ब्र. विद्याधर जी ने बताया सवारी त्याग का मतलब - 89 वां स्वर्णिम संस्मरण
चरित्र सौरभ के प्रवाही गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज! मेरे कोटि-कोटि नमन स्वीकारें... हे गुरुवर!आज मैं आपको वह दिन याद करा रहा हूं जब भोले- भाले ब्रह्मचारी विद्याधर जी की बात सुनकर श्रावक समूह के साथ आप भी अत्याधिक मुस्कुरा उठे थे। इस संबंध में मुनि निर्वेगसागर जी महाराज ने सन 1997 नेमावर चातुर्मास की स्वाध्याय कक्षा में आचार्य श्री के मुख से सुना संस्मरण लिख भेजा, वह मैं आप तक प्रेषित कर रहा हूं-
जब विद्याधर किशनगढ़ में गुरु महाराज ज्ञानसागर जी के पास आया और सवारी का त्याग कर दिया। एक दिन एक श्रावक ने विद्याधर से कहा- त्यागी जी हमारे यहां भोजन को चलो, तो विद्याधर उनके साथ तांगे पर बैठकर चला गया। 4-5 किलोमीटर दूर घर था। वापस आया तो गुरु महाराज के पास कुछ श्रावक बैठे हुए थे, उन्होंने देखा कि विद्याधर जी किसके साथ आए और तब उन श्रावकों ने गुरु महाराज ज्ञानसागर जी से पूछा- यह कैसा सवारी का त्याग ये तो तांगे पर बैठकर आहार लेने गए और वापस आए। तो बीच में विद्याधर बोल पड़े- क्या तांगा भी सवारी में आता है, यह तो मुझे ज्ञात नहीं था, मेरा भाव सवारी त्याग करने का यह था कि - आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। विद्याधर कि इस सहजता, सरलता को देखकर ज्ञानसागर जी महाराज और श्रावक लोग मुस्कुराने लगे। इस तरह विद्याधर की सहजता, सरलता और भोलापन आप को भा गया था। उस सहज, सरल भावों को प्रणाम करता.......
अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
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