दर्पण हमें अपनी कमियां दिखलाता है
राष्ट्र संत जैनाचार्य विद्यासागरजी ने कहा कि वीतराग प्रभु को देखकर हमारे भाव शुद्ध होते हैं। मुनिराज भी पूज्य होते हैं, इनकी उपासना के महात्मय को चक्रवर्ती भरत और बाहुबली की कथा सुनाते हुए कहा कि अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए दोनों बाहुबल से लड़ रहे थे, किंतु सब कुछ जीतने बाद भी बाहुबली ने अपना सर्वस्व त्याग कर बैराग्य धारण कर लिया। उन्होंने कहा कि दर्पण हमें हमारी कमियां दिखाता है। हम अपनी कमियों को दूर कर भगवान की भक्ति पूजन करें, यही संदेश हमें प्रभु से मिलता है।
आकांक्षा लॉन में दोपहर की प्रवचन माला में आचार्यश्री ने कहा कि तीर्थंकर अर्हन्त भगवान के उपदेश देने की सभा को समवशरण कहते हैं, वहां मुनष्य, देव, तीर्यंच आकर उपदेश सुनते हैं। यहां सुख, शांति, समता, अहिंसा, वात्सल्य की प्राप्ति होती है। यहां भगवान की दिव्य ध्वनि खिरती है। वर्तमान में प्रतिबिम्ब के रूप में भगवान विराजमान रहते हैं। एक बड़ा समवशरण है बाकी 24 छोटे समवशरण हैं जिनमें प्रतिमाएं विराजमान हैं। उन्होंने कहा कि समूचे छत्तीसगढ़ के मंदिरों के प्रतिबिम्ब इस समवशरण में विराजमान हैं। इन्हीं प्रतिमाओं के आगे सभी भक्ति पूजन करते हैं यह विधान दमोह, जबलपुर के बाद छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ है।
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