गाय से वात्सल्य करें ।
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि मेहमान के यहाँ खुलकर के कार्य नहीं कर पाते हैं संकोच से करते हैं। विदेश में ऐसे प्रयोग कर रहे हैं गाय का दूध 45 रू. लीटर है। उस दूध का नाम अहिंसक दूध रखा है, वहाँ गाय के नाम भी रखे जाते हैं श्यामा, गोरी आदि शब्दों में अंतर आ जाता है, वह दूध ज्यादा देती है। आपके प्रेम, वात्सल्य से बहुत अंतर आता है जैसे बच्चों में आहलाद होता है वैसे ही गायों में होता है। उस दूध का सेवन करने के बाद कहते हैं ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिलता। संस्कृत श्लोक, संगीत सुनाये जाते हैं उससे भी लाभ होता है। वहाँ का वातावरण ऐसा बना है कि सब ठीक रहता है। शब्द ऐसे बोलो कि गुलाब जामुन को लोग भूल जायें कैसे बोलना, कब बोलना यह महत्वपूर्ण है। शब्दों का व्यवस्थान भी महत्वपूर्ण है। जहाँ भी रहो अच्छा वातावरण बनाओ। ये लोग बडे़ बाबा के पास से आये हैं, बडे़ बाबा सिंहासन पर बैठ ही गये सबसे ज्यादा श्रेय दमोह वालो को जाता है। जो अच्छे आचरण वाले हैं उनके गुणों की कथा हम करते रहें। आप चाँवल चढ़ाते समय ध्यान रखें बच्चों को नहीं दें बादाम वगैरह दें जिससे बिखरायें नहीं। चढ़ाते समय गिरना नहीं चाहिये भगवान तो कुछ बोलते नहीं हैं इसलिये हम बोल रहे हैं। आप अच्छे से पालन करेंगे तो तालियाँ बजायेंगे लोग। पूजन कैसे करना यह भी ध्यान में रखना चाहिये। एक पूजन एक सांथ सामूहिक करेंगे तो आनंद आयेगा। ऐसी चेष्टा मत करो जिससे कि लोग बिगड़ जायें। नेता ऐसा हो जिससे लोग सींखे। एक नेता अच्छा होता है तो सबको लाभ होता है। तभी समाज का विकास, उद्धार होता है। अच्छाइयों का प्रचार – प्रसार होता रहना चाहिये। आप रोते हो तो यह सोचो की रोने की नौबत आयी क्यों ? बच्चे आचरण से नहीं गिरें क्योंकि आचरण से गिरे तो कोई नहीं उठा सकेगा। नेतृत्व देने वाले बहुत मजबूत होना चाहिये। एक शिक्षक को तैयार करने में करोड़ो रूपये व्यय होते हैं। आदर्श शिक्षक – शिक्षिकायें बहुत बड़ी निधि है। गरीब हो, अमीर हो सबको पढ़ाते हैं। कालेज तो खूब खुल रहे हैं पढाने वाले नहीं है। परीक्षा ली नहीं जाती दी जाती है। आज सब कम्प्यूटराइज हो गया है। भगवान से हम प्रार्थना करते हैं कि सबकी संलेखना अच्छी हो। भगवान के यहाँ कोई नौकर नहीं होता है तुम यदि स्वयं द्रव्य धोओं और और झाडू लगाना भी सौभाग्य है। यह सोंचे की मैं महान कार्य कर रहा हूँ अहो भाग्य समझो अपना। भगवान के दरबार में किया हुआ कोई कार्य व्यर्थ नहीं जाता है। आचार्य श्री ने कन्नड़ में प्रवचन किया एवं दमोह (म.प्र.) से 300 लोग एवं गोटेगांव से 200 लोग आये थे आचार्य श्री के दर्शन के लिये।
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