ज्ञानतीर्थ की वंदना का संकल्प - 90 वां स्वर्णिम संस्मरण
चलते फिरते तीर्थ गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणो में भावों की विशुद्धिपूर्वक प्रणाम करता हूं..... हे गुरूवर! किशनगढ़ चातुर्मास की एक विशेष बात आपको याद होगी कि-जब विद्याधर को आपने तीर्थ यात्रा जाने की बात कही थी, किंतु उन्होंने मना कर दिया था। इस संबंध में श्रीमती कनक जैन (दिल्ली)हाल निवासी ज्ञानोदय, अजमेर ने बताया- जब हम किशनगढ़ गुरु महाराज के दर्शन करने के लिए आए तब यह बात पता चली, वही बात मैं आपको लिख रहा हूं-
सन 1967 में किशनगढ़ के कुछ सज्जनों ने ब्रह्मचारी विद्याधर को निवेदन किया कि- यात्रा के लिए बस जा रही है,आप भी चलिए, तीर्थ यात्रा हो जावेगी। तो ब्रम्हचारी विद्याधर जी ने मना कर दिया बोले- मुझे बहुत पढ़ना है। तो वह सज्जन आचार्य श्री ज्ञानसागर जी के पास आए और बोले- गुरु महाराज हम लोग यात्रा पर जा रहे हैं विद्याधर जी को चलने का निवेदन किया तो वह मना कर रहे हैं। तब गुरुवर ज्ञान सागर जी बोले- विद्याधर!तीर्थ यात्रा पर चले जाओ मना क्यों कर रहे हो ? तब विद्याधर बोले- "महाराज! मैंने आपके चरणों में वाहन का त्याग कर दिया है और मुझे ज्ञान तीर्थ की यात्रा करनी है, जो मैं कर रहा हूँ। आपके चरणो को छोड़कर मुझे कहीं नहीं जाना है।"
इस प्रकार विद्याधर एक सच्चे अन्तरयात्री थे, जो ज्ञान रथ पर सवार होकर गुरु के सम्यक् ज्ञान तीर्थ की वंदना करने निकल पड़े थे। ऐसे सम्यक् ज्ञान तीर्थ की मैं वंदना करता हूं। अपने गुरु के रत्नत्रय तीर्थ की मैं सदा वंदना करता हूं इस भावना के साथ.......
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