ब्र विद्याधर जी ने पाप-पुण्य की समझाइस दी - 101 वां हीरक संस्मरण
भवभव के नीरंध्र अज्ञान को ज्ञानप्रभा से भेदने वाले गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में त्रिकाल प्रणति अर्पित करता हूँ..... हे गुरुवर! अब में नसीराबाद के कुछ संस्मरण आपको प्रेषित कर रहा हूँ। ब्र विद्याधर जी आपके साथ-साथ जहाँ भी जा रहे थे वहाँ के लोग उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होते और उनकी मधुर बातों से शिक्षा लेते। विद्याधर की साधना ऐसी साधना थी जिसको देखकर हर कोई अचम्भित हुए बिना नही रहता था। आज जब नसीराबाद के किसी भी समाज जन से उस समय की बात करते है तो वो ब्र विद्याधर के अनेकों संस्मरण सुनते हुए नही थकते। कुछ एक प्रसंग आपको लिख रहा हूँ। नसीराबाद के प्रवीण गदिया जी ने बताया....
ब्र विद्याधर जी ने पाप-पुण्य की समझाइस दी
"अप्रैल-मई दो माह नसीराबाद में मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने संघ सहित विहार किया। उनके साथ बहुत सुन्दर ब्रम्हचारी भैया जी भी थे। नसीराबाद वालो को जब यह पता चला कि भैया जी कर्नाटक के है तो समाज के लोग ओर युवा लोग जो कभी मंदिर नही जाया करते थे। वे भी उनके दर्शन के लिए मंदिर जाने लगे थे, लेकिन ब्रम्हचारी जी अपनी क्रियाओं में दत्तचित्त रहते थे। किसी को भी मिंलने का समय नही दिया करते थे। एक बार हम कुछ युवा लोग सामयिक के समय पर गए। तो वह कमरा बंद करके सामायिक कर रहे थे। हम लोगो ने खिड़की से झाँक के देखा तो वो पूर्ण दिगम्बरावस्था में खड़े होकर सामायिक कर रहे थे। तब हमारे एक साथी ने जयकारा किया मुनि विद्याधर महाराज की जय और हम लोग वहां से चले गए। शाम को पुनः गए तो ब्रम्हचारी विद्याधर जी बोले दोपहर में आप लोगो ने ऐसा ... जय बोला था। ऐसा बोलने में पाप लगेगा ओर मुनि ज्ञानसागर जी महाराज की जय बोलोगे तो पुण्य लगेगा।
अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
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