लोक संस्कृति शरद पूर्णिमा का उत्सव - 98 वां स्वर्णिम संस्मरण Follow 0 Promote
सूक्ष्मातिसूक्ष्म संबोधनात्मक कल्पना शक्ति की धनि महाकवि गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में सीमातीत नमोस्तु..... हे गुरुवर! दक्षिण की त्यौहार हो या सामाजिक कोई कार्यक्रम या लोक संस्कृति का कोई उत्सव परिवार की सहभागिता में बालक विद्याधर सदा उत्साह के साथ बालोचित कार्य करके सभी की शाबाशी लेता था। इस संबंध में एक स्मृति आपकी लिख रहा हूं जो विद्याधर के अग्रज भाई महावीर जी ने बतलाई - दक्षिण के सभी लोग शरद पूर्णिमा के दिन अपने अपने खेतों पर जाते हैं और भूमि पूजन करते हैं। हम लोग भी प्रतिवर्ष जाते हैं। उस दिन घर से भोजन पकवान आदि बनाकर ले जाते हैं और वहां जाकर 10 -11 बजे खेत पर पेड़ के नीचे बैठते हैं और भूमि पूजन करते हैं। विद्याधर 4-5 वर्ष की अवस्था से ही खेत पर चूहों के लिए, पक्षियों के लिए, गिलहरियों के लिए भोजन खिलाता था।और सभी के लिए केले के पत्ते धोकर के ही देता था। उस पर रखकर हम सभी लोग भोजन करते थे। शाम को हम घर वापस आ जाते थे। उसकी इस क्रिया को देख मां उसे शाबासी देती थी। इस तरह विद्याधर अपनी प्रत्येक अवस्था में अपनी भूमिका के अनुसार कर्तव्य का पालन करके सभी का मन जीत लेता था। ऐसे लोग एवं धर्म संस्कृति के ज्ञाता गुरुवर के चरणों में नमोस्तु करता हुआ......
अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
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