प्रथम परिक्षा के परीक्षक हुए हक्के-बक्के - 95 वां स्वर्णिम संस्मरण
आत्मपरीक्षक, आत्मोत्तरदाता, आत्मसमालोचक, गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज की आत्मदृष्टि को कोटिशः प्रणाम करता हूं...हे गुरुवर! आपश्री ने दादिया ग्राम में ब्रम्हचारी विद्याधर जी की साधना की चार बार परीक्षा ली थी ओर ब्रम्हचारी जी उन परीक्षा में शतःप्रतिशत पास ही नही हुए बल्कि त्यागी विद्यार्थी के रूप में सब के आदर्श बन गए थे। इस बारे में दादिया के पारस झाँझरी सुपुत्र हरकचंद जी झाँझरी ने बताया।
प्रथम परीक्षा में परीक्षक हुए हक्के- बक्के
"दादिया प्रवास में ब्रम्हचारी विद्याधर जी बडी ही साधना करते रहते थे। वे भोजन में नमक- मीठा नही लेते थे और मुनि दीक्षा लेने की तीव्र भावना रहती थी। इसलिए गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज परीक्षा लेते रहते थे। एक बार रात को ज्ञानसागर जी महाराज ने मेरे पिताजी हुकुमचंद जी झाँझरी को इशारे से पूछा कि ब्रम्हचारी विद्याधर कहा पर है ? तब पिताजी ने मंदिर, धर्मशाला सब जगह देख लिया, नही मिले। तो बाहर जाकर आस-पास भी देख लिए नही मिले। तो हम युवाओं को बुलाकर घबड़ाते हुए बताया ब्रम्हचारी विद्याधर जी नही दिख रहे है ढूढो कहा है ? हम युवा चारों तरफ दौड़ पड़े ढूढ़ाढूढ़ मच गई। कही नही मिले, फिर पिताजी को याद आया कि मंदिर की छत पर भी देख लेते है, ऊपर जाके देखा तो वो ध्यान में एक पैर से खड़े हुए थे। आधी रात का समय हो गया था। हम सभी लोग थक गए थे, सो सोने चले गए। वो कब नीचे आये पता नही, ऐसी कठोर साधना मुनि बनने के लिए ब्रम्हचारी विद्याधर जी करते थे जिसे देख सुनकर सभी हक़ी-बक्के रह गए थे।"
अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
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