आउट लाइन को देखो !
चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की भगवान् की पीठ के दर्शन और फोटो महत्वपूर्ण है वह आस्था के सांथ हो तो | पत्रिका में लेख माला चलती है और लिखा रहता है क्रमश: ऐसा ही यहाँ होता है | रत्नकरंडक श्रावकाचार में आचार्य समतभद्र जी ने शिल्पी का उदाहरण दिया है लोहे में जंग होता है तो वह कार्य नहीं करता है ऐसे ही हमें मन की जंग साफ करना होगी तभी कोई अच्छी वस्तु कार्य करेगी उपदेश का प्रभाव होगा | कई लोग पल्ला बिछाकर दर्शन करते हैं भगवान् से मांगते हैं | जैन धर्म में 24 तीर्थंकर (आदिनाथ से महावीर तक ) हुए हैं | 25 वे तीर्थंकर नहीं होते हैं 24 में से कोई तीर्थंकर बने यह भावना रखना चाहिये, वीतरागता की उपासना महत्वपूर्ण है | आउटलाइन को देखे प्रभु की वह भी महत्वपूर्ण है, प्रभु नहीं भी दीखते है तो आस्था की आँखों से देखें, अच्छे कार्य करते चले जायें तो पुण्य का बंध होता है | हमारी आस्था मजबूत होना चाहिये तभी हम मोक्षमार्ग पर आरूढ़ हो सकते हैं यहाँ वीतरागी की आस्था को महत्व दिया है | सौधर्म इन्द्र को देखकर अन्य देवों को भी सम्यग दर्शन हो जाता है | वह देखता है की मेरा मुखिया भी भगवन की भक्ति कर रहा है जो वैभवशाली है, मैं सबसे बड़ा इसी को मानता था यह देखकर सम्यक दृष्ठि हो जाते हैं देव |
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