भक्ति से डर भाग जाता है।
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि जिन भक्ति जिनके हृदय में होती है उसे संसार से डर नहीं लगता है। जब अपने भीतर है तो माँगने की क्या आवष्यकता है। अच्छे व्यक्ति माँग करते हैं जैसे नेताओं से माँगते हैं। धर्म कर्मों को नष्ट करता है। मेरू की तरह निष्चल भक्ति होनी चाहिये। बगुला जैसी भक्ति नहीं होना चाहिये। श्वास – श्वास में भगवान के प्रति समर्पण होना चाहिये। कोई कुछ भी कह दे आस्था मिटती नहीं है । यदि अटूट भक्ति है तो भक्त बनते ही प्रत्येक क्षण भगवान की याद में व्यतीत होता है। कहते हैं कि श्आधा भोजन कीजिये दूना पानी पीव तिगना श्रम चैगनी हंसी वर्ष सवा सौ जीवश् यह प्रसिद्ध है। आज कवितायें यदि एक पृष्ठ में जगह छोड़कर लिखी जा रही है। ऐसा प्रकाषन हो रहा है। यह इंगित कर रहे हैं कि आप सावधान होकर पढि़ये । जैनाचार्य कहते हैं कि दूसरों की गल्ती की ओर नहीं देखो अपनी गल्ती को सुधार करने की कोषिष करो। मंद बुद्धि के लिये कहा कि मंद आँच पर ही सब कुछ पकता है। आत्मा का स्वभाव क्रूर होना नहीं है। दूध में मलाई जब उबाती है जब दूध शांत हो जाता है।
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