दयासागर गुरुवर - 85 वां स्वर्णिम संस्मरण
ब्रह्मांड ज्ञान ऊर्जा धारक गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज आपके ज्ञानाचरण को नमन करता हूं...... हे गुरुवर! दया अहिंसा की मां है दया ही अहिंसा में परिणत होती है। विद्याधर सहज उत्पन्न दया के भंडार थे।यही कारण है कि विद्याधर की शुद्ध दया ही अहिंसा महाव्रत में परिणत हुई।
इस संबंध में मुनि योग सागर जी महाराज ने बताया-
जेसे दूध में घी तैरता है वैसे ही भव्य पुरुष के हृदय में दया स्वाभाविक रूप से तैरती हुई नजर आती है। दया-अहिंसा,परोपकार को जन्म देती है योगियों की योग्यता का मापदंड दया है बचपन की दया ने विद्याधर को दया का सागर विद्यासागर बना दिया। बचपन में एक बार विद्याधर ने घर के एक कोने में चूहे का एक बड़ा बिल देखा, उसमें नवजात चूहे का बच्चा तड़प रहा था। उसके शरीर पर लाल चीटियां काट रही थी। देखते ही विद्याधर ने शिशु चूहे को अपने हाथों में उठा लिया और एक एक करके चीटियों को फूँक से उड़ा दिया। वह शिशु चूहा बच गया। उसी समय माँ ने देखा और पूछा-क्या कर रहे हो ?
विद्याधर ने बताया, तब मां बोली-यह तिर्यंच गति दुख की गति है, इस प्रकार से तिर्यंच जीव संसार में सदा दुःख उठाते हैं। दुखी जीवों पर दया करना अच्छी बात है, किंतु शिक्षा भी लेना चाहिए ऐसी गति में जाने से बचना चाहिए। विद्याधर ने मां को कहा- "मैं सदा दुखी जीवों को बचाऊँगा और ऐसे कोई कार्य नहीं करूंगा जिससे तिर्यंच गति में जाना पड़े। और शिशु चूहे को ऊंचे स्थान पर रख दिया जिससे अन्य जीव उसे पीड़ा न पहुंचा पाए।"
इस प्रकार आज आपके दिव्य शिष्य की प्रेरणा से सैकड़ों गौशालाएं संचालित हो गई है। जहां पर क़त्ल खानों से लक्षाधिक गौवंश को बचाया गया है। बचपन की दया आज दया का सागर बन गई है।
ऐसे अहिंसा के पुजारी गुरुवर को नमोस्तु............
अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
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