सज्जनों के संग दुर्जन भी पूजित होता है
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि जैसे सुगंध से रहीत फूल भी “वह देवता का आशीर्वाद है ” ऐसा मानकर सिर पर धारण किया जाता है। उसी प्रकार सुजनों के मध्य में रहने वाला दुर्जन भी पूजित होता है। जिसको धर्म से प्रेम नहीं है तथा जो दुःख से डरता है वह मनुष्य भी संसार भीरू के मध्य में रहकर भावना , भय, मान और लज्जा से पाप के कार्यों से निवृत होने का उद्योग करता है। अपने ही भरण – पोषण में लगे रहने वाले क्षुद्रजन तो हजारों हैं किन्तू परोपकार ही जिसका स्वार्थ है ऐसा पुरूष सज्जनों में अग्रणी विरल ही होता है। हृदय को अनिष्ट भी वचन गुरू के द्वारा कहे जाने पर मनुष्य को ग्रहण करना चाहिये। जैसे बच्चे को जबरदस्ती मुँह खोलकर पिलाया गया घी हितकारी होता है। उसी तरह वह वचन भी हितकारी होता है। अपनी प्रशंसा करना सदा के लिये छोड़ दो। अपने यश को नष्ट मत करो क्योंकि समीचीन गुणों के कारण फैला हुआ भी आप का यश अपनी प्रशंसा करने से नष्ट होता है। जो अपनी प्रशंसा करता है वह सज्जनों के मध्य में तृण की तरह लघु होता है।
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