योद्धा जैसा होता है साधक।
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि यह जीव आहार मय है, अन्न ही इसका प्राण है। अनुशासन में रहना कठिन होता है। सिंह को भी रिंग मास्टर अपने काबू में कर लेते हैं। ज्ञानी आचार्य के द्वारा श्रुत का ज्ञान कराने से और योग्य शिक्षा रूप भोजन से उपकृत होने पर भूख प्यास से पीडि़त होते हुए भी ध्यान में स्थिर होता है। अनुशासन रूपी भोजन 24 घंटे करो आप। डाॅ. रोगी के आवेश से हताश नहीं होते हैं और होने भी नहीं देते, रोगी को “यू आर प्रोग्रेसिव” कहते हैं। साधक भले ही दुबला पतला हो लेकिन धैर्य शाली होता है। वह योद्धा की भाँति होता है। रोगी को औषधी के प्रति आस्था और बहुमान होना चाहिये और पावर भी होना चाहिये। जैन साइंस शब्द के बारे में कुछ अलग बताता है। शब्द कभी नहीं कहते कि हमें सुनो। केवली भगवान का यह वैचित्र है जो 4 घंटे लगातार दिव्य ध्वनि खिरती है। शब्दों के द्वारा लड़ो नहीं भाव देखो फिर बोलो। आप लोग बोलते हैं कि “हमारा लड़का तो ऐसा कर ही नहीं सकता”, भीतरी आत्मा की बात करते हैं तो शब्द गौंण हो जाते हैं। वह ठीक हो तो ट्रीटमेंट किया जाता है। मानसिकता अच्छी हो तो ही इलाज किया जा सकता है। आत्मा पर चोट पड़ जाये तो काम हो जाता है। बिन भाषा के भाव से भी काम हो जाता है। वह साधक पावरफुल हो जाता है उपदेश से। बहुत अच्छी आर्ट बतायी गयी है यहाँ धर्म के माध्यम से। यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन “संचार” एवं सप्रेम जैन ने दी है।
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