विद्याधर का ज्ञानविनय - 94 वां स्वर्णिम संस्मरण
आत्माभा में लीन गुरु ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों मे सीमातीत वंदन... हे गुरुदेव! आपने ज्ञानपिपासु ब्रम्हचारी विद्याधर में जोज्ञान ज्योति प्रज्ज्वलित की। जिसे आज तक मेरे गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज दिन-रात जलाये रखते है। किसी को उपसर्ग-परिषह-संकटो को झंझावातो में बूझने नही देते है। यह संस्कार बचपन से ही विद्याधर को प्राप्त हुए थे। इस सम्बन्ध में विद्याधर की गृहस्थावस्था की बहने ब्रह्महचारिणी सुश्री शान्ता, सुश्री सुवर्णा जी जब अशोकनगर(म.प्र.) प्रवास में थी, तब संस्मरण लिखकर भेजा था। वह आपको।बता रहा हूं-
विद्याधर का ज्ञानविनय
"ज्योति जल-जलकर उजाला देती है, जगत् में उजाला फैलाती है, खुद उजाले में रहकर उजाले में रहने की शिक्षा देती है एवं अखण्ड जलकर अखण्डता का उपदेश देती रहती है। ऐसी अखण्ड ज्योति घर पर जिनवानी शास्त्रों के समक्ष पिताजी (मलप्पाजी) ने १८ वर्ष तक प्रज्वलित कर रखी थी। तब विद्याधर उसे बूझने नही देते थे । सदा उसे सम्हालते रहते थे। रात में भी उठकर देखते थे और बाती बगैरह ठीक करके घी डालते थे।" इस प्रकार लौकिक सगुन से जीवन का मंगल बनाये रखने के लिए पारिवारिक रीति-रिवाजों का पालन किया करते थे। ज्ञानज्योति प्रज्ज्वलित करने हेतु नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु.....
अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
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