला हुआ भी आप का यश अपनी प्रशंसा करने से नष्ट होता है। जो अपनी प्रशंसा करता है वह सज्जनों के मध्य में तृण की तरह लघु होता है।
  20. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि जिन भक्ति जिनके हृदय में होती है उसे संसार से डर नहीं लगता है। जब अपने भीतर है तो माँगने की क्या आवष्यकता है। अच्छे व्यक्ति माँग करते हैं जैसे नेताओं से माँगते हैं। धर्म कर्मों को नष्ट करता है। मेरू की तरह निष्चल भक्ति होनी चाहिये। बगुला जैसी भक्ति नहीं होना चाहिये। श्वास – श्वास में भगवान के प्रति समर्पण होना चाहिये। कोई कुछ भी कह दे आस्था मिटती नहीं है । यदि अटूट भक्ति है तो भक्त बनते ही प्रत्येक क्षण भगवान की याद में व्यतीत होता है। कहते हैं कि श्आधा भोजन कीजिये दूना पानी पीव तिगना श्रम चैगनी हंसी वर्ष सवा सौ जीवश् यह प्रसिद्ध है। आज कवितायें यदि एक पृष्ठ में जगह छोड़कर लिखी जा रही है। ऐसा प्रकाषन हो रहा है। यह इंगित कर रहे हैं कि आप सावधान होकर पढि़ये । जैनाचार्य कहते हैं कि दूसरों की गल्ती की ओर नहीं देखो अपनी गल्ती को सुधार करने की कोषिष करो। मंद बुद्धि के लिये कहा कि मंद आँच पर ही सब कुछ पकता है। आत्मा का स्वभाव क्रूर होना नहीं है। दूध में मलाई जब उबाती है जब दूध शांत हो जाता है।
  21. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि अपनी प्रषंसा करने से अपने गुण नष्ट हो जाते हैं। अपनी क्षमता का उपयोग करें मन को वष में करें । मोबाईल मंदिर में संत निवास में सब जगह बजते रहते हैं कोई ध्यान नहीं देता है इससे बहुत सी बीमारियाँ भी होती है इसका सीमित उपयोग करें। ग्रन्थों के दृष्टांत देकर आचार्य श्री ने कहा कि धन का उपयोग पुण्य कार्यों में करो वह तो नष्ट होगा ही यदि पुण्य कार्यों में उपयोग करेंगे तो और पुण्य बंध होगा। अपनी क्षमता का उपयोग धार्मिक कार्यों में करो तभी सार्थकता है। मुद्रा की कीमत घट रही है भले ही आप के पास पैसा बढ़ रहा हो। चक्रवर्ती के पास भी बहुत वैभव होता है लेकिन उनका भी पतन हो जाता है। सम्पदा का सही उपयोग करना ही महान कार्य है। जो कमाया है उसे यथयोग्य दान करो मोह को कम करते हुये। रावण ने अपनी शक्ति का सहीं उपयोग नहीं किया यदि करता तो वह महापुरूष बन जाता । कठिन साधना सही उद्देष्य के साथ करने से लक्ष्य की प्राप्ति होती है। पहले के लोग शुभ उद्देष्य को लेकर कार्य करते थे। आज क्वालिटी कम हो रही है कार्य सही नहीं हो रहे हैं।
  22. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि वैराग्य वर्धक वाले के पास बैठने से वैराग्य वर्धन होता है। कई लोग बोलते हैं दुकान अच्छी चलती है तो क्या पहिये लगे हैं जो चलती है लेकिन बोला जाता है । विकासषील जो होते हैं उनसे मिलते रहो तो आपका विकास होगा। आज बाजार कुछ लोगो के हाथों से चल रहा है। कम मूल्य वाली वस्तु को ज्यादा मूल्य में बेचेंगे तो वह पैसा बीमारियों में जायेगा। महापुरूषों का नाम लेने से पाॅजीटिव पावर आता है। सज्जनों के द्वारा अपमान भी ठीक है लेकिन दुर्जनों के द्वारा पूजा भी ठीक नहीं। यह बहुत कठिन है लेकिन क्या करें अपनों के द्वारा अपमान सहन नहीं होता। बदला लेने के निर्मित से माया और क्रोध ने मीटिंग ली और बिल पास हो गया। उन्होने कहा वोट भी है और सपोर्ट भी है। जो सही निर्णय लेता है निष्पक्ष होकर वही सही निर्णायक माना जाता है। दुर्जनों की संगति से शील का नाष होता है। ऐसी संगति करो जिससे गुणों का विकास हो। अच्छी बात कड़वी लगती है लेकिन बताना जरूरी है। औषधि कड़वी भी अच्छी रहती है।
  23. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि सभी आत्मा एक सी है, मैं छोटा मैं बड़ा यही नहीं सोचना चाहिये। सज्जन मनुष्यों के बीच में अपने विद्यमान की गुण की प्रषंसा सुनना लज्जित होता है। तब वह स्वयं ही अपने गुणों की प्रषंसा कैसे कर सकता है। जिस समय वस्तु हम चाहते हैं नहीं मिलती है। अपनी प्रषंसा स्वयं न करने वाला स्वयं गुण रहीत होते हुये भी सज्जनों के मध्य में गुणवान की तरह होता है। कस्तूरी की गंध के लिये कुछ करना नहीं होता है। वचन से गुणों का कहना उनका नाष करना है। बहुत सोच समझकर इस दुनिया में कदम रखना चाहिये। एक कहावत है श्एक सबको हराता हैश् परनिंदा आपस में बैर, भय, दुःख, शोक और लघुता को करती है, पाप रूप है दुर्भाग्य को लाती है और सज्जनों को अप्रिय है। जो पर की निंदा करके अपने को गुणी कहलाने की इच्छा करता है वह दूसरे के द्वारा कडुवी औषधी पीने पर अपनी निरोगता चाहता है। सज्जनों के पास रहने से सज्जनता अपने आप आने लगती है। दूध लोकप्रिय बन जाता है सभी पीते हैं और चाहते हैं । साधना में पक्के होते हैं तब जाकर अन्तर दृष्टि होती है। श्क्वालिटी अपने आप में पुरस्कारश् है ऐसा एवार्ड तो संसार में है ही नहीं। चर्या के माध्यम से गुणों का कथन करें चर्या ही गुणों का प्रकाषन है। आज वेटिंग, सेटिंग, मीटिंग, गेटिंग हो रही है।
  24. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की भगवान् की पीठ के दर्शन और फोटो महत्वपूर्ण है वह आस्था के सांथ हो तो | पत्रिका में लेख माला चलती है और लिखा रहता है क्रमश: ऐसा ही यहाँ होता है | रत्नकरंडक श्रावकाचार में आचार्य समतभद्र जी ने शिल्पी का उदाहरण दिया है लोहे में जंग होता है तो वह कार्य नहीं करता है ऐसे ही हमें मन की जंग साफ करना होगी तभी कोई अच्छी वस्तु कार्य करेगी उपदेश का प्रभाव होगा | कई लोग पल्ला बिछाकर दर्शन करते हैं भगवान् से मांगते हैं | जैन धर्म में 24 तीर्थंकर (आदिनाथ से महावीर तक ) हुए हैं | 25 वे तीर्थंकर नहीं होते हैं 24 में से कोई तीर्थंकर बने यह भावना रखना चाहिये, वीतरागता की उपासना महत्वपूर्ण है | आउटलाइन को देखे प्रभु की वह भी महत्वपूर्ण है, प्रभु नहीं भी दीखते है तो आस्था की आँखों से देखें, अच्छे कार्य करते चले जायें तो पुण्य का बंध होता है | हमारी आस्था मजबूत होना चाहिये तभी हम मोक्षमार्ग पर आरूढ़ हो सकते हैं यहाँ वीतरागी की आस्था को महत्व दिया है | सौधर्म इन्द्र को देखकर अन्य देवों को भी सम्यग दर्शन हो जाता है | वह देखता है की मेरा मुखिया भी भगवन की भक्ति कर रहा है जो वैभवशाली है, मैं सबसे बड़ा इसी को मानता था यह देखकर सम्यक दृष्ठि हो जाते हैं देव |
  25. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि करोड़ो रूपयो का व्यय होने पर भी कुछ नहीं हो रहा है और कहते हैं कि आप जानों, और कहते हैं कि श्ष्वेत क्रांतिश् है । शासन क्या है आप जानो। कमा – कमाकर रख रहे हो क्या होगा, केवल नारे लगाने से कुछ नहीं होगा। आज दूध में मिलावट हो रही है, वह दूध बच्चों को भी पिलाया जाता है कितनी सारी बिमारियाँ होती है। धन विदेषों में रखते हैं क्योंकि माता – पिता, भाई – बहन, पति/पत्नि पर विष्वास नही रहता है। कोई ड्रेस एड्रेस नहीं है कोड से चलता है। इससे बढ़कर कोई पागलपन नहीं है । सारी सम्पदा विदेष में रखते हैं यह समझ में नहीं आ रहा है। जनसंख्या बढ़ती जा रही है, धर्म की श्रेणी नीचे आ रही हैै। आज हार्ट अटैक की औसत उम्र 40 साल हो गई है।जैसे व्यापारी सुबह अखबार नहीं देखता है तो व्यापार कैसे करेगा इसी प्रकार जिनवाणी पूछती है कि देखो और चर्या करो। दान श्रावक के लिये वरदान है।
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