पाक कलाकार विद्याधर - 93 वां स्वर्णिम संस्मरण
अंधियारे भवारण्य के ज्ञानप्रकाश गुरुवार श्री ज्ञान सागर जी महाराज को त्रिकाल वंदन करता हूँ.... हे गुरुवर!आज में आपको आपके शिष्य, पाक कलाकार विद्याधर के बारे में बताता हूँ। इस सम्बन्ध में विद्याधर की बहने ब्रम्हचारिणी सुश्री शान्ता जी, सुश्री सुवर्णा जी ने प्रश्न का जवाब लिखकर भिजवाया पाक कलाकार विद्याधर "भोजन करना अलग बात है, भोजन बनाना अलग। जिसे पाक कला के नाम से जाना जाता है। पाक कला से संस्कृति का परिचय सहज हो जाता है। इस कला में महिलाएं निपुण होती है, किन्तु पुरषों का निपुण होना कला सज्ञा को प्राप्त होता है। भाई विद्याधर जी माँ के साथ अक्सर भोजन बनाने में सहयोग करते रहते थे यो वो भी पाक कला।निपुण बन गए थे।
एक बार पर्युषण पर्व के दौरान विद्याधर ने माता-पिता को पूछा- आज आप विधान में कोनसा चरू(नैवेद्य) चढ़ायेंगे ? आप बतायें। मै आपको बनाकर दे दूँगा। तब विद्याधर जी ने मैदा ओर शुद्ध घी से करंजा(गुजिया), कमल पुष्प बनाकर माँ के हाथ मे दे दिया था। उस सुंदर और मनमोहक चरु को चढ़ाकर माँ-पिताजी हर्षित हुए थे। त्यौहार में अपने मनपसंद पकवान बनाकर सभी को खिलाते थे।"
इस प्रकार विद्याधर माँ के साथ भोजन बनाने में सहयोग करता रहता था। तो अनसाय ही पाक कला निपुण हो गया था। आदि पुतान में भी आया है कि पुरुष की ७२ कलाएं होती है। ओर स्त्रियों की ६४ कलाएं। विद्याधर बहुत सी कलाएँ सिख चुका था। आज साधना में आत्म उद्धार की कला में निपुण बन गए है। ऐसे आत्मोद्धार कला विज्ञ को देख सहज ही नतमस्तक हो जाते है लोग, मेरा भी उन पावन चरणों को नमन.....
अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
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