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अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. आचार्य श्री का दीक्षा महोत्सव हम सब के लिए जीवन का एक अनुपम पर्व बनकर उपस्थित होने जा रहा है, इस उत्सव में सहभाग ना केवल हम सबके आनंद की अभिवृद्धि करेगा अपितु हम सबके मन में अपने समय के सर्वोच्च मनीषी की आध्यात्मिक चेतना के साक्षात्कार का निमित्त भी बनेगा। जैसा कि आप सभी को विदित है कि गुरुदेव की दीक्षा का स्वर्ण महोत्सव अर्थात् 50 वाँ दीक्षा दिवस 28 जून 2017 आ रहा है। हम सबको इसे अलौकिक क्षण को एक महापर्व के रूप में आयोजित करना है। इस शुभ दिन को अविस्मरणीय बनाने के लिए हम सभी बहुत सारे आयोजन कर सकते हैं जैसे हर घर में दीपमालाएँ प्रज्वलित की जाएँ, हर मुनिभक्त श्रावक के निवास स्थान पर जैन ध्वजा लहलहा उठे, संस्थानों में आचार्य श्री के सुंदर चित्र सुशोभित किए जाएँ, नगर नगर और गाँव गाँव में "जैनम् जयतु शासनम्, वंदे विद्यासागरम्" के जयघोष के साथ प्रभात फेरियाँ, चल समारोह निकाले जाएँ, आचार्य छत्तीसी विधान, महा आरती, भक्ति संगीत, भजन कीर्तन संध्या, सांस्कृतिक कार्यक्रम, विद्वान ब्रह्मचारी भाई बहनों के प्रवचनों का आयोजन कर सकते हैं। मुनि संघ अथवा आर्यिका संघ का सान्निध्य मिले तो इन कार्यक्रमों की प्रभावना चौगुनी बढ़ जाएगी। Facebook https://www.facebook.com/events/1177215292401284/ Google plus https://plus.google.com/b/109681706525249991349/events/cad6f4jaikgu0pl4o5eooe86im4
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    Samyam Swarna Mahotsav is coming on Aashad Shukla Panchmi i.e. 28th June 2017. We all shall organise this Mahotsav with fervour and zeal in all parts of Bharat: Following are the standard functions which shall be followed all over the country: Morning events: 1. In every village, city a Prabhat Bheri shall be organised (a procession of the city/village). 2. After Prabhat-Pheri, Poojan of AcharyaShri, Acharya Chattissi Vidhan, Lecture on life/preachings of Acharyashri by scholers/members of the Samaj. 3. Distribution of Swalpahar (mini meal) to all who joined in the programmes 4. Distibution of Fruits/cloths/food/foodgrains/useful items to Orphanage/Old Age Homes/Slum area/poor colonies etc Afternoon events: 5. Organising painting competition, quiz based on life of AcharyaShri, Spiritual songs (Bhajan) by Mahila Mandals 6. Cleaning of temples, tree plantation in temple campus/Dharmashala, changing cloths/covers of Shashtra/Jinwani/granth etc Evening Events: 7. Grand Aarati of Poojya Gurudev 8. Lecturs of prominent Jain scholers/Brahmachariji 9. Cultural programmes/Poem reciting/Kavi Sammelan/Bhajan Competitions etc
  3. आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का देश के नाम एक सन्देश भारत खेत खलिहानों का देश है, कत्लखानों का नहीं, ग्वालों किसानों का देश है, वधिकों का नहीं। केवल क्रूरतम अपराधी को मुत्युदण्ड मिलता है। बूचड़खानों को निरपराध प्राणियों को मूत्युदण्ड देने का अधिकार क्यों मिल रहा है? पश-ुधन हमारी प्राकृतिक धरोहर हैं, इसके विनाश से न तो हरियाली बचेगी, न ही, खुशहाली। विदेशी मुद्रा के लिये दुधारू पशुओं का कत्ल कराके माँस-निर्यात करना और विदेशों से भारत में दूध-पाउडर और गोबर का आयात करना अर्थनीति है, अनर्थनीति है। स्वतन्त्रता दिवस (गणतन्त्र दिवस) मनाना तभी सार्थक होगा, जब भारत के पशु-पक्षियों को भी जीने की स्वतन्त्रता मिले। क्या हमारा देश केवल मनुष्यों का देश है? पशुओं का शक्तिदायक व स्वास्थ्यवर्धक दूध पीकर उन्हीं का खून करके उनका खून बेचना ‘मातृदेवो भव‘ वाक्य का घोर अपमान है, मातृ-हत्या तुल्य भीषण अपराध है देश की उन्नति माँस निर्यात करने से असंभव है क्योंकि हिंसा से कमाया गया धन, मन को त्रस्त और तन को अस्वस्थ करता है, ऐसा धन नित नये पनपने वाले रोगों के उपचार पर खर्च हो जाता है, देशोन्नति के लिये नहीं बचता। भारतीय संस्कृति आंतकवाद की पोषक नहीं, अहिंसावाद की पोषक रही है इसलिये माँस-उद्योग लोकतन्त्र का नहीं, लोभतन्त्र का विभाग है। "एक ओर पर्यावरण की रक्षा के लिए वृक्षारोपण को बढ़ावा देना और दूसरी ओर कत्लखानों में जानवर कटवा कर प्रदूषण फैलाना" ये नीति नहीं, अनीति है। ‘अनुपयोगी' कहकर प्राणियों का नाश देश का विनाश है, क्योंकि कोई प्राणी कभी भी अनुपयोगी नहीं होता । कत्लखानों को दुग्ध-उत्पादन केन्द्रों में परिवर्तित करने ओैर कसाइयों को ग्वालों मे रूपान्तरित करने से भारत में पुनः दूध-घी की नदियाँ बहेंगी। हमारे राष्ट्रध्वज के तीन वर्ण शान्ति, प्रेम और अंहिसा के प्रतीक है, मांस-निर्यात को बंद करके तिरंगे को कलंकित होने से बचाएँ। स्रोत: "गौधानम राष्ट्रवर्धनम " पुस्तक का पृष्ठ 9 जानिये और जुड़िये आचर्य श्री के मार्ग दर्शन से चल रही विभिन्न जन हित योजनायों से !
  4. हाईस्कूल के बाद लिया था सन्यास, कठिन तप-साधना से बने आचार्य जबलपुर। आचार्य विद्यासार जी को देश-दुनिया के लोग जानते हैं। उनके संघर्ष और तप से पूरी दुनिया प्रभावित है। मंगलवार को वे जबलपुर आए तो हजारों की संख्या में श्रावक उनके दर्शन के लिए पहुंच गए। ऐसे में हम यहां आचार्य श्री के जीवन से जुड़ी जानकारी साझा कर रहे हैं। आचार्य विद्यासागर जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946, शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा व मां श्री मति ने उनका नाम विद्याधर रखा था। कन्नड़ भाषा में हाईस्कूल तक अध्ययन करने के बाद विद्याधर ने 1967 में आचार्य देशभूषण जी महाराज से ब्रम्हचर्य व्रत ले लिया। इसके बाद जो कठिन साधना का दौर शुरू हुआ तो आचार्य श्री ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.। ऐसे बने विद्या के सागर कठिन साधना का मार्ग पार करते हुए आचार्यश्री ने महज 22 वर्ष की उम्र में 30 जून 1968 को अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि दीक्षा ली। गुरुवर ने उन्हें विद्याधर से मुनि विद्यासागर बनाया। 22 नवंबर 1972 को अजमेर में ही गुरुवार ने आचार्य की उपाधि देकर उन्हें मुनि विद्यासागर से आचार्य विद्यासागर बना दिया। कठिन तपस्या ठंड, बरसात और गर्मी से विचलित हुए बिना आचार्य श्री ने कठिन तप किया। उनका त्याग और तपोबल आज किसी से छिपा नहीं है। इसी तपोबल के कारण सारी दुनिया उनके आगे नतमस्तक है। 50 वर्ष से वे एक महान साधक की भूमिका में हैं। उनके बताए गए रास्ते पर चलकर हम देश तथा संपूर्ण मानव जाति की भलाई कर सकते हैं। कई भाषाओं का ज्ञान आचार्य पद की उपाधि मिलने के बाद आचार्य विद्यासागर ने देश भर में पदयात्रा की। चातुर्मास, गजरथ महोत्सव के माध्यम से अहिंसा व सद्भाव का संदेश दिया। समाज को नई दिशा दी। आचार्य श्री संस्कृत व प्राकृत भाषा के साथ हिन्दी, मराठी और कन्नड़ भाषा का भी विशेष ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में कई रचनाएं भी लिखी हैं। इतना ही नहीं पीएचडी व मास्टर डिग्री के कई शोधार्थियों ने उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीशह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक पर अध्ययन व शोध किया है। Source http://www.patrika.com/news/jabalpur/acharya-vidyasagar-biography-news-in-hindi-1530385/
  5. मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016] कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी रुक नहीं सकता। मुक माटी की ये पंक्ति है- अंतर में कौन सा धर्म है, मूक माटी बोलती है। किसी के पास कान हो तो वह सुन सकता है। भीतरी कान तक सम्प्रेषित करता है। हमें भी उस पात्र की खोज है। कोई भी कवि, लेखक, वक्ता होता उसके भीतर जो भाव है, कोई न कोई नाम लिखकर अभिव्यक्त करता है। कोई भी अभिव्यक्ति के शब्द जब कमजोर पड़ते, तब ऐसे भावों को व्यक्त करता। कोई भी कमी नहीं। मंच पर कविता पाठ करते-करते ताली बजवाते हैं। ताली बजवाना रहस्य होता है। कवि पंक्ति भूल जाता है तभी ताली बजवाता है। ध्वनि को प्रकाश मिले, उसमें सरलता एकमात्र ही ध्वनि का विकास है। हम जितनी सरलता से व्यक्त करेंगे, ताली बजाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। श्रोताओं की इतनी प्यास बढ़े कि ‘आपकी अभिव्यक्ति एक बार और हो’ की आवाज आए। भावाभिव्यक्ति पूर्व की अपेक्षा से शब्द न भी मिले, भाव के माध्यम से कविता की पूर्ति कर सकते हैं। शब्द पंगु है। अर्थ की अभिव्यक्ति करने में पंगु हुआ करते हैं। उसके लिए उदाहरण ढूंढें। दृष्टांत की ओर ध्यान दें। हम उसके लिए अनुभव की बात कहना चाहें। अनुभव के बिना शब्द में जान नहीं। शब्द एक जड़ वस्तु है। अभिव्यक्ति में बहुत विराटता आती। हाइको कृति दिपाई की भांति अर्थ को ऊंचा उठा देती। मंच पर जो भी बोलता, जनता के मन को देखकर कविता करना चाही। जयकुमार जलज ने बताया कि इस अवसर पर राष्ट्रीय कवि सत्यनारायण ‘सत्तन’ ने अपनी छुटपुट कविताओं के माध्यम से खचाखच भरे पंडाल को ‘वाह-वाह’ कहने पर मजबूर कर दिया। उनकी रचनाओं की सराहना आचार्यश्री ने तो की ही, उपस्थित जन-समुदाय को भी बेहद पसंद आई। डॉ. एसएन सुब्बाराव ने बहुत ही आध्यात्मिक भजन की प्रस्तुति से आचार्यश्री सहित जन समूह को भाव-विभोर कर दिया।
  6. मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016] कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी रुक नहीं सकता। मुक माटी की ये पंक्ति है- अंतर में कौन सा धर्म है, मूक माटी बोलती है। किसी के पास कान हो तो वह सुन सकता है। भीतरी कान तक सम्प्रेषित करता है। हमें भी उस पात्र की खोज है। कोई भी कवि, लेखक, वक्ता होता उसके भीतर जो भाव है, कोई न कोई नाम लिखकर अभिव्यक्त करता है। कोई भी अभिव्यक्ति के शब्द जब कमजोर पड़ते, तब ऐसे भावों को व्यक्त करता। कोई भी कमी नहीं। मंच पर कविता पाठ करते-करते ताली बजवाते हैं। ताली बजवाना रहस्य होता है। कवि पंक्ति भूल जाता है तभी ताली बजवाता है। ध्वनि को प्रकाश मिले, उसमें सरलता एकमात्र ही ध्वनि का विकास है। हम जितनी सरलता से व्यक्त करेंगे, ताली बजाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। श्रोताओं की इतनी प्यास बढ़े कि ‘आपकी अभिव्यक्ति एक बार और हो’ की आवाज आए। भावाभिव्यक्ति पूर्व की अपेक्षा से शब्द न भी मिले, भाव के माध्यम से कविता की पूर्ति कर सकते हैं। शब्द पंगु है। अर्थ की अभिव्यक्ति करने में पंगु हुआ करते हैं। उसके लिए उदाहरण ढूंढें। दृष्टांत की ओर ध्यान दें। हम उसके लिए अनुभव की बात कहना चाहें। अनुभव के बिना शब्द में जान नहीं। शब्द एक जड़ वस्तु है। अभिव्यक्ति में बहुत विराटता आती। हाइको कृति दिपाई की भांति अर्थ को ऊंचा उठा देती। मंच पर जो भी बोलता, जनता के मन को देखकर कविता करना चाही। जयकुमार जलज ने बताया कि इस अवसर पर राष्ट्रीय कवि सत्यनारायण ‘सत्तन’ ने अपनी छुटपुट कविताओं के माध्यम से खचाखच भरे पंडाल को ‘वाह-वाह’ कहने पर मजबूर कर दिया। उनकी रचनाओं की सराहना आचार्यश्री ने तो की ही, उपस्थित जन-समुदाय को भी बेहद पसंद आई। डॉ. एसएन सुब्बाराव ने बहुत ही आध्यात्मिक भजन की प्रस्तुति से आचार्यश्री सहित जन समूह को भाव-विभोर कर दिया।
  7. मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016] कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी रुक नहीं सकता। मुक माटी की ये पंक्ति है- अंतर में कौन सा धर्म है, मूक माटी बोलती है। किसी के पास कान हो तो वह सुन सकता है। भीतरी कान तक सम्प्रेषित करता है। हमें भी उस पात्र की खोज है। कोई भी कवि, लेखक, वक्ता होता उसके भीतर जो भाव है, कोई न कोई नाम लिखकर अभिव्यक्त करता है। कोई भी अभिव्यक्ति के शब्द जब कमजोर पड़ते, तब ऐसे भावों को व्यक्त करता। कोई भी कमी नहीं। मंच पर कविता पाठ करते-करते ताली बजवाते हैं। ताली बजवाना रहस्य होता है। कवि पंक्ति भूल जाता है तभी ताली बजवाता है। ध्वनि को प्रकाश मिले, उसमें सरलता एकमात्र ही ध्वनि का विकास है। हम जितनी सरलता से व्यक्त करेंगे, ताली बजाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। श्रोताओं की इतनी प्यास बढ़े कि ‘आपकी अभिव्यक्ति एक बार और हो’ की आवाज आए। भावाभिव्यक्ति पूर्व की अपेक्षा से शब्द न भी मिले, भाव के माध्यम से कविता की पूर्ति कर सकते हैं। शब्द पंगु है। अर्थ की अभिव्यक्ति करने में पंगु हुआ करते हैं। उसके लिए उदाहरण ढूंढें। दृष्टांत की ओर ध्यान दें। हम उसके लिए अनुभव की बात कहना चाहें। अनुभव के बिना शब्द में जान नहीं। शब्द एक जड़ वस्तु है। अभिव्यक्ति में बहुत विराटता आती। हाइको कृति दिपाई की भांति अर्थ को ऊंचा उठा देती। मंच पर जो भी बोलता, जनता के मन को देखकर कविता करना चाही। जयकुमार जलज ने बताया कि इस अवसर पर राष्ट्रीय कवि सत्यनारायण ‘सत्तन’ ने अपनी छुटपुट कविताओं के माध्यम से खचाखच भरे पंडाल को ‘वाह-वाह’ कहने पर मजबूर कर दिया। उनकी रचनाओं की सराहना आचार्यश्री ने तो की ही, उपस्थित जन-समुदाय को भी बेहद पसंद आई। डॉ. एसएन सुब्बाराव ने बहुत ही आध्यात्मिक भजन की प्रस्तुति से आचार्यश्री सहित जन समूह को भाव-विभोर कर दिया।
  8. मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016] कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी रुक नहीं सकता। मुक माटी की ये पंक्ति है- अंतर में कौन सा धर्म है, मूक माटी बोलती है। किसी के पास कान हो तो वह सुन सकता है। भीतरी कान तक सम्प्रेषित करता है। हमें भी उस पात्र की खोज है। कोई भी कवि, लेखक, वक्ता होता उसके भीतर जो भाव है, कोई न कोई नाम लिखकर अभिव्यक्त करता है। कोई भी अभिव्यक्ति के शब्द जब कमजोर पड़ते, तब ऐसे भावों को व्यक्त करता। कोई भी कमी नहीं। मंच पर कविता पाठ करते-करते ताली बजवाते हैं। ताली बजवाना रहस्य होता है। कवि पंक्ति भूल जाता है तभी ताली बजवाता है। ध्वनि को प्रकाश मिले, उसमें सरलता एकमात्र ही ध्वनि का विकास है। हम जितनी सरलता से व्यक्त करेंगे, ताली बजाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। श्रोताओं की इतनी प्यास बढ़े कि ‘आपकी अभिव्यक्ति एक बार और हो’ की आवाज आए। भावाभिव्यक्ति पूर्व की अपेक्षा से शब्द न भी मिले, भाव के माध्यम से कविता की पूर्ति कर सकते हैं। शब्द पंगु है। अर्थ की अभिव्यक्ति करने में पंगु हुआ करते हैं। उसके लिए उदाहरण ढूंढें। दृष्टांत की ओर ध्यान दें। हम उसके लिए अनुभव की बात कहना चाहें। अनुभव के बिना शब्द में जान नहीं। शब्द एक जड़ वस्तु है। अभिव्यक्ति में बहुत विराटता आती। हाइको कृति दिपाई की भांति अर्थ को ऊंचा उठा देती। मंच पर जो भी बोलता, जनता के मन को देखकर कविता करना चाही। जयकुमार जलज ने बताया कि इस अवसर पर राष्ट्रीय कवि सत्यनारायण ‘सत्तन’ ने अपनी छुटपुट कविताओं के माध्यम से खचाखच भरे पंडाल को ‘वाह-वाह’ कहने पर मजबूर कर दिया। उनकी रचनाओं की सराहना आचार्यश्री ने तो की ही, उपस्थित जन-समुदाय को भी बेहद पसंद आई। डॉ. एसएन सुब्बाराव ने बहुत ही आध्यात्मिक भजन की प्रस्तुति से आचार्यश्री सहित जन समूह को भाव-विभोर कर दिया।
  9. मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016] कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी रुक नहीं सकता। मुक माटी की ये पंक्ति है- अंतर में कौन सा धर्म है, मूक माटी बोलती है। किसी के पास कान हो तो वह सुन सकता है। भीतरी कान तक सम्प्रेषित करता है। हमें भी उस पात्र की खोज है। कोई भी कवि, लेखक, वक्ता होता उसके भीतर जो भाव है, कोई न कोई नाम लिखकर अभिव्यक्त करता है। कोई भी अभिव्यक्ति के शब्द जब कमजोर पड़ते, तब ऐसे भावों को व्यक्त करता। कोई भी कमी नहीं। मंच पर कविता पाठ करते-करते ताली बजवाते हैं। ताली बजवाना रहस्य होता है। कवि पंक्ति भूल जाता है तभी ताली बजवाता है। ध्वनि को प्रकाश मिले, उसमें सरलता एकमात्र ही ध्वनि का विकास है। हम जितनी सरलता से व्यक्त करेंगे, ताली बजाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। श्रोताओं की इतनी प्यास बढ़े कि ‘आपकी अभिव्यक्ति एक बार और हो’ की आवाज आए। भावाभिव्यक्ति पूर्व की अपेक्षा से शब्द न भी मिले, भाव के माध्यम से कविता की पूर्ति कर सकते हैं। शब्द पंगु है। अर्थ की अभिव्यक्ति करने में पंगु हुआ करते हैं। उसके लिए उदाहरण ढूंढें। दृष्टांत की ओर ध्यान दें। हम उसके लिए अनुभव की बात कहना चाहें। अनुभव के बिना शब्द में जान नहीं। शब्द एक जड़ वस्तु है। अभिव्यक्ति में बहुत विराटता आती। हाइको कृति दिपाई की भांति अर्थ को ऊंचा उठा देती। मंच पर जो भी बोलता, जनता के मन को देखकर कविता करना चाही। जयकुमार जलज ने बताया कि इस अवसर पर राष्ट्रीय कवि सत्यनारायण ‘सत्तन’ ने अपनी छुटपुट कविताओं के माध्यम से खचाखच भरे पंडाल को ‘वाह-वाह’ कहने पर मजबूर कर दिया। उनकी रचनाओं की सराहना आचार्यश्री ने तो की ही, उपस्थित जन-समुदाय को भी बेहद पसंद आई। डॉ. एसएन सुब्बाराव ने बहुत ही आध्यात्मिक भजन की प्रस्तुति से आचार्यश्री सहित जन समूह को भाव-विभोर कर दिया।
  10. मंगल प्रवचन : आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज (कुंडलपुर) [08/06/2016] कुंडलपुर। महामस्तकाभिषेक महोत्सव के इन 5 दिनों में आप अपने आपको पहचानें, एक-दूसरे को पहचानें। हम परमार्थ तत्व के अनुरूप हैं, यह बोध हो जाए। यह बोध आदर्श बने और हम दिव्य शक्ति को प्राप्त करें। उक्त उद्गार विश्व संत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने कुंडलपुर में आयोजित महोत्सव में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने आगे स्वरचित मूक माटी महाकाव्य की 2 पंक्तियां सुनाईं। पात्र के बिना पानी रुक नहीं सकता, पात्र के बिना प्राणी रुक नहीं सकता। मुक माटी की ये पंक्ति है- अंतर में कौन सा धर्म है, मूक माटी बोलती है। किसी के पास कान हो तो वह सुन सकता है। भीतरी कान तक सम्प्रेषित करता है। हमें भी उस पात्र की खोज है। कोई भी कवि, लेखक, वक्ता होता उसके भीतर जो भाव है, कोई न कोई नाम लिखकर अभिव्यक्त करता है। कोई भी अभिव्यक्ति के शब्द जब कमजोर पड़ते, तब ऐसे भावों को व्यक्त करता। कोई भी कमी नहीं। मंच पर कविता पाठ करते-करते ताली बजवाते हैं। ताली बजवाना रहस्य होता है। कवि पंक्ति भूल जाता है तभी ताली बजवाता है। ध्वनि को प्रकाश मिले, उसमें सरलता एकमात्र ही ध्वनि का विकास है। हम जितनी सरलता से व्यक्त करेंगे, ताली बजाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। श्रोताओं की इतनी प्यास बढ़े कि ‘आपकी अभिव्यक्ति एक बार और हो’ की आवाज आए। भावाभिव्यक्ति पूर्व की अपेक्षा से शब्द न भी मिले, भाव के माध्यम से कविता की पूर्ति कर सकते हैं। शब्द पंगु है। अर्थ की अभिव्यक्ति करने में पंगु हुआ करते हैं। उसके लिए उदाहरण ढूंढें। दृष्टांत की ओर ध्यान दें। हम उसके लिए अनुभव की बात कहना चाहें। अनुभव के बिना शब्द में जान नहीं। शब्द एक जड़ वस्तु है। अभिव्यक्ति में बहुत विराटता आती। हाइको कृति दिपाई की भांति अर्थ को ऊंचा उठा देती। मंच पर जो भी बोलता, जनता के मन को देखकर कविता करना चाही। जयकुमार जलज ने बताया कि इस अवसर पर राष्ट्रीय कवि सत्यनारायण ‘सत्तन’ ने अपनी छुटपुट कविताओं के माध्यम से खचाखच भरे पंडाल को ‘वाह-वाह’ कहने पर मजबूर कर दिया। उनकी रचनाओं की सराहना आचार्यश्री ने तो की ही, उपस्थित जन-समुदाय को भी बेहद पसंद आई। डॉ. एसएन सुब्बाराव ने बहुत ही आध्यात्मिक भजन की प्रस्तुति से आचार्यश्री सहित जन समूह को भाव-विभोर कर दिया।
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  12. संयम स्वर्ण महोत्सव 28 जून से कोटा|आचार्य विद्यासागरमहाराज का 50वां दीक्षा दिवस 28 जून को पूरे भारत में मनाया जाएगा। सकल दिगंबर जैन समाज ने तलवंडी जैन मंदिर में एक गोष्ठी को आयोजन किया गया। जिसमें साल भर के कार्यक्रमों की रूपरेखा तय की गई। सकल समाज के कार्याध्यक्ष जेके जैन ने बताया कि जबलपुर उदासीन आश्रम से कोटा आई ब्रह्म चारणी सविता दीदी, बबिता दीदी ने बताया कि 1968 में 30 जून को आचार्य ज्ञान सागर महाराज से मुनि विद्यासागर महाराज ने मुनि दीक्षा ली थी। अध्यक्ष अजय बाकलीवाल ने इसकी जानकारी दी। http://www.bhaskar.com/news/RAJ-KOT-OMC-MAT-latest-kota-news-042013-2692410-NOR.html विद्यासागर महाराज का 50वां महोत्सव मनेगा संयम स्वर्ण महोत्सव समिति के लिए सौंपी जिम्मेदारियां भास्कर संवाददाता | बुरहानपुर संत शिरोमणि जैनाचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का 50वां मुनि दीक्षा वर्ष संयम स्वर्ण महोत्सव के रूप में मनाया जाएगा। रविवार को श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में जैन समाज की बैठक में विचार-विमर्श कर समाजजन को जिम्मेदारियां सौंपी। महावीर प्रसाद पहाड़िया की अध्यक्षता में समाजजन ने विचार-विमर्श किया। महोत्सव समिति का निर्देशक डाॅ. सुरेंद्रकुमार जैन भारती और राजेश चांदमल जैन को अध्यक्ष मनोनित किया। राजेश जैन ने कहा वर्ष 2017-18 में धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समारोह, कीर्ति स्तंभ का निर्माण, प्रतिभा प्रोत्साहन सम्मान, स्वास्थ्य, योग शिविर, व्यसन मुक्ति शिविर, समाज प्रबोधन कार्यक्रम कराएंगे। बुरहानपुर जिले की जनता अौर जनप्रतिनिधियों को कार्यक्रम से जोड़ा जाएगा। http://www.bhaskar.com/news/MP-OTH-MAT-latest-burhanpur-news-042504-1903461-NOR.html संयम स्वर्ण महोत्सव के रूप में मनेगा 50वां मुनि दीक्षा वर्ष बुरहानपुर। जैनाचार्य विद्यासागरजी महाराज का 50वां मुनि दीक्षा वर्ष स्वर्ण महोत्सव के रूप में देशभर में मनाया जाएगा। शहर में पर्व मनाने के लिए आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में महावीर प्रसाद पहाड़िया की अध्यक्षता में बैठक हुई। सर्वसम्मति से महोत्सव समिति निर्देशक डॉ सुरेंद्र कुमार जैन भारती व अध्यक्ष राजेश चांदमल जैन को बनाया गया। महावीर प्रसाद पहाड़िया धर्मचंद पाटोदी जंबूकुमार पहाड़िया शेखरचंद कासलीवाल भागचंद पहाड़िया विमल कुमार पाटनी संतोष सोनी वीरेंद्र बड़जात्या भागचंद गंगवाल शंभूदयाल गंगवाल आलोक पाटोदी आदि ने सहभागिता की। महोत्सव के दौरान धार्मिक सामाजिक सांस्कृतिक
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    विवरणिका - संयम स्वर्ण महोत्सव
  14. योग से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रयोग होता है चन्द्रगिरि, डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने एक दृष्टांत के माध्यम से बताया कि अड़ोस-पड़ोस में दो किसान रहते थे। उनके पास सैकड़ों एकड़ जमीन थी लेकिन उस जगह दूर-दूर तक पानी नहीं होने के कारण उनकी आंखों में पानी था। एक दिन एक किसान एक व्यक्ति को लेकर आता है और अपनी जमीन दिखाता है और फिर जमीन देखने के बाद वह उचित स्थान पर खुदाई करवाकर कुआं बनवाता है जिससे पानी लेकर किसान भगवान का अभिषेक करता है और अपनी खेती-किसानी में लग जाता है। इसे देखकर पड़ोसी दूसरा किसान भी अपनी जमीन पर कुआं खुदवाता है और उसमें जल की मात्रा पहले वाले किसान से अधिक होती है। दूसरे किसान के कुएं में जल की मात्रा अधिक होने के कारण पहले वाले किसान के ईर्ष्या के कारण भाव बिगड़ जाते हैं और वर्षाकाल में उसके कुएं का पानी और कम होने लगता है और धीरे-धीरे उसका कुआं पूरा सूख जाता है जबकि दूसरे किसान का कुआं और लबालब भर जाता है। आचार्यश्री कहते हैं कि आजकल पानी भी बोतलों में बिकता है जिसका दाम 15 से 20 रुपए प्रति लीटर है जबकि प्रकृति में जल, मिट्टी और वायु (ऑक्सीजन) नि:शुल्क उपलब्ध है। आज लोग गांवों से जल, मिट्टी और वायु (ऑक्सीजन) को पैक कर शहर में बेचकर व्यापार कर रहे हैं जबकि चन्द्रगिरि में जल, मिट्टी और वायु (ऑक्सीजन) नि:शुल्क उपलब्ध है। आचार्यश्री कहते हैं कि किसान खेती की जगह व्यापार एवं पैसे की ओर बढ़ रहा है। मनुष्य में दया एवं करुणा का अभाव होता जा रहा है और हर चीज का दाम लगाकर उसे बेचा जा रहा है। सरस्वती और लक्ष्मी दोनों को बहनें कहा जाता है। जिसके पास ये दोनों हैं, मतलब उसकी बुद्धि ठीक है और जिसके पास लक्ष्मी है, लेकिन सरस्वती नहीं है तो वह लक्ष्मी उसके पास ज्यादा दिन नहीं रहेगी और जिसके पास दोनों नहीं हैं, मतलब उसको पुरुषार्थ की आवश्यकता है तभी कुछ हो पाएगा। योग से ज्यादा प्रयोग को महत्वपूर्ण माना गया है। अगर आपका योग अच्छा है तो आपको कोई चीज मिल भी जाती है, परंतु आपको उसका उपयोग या प्रयोग नहीं मालूम है तो वह चीज आपके कोई काम की नहीं होगी। आचार्यश्री कहते हैं कि पहला किसान दूसरे किसान के पास जाता है और कहता है कि तुमने सुरंग बनाकर मेरे कुएं के जल को अपने कुएं में ट्रांसफर कर लिया है जबकि उस समय तो बोरवेल-पंप आदि नहीं होते थे तो ऐसा करना असंभव था। पहले किसान की ईर्ष्या के कारण बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी। आज संयम की कमी के कारण भी लोग पथभ्रष्ट हो जाते हैं और पाप कर्म का बंध करने लगते हैं। अच्छे कर्म से बुरे कर्म की निर्जरा होती है और अच्छे कर्म दया-करुणा भाव से करते रहना चाहिए जिससे पुण्य कि बढ़ता रहे।
  15. चन्द्रगिरि (डोंगरगढ़) में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने मांगलिक उपदेश देते हुए एक दृष्टांत के माध्यम से बताया कि एक संघ में मुनि महाराज ने संलेखना के कुछ दिनों पहले यम संलेखना का नियम ले लिया था, ऐसे मुनि महाराज के दर्शन के लिए चक्रवर्ती तक आए थे। मुनि महाराज के शरीर में कुछ भी ग्रहण करने की शक्ति नहीं बची थी। ऐसे परीक्षा के समय में उन्हें मन में विकल्प हो रहा था तो उन्होंने गुरु महाराज से कहा कि उन्हें मन में आहार लेने का विकल्प आ रहा है। इस बात को सुनकर समस्त मुनि संघ चिंतित हो गए कि ऐसी परीक्षा की घड़ी में मुनि महाराज क्या कह रहे हैं? उन्हें जब आहार करने कहा गया तो उनके हाथों की अंजलि से जल मुंह तक भी नहीं आया और सारा जल बाहर ही गिर गया, इसके बाद ग्रास (रोटी) दिया गया तो मुंह में चबाने की भी ताकत नहीं थी। गुरु महाराज ने मुनि महाराज को मन को संयमित करने को कहा कि मन की तरंगें मोक्ष मार्ग में बाधक हैं। मृत्यु निश्चित है इसलिए हमें हर पल हर श्वास में प्रभु का स्मरण करते हुए आगम अनुसार मोक्ष मार्ग में चारों कषायों को जीतकर मन को संयमित कर संलेखना व्रत को धारण करना चाहिए। आचार्यश्री ने बताया कि उनके गुरु श्री ज्ञानसागरजी महाराज संलेखना के समय शरीर के जीर्ण-शीर्ण होने के बाद अंतिम समय में भी प्रत्येक श्वास में प्रभु का स्मरण करते हुए अपने शिष्यों को उपदेश देते रहे। आचार्यश्री ने प्रभु से प्रार्थना की कि ऐसे व्रतों का निर्वहन वे भी कर सकें और अंतिम श्वास तक अपने गुरु के जैसे प्रभु का स्मरण कर संलेखना धारण कर सकें।
  16. छत्तीसगढ़ के प्रथम दिगम्बर जैन तीर्थ चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के शिष्य मुनि श्री निर्दोष सागर जी ने रविवार को हुये प्रवचन में कहा की आचार्य श्री कहते है कि भक्त कि भक्ति निःस्वार्थ होना चाहिए जिसमे किसी भी प्रकार की फल की प्राप्ति की कामना नही होना चाहिए तभी वह भक्ति सच्ची भक्ति होती है। उन्होने उदाहरण के माध्यम से समझाया कि भक्त दो प्रकार के होते है एक भक्त मंदिर में भगवान ने जो छोड़ा है उसकी प्राप्ति के लिये जाते हैं और दूसरे वे जो भगवान ने प्राप्त किया है उसे प्राप्त करने के लिये जाते है। हमे मंदिर भगवान से कुछ मांगने नही जाना चाहिए बल्कि उनके जैसा बनने के लिये जाना चाहिए। मुनि श्री ने कहा कि बिना गुरू के लक्ष्य की प्राप्ति संभव नही है। मुनि श्री ने प्रतिभा स्थली की बच्चीयों और चंद्रगिरि प्रांगण में उपस्थित सभी लोगों को स्वस्थ्य और सुखी रहने के 3 मूल मंत्र दिये कि – खाना कम, चबाना ज्यादा। बोलो कम, विचारो ज्यादा। बड़ों से विनय और छोटा से स्नेह करो। इसके पश्चात- मुनि श्री योग सागर जी ने कहा कि दान परिग्रह का प्रायश्चित है इसमे अहंकार नही होना चाहिए। यदि आप दायें हाथ से दान कर रहे हो तो आपके बाएँ हाथ को भी इसका पता नही चलना चाहिए। एक दृष्टांत के माध्यम से दान की महिमा बताई कि दान सिर्फ अमीर व्यक्ति ही नहीं कर सकते बल्कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी दान कर सकते है। उन्होने बताया कि एक गरीब किसान किसी महाराज जी के दर्शन करने को पहुंचा तो वह महाराज जी से कहने लगा कि मै बहुत गरीब हूँ मै तो कुछ भी दान नहीं कर सकता तो महाराज जी ने किसान से पूछा कि आप कितनी रोटी खाते हैं तो किसान ने कहा कि वह 6 रोटी खाता है तो महाराज ने कहा कि आप 5 रोटी खाएँ और 1 रोटी को दान कर दे। यह सुनकर किसान बहुत प्रसन्न हुआ और उसकी दान करने के भाव इतने निर्मल थे कि वह बहुत खुशी – खुशी यह कार्य रोज करने लगा तो एक दिन स्वर्ग से एक देव उसकी परीक्षा के लिये पृथ्वी पर सिंह का रूप धारण कर मंदिर में घुस गये तो गाँव के सभी लोग डर के कारण मंदिर में प्रवेश नहीं कर रहे थे और काफी भीड़ मंदिर के बाहर जमा हो गयी तब किसान रोज कि तरह मंदिर में 1 रोटी चढ़ाने आया तो उसको लोगों ने रोका की अंदर मत जाओ वहाँ सिंह बैठा है तो उस किसान ने कहा मुझे जाने दो और वह किसी कि नहीं सुना और मंदिर के अंदर गया और रोज कि तरह 1 रोटी मंदिर में दान किया और अपने काम के लिये चला गया कुछ समय बाद देव किसान के पीछे – पीछे गये और अपने असली स्वरूप में आये और किसान के पैर पड़े और कहा आपका त्याग धन्य है और आपकी भक्ति भी सच्ची है। फिर एक दिन गाँव में राजकुमारी का स्वयंबर था तो वह किसान भी राजा के दरबार में स्वयंबर देखने गया था वह दूर एक पेड़ के नीचे बैठा था और वहाँ राजमहल में कई राजकुमार सजे – धजे हुये आसन पर विराजमान थे तभी राजकुमारी वर माला लेकर आयी और बारी – बारी सभी विराजमान राजकुमारों को देखने लगी फिर पास में खड़े पूरे गाँव वालो को एक – एक कर देखा फिर वह राजकुमारी माला लिये किसान के पास गयी और उसके गले में वर माला डाल दी। राजकुमारी से जब पूछा गया कि अगर गाँव के गरीब किसान से ही शादी करनी थी तो इन राजकुमारों की बेजती करने क्यों राज महल के दरबार में उन्हे बुलाया तो राजकुमारी ने शालिनता से कहा कि मैने किसान के मस्तिष्क पर चंदन का तिलक देखकर उसके गले में वर माला डाली जबकि उस समय उस दरबार में किसी भी राजकुमार एवं प्रजा के माथे पर चंदन का तिलक नही था। मुनि श्री ने इस दृष्टांत के माध्यम से हमे यह समझाया कि दान छोटा या बड़ा नही होता उसके पीछे हमारी क्या भावना है, हमारा विचार कैसा है, हमे संतोष है कि नहीं यह मायने रखता है। उन्होंने कहा कि सुख साधन में नही साधना में है। मुनि श्री ने कहा आप विद्यासागर क्यों नही बन पा रहे? उन्होने कहा कि विद्यासागर बनने के लिये गुरू चरण के साथ – साथ उनका आचरण भी हमें अपनाना चाहिये। गुरू चरण तो छू लिया तूमने तो कई बार एक बार आचरण को छू लो तो हो जाये भव सागर पार।
  17. पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि जीवन में यदि आगे बढ़ना है तो व्यवस्थित क्रम से ही आगे बढ़ा जा सकता है। पहले भोजन फिर स्नान ये क्रम नहीं चलता है बल्कि स्नान के उपरान्त ही भोजन ग्रहण करके हम स्वस्थ्य रह सकते हैं। एक दिन एक युवा को तेज भूख लग रही थी उसने स्नान के पूर्व ही एकदम गरम भोजन ग्रहण कर लिया फिर ठन्डे जल से स्नान कर लिया तो उसी दिन से उसको सिरदर्द की समस्या शुरू हो गई। व्यवस्थित क्रम से जीवन का निर्धारण करेंगे तो सही प्रबंधन हो सकेगा, व्यवस्था का मतलब ही है अवस्था के अनुसार प्रबंधन। उन्होंने कहा कि जीवन के प्रबंधन की कला भी जानना बहुत जरूरी होता है क्योंकि प्रबंधन से ही बंधन से मुक्ति मिलती है, आज हरेक क्षेत्र में प्रबंधन का बहुत महत्व हो गया है क्योंकि अनेक संस्थाएं उचित प्रबंधन के अभाव में समय से पूर्व ही अव्यवस्थित हो जाती हैं जिसके कारण वो स्वतः ही समाप्ति की कगार पर पहुँच जाती हैं। गुरुवर ने कहा कि खानपान में सबसे अधिक प्रबंधन की आवश्यकता है क्योंकि आज दूषित वस्तुओं के चलन से युवा पीढ़ी समय से पहले प्रौढ़ हो रही है, रोगों के कालचक्र ने आपको घेर लिया है, यदि निरोगी रहना चाहते हो तो खानपान के क्रम को व्यवस्थित करो। अच्छे पेय पदार्थों को छोड़कर डब्बा बंद पेय को प्राथमिकता देने के कारण ही युवा मानसिक और शारीरिक रूप से अस्वस्थ्य हो रहे हैं। स्वच्छ और शुद्ध जल की जगह बोतल के जल का चलन भी हानिकारक सिद्ध हो रहा है क्योंकि उसमें जलीय तत्वों का आभाव रहता है। गुरुदेव ने कहा कि आपके बच्चों का पुण्य है जो उन्हें आप जैंसे माता पिता मिले हैं परंतु आपका पुण्य प्रबल तब कहलाएगा जब आप बच्चों को संस्कारित कर उन्हें जीवन प्रबंधन के गुण सिखाओगे।
  18. पुज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि जिस तरह पुराने रेडियो में हम एक स्टेशन लगाते थे और यदि हाथ हिल जाता था तो दूसरा स्टेशन लग जाता था तो गीत की जगह कई अन्य कार्यक्रम सुनाई देने लगता था। क्योंकि स्टेशन की रेंज बदल जाती थी और ये रेंज ऊपर लगे एरियल के माध्यम से मिलती थी ठीक उसी प्रकार हमारे विचार रुपी विभिन्न स्टेशन हैं जो हमारे मस्तिष्क रुपी एरियल के माध्यम से बदलते रहते हैं, अच्छे विचारों वाला स्टेशन यदि लगाना है तो मस्तिष्क को निर्मल बनाना होगा। स्थिरता लाने पर ही हम एक विचारों वाले स्टेशन पर टिकेे रह सकते हैं अन्यथा भटकते रहेंगे फिर हम जैंसे गुरुओं की कुब्बत भी नहीं है कि आपको भटकाव से रोक सकें। उन्होंने कहा कि आजकल की धारणाएं नक़ल पर आधारित होती जा रही हैं इसलिए अक्ल को ठन्डे बस्ते में डाल दिया है। नक़ल से भौतिक परीक्षा तो पास की जा सकती है परंतु जीवन की असल परीक्षा बिना अक्ल के पास नहीं की जा सकती है। आपको यदि पंचकल्याणक के अनुष्ठान की परीक्षा में खरे उतरना है तो पहले अपने आपको इसके लिए मानसिक रूप से तैयार करके स्थिरता लानी होगी। ये पंचकल्याणक आपकी आध्यात्मिक परीक्षा का केंद्र है जिसमें आपको अपना शत प्रतिशत देकर परिणाम को बेहतर बनाना है। अपने मोह को कम करके ही हम जीवन में सार्थक परिणामों की प्राप्ति कर सकते हैं। अपनी क्षमताओं का बेहतर उपयोग ही आपको सही दिशा और दशा प्रदान कर सकते हैं इसलिए अपनी क्षमताओं को बेहतर से बेहतर बनाएं।
  19. गुरुवर ने कहा कि तालाब में कंकर फेंकते हैं तो नीचे की और चला जाता है। लकड़ी बजनदार होती है फिर भी नहीं डूबती है,जबकि उसमें गाँठ भी होती है। जिसके भीतर पकड़ नहीं है बो तैरता रहता है छोटा डूब जाता है। लकड़ी पानी में गलती नहीं है और पत्थर गल जाता है। पानी के जहाज में नीचे लकड़ी लगाई जाती है और उसी बजह से जहाज डूबता नहीं है। हमें भी लकड़ी की तरह बनना है ताकि हम संसार सिंधु में डूबें नहीं। ऊपर देखता हूँ तो भगवान दिखते हैं नीचे देखता हूँ तो होनहार भगवान दिखते हैं। आप सभी में भगवान बनने के गुण विद्यमान हैं स्वयं अपने निर्णय से पुरुषार्थ करने पर ही ऊपर बाले भगवान के समक्ष पहुंचा जा सकता है।
  20. पुज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि सर्वांगीण विकास में बुद्धि और शरीर दोनों का विकास समाहित होता है। किसी भी अच्छे कार्य की यदि नींव रखी जाती है तो नीचे से लेकर ऊपर तक एक ही दीवार बनायीं जाती है उस पर छत डाली जाती है। बाँध पर भी पानी रोका जाता था उसके लिए पूर्ण प्रबंध किया जाता है उसे निकलने की व्यवस्था की जाती है और नहर के माध्यम से अनेक राज्यों में जाता है। भाखड़ा नंगल बांध में ऐंसी व्यवस्था है उसका उद्देश्य परिग्रह नहीं होता बल्कि कृषि का विकास हो इसके लिये होता है। आप भी यदि संग्रह करते हैं बुद्धि का एवं धन का, और वो समय पर जरूरत मंदों को बांटते रहेंगे तो वो पुण्य का कारण बन जाता है और पुण्य सद्कार्यों से ही प्रबल होता है। उन्होंने कहा कि पहले योग से नियोग कीजिये फिर सबका सहयोग लेकर आप आगे बढ़ सकते हैं। धर्म कभी प्रतिशत में नहीं चलता ये तो गुणित में चलता जाता है और पुण्य को प्रबल करता जाता है। किसी भी काम के सम्बर्धन के लिए संरक्षण जरूरी होता है। आप अच्छे कार्यों का संरक्षण करते जाइए वो कार्य गुणित पद्धति से बढ़ता जाएगा। संग्रह को सदुपयोग में लगाएंगे तो आपके कार्यों को सदियों तक याद रखा जाएगा। गुरुवर ने महापौर से कहा की आपने जो संस्कार जैन पाठशाला में लिए हैं उन संस्कारों पर चलते जाइये आगे बढ़ते जाएंगे। उन्होंने कहा की महापुरुषों को महान इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सद्कार्य किये है जनकल्याण की भावना के साथ। हथकरघा को संरक्षण और सम्बर्धन देंगे तो भावी पीढ़ी के लिए लाभदायक होगा।
  21. पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि आपने बड़े बड़े मंदिरों का निर्माण कर लिया अनेकों प्रतिमाओं को विराजित कर पुण्य कमा लिया परंतु मुख्य कार्य तो अभी बाकी है। अब इन वीतरागीयों की आराधना के लिए युवाओं में जागृति लाने का कार्य कीजिये और जो दूर दराज के विद्यार्थी राजधानी में अध्ध्यनरत हैं उन्हें प्रेरित कीजिये। ऐंसी व्यवस्था बनाइये की वे मंदिर के आसपास ही रहकर अध्यन कर सकें और इसके लिए एक व्यवस्थित छात्रावास होना चाहिए। संस्कारों को यदि प्रतिस्ठापित करना चाहते हैं तो सबसे पहले ये काम प्रारम्भ कीजिये। उन्होंने कहा कि कोई भी काम करने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत होती है जैंसे मुम्बई में टिफिन का कार्य शाकाहारी कुछ लोगों द्वारा प्रारम्भ किया गया था जो आज सफलता पूर्वक चल रहा है, आपके यहाँ भी आप ऐंसे रचनात्मक कार्य कर सकते हैं जिनसे विद्यार्थियों को शुद्ध आहार मिल सके क्योंकि शुद्ध आहार से ही बुद्धि का विकास होता है। आप भले ही सौधर्म इंद्र बन जाओ आपको एक बार पुजन का मौका मिलेगा परंतु युवा पीढ़ी में यदि आप संस्कार डाल दोगे तो वे बार बार आपके द्वारा स्थापित जिनालय में पूजन करने आएंगे और सदियों तक ये परंपरा कायम रहेगी।
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